वाचन के उद्देश्य एवं आधार को स्पष्ट करते हुए एक प्रभावी वाचन की विशेषताएँ लिखिए।

वाचन के उद्देश्य एवं आधार को स्पष्ट करते हुए एक प्रभावी वाचन की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर—वाचन के उद्देश्य वाचन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं–
(1) बालकों को स्वर के आरोह-अवरोह का ऐसा अभ्यास करा दिया जाए कि वे यथाअवसर भावों के अनुकूल स्वर में लोच देकर पढ़ सकें।
(2) स्वयं बालक अपने मन के भाव व्यक्त करते हुए भावानुसार स्वर का उचित आरोह-अवरोह साध सके।
(3) बालकों के अक्षर, शब्दोच्चारण, उचित ध्वनि, निर्गम, बल तथा सुस्वरता का उचित संस्कार करना।
(4) पुस्तक पढ़कर बालक उसका भाव समझ सकें तथा दूसरों को समझा सकें।
(5) वाचन इतना प्रभावोत्पादक बन जाए कि जिस उद्देश्य से वाचन किया गया हो, वह सफल हो और व्यक्ति या समाज उससे प्रभावित हो ।
वाचन का प्रयोग तथा अभ्यास प्रारम्भ से ही करा देना चाहिए, क्योंकि बाल्यावस्था में एक बार आदत पड़ जाने पर वह शीघ्र नहीं छूटती तथा बालक उसके अभ्यस्त हो जाते हैं, किन्तु ठीक-ठाक बोलने, समझने, पढ़ने और लिखने मात्र की योग्यता आ जाने से ही भाषा शिक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं होता। व्याकरण की कड़ियों में कसकर शुद्ध ढंग से किसी बात को कह- सुन लेने से ही हमारी तृप्ति नहीं हो पाती। हम यह भी चाहते हैं कि हमारे लिखने और बोलने में एक निरालापन भी हो, उस पर हमारे व्यक्तित्व की छाप हो ।
वाचन के आधार– वाचन के दो प्रमुख आधार होते हैं—
(1) वाचन मुद्रा– अर्थात् बैठने-खड़े होने का ढंग, वाचन सामग्री हाथ में ग्रहण करने की रीति तथा भावानुसार हाथ, नेत्र आदि अंगों का संचालन ।
(2) वाचन शैली– भावानुसार स्वर के उचित आरोह–अवरोह के साथ पढ़ना।
वाचन मुद्रा ठीक रखने के लिए प्रत्येक वाचन को अपने बाएँ हाथ में पुस्तक को इस प्रकार बीच में पकड़ना चाहिए कि ऊपर उसके बीच के मोड़ पर बाएँ हाथ का अंगूठा आ जाए और दूसरा हाथ भावाभिव्यक्ति के लिए खुला छूटा रहे। यदि पुस्तक बड़ी हो तो दोनों हाथों से भी पकड़ी जा सकती है। पढ़ते समय दृष्टि सदा पुस्तक पर ही न रहे, वरन् पढ़ते समय दृष्टि को विद्यार्थियों की ओर भी उठाकर देख लेना चाहिए।
गद्य पाठ के वाचन और कविता पाठ के वाचन में बड़ा अन्तर है। यद्यपि भाव के अनुसार स्वर का आरोह-अवरोह काव्य पाठ के लिए अपेक्षित है, किन्तु कविता में छन्द का भी प्रयोग रखना पड़ता है अतः कविता वाचन की दो शैलियाँ हैं–
(1) छन्दानुगत शैली
(2) भावात्मक वाचन शैली
इनमें छन्दानुगत शैली के अनुसार वाचन करने में छन्द की गति, यति और लय का गाकर नहीं पढ़ना चाध्यान रखना चाहिए, परन्तु कक्षा में कभी क्योंकि कविता-पाठ और कविता गान में बड़ा अन्तर है। भावानुसार कविता-वाचन में भी यद्यपि भाविभिव्यक्ति ही प्रधान होती है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि छन्द की पूर्णतः में यति और लय का परित्याग हो जाता है, परन्तु यथाप्रयत्न का प्रवाह नष्ट नहीं होने देना चाहिए। कविता-व पक्षा हो जानी चाहिए।
वाचन सामग्री– वाचन की दृष्टि से केवल जीवन-चरित्र एवं कथाएँ उपयुक्त होती हैं, क्योंकि उनके स्वर की प्रभावोत्पादकता नहीं साधी जा सकती। अतः वाचन शिक्षण के लिए अनेक प्रकार प्रस्तुत की जानी चाहिए।
की सामग्री वाचन की सामग्री का चयन बड़ी सावधानी से करना चाहिए। इस सामग्री का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि सामग्री व्यापक होनी चाहिए। वाचन के लिए निम्नलिखित सामग्री उपादेय होगी और इन सभी के शिक्षण के समय उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में वाचन- कौशल का विकास किया जा सकता है—
(1) निबंध—
(अ) भाव – प्रधान, व्यंग्य एवं विनोद – प्रधान, व्यक्तिपरक एवं विषयपरक निबंध
(ब) निबंध के विषय—
(i) सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं से संबंधित निबंध |
(ii) खोज एवं साहस से संबंधित निबंध |
(iii) सरल मनोवैज्ञानिक निबंध |
(iv) वैज्ञानिक निबंध।
(v) देश – प्रेम एवं संस्कृति से संबंधित निबंध।
(vi) ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित निबंध।
(vii) प्रकृति से संबंधित निबंध।
(2) संस्मरण, शब्दचित्र ।
(3) आत्मकथा, जीवनी, डायरी, रिपोर्ताज, पत्र।
(4) नाटक, एकांकी, संवाद ।
(5) कहानी-चरित्र-प्रधान, वातावरण प्रधान, समस्या- प्रधान
(6) उपन्यास
(7) कविता
(i) देश-प्रेम, वीरता, नीति, भक्ति, प्रकृति-वर्णन, जीवन-दर्शन पर प्रबंधात्मक एवं मुक्तक- दोनों प्रकार की शैलियों में लिखी कविताएँ ।
(ii) भावात्मक गीत, छायावादी, रहस्यवादी एवं प्रगतिवादी कविताओं में से चुनी हुई कविताएँ ।
(iii) खड़ी बोली के अतिरिक्त ब्रज, अवधी, राजसथानी और मैथिली की कुछ सरल कविताएँ ।
अच्छे वाचन की विशेषताएँ: एक अच्छे वाचन में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है—
(1) मधुरता, प्रभावोत्पादकता तथा चमत्कारपूर्ण ढंग से आरोह-अवरोह के साथ वाचन होना चाहिए।
(2) प्रत्येक अक्षर को शुद्ध तथा स्पष्ट उच्चरित करना ।
(3) प्रत्येक शब्द को अन्य शब्दों से अलग करके उचित बल तथा विराम के साथ पढ़ना ।
(4) आवश्यकतानुसार उचित भाव-भंगिमाओं का होना तथा समान गति से पढ़ना।
(5) वाचन में सुन्दरता के साथ प्रवाह बनाए रखना ।
उपर्युक्त ढंग का अनुसरण करने से अच्छे वाचनकार आगे चलकर अच्छे वार्ताकार, प्रभावशाली वक्ता, सफल अभिनेता हो जाते हैं। गद्य पाठ की आधी सफलता तथा कविता की पूरी सफलता अच्छे वाचन पर निर्भर करती है।
अच्छे वाचन के लिए ध्यान देने योग्य बातें—
(1) वाचन के समय एक बार एक धारा में कितने शब्द बोलने चाहिए, इसका ध्यान रखते हुए शब्दों के समूह का उचित चुनाव करके आवश्यक ठहराव देकर पढ़ना चाहिए।
(2) कोहनी पर 45° का कोण बनाती हुई पुस्तक बाएँ हाथ से आँखों से लग 1 फुट की दूरी पर हो ।
(3) पढ़ने की गति न बहुत मन्द हो और न बहुत तीव्र ।
(4) स्वर में श्रोताओं तक पहुँचाने का बल हो, प्रवाह तथा कर्णप्रियता हो ।
(5) प्रत्येक शब्द का उच्चारण नियमित और स्पष्ट हो ।
(6) वाक्य का स्वर सदा एकरूप न रहे, भावों के साथ उतरता-चढ़ता रहे और खुला हुआ दाहिना हाथ भी उन भावों के प्रकाशन में उचित योग दें।
(7) वाचन के समय भावानुसार स्वर का उतार-चढ़ाव तो हो, किन्तु उसके साथ बनावटी, अतिरंजित और भौण्डा अंग-संचालन न हो। बात-बात पर आँखें मटकाना, ठहाका मारकर हँसना असभ्यता का द्योतक है।
(8) वाचन के समय अधिक उछल-कूद अच्छी नहीं। हाँ, मुँह सब विद्यार्थियों की ओर घूमता रहे।
(9) पाठ का आरम्भ और अन्त मन्द स्वर से होना चाहिए, जिससे बालक को आदि-अन्त का ठीक-ठीक ज्ञान हो जाए।
(10) वाचन के समय मेज आदि का सहारा नहीं लेना चाहिए।
(11) अशुद्धियों को बालकों से ही दूर करवाने का प्रयत्न करना चाहिए।
(12) बैठे-बैठे पढ़ने से बालकों में स्फूर्ति नहीं आती, अतः खड़े होकर पढ़वाने तथा पढ़ने का अभ्यास करवाना चाहिए।
(13) वाचन के समय अक्षरोच्चार शब्दोच्चार, बल, ध्वनि तथा स्वरारोह का ध्यान रखना चाहिए।
(14) पढ़ते समय आँखें निरन्तर पुस्तक पर ही न गड़ी रहें एक बार आँखें इतनी सामग्री ग्रहण कर लें कि बीच-बीच में मुँह उठाकर सम्मुख बैठे हुए विद्यार्थियों की ओर देखने और उन्हें सम्बोधित करके पढ़ाने का अवकाश मिले। इससे अनुशासन की समस्या भी काफी हल हो जाती है।
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