तनाव दूर करने में किशोरों के व्यक्तित्व के विशेष सन्दर्भ में अनुकरणीय व्यूह रचनाओं का वर्णन कीजिए।

तनाव दूर करने में किशोरों के व्यक्तित्व के विशेष सन्दर्भ में अनुकरणीय व्यूह रचनाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर— तनाव दूर करने में किशोरों के व्यक्तित्व के विशेष सन्दर्भ में अनुकरणीय व्यूह रचनाएँ (Coping Strategies with – Speical Reference to Personality of Adolescents for Removing Stress )– तनाव का अनुभव बालक के मनोवैज्ञानिक स्वास्ति-बोध (Well-being) के लिए उतना महत्त्व नहीं रखता जितना तनाव का सुप्रबन्धन यानी समायोजन महत्त्व रखता है। ‘समायोजन’ या तनाव का ‘ सुप्रबन्धन’ (Coping) किसी तनाव के प्रति की जाने वाली विशिष्ट गत्यात्मक प्रतिक्रिया को कहते हैं। यह किसी तनावयुक्त परिस्थिति अथवा घटना के प्रति की जाने वाली मूर्त प्रतिक्रियाओं का एक समुच्चय होता है जिसका मूल उद्देश्य तनाव उत्पन्न करने वाली समस्या (तनावोत्तेजक समस्या) का समाधान कर तनाव के अनुभव को कम करना होता है । समायोजन या समाधान की युक्ति वस्तुतः व्यक्ति के स्वयं के अनुभव पर आधारित दृढ़ विश्वास पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, जब हम सड़क पर जाम की स्थिति में पड़ते हैं, तो हमें तनाव का अनुभव होता है। यह अनुभव इसलिए होता है कि इस तीव्र गति की दुनिया में आवागमन की रफ्तार भी तेज होनी चाहिए ऐसा हम विश्वास करते हैं और उपस्थित परिस्थिति हमारे विश्वास को खंडित करती है। फलस्वरूप तनाव होता है और हम क्रोध की प्रतिक्रिया भी करते हैं। तनावात्मक परिस्थिति से निबटने की युक्तियों में वैयक्तिक विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। ये विभिन्नताएँ बाह्य या प्रकट एवं आन्तरिक या अप्रकट दोनों तरह की क्रियाओं में पाई जाती हैं। एंडलर एवं पार्कर (Endler and Parker) ने तीन प्रमुख प्रकार की समायोजन युक्तियों की चर्चा की है, जो इस प्रकार हैं—
(1) कार्योन्मुख युक्तियाँ(Task-Oriented Strategies)– यह कार्य (Task) की माँग या अपेक्षाओं के अनुरूप वास्तविकता के साथ समायोजन की युक्ति है। बालक प्रत्यक्ष रूप से कार्य माँगों को पूरा करने का प्रयास करता है अर्थात् वह तनाव के साथ यथार्थ रूप से निबटने का प्रयास करता है। इस युक्ति में तनावात्मक परिस्थिति (Stressing situation) का वस्तुपरक ढंग से मूल्यांकन कर विवेकपूर्ण निर्णय लेकर कार्य को रचनात्मक दिशा प्रदान की जाती है । इस युक्ति का मूल उद्देश्य परिस्थिति में ही ‘सकारात्मक परिवर्तन’ लाना होता है अथवा स्वयं की मनोवृत्ति में परिवर्तन लाकर परिस्थिति की माँग के अनुरूप परिवर्तन लाना होता है, जैसे—परीक्षा में असफल होने पर छात्र स्वयं की अध्ययन आदतों में सुधार लाकर सफल होने का प्रयास करता है अथवा प्रत्यक्ष रूप से कार्य की जटिलताओं को बढ़ती हुई कठिनाई के क्रम में व्यवस्थित पर क्रमशः उन्हें करना आदि कार्योन्मुख युक्तियों के उदाहरण हैं।
(2) परिहार युक्तियाँ (Avoidance Oriented Strategies)– इस युक्ति में व्यक्ति तनाव की गंभीरता को कम करने का प्रयास करता है, जिसमें आत्म या अहं सुरक्षात्मक उपायों या रचनाओं का सहारा लिया जाता है, जैसे—नकारना, चेतन रूप से तनाव को दबाना या अचेतन रूप से दमित करना, युक्तिकरण का उपयोग करना ।
(i) दूसरों के विचारों एवं मतों को मतभेद के बावजूद स्वीकार करना तथा उसके प्रति सहनशीलता बनाए रखना ।
(ii) सफलता पर गौरवान्वित अनुभव करना (Taking Credit) एवं विफलता के लिए अपनी कमजोरियों को ढूँढकर स्वयं को जिम्मेदार (Blamming Self) मानना ।
(3) सांवेगिक युक्तियाँ (Emotional Strategies)– इस युक्ति में व्यक्ति आशा को बरकरार रखने तथा संवेगों पर संयम रखने का प्रयास करता है। इस प्रकार की युक्तियों में सांवेगिक भावों को प्रकट कर अपने भीतर क्रोध या आक्रोश के आवेग को बाहर निकालना भी शामिल है। कभी-कभी व्यक्ति यह विचार भी विकसित कर लेता है कि जो भी घटना है उस पर कुछ भी नहीं किया जा सकता। ऐसे विचार आने पर तनाव की प्रचडंता कम होती है, जैसे—कभी-कभी हम मन-ही-मन यह विचारते हैं कि अमुक घटना से पीड़ित मैं अकेला नहीं हूँ अथवा हम क्या कर रहे हैं—विचारणीय है, न कि क्या हुआ ?
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