पाल कालीन स्थापत्य एवं मूर्तिकला की मुख्य विशेषताएं बताएं ।

पाल कालीन स्थापत्य एवं मूर्तिकला की मुख्य विशेषताएं बताएं ।

( 46वीं BPSC/2005)
अथवा
> बिहार से प्राप्त पाल-काल की स्थापत्य कला और मूर्तिकला के प्राप्त नमूनों / उदाहरणों के आधार पर विशेषताएं बताएं।
उत्तर – पाल वंश का संस्थापक गोपाल था जिसने बिहार में भी अपना शासन विस्तार किया। पालों के लंबे शासन के दौरान शांति एवं समृद्धि बनी रही जिसके फलस्वरूप कला के सभी क्षेत्रों में प्रगति हुई। पाल कला के अवशेष बिहार में प्रचुरता से मिले हैं।
 स्थापत्य कला :  पाल स्थापत्य कला मुख्यतः ईंट पर आधारित थी । इनके साक्ष्य औदंतपुरी, नालंदा एवं विक्रमशिला महाविहार हैं। पाल शासक गोपाल द्वारा औदंतपुरी में एक महाविहार एवं मठ बनवाया गया था, यद्यपि इसके अवशेष सुरक्षित नहीं हैं। नालंदा में मंदिर, स्तूप एवं विहार बनवाए गए। धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्उद्धार किया एवं उसका खर्च चलाने के लिए 200 गांवों की आमदनी उसे दान में दी तथा भागलपुर में विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की जो कालांतर में नालंदा के बाद सबसे विख्यात विश्वविद्यालय के रूप में उभरा। यहां ईंट निर्मित मंदिर एवं स्तूप के अवशेष मिले हैं इनमें पत्थर एवं मिट्टी की बनी गौतम बुद्ध की विशाल मूर्तियां हैं। जावा के शैलेन्द्रवंशी शासक बालपुत्रदेव ने पाल शासक देवपाल से अनुमति लेकर नालंदा में एक बौद्ध विहार का निर्माण कराया था।
 मूर्तिकला : पाल-काल में कांस्य एवं प्रस्तर मूर्तिकला की एक नई शैली का उदय हुआ। इसके मुख्य प्रवर्तक धीमन एवं बिथपाल थे, जो धर्मपाल एवं देवपाल के समकालीन थे। पाल कालीन कांस्य मूर्तियां ढलवां किस्म की हैं। इसके सर्वोत्तम नमूने नालंदा तथा कुक्रीहार ( गया के निकट) से प्राप्त हुए हैं। ये मूर्तियां मुख्य रूप से बुद्ध, बोधिसत्व, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री, मैत्रेय तथा तारा की हैं। इनमें कुछ हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं।
पाल युग की पत्थर की मूर्तियां काले बैसाल्ट पत्थर (Black-Basalt Stone) की बनी हैं। सामान्यतः इन मूर्तियों में शरीर के अगले भाग को दिखाने पर ध्यान दिया जाता है। इनमें अलंकरण की प्रधानता है। इनमें बुद्ध, विष्णु की मूर्तियों की प्रधानता है। शैव एवं जैन धर्म का प्रभाव सीमित रहा है। सभी मूर्तियां अत्यंत सुंदर, अलंकार – प्रधान एवं कला की परिपक्वता को दर्शाती हुई हैं। कलात्मक सुन्दरता का एक अन्य उदाहरण एक तख्ती है जिस पर ‘शृंगार करती हुई एक स्त्री’ को दिखाया गया है।
अतः पालों के काल में एक उन्नत कला एवं स्थापत्य का विकास हुआ जो स्थिर राजनीतिक और मजबूत आर्थिक स्थिति के साथ-साथ शासकों के रचनात्मकता एवं कला के प्रति उनकी रुचि को प्रदर्शित करता है। पाल शासक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। अतः इनके कला पर बौद्ध प्रभाव स्पष्ट दिखता है ।
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