‘फड़’ का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
‘फड़’ का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर— फड़ भोपों द्वारा खेली जाती हैं। ये भोपे जल्दी-जल्दी एक स्थान से दूसरे स्थान तक चले जाते हैं । चित्रित फड़ को दर्शकों के सामने खड़ा तान दिया जाता है। भोपा गायक की पत्नी या सहयोगिनी, लालटेन लेकर फड़ के पास नाचती और गाती हुई पहुँचती हैं और वह जिस अंश का गायन करती है, डंडी से उसे बताती जाती है। भोपा अपने प्रिय वाद्य ‘रावण हत्था’ को बजाता हुआ स्वयं भी नाचता गाता रहता है । यह नृत्य गान समूह के रूप में होता है।
फड़ से सम्बन्धित दो लोकप्रिय चित्र गीत कथाएँ, पाबूजी और देवजी ! की फ़ड़ें ही हैं। पाबू राठौड़ जाति के महान् लोकनायक हुए हैं। इनका समय आज से 700 वर्ष पूर्व था। उनकी गाथा के आज भी राजस्थान में हजारोंलाखों प्रशंसक हैं। पाबूजी को कुटुम्ब के देवता के रूप में पूजा जाता है और उनकी वीरता के गीत चारण और भाटों द्वारा गाये जाते हैं। मारवाड़ा के भोपों ने पाबूजी की वीरता के सम्बन्ध में सैकड़ों लोकगीत रच डाले हैं और पाबूजी की शौर्यगाथा आज भी लोक समाज में गायी जाती हैं।
पाबूजी की फड़ लगभग 30 फीट लम्बी तथा 5 फीट चौड़ी होती है। इसमें पाबूजी के जीवन चरित्र को लोक शैली के चित्रों में अनुपम रंगों एवं रंग एवं फलक संयोजन के जरिए प्रस्तुत किया जाता है । इस फड़ को एक बाँस में लपेट कर रखा जाता है और यह भोपा जाति के लोगों के साथ धरोहर के रूप में तथा जीविका साधन के रूप में भी चलता रहता है। पाबूजी की दैवी शक्ति में विश्वास करने वाले लोग प्राय: इन्हें निमंत्रण देकर बुलाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि इससे उनके बाल बच्चों की बीमारियाँ तथा परिवार की भूत-प्रेत जैसी बाधाएँ दूर हो जायेंगी ।
पाबूजी के अलावा दूसरी लोकप्रिय फड़ ‘देवजी की फड़’ है । देवजी भी सोलंकी राजपूतों के पाबूजी की तरह के वीर नायक थे । देवजी की फड़ के गीत, देवजी के भोपों द्वारा गाये जाते हैं, ये भोपे गूजर जाति के हैं।
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