मौलिक अधिकार एवं दायित्व से आप क्या समझते हैं ?

मौलिक अधिकार एवं दायित्व से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर— मौलिक अधिकार– भारतीय संविधान में निहित वे अधिकार जिनके माध्यम से भारतीय नागरिकों को उनके व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास, सुखी जीवन व्यतीत करने एवं स्वयं को शोषण से बचाने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है, मौलिक अधिकार कहलाते हैं। भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। भारत का संविधान लोकतन्त्र की सबसे महत्त्वपूर्ण कड़ी है। मानव जीवन में मूल अधिकार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ये अधिकार व्यक्ति को जहाँ स्वतन्त्रता देते हैं वहीं व्यक्ति पर नियन्त्रण भी रखते हैं । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 32 तक में नागरिकों के मूल अधिकारों (Fundamental Rights) को स्पष्ट किया गया है। भारतीय संविधान में मूल रूप से 7 मूल अधिकार दिये गये थे किन्तु सन् 1979 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकार की सूची में से निकालकर उसे कानूनी अधिकारों की सूची में जोड़ दिया गया है।
मूल कर्त्तव्य – भारतीय संविधान ने जहाँ एक ओर अपने नागरिकों को कुछ मूल अधिकार प्रदान किए हैं, वहीं दूसरी ओर अपने नागरिकों से राष्ट्र की उन्नति में सहायक कुछ मूल कर्त्तव्यों के निर्वहन की अपेक्षा भी की है।
प्रारम्भ में हमारे संविधान में केवल मूल अधिकारों को ही शामिल किया गया था किन्तु सन् 1976 में हुए संविधान के 42वें संशोधन में अनुच्छेद-51(A) में नागरिकों के 10 मूल कर्त्तव्यों को समावेशित किया गया। पुनः 93वें संशोधन जो कि सन् 2001 में किया गया, अनुच्छेद51(A) में 1 मूल कर्त्तव्य को और शामिल किया गया। इस प्रकार वर्तमान समय में हमारे संविधान में कुल 11 मूल कर्त्तव्य समाहित हैं। इन कर्तव्यों को भंग किए जाने पर संविधान में दण्ड की व्यवस्था नहीं की हैं।
भारतीय संविधान द्वारा अपने नागरिकों से राष्ट्र की उन्नति में सहायक अपेक्षित कर्त्तव्यों को भारतीय संविधान के मूल कर्त्तव्य कहते हैं।
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