प्रतिभाशाली बालक का क्या अर्थ है ? सामान्य कक्षाओं में प्रतिभाशाली बालकों की समस्याओं का उल्लेख कीजिये तथा यह भी बताइये कि उनकी विशिष्ट शिक्षा के लिये आप क्या करेंगे?

प्रतिभाशाली बालक का क्या अर्थ है ? सामान्य कक्षाओं में प्रतिभाशाली बालकों की समस्याओं का उल्लेख कीजिये तथा यह भी बताइये कि उनकी विशिष्ट शिक्षा के लिये आप क्या करेंगे?

उत्तर— प्रतिभाशाली बालक– प्रतिभाशाली बालक, सामान्य बालकों से सभी बातों में श्रेष्ठतर होता है, कुछ परिभाषायें इस प्रकार हैं—
क्रो एवं क्रो के अनुसार, प्रतिभाशाली बालक दो प्रकार के होते हैं – (i) वे बालक जिनकी बुद्धि लब्धि 130 से अधिक होती है जो असाधारण बुद्धि के धनी होते हैं । (ii) वे बालक, जो कला, गणित, संगीत, अभिनय आदि में एक या अधिक में विशेष योग्यता रखते हैं।
टरमन व ओडन के अनुसार, “प्रतिभाशाली बालक शारीरिक गठन, सामाजिक समायोजन, व्यक्तित्व के लक्षणों, विद्यालय उपलब्धि, खेल की सूचनाओं और रुचियों की बहुरूपता में सामान्य बालकों से बहुत श्रेष्ठ होते हैं । “
सामान्य कक्षाओं में प्रतिभाशाली बालकों की समस्याएँ औसत छात्रों के लिए की गई शिक्षा व्यवस्था में शिक्षा पाने वाले प्रतिभाशाली छात्र अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप वातावरण न पाकर अनेक समायोजन एवं अनुशासन सम्बन्धी समस्याओं को जन्म देते हैं । इनमें से कुछ समस्याएँ व्यक्तिगत रूप से उनकी व कुछ वातावरणजन्य होती हैं। यदि हम विशिष्ट रूप से प्रतिभाशाली बालकों की समस्याओं पर ही ध्यान दें तो निम्न स्थितियाँ स्पष्ट परिलक्षित होती हैं—
(i) कक्षा-कार्य अत्यधिक सरल लगने पर वे स्वयं को नीरस महसूस कर सकते हैं। इस दशा में दिवा – स्वप्न अथवा भगोड़ेपन जैसी अव्यावहारिक स्थितियाँ देखने को मिलती हैं।
(ii) अपने ही स्तर के साथी तथा मित्रों के अभाव में इनके सामाजिक विकास में बाधा आती है।
(iii) विविध रुचियों तथा विविध योग्यताएँ होने के कारण कभीकभी उनके लिए जीवनोपयोगी व्यवसाय का क्षेत्र चुनने में कठिनाई हो जाती है।
(iv) अनुकूल उत्साहवर्धन एवं निर्देशन के अभाव में वे स्वयं को परित्यक्त एवं विलग अनुभव कर सकते हैं। असुरक्षा एवं
हीनता की भावनाएँ भी इनमें विकसित हो सकती हैं।
(v) समाज के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण विकसित हो सकता हैं।
(vi) इस प्रकार के बालक माता-पिता तथा अध्यापकों का अतिरिक्त ध्यान पाकर कभी-कभी जिद्दी, निर्भर, अभिमानी तथा श्रेष्ठता की भावना आदि अन्य ग्रन्थियों से ग्रस्त भी हो जाते हैं।
(vii) कक्षा में दिये गये कार्य को सामान्य से कम समय में पूर्ण कर लेने के उपरान्त वह बची ऊर्जा तथा समय का उपयोग कक्षा का अनुशासन बिगाड़ने में भी कर सकते हैं ।
(viii) कभी-कभी अपनी आवश्यकताएँ पूर्ण न होने पर प्रतिभाशाली बालक उग्र एवं उच्छृंखल हो जाते हैं।
प्रतिभाशाली बालकों के लिए विशिष्ट शिक्षा–प्रतिभाशाली बालकों को उनके पूर्ण विकास के अवसर प्रदान करने के लिए सामान्य शिक्षा से हटकर कुछ ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए जो उनकी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। चूँकि प्रतिभा सम्पन्नता एक धनात्मक विशिष्टता है, इसलिए अन्य विशिष्ट बालकों की भाँति प्रतिभाशाली बालक को सामान्य शिक्षा के अनुरूप बनाने के स्थान पर शिक्षा को उसके अनुरूप बनाने की आवश्यकता होती है ।
प्रतिभाशाली बालक के लिए शिक्षा की योजना निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए बनाई जानी चाहिए—
(1) उनकी जिज्ञासात्मक प्रवृत्ति को सन्तुष्ट करने का प्रयास करना ।
(2) उनकी सृजनात्मक एवं क्रियात्मक शक्तियों को अभिव्यक्ति के अवसर प्रदान करना ।
(3) उच्च स्तरीय पाठ्यक्रमों के व्यावहारिक चयन एवं व्यापकता हेतु ।
(4) विश्लेषणात्मक (Analytic) विचारशीलता के विकास हेतु ।
(5) उनकी असाधारण इच्छाओं एवं आकांक्षाओं की प्राप्ति के साधन जुटाना और उनके प्रति अति सावधान रहना ।
(6) उच्च स्तरीय ज्ञान एवं योग्यताओं के विस्तार हेतु ।
(7) विशिष्ट प्रतिभाओं के पूर्ण विकास हेतु ।
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