ज्ञान क्या है ? इसके महत्त्व को बताइये ।

ज्ञान क्या है ? इसके महत्त्व को बताइये ।

उत्तर— ज्ञान क्या है?— ज्ञान एक ऐसा शब्द है जो सामान्य रूप से प्रयोग किया जाता है। ज्ञान किसी वस्तु या विषय के सम्बन्ध में यथार्थ जानकारी है। ज्ञान का अर्थ बहुत व्यापक है। ज्ञान शब्द का प्रयोग किसी वस्तु या विषय के सम्बन्ध में उसके वर्णन से होता है। ज्ञान का प्रयोग भौतिक जगत् एवं आध्यात्मिक जगत् दोनों के सन्दर्भ में किया जाता है। भौतिक जगत् की वस्तुओं का ज्ञान उसके सम्पर्क में आने पर किया जाता हैं । यह ज्ञान इन्द्रिय अनुभव के आधार पर ही सम्पन्न होता है। जैसेहमने हाथी को देखा। प्रथम बार देखा तो आँखों के द्वारा अपने उसके विशालकाय शरीर, लम्बी सूँड एवं चार पैरों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया। अतः आध्यात्मिक ज्ञान के सन्दर्भ में साक्ष्य, तर्क, बुद्धि तथा अन्तः प्रज्ञा आदि का सहारा लिया जाता है ।
ज्ञान का प्रत्यक्ष सम्बन्ध यथार्थ से है। ज्ञान के द्वारा वस्तु के उस यथार्थ स्वरूप को जाना जाता है, जिस स्वरूप में वह है । अतः उस सीमा तक यथार्थ रूप में होगा जिस सीमा तक वह उस वस्तु को उसी रूप में प्रस्तुत करता है, जिस रूप में वह वस्तु पहचानी जाती है। यदि ज्ञान के प्रकाश में हम उस वस्तु के दर्शन नहीं कर पाते तो यह माना जाता है, वह इस प्रकार की है यद्यपि वास्तव में उसका स्वरूप कुछ और ही है। इसको एक उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं- “संसार यथार्थ रूप में मिथ्या है और ब्रह्म सत्य है।” ज्ञान के द्वारा ज्ञान के अभाव में हम उक्त स्वरूप को न समझकर यह मानते हैं कि संसार सत्य है और ईश्वर मिथ्या है। यह हमारा प्रतीत होने वाला स्वरूप होगा । यथार्थ रूप में तो संसार असत्य है और ईश्वर सत्य है । अतः ज्ञान की अवधारणा यथार्थ, यथार्थ में विश्वास तथा यथार्थता के लिये उचित प्रमाण में निहित है।
ज्ञान का महत्त्व–ज्ञान की शिक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । ज्ञान के अभाव में बालकों का सर्वांगीण विकास अवरुद्ध हो जाता है। अतः यह आवश्यक है कि एक शिक्षक द्वारा यथार्थ ज्ञान की अवधारणा को समझकर छात्रों का शैक्षिक विकास एवं शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में अपनी भूमिका का निर्वहन करना चाहिये। ज्ञान की आवश्यकता एवं महत्त्व को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है—
(1) चरित्र के विकास के लिए आवश्यक–चरित्र के विकास के लिये यह आवश्यक है कि छात्रों को विभिन्न प्रकार के तथ्यात्मक एवं परिचयात्मक ज्ञान से परिचित कराया जाये। छात्रों को विभिन्न नैतिक शिक्षा सम्बन्धी पुस्तकों का अध्ययन कराया जाए। इन पुस्तकों के माध्यम से छात्रों में सहनशीलता एवं परोपकार जैसे चारित्रिक गुणों का विकास होता है। अनेक प्रकार की घटनाओं एवं शिक्षक के व्यवहार को देखकर भी छात्रों में चारित्रिक गुणों का विकास होता है। अतः विभिन्न प्रकार के चारित्रिक गुणों के विकास में तथ्यात्मक एवं परिचयात्मक ज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है।
(2) रोजगार के लिये आवश्यक–विद्यालय में छात्रों के अध्ययन का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ अपने आपको रोजगार के लिये तैयार करना होता है। रोजगार की तैयारी में कौशलात्मक ज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। विभिन्न प्रकार के कौशलों का ज्ञान प्राप्त करके ही छात्र विभिन्न प्रकार के रोजगार प्राप्त करते हैं। कौशलात्मक ज्ञान के माध्यम से ही छात्र विभिन्न प्रकार की शिल्प-कलाओं के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करते हैं जिनके आधार पर रोजगार प्राप्त करके अपना जीवनयापन करते हैं ।
(3) उच्च जीवन स्तर के लिए आवश्यक–विभिन्न प्रकार के तथ्यात्मक एवं कौशलात्मक ज्ञान के माध्यम से छात्रों का जीवन स्तर उच्च होता है। जैसे—कुछ कौशल ऐसे होते हैं जिनका वह जीवन में कुशलतापूर्वक उपयोग करके अपने जीवन को सुखमय बनाता है; जैसेएक छात्र स्कूटर चलाने एवं कार चलाने का तथा छात्राएँ भोजन सम्बन्धी कौशलों को प्राप्त करती हैं जिससे वे अपने जीवन को सुखमय बनाते हैं। छात्रों में प्राथमिक स्तर से ही विभिन्न कौशलों के विकास की आवश्यकता होती है जिससे वे अपने भावी जीवन को उच्च स्तर का बना सकें ।
(4) आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक–ज्ञान की प्रमुख आवश्यकता आध्यात्मिक विकास के उद्देश्य को पूर्ण करने में होती है शिक्षा एवं ज्ञान के द्वारा बालक में आध्यात्मिक गुणों का विकास होता है। बालक अपने भावी जीवन में नैतिकता एवं मानवता के आधार पर आध्यात्मिक विकास को प्राप्त करने का प्रयास करता है। विद्यालयी व्यवस्था में तथ्यात्मक ज्ञान के आधार पर अनेक दार्शनिकों एवं शिक्षाशास्त्रियों के विचारों का अध्ययन छात्रों को कराया जाता है । आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में उनके विचार जानकर सभी छात्र उन विचारों को आत्मसात करते हैं तथा धीरे-धीरे छात्रों में आध्यात्मिक ज्ञान के विकास का मार्ग प्रशस्त होता है ।
(5) छात्रों के सन्तुलित विकास के लिये आवश्यक–छात्रों में सन्तुलित विकास के लिये यह आवश्यक होता है कि उनको तीनों प्रकार के ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया से परिचित कराया जाये जिससे छात्रों का शारीरिक एवं मानसिक विकास संभव होता है । शारीरिक विकास एवं मानसिक विकास ही छात्रों के सन्तुलित विकास का मार्ग प्रशस्त करता है क्योंकि शारीरिक एवं मानसिक रूप से एक स्वस्थ छात्र प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है इस प्रकार छात्रों के सन्तुलित विकास के लिये ज्ञान की अत्यधिक आवश्यकता होती है ।
(6) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की प्रभावशीलता के लिये आवश्यक–शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के विकास के लिये भी छात्रों में अधिगम कौशलों का विकास होना चाहिए तथा शिक्षक को समस्त शिक्षण कौशलों का ज्ञान होना चाहिए। दोनों पक्षों को यदि अपने कौशलों का ज्ञान होगा तो शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावी रूप से सम्पन्न होगी। इसके विपरीत छात्र एवं शिक्षक दोनों को ही अपने कौशलों के सन्दर्भ में ज्ञान नहीं होगा तो शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावी रूप में सम्पन्न नहीं होगी। इस कार्य के लिये शिक्षण कौशलों के रूप में शिक्षकों को प्रस्तावना कौशल, व्याख्या कौशल, श्यामपट्ट लेखन कौशल आदि का ज्ञान प्रमुख रूप से प्रदान किया जाता है जिससे वे अपने छात्रों को उचित रूप से शिक्षण प्रदान कर सकें। अतः ज्ञान के माध्यम से छात्रों एवं शिक्षक दोनों में ही कौशलों का विकास होता है तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावी रूप से सम्पन्न होती है।
(7) व्यावसायिक विकास के लिए आवश्यक–व्यावसायिक विकास के लिये यह आवश्यक है कि शिक्षक द्वारा छात्रों को कौशलात्मक ज्ञान प्रदान किया जाये। अर्थात् विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में जाने के लिए कौशलात्मक ज्ञान की आवश्यकता होती है, उदाहरणार्थ- छात्रों को अपने जीवन यापन के लिये विभिन्न प्रकार के व्यवसायों का चयन करना पड़ता है। इन व्यवसायों के आधार पर ही छात्रों में व्यवसाय से सम्बन्धित कौशलों का विकास करना आवश्यक है। इससे यह स्पष्ट होता है कि विभिन्न प्रकार के कौशलों के विकास के लिये कौशलात्मक ज्ञान छात्रों के लिये महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है ।
(8) अवकाश का सदुपयोग के लिये आवश्यक–अवकाश के समय में छात्र अनेक प्रकार की गतिविधियों को मनोरंजन की दृष्टि से सम्पन्न करते हैं । इस मनोरंजन के साथ-साथ छात्र अनेक कौशलों का ज्ञान भी सीख सकते हैं जिनसे उनके ज्ञान में भी वृद्धि होगी तथा उनका मनोरंजन भी होगा। उदाहरणार्थ–मनोरंजन के रूप में टेबिल टेनिस, क्रिकेट तथा वॉलीबाल खेल सिखाये जा सकते हैं। खाली समय में छात्रों को स्वाध्याय करने के लिये प्रेरित किया जा सकता है जिससे अनेक प्रकार की कहानियाँ पढ़ी जा सकती हैं जिनसे उनको ज्ञान के साथ-साथ गुणों का विकास भी हो जाता है । इस प्रकार विभिन्न प्रकार के ज्ञान के माध्यम से छात्र अपने खाली समय का सदुपयोग कर सकते हैं।
(9) सामाजिक गुणों के विकास के लिये आवश्यक–ज्ञान के माध्यम से छात्रों में सामाजिक गुणों का विकास किया जा सकता है। विद्यालय में सम्पन्न होने वाले प्रत्येक सामुदायिक कार्यक्रमों में जिनमें कि समाज की सहभागिता होती है छात्रों द्वारा सहयोग किया जाता है। इस प्रकार छात्रों द्वारा उन कार्यक्रमों को देखकर तथा उनमें भाग लेकर छात्रों में सामाजिक गुणों का विकास होता है, जैसे- प्रेम, सहयोग एवं कर्त्तव्यनिष्ठा आदि । इस प्रकार कार्यक्रमों को छात्र जब प्रत्यक्ष रूप से देखता है तो परिचयात्मक ज्ञान का प्रयोग करता है, जब उसमें भाग लेकर कौशल का प्रदर्शन करता है तो कौशलात्मक ज्ञान का प्रयोग करता है। इस प्रकार ज्ञान के द्वारा सामाजिक गुणों का विकास होता है ।
(10) शारीरिक विकास के लिए आवश्यक–शारीरिक विकास के लिये यह आवश्यक है कि छात्रों में विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास किया जाये। विद्यालय में विभिन्न प्रकार के खेलों का आयोजन तथा पी.टी. आदि का आयोजन इस उद्देश्य से किया जाता है कि छात्रों में गत्यात्मक कौशलों का विकास हो जिससे वे अपने समस्त शारीरिक अंगों को पुष्ट कर सकें। शारीरिक विकास में विद्यालयी खेलों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ज्ञान के माध्यम से शिक्षक यह जान जाता है कि प्राथमिक स्तर पर शारीरिक विकास के लिये किन-किन खेलों को विद्यालयी व्यवस्था में स्थान मिलना चाहिये? इस प्रकार ज्ञान की शारीरिक विकास में महत्त्वपूर्ण आवश्यकता होती है ।
(11) सांस्कृतिक विकास के लिये आवश्यक–सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य भी छात्रों के द्वारा ज्ञान के माध्यम से ही प्राप्त किया जाता है। इसमें छात्र परिचयात्मक ज्ञान का सहारा लेता है। विद्यालय में होने वाले विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में छात्रों की सहभागिता होती है। इसमें कुछ छात्र प्रत्यक्ष रूप से भाग लेते हैं तथा कुछ छात्रों के द्वारा इन कार्यक्रमों को देखा जाता है। इन कार्यक्रमों के देखने से छात्रों को अपनी संस्कृति के प्रमुख तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त होता है। इससे सभी छात्रों का सांस्कृतिक विकास सम्भव होता है। इससे स्पष्ट होता है कि सांस्कृतिक विकास एवं संस्कृति सम्बन्धी जानकारी में ज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
(12) शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग एवं निर्माण के लिये आवश्यक–शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण का ज्ञान एक शिक्षक के लिये महत्त्वपूर्ण होता है। ज्ञान के माध्यम से शिक्षक विभिन्न प्रकार की शिक्षण अधिगंम सामग्री के निर्माण की प्रक्रिया को सीखता है । शिक्षक का यह ज्ञान कौशलात्मक ज्ञान की श्रेणी में आता है। शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग सम्बन्धी तथ्यों को शिक्षक विभिन्न विद्वानों के विचारों एवं पुस्तकों के द्वारा सीखता है । यह ज्ञान तथ्यात्मक ज्ञान की श्रेणी में आता है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि शिक्षक को शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग एवं निर्माण में ज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
(13) समायोजन क्षमता के विकास के लिये आवश्यक– समायोजन क्षमता के विकास के लिये भी ज्ञान वरदान के रूप में सिद्ध होता है क्योंकि ज्ञान के आधार पर ही बालक विभिन्न प्रकार के व्यवहारों का प्रदर्शन करता है तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण करना सीखता है । उदाहरणार्थ—एक छात्र विद्यालय में प्रवेश करता है तो वह शिक्षक के व्यवहार को अनेक रूपों में अपने उपयोग एवं व्यवस्था में भिन्न पाता है; जैसे—छात्र का मन कहानी सुनने का है, शिक्षक उसको पढ़ाने का कार्य करता है जो कि उसके मनोभावों के विपरीत होता है। इसके पश्चात् भी छात्र कक्षा में बैठकर अध्ययन करने का प्रयास करता है क्योंकि वह जानता है कि उसको शिक्षक की आज्ञा का पालन करना चाहिये क्योंकि शिक्षक उसका आदर्श होता है । इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र में समायोजन क्षमता का विकास होता है ।
(14) आत्माभिव्यक्ति के विकास के लिये आवश्यक–छात्र में ज्ञान के माध्यम से आत्माभिव्यक्ति की क्षमता विकसित होती है क्योंकि प्रत्येक वस्तु या विषय के सन्दर्भ में अपने स्वयं के अनुभव को व्यक्त करने के लिये उसके सन्दर्भ में छात्रों की उस वस्तु या विषय के बारे में जानकारी भी आवश्यक होती है। इस जानकारी को प्राप्त करने के लिये उसको ज्ञान की आवश्यकता होती है। ज्ञान को इस आवश्यकता को परिचयात्मक, कौशलात्मक तथा तथ्यात्मक ज्ञान के माध्यम से ही पूर्ण किया जा सकता है। इस प्रकार प्रत्येक वस्तु एवं विषय के सन्दर्भ में अवधारणाओं के विकास तथा उनके प्रस्तुतीकरण के लिये ज्ञान की आवश्यकता होती है ।
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