“जो नर दुःख में दुःख नहीं मानै’ कविता का भावार्थ लिखें।
“जो नर दुःख में दुःख नहीं मानै’ कविता का भावार्थ लिखें।
उत्तर :- प्रस्तुत कविता में कवि ईश्वर की निर्गुणवादी सत्ता को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि जो मनुष्य दु:ख को दुःख नहीं समझता है अर्थात् दुःखमय जीवन में भी समानरूप में रहता है उसी का जीवन सार्थक होता है। जिसके जीवन में सुख, धार भय नहीं आता है अर्थात् इस परिस्थिति में भी तटस्थ रहकर मानसिक दुर्गुणों को दूर करता है, लोभ से रहित सोने को भी माटी के समान समझता है वही प्रभु की कृपा प्राप्त कर सकता है । जो मनुष्य न किसी की निंदा करता है, न किसी की स्तुति करता है, लोभ, मोह अभिमान से दूर रहता है, न सुख में प्रसन्नता जाहिर करता है और न संकट में शोक उपस्थित करता है तथा मान-अपमान से रहित होता है वही ईश्वर भक्ति के सुख को प्राप्त कर सकता है।
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