पढ़ना सिखाने की व्यूहरचनाओं को संक्षेप में लिखिए ।
पढ़ना सिखाने की व्यूहरचनाओं को संक्षेप में लिखिए ।
उत्तर— पठन व्यूहरचनाएँ–पठन के लिए निम्नलिखित व्यूह रचनाओं का प्रयोग किया जा सकता है—
(1) वर्ण व्यूहरचना—यह प्रणाली सबसे पुरानी मानी जाती है। इस प्रणाली के अनुसार बालक को सर्वप्रथम एक अक्षर का ज्ञान कराया जाता है। फिर अक्षरों (वर्णों) को जोड़कर पढ़ना सिखाया जाता है परन्तु इस क्रम से पढ़ना सिखाने का उद्देश्य पूरा नहीं होता है क्योंकि बालक कभी ‘घ’ अक्षर का उच्चारण ‘ग’ से करने लग जाता है तो कभी ‘इ’ वर्ण का उच्चारण ‘द’ से करने लग जाता है ।
(2) कहानी व्यूहरचना—यह प्रणाली वाक्य विधि का विकसित रूप माना जाता है। इस प्रणाली में चित्रों के सहारे कहानी कही जाती है । प्रत्येक चित्र के नीचे एक वाक्य लिखा रहता है, जिसकी सहायता से कहानी कहकर बच्चों को पढ़ना सिखाया जाता है। चित्र रोचक अवश्य होते हैं किन्तु वाक्य को पढ़ना बालकों के लिए असम्भव-सा प्रतीत होता है। इसलिए यह प्रणाली भी अधिक उपयुक्त नहीं मानी जाती ।
(3) वाक्य व्यूहरचना—इस प्रणाली में बालक के स्तर के अनुकूल छोटे-छोटे वाक्य बनाकर बालक के सामने रखे जाते हैं तथा वाक्यों से बालक का शब्दों का एवं शब्दों से अक्षरों का ज्ञान कराया जाता है । बालक चित्रों को देखकर उसके अनुरूप वाक्य का अनुसरण करके पढ़ सकते हैं परन्तु भाषा की शिक्षा के लिए यह प्रणाली बिल्कुल अनुपयुक्त है क्योंकि मात्राओं से ज्ञान प्राप्ति के शब्द की रचना और शब्दों से वाक्य रचना करना कठिन है।
(4) भाषा मिलान के कार्ड्स—इस प्रकार के साधन को उन बालकों के लिए तैयार किया जाता है, जिनकी आयु लगभग 2 से 2½ वर्ष की होती है। इस प्रक्रिया के लिए प्लाईवुड या गत्ते पर स्वर एवं व्यंजन के अक्षरों का मिलान करने के लिए तीन सैट बनाकर तैयार कर लिए जाते हैं जिनमें से दो सैटों का रंग अलग-अलग प्रकार का होता है। इस प्रकार 3″ × 3″ इंच के कार्ड्स बनाकर तैयार किए जाते हैं । इनमें अक्षरों को निम्नलिखित प्रकार से सैट किया जाता है—
(i) स्वर के अक्षर — नीले रंग से । (ii) व्यंजन के अक्षर-लाल रंग से । (iii) एक अन्य सैट का रंग – हरे रंग के होते हैं, जिसमें स्वर एवं व्यंजन दोनों ही हरे रंग के लिखे हुए होते हैं।
(5) जामिया व्यूहरचना – इस विधि में बालकों को प्रारम्भ में काम से सम्बन्धित गीत सिखाए जाते हैं और फिर गीतों के सहारे बालक को शब्दों और अक्षरों का ज्ञान कराया जाता है। प्रारम्भ में अभ्यास के लिए बालक को सीखे हुए शब्दों और अक्षरों से वाक्य बनाना बताते हैं ।
जिस भाषा में अक्षरों की ध्वनियाँ शब्दों में वैसी ही बनी रहती हैं, सिखाने के लिए यह प्रणाली बहुत ही उपयुक्त होती है परन्तु यह विधि अंग्रेजी भाषा के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती क्योंकि शब्द में वर्ण ध्वनि शब्द से अलग होने पर बदल जाते हैं।
(6) स्वरोच्चारण व्यूहरचना—इस प्रणाली में बालकों को एक साथ वर्ण न सिखाकर, शब्दों द्वारा पढ़ना सिखाया जाता है किन्तु शब्द ऐसे हों जिनकी उच्चारण ध्वनि ( शब्द के प्रारम्भ, मध्य या अन्त में) एक जैसी हों; जैसे— घर, पर, डर । नथ, रथ, पथ । अब, कब, सब, जब । काम, बाम, राम एवं श्याम आदि किन्तु इस बात की सावधानी बरतनी चाहिए कि बालक को सिखाए जाने वाले शब्द उनके स्तर के अनुकूल ही हों ।
(7) दीवार-पत्रिका—दीवार-पत्रिका बालकों की भाषा को विकसित करने का अहम् साधन होता है । इसके अन्तर्गत 2 से 3 वर्ष तक के बालक का जब भाषा विकास करना होता है तब बाल सदन के के लिए भाषा कक्ष को तैयार कर लिया जाता है।
(8) देखो पढ़ो व्यूहरचना—इस प्रणाली में बालक को चित्र दिखाकर शब्द सिखाए जाते हैं। राजस्थान के शिक्षा पाठ्यक्रम में हिन्दी प्रवेशिका पुस्तक में यही क्रम अपनाया गया है। इस विधि द्वारा बालक स्वयं चित्र देखकर वस्तु का नाम, काम एवं सम्बन्ध को बताया जाता है । मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बालक को पढ़ना सिखाने की यह उपयुक्त विधि अवश्य है किन्तु इस प्रणाली से बालक को भाववाचक संज्ञाओं का ज्ञान एवं शब्द विश्लेषण का ज्ञान कराने में कठिनाई होती है।
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