कक्षा में आयोजित की जाने वाली किन्हीं दो प्रयोगात्मक गतिविधियों के बारे में लिखिए।

कक्षा में आयोजित की जाने वाली किन्हीं दो प्रयोगात्मक गतिविधियों के बारे में लिखिए।

उत्तर— कक्षा में आयोजित की जाने वाली कुछ प्रमुख गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं—
(1) पाठ पढ़ना और उसका सारांश तैयार करना– सामान्य रूप से छात्रों से मौखिक गतिविधियाँ सम्पन्न कराने के बाद लिखित गतिविधियाँ सम्पन्न करायी जाती हैं। इसमें छात्रों को वृत्तान्तों एवं कहानियों के सारांश लेखन का कार्य दिया जाता है। इस प्रक्रिया को सामान्य से विशिष्ट की ओर शिक्षण सूत्र के आधार पर क्रियान्वित किया जाता है। प्रथम अवस्था में छात्रों को छोटे-छोटे पाठों का सारांश लेखन दिया जाता है। जब छात्र इसमें पारंगत हो जाते हैं तब उनको पूरे वृत्तान्त या पाठ का सारांश लेखन करने के लिए दिया जाता है। इससे छात्रों में लेखन कौशल का विकास होता है तथा कक्षा-कक्ष में उनकी संलग्नता एवं रुचि के स्तर में वृद्धि होती है।
(2) एक दस्तावेज पढ़ना और इस पर चर्चा का आयोजन करना– जब किसी दस्तावेज का समीक्षात्मक पठन एवं अध्ययन किया जाता है उसके दृष्टिकोण के बारे में भी विचार किया जाता है। प्रत्येक दस्तावेज का एक दृष्टिकोण होता है। इस दृष्टिकोण को मूल भाव, उद्देश्य, विचार एवं अर्थ आदि से संबद्ध किया जा सकता है। इस दृष्टिकोण का संबंध विविध क्षेत्रों एवं तथ्यों से होता है; जैसे- शिक्षा का अधिकार एक दस्तावेज है। इसका मूल दृष्टिकोण शैक्षिक विकास एवं शिक्षा की सार्वभौमिकता को प्रस्तुत करना है। इसके साथ-साथ यह दस्तावेज व्यक्तिगत, सामाजिक विकास एवं राष्ट्रीय दृष्टिकोण से भी उपयोगी है। इन दृष्टिकोण के आधार पर ही दस्तावेज के प्रस्तुतीकरण की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। शिक्षा के अधिकार दस्तावेज के मूल दृष्टिकोण एवं सहायक दृष्टिकोण को समीक्षात्मक पठन के अन्तर्गत पहचाना जाता है। उसके उपरान्त उन पर समूह में परिचर्चा की जाती है। इस प्रकार दस्तावेज के प्रत्येक दृष्टिकोण को ज्ञात कर लिया जाता है। इस ज्ञान का उपयोग दस्तावेज को समूह के समक्ष प्रस्तुत करने में तथा कक्षा शिक्षण को प्रभावी बनाने में किया जा सकता है। दृष्टिकोण के प्रस्तुतीकरण की प्रक्रिया को सर्वोत्तम रूप में सम्पन्न करने के लिए समीक्षात्मक पठन एवं परिचर्चा को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित उपायों एवं सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए—
(i) स्थानीय दृष्टिकोण– प्रत्येक दस्तावेज समसामयिक होता है तथा उसमें स्थानीय विकास का दृष्टिकोण समाहित होता है। छात्राध्यापक को दस्तावेज में समाहित उस दृष्टिकोण को खोज़ना होता है जो कि उसमें छिपा होता है, जैसे- परिवेशीय स्वच्छता पर दस्तावेज का प्रकाशन होता है तो उसमें स्थानीय स्वच्छता की समस्याओं का समाधान होता है। अतः छात्राध्यापकों को प्रत्येक दस्तावेज की व्याख्या स्थानीय दृष्टिकोण से करनी चाहिए ।
(ii) सामाजिक दृष्टिकोण– प्रत्येक दस्तावेज का संबंध सामाजिक व्यवस्था से होता है। सामाजिक व्यवस्था एक व्यापक व्यवस्था है। अतः इससे संबंधित पक्ष को भी जो कि दस्तावेज का दृष्टिकोण खोजने का प्रयास करना चाहिए; जैसे- शिक्षा के अधिकार दस्तावेज का प्रमुख सामाजिक दृष्टिकोण शिक्षित समाज की स्थापना करना है तथा समाज के प्रत्येक बालक एवं बालिका को शिक्षित बनाने का प्रयास करना है।
(iii) मानवीय दृष्टिकोण– दस्तावेजों में मानवीय विकास की भावना का समावेश सामान्य रूप से देखा जाता है। इस दृष्टिकोण को समझने के लिए छात्राध्यापकों को सर्वप्रथम इस दस्तावेज का समीक्षात्मक पठन करना चाहिए तथा लघु समूह में परिचर्चा करनी चाहिए। जैसे- शिक्षा की सार्वभौमिकता से शिक्षा प्राप्त करने के अवसर बालक एवं बालिकाओं को मिलते हैं। इस प्रकार प्रत्येक दस्तावेज मानवता के दृष्टिकोण से ओत-प्रोत होता है ।
(iv) वैज्ञानिक दृष्टिकोण– दस्तावेज में समाहित विषयवस्तु सदैव वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास से संबंधित होती है। दस्तावेजों में अंधविश्वास एवं रूढ़िवादिता की भावना के समापन तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास की भावना छिपी होती है। समीक्षात्मक पठन एवं समूह परिचर्चा के माध्यम से इस दृष्टिकोण को खोजा जा सकता है; जैसे- रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग एवं नवीन तकनीकी से कृषि करने संबंधी दस्तावेज फसल उत्पादन में वृद्धि के लिए प्रकाशित होते हैं।
(v) भौतिक दृष्टिकोण– वर्तमान युग भौतिक विकास का युग है। मानव प्रत्येक स्थिति में भौतिक विकास की पराकाष्ठा चाहता है। इसी क्रम में वर्तमान समय में भौतिक विकास से संबंधित दस्तावेजों का प्रकाशन होता है, जैसे- औद्योगिक विकास, शैक्षिक विकस, कृषि विकास एवं वैज्ञानिकता का विकास आदि। इन दस्तावेजों में समाहित भौतिक विकास की भावना को समझना चाहिए तथा उसको कक्षा-कक्ष तथा लघु समूह के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।
(vi) नैतिक दृष्टिकोण– प्रत्येक दस्तावेज का संबंध सामान्य रूप से नैतिकता से होता है। नैतिकता के आधार पर ही विविध समसामयिक दस्तावेजों का प्रकाशन होता है, जैसे- पर्यावरण के संदर्भ में प्रकाशित दस्तावेजों में नैतिकता का समावेश होता है। आज प्रत्येक देश पर्यावरण संतुलन एवं संरक्षण के लिए कार्य करने के लिए तैयार है क्योंकि नैतिकता के आधार पर यह उसका दायित्व होता है। इसी क्रम में प्रत्येक छात्राध्यापक को समसामयिक दस्तावेज एवं विषय संबंधी दस्तावेजों के नैतिकता के पक्ष को समीक्षात्मक पठन एवं परिचर्चा के माध्यम से जानना चाहिए तथा उसको समूह के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए ।
(vii) सांस्कृतिक दृष्टिकोण– दस्तावेज में समाहित सांस्कृतिक विकास संबंधी पक्षों को भी छात्राध्यापक द्वारा समझाना चाहिए तथा उनको कक्षा-कक्ष एवं लघु समूह के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। इसके लिए उसको अनिवार्य रूप से समीक्षात्मक पठन एवं समूह परिचर्चा करनी होती है। इसमें भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की झलक दिखायी देती है। इसी प्रकार विषय संबंधी एवं समसामयिक दस्तावेजों में सांस्कृतिक पोषण एवं विकास का दृष्टिकोण होता है जिसको खोजकर प्रस्तुत करना चाहिए।
(viii) अभिभावक दृष्टिकोण– प्रत्येक दस्तावेज का संबंध प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से बालक एवं बालिकाओं के अभिभावकों से होता है; जैसे- शत-प्रतिशत नामांकन दस्तावेज में शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। अभिभावक जब शिक्षा का महत्व समझते हैं तब वे अपने बालक को विद्यालय में अध्ययन के लिए भेजते हैं। इससे शत-प्रतिशत नामांकन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए समीक्षात्मक पठन एवं लघु समूह में परिचर्चा करना आवश्यक होता है।
(ix) शैक्षिक दृष्टिकोण– प्रकाशित होने वाले दस्तावेज एवं विषयगत दस्तावेज में शैक्षिक विकास का दृष्टिकोण अनिवार्य रूप से छिपा होता है। इन सभी शिक्षाओं, सन्देशों एवं दृष्टिकोणों को। खोजने के लिए छात्राध्यापकों द्वारा प्रत्येक दस्तावेज में छिपे शैक्षिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने में सहायता मिलती है। यह व्यवस्था विषयगत एवं समसामयिक दस्तावेजों के संदर्भ में पूर्ण करनी चाहिए।
(x) छात्र संबंधी दृष्टिकोण– प्रत्येक दस्तावेज का संबंध प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से छात्रों से होता है। छात्रों द्वारा दस्तावेज के मूल अर्थ के अनुरूप ही कार्य किया जाता है। जो विषयगत दस्तावेज होते हैं उनका प्रत्यक्ष संबंध छात्रों से होता है। इस संबंध के आधार पर छात्रों के समक्ष छात्राध्यापक दस्तावेजों को प्रस्तुत करने से पूर्व उनका समीक्षात्मक पठन करता है तथा उन पर परिचर्चा करता है। इसी प्रकार समसामयिक दस्तावेज अप्रत्यक्ष रूप से छात्रों से संबंधित होते हैं।
(3) एक समाचार पत्र के सम्पादकीय पर विचार प्रस्तुत करना– जब किसी समाचार पत्र के सम्पादकीय का वर्णन किया जाता है तो उसमें अनेक प्रकार के तथ्यों, घटनाओं एवं विचारों का समावेश होता है। प्रत्येक भाव, विचार एवं तथ्य का संबंध सम्पादकीय के मूल भाव से होता है। इस मूल भाव को सम्पादकीय का झुकाव कहते हैं, जैसे-व्यंग्यात्मक शैली में कोई सम्पादकीय का प्रकाशन होता है जिसमें सरकारी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग्य किया जाता है। इसमें भ्रष्ट अधिकारियों की प्रशंसा की जाती है तथा उनको आदर्श पुरुष बताया जाता है तो इस सम्पादकीय का झुकाव सरकारी तन्त्र के भ्रष्टाचार को समाप्त करना होता है। उनकी प्रशंसा का अर्थ उनके दोषों की ओर संकेत करना होता है। इसी प्रकार प्रत्येक सम्पादकीय का सुझाव एवं प्रवृत्ति उसके मूल भाव से संबंधित होती हैं। छात्राध्यापकों द्वारा इस झुकाव एवं प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुतीकरण की व्यवस्था या प्रक्रिया को निर्धारित करना चाहिए। सम्पादकीय के झुकाव एवं प्रवृत्ति को जानने के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार करना चाहिए—
(i) सम्पादकीय का शीर्षक ।
(ii) सम्पादकीय के दृष्टिकोण ।
(iii) सम्पादकीय का मूल भाव ।
(iv) सम्पादकीय के विचार ।
(v) सम्पादकीय का कथानक ।
(vi) सम्पादकीय की भाषा शैली ।
(vii) सम्पादकीय की समसामयिकता ।
(viii) सम्पादकीय के आँकड़े ।
(ix) सम्पादकीय के चित्र एवं चार्ट ।
(x) सम्पादकीय के उद्देश्य ।
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