“राज्य की नीति के निदेशक तत्व पवित्र घोषणा मात्र नहीं है बल्कि राज्य की नीति के मार्गदर्शन के सुस्पष्ट निर्देश है।” व्याख्या कीजिए और बताइए कि वे व्यवहार में कहां तक लागू किए गए हैं?
“राज्य की नीति के निदेशक तत्व पवित्र घोषणा मात्र नहीं है बल्कि राज्य की नीति के मार्गदर्शन के सुस्पष्ट निर्देश है।” व्याख्या कीजिए और बताइए कि वे व्यवहार में कहां तक लागू किए गए हैं?
अथवा
राज्य की नीति के निदेशक तत्वों की व्याख्या करते हुए बताएं कि राज्य विधियां बनाते समय इनका कहां तक पालन करते हैं? और किन-किन नीति निदेशक तत्वों को लागू किया जा चुका है?
उत्तर – राज्य की नीति के निदेशक तत्वों का उल्लेख संविधान के भाग-4 के अनुच्छेद- 36 से 51 तक में किया गया है। इन्हें आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। ये निदेशक तत्व मूल अधिकारों के साथ संविधान की आत्मा एवं दर्शन हैं। ग्रेनविल आस्टिन ने निदेशक तत्व और मूल अधिकारों को “ संविधान की मूल आत्मा” कहा है। राज्य की नीति के निदेशक तत्व उक्ति से यह स्पष्ट होता है कि नीतियों एवं कानूनों को प्रभावी बनाते समय राज्य इन तत्वों को ध्यान में रखेगा। ये संवैधानिक निर्देश, विधायिका, कार्यपालिका और प्रशासनिक मामलों में राज्य के लिए सिफारिशें हैं।
आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विषयों में निदेशक तत्व महत्वपूर्ण हैं। इनका उद्देश्य न्याय में उच्च आदर्श, स्वतंत्रता, समानता बनाए रखना है। जैसा कि संविधान की प्रस्तावना में परिकल्पित है, इनका उद्देश्य ‘लोक कल्याणकारी राज्य’ का निर्माण करना है। लोक कल्याणकारी राज्य से तात्पर्य ऐसे राज्य से है जो अपने सभी नागरिकों को एक न्यूनतम जीवन स्तर रखने के लिए उत्तरदायी हो । संक्षेप में आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना करना ही इन निदेशक तत्वों का मूल उद्देश्य है।
उच्चतम न्यायालय ने कई बार अपने निर्णयों में सुस्पष्ट वर्णन किया है कि किसी विधि का सांविधानिकता का निर्धारण करते समय यदि न्यायालय यह पाए कि प्रश्नगत विधि निदेशक तत्व को प्रभावी करना चाहती है तो न्यायालय ऐसी विधि को अनु.-14 या अनु. – 19 के संबंध में तर्कसंगत मानते हुए असांविधानिकता से बचा सकती है। यदि हम इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह पाते हैं कि नीति निदेशक तत्व मौलिक अधिकारों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।
यद्यपि निदेशक तत्व न्यायालयों में प्रवर्तनीय नहीं है, तथापि संविधान (अनु. – 37 ) में इस बात को स्पष्ट किया गया है कि ‘ये’ तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं। अतः राज्य का कर्त्तव्य होगा कि इन तत्वों का विधि बनाने में उपयोग करे। ‘ कृष्णास्वामी अय्यर ने कहा था- “लोगों के लिए उत्तरदायी कोई भी मंत्रालय संविधान के भाग-4 में वर्णित उपबंधों की अवहेलना नहीं कर सकता।” इसी प्रकार डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि लोकप्रिय मत पर कार्य करने वाली सरकार इसके लिए नीति बनाते समय निदेशक तत्वों की अवहेलना नहीं कर सकती। यदि कोई सरकार इसकी अवहेलना करती है तो निर्वाचन के समय में उसे मतदाताओं के समक्ष इसका उत्तर अवश्य देना होगा।
उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य से यह स्पष्ट है कि राज्य के नीति निदेशक तत्व मौलिक अधिकारों के समान ही जनता के लिए आवश्यक हैं जिसका विधि बनाते समय राज्य को इन निदेशक तत्वों को ध्यान में रखना आवश्यक है। जहां मौलिक अधि कार व्यक्तिगत आवश्यकता है, वहीं नीति निदेशक तत्व सामुदायिक आवश्यकता है। इस प्रकार ये निदेशक तत्व विधि बनाते समय राज्यों के लिए स्पष्ट निर्देश हैं।
1950 से केन्द्र में अनुवर्ती सरकारों एवं राज्य सरकारों ने निदेशक तत्व को लागू करने के लिए अनेक कार्यक्रम एवं विधियों को बनाया है। इन विधियों के माध्यम से सरकार यथासम्भव धीरे-धीरे सभी नीति निदेशक तत्वों को लागू करने की ओर अग्रसर है। इनमें से कुछ प्रमुख, जिनका क्रियान्वयन किया जा चुका है, निम्न हैं
1. 1950 में योजना आयोग की स्थापना, जिसका उद्देश्य सामाजार्थिक न्याय प्राप्ति तथा आय, प्रतिष्ठा और अवसर की असमानताओं को कम करना था। वर्तमान में इसका स्थान नीति आयोग ने ले लिया है।
2. कृषि समुदाय की स्थिति में सुधार करने के लिए भूमि सुधार कानून लागू करना।
3. न्यूनतम मजदूरी एवं कारखाना अधिनियम-1948, बाल श्रम अधिनियम-1986 आदि को श्रमिक वर्गों के हितों के संरक्षण के लिए लागू किया गया है।
4. प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम-1961, समान पारिश्रमिक अधिनियम-1976, मातृत्व लाभ अवकाश आदि को महिला कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है।
5. विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम (1987), टेली लॉ इनिशिएटिव-2017 आदि को गरीबों को निःशुल्क एवं उचित कानूनी सहायता प्राप्त कराने के उद्देश्य से लागू किया गया है।
6. कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए खादी एवं ग्राम उद्योग बोर्ड, लघु उद्योग बोर्ड, हैंडलूम बोर्ड, सिडबी आदि की स्थापना की गई।
7. वन्यजीव अधिनियम, 1972, वन संरक्षण अधिनियम-1980 आदि को वन्य जीवों एवं वनों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है।
8. भारत ने गुट निरपेक्ष नीति एवं पंचशील की नीति को अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए अपनाया है।
9. 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निशुल्क शिक्षा का अधिकार
10. काम का अधिकार (मनरेगा)
11. प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण (पंचायती राज )
12. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986
उपरोक्त के अतिरिक्त अधिकतर नीति निदेशक तत्वों को व्यवहार में पूर्णत: या अपूर्ण रूप में लागू किया जा चुका है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा उपरोक्त कदम उठाए जाने के बावजूद निदेशक तत्व को पूर्ण एवं प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा सका है। इसके कुछ कारणों में अपर्याप्त वित्तीय संसाधन, प्रतिकूल सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति, जनसंख्या विस्फोट, केन्द्र-राज्य तनावपूर्ण संबंध आदि को लिया जा सकता है। ये सामुदायिक अधिकार हैं, इसलिए इन्हें पूर्णतः राजनीतिकरण से पृथक होकर लागू किए जाने की आवश्यकता है।
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