विद्यालयी समाचार पत्र पत्रिका की आवश्यकता के बारे में लिखिए।

विद्यालयी समाचार पत्र पत्रिका की आवश्यकता के बारे में लिखिए।

उत्तर— विद्यालयी समाचार पत्र एवं पत्रिका की आवश्यकता एवं व्यवस्थाः भारतवर्ष में समाचार-पत्र से प्रायः बड़े बड़े अखबारों का ही अर्थ लगाया जाता है जिनमें राजनीतिक समाचारों की प्रचुरता रहती है। इधर कुछ वर्षों से वाणिज्य, खेल-कूद, शिक्षा और कैरियर से संबंधित पृष्ठ सभी समाचार-पत्रों में आने लगे हैं। फिल्म जगत् के समाचार भी युवा-मन को आकर्षित करने के लिए दिए जाने लगे हैं।
आज का युग सूचना का युग है। सूचना के क्षेत्र में कोई विद्यालय या महाविद्यालय पीछे नहीं रह सकता। प्रत्येक विद्यालय का एक समाचार पत्र या ‘न्यूज – बुलेटिन’ भविष्य में विद्यालय के क्रिया-कलाप का अनिवार्य अंग हो जाएगा।
आज के युग में समाचार पत्रों का बड़ा महत्व है। इससे विद्यालयों में शिक्षा में सामयिक गतिविधि के ज्ञान की जो आवश्यकता हो गई है उसके कारण टिप्पणीयात्मक समाचार विज्ञापन को विद्यार्थी सभाओं के कार्यक्रम में अनिवार्य स्थान प्राप्त हो गया जो प्रायः प्रतिदिन होता भी है चाहे अल्पसमय के लिए ही हो । समाचार ज्ञापन हमारे विद्यालयों की आज एक अति उपेक्षित अत्यन्त अव्यवस्थित क्रिया है। कहीं केवल यों ही कुछ समाचार-पत्रों को लेकर या कागज पर कुछ बिन्दु मात्र लिखकर या केवल कभी-कभार रेडियो से ही यों ही छात्रों को सुना दिए जाते हैं। तो कहीं कुछ प्रमुख बातें कहीं कुछ सूचना-पट्ट पर लिख मात्र दी जाती हैं चाहे कोई उन्हें पढ़े या न पढ़े। ऐसे विद्यालय देश में बहुत कम हैं जो अपना सुव्यवस्थित हस्तलिखित समाचार पत्र नियमित रूप से प्रकाशित करते हैं। इस प्रकार विद्यालयों में प्रायः समाचार पत्रों के निम्नलिखित रूप दिखाई पड़ते हैं—
(1) एक वे जो मुद्रित हैं और बाहर से डाक से आते हैं।
(2) दूसरे वे जो विद्यालय से प्रकाशित हैं। दूसरे रूप के
निम्नलिखित चार प्रकार हैं—
(i) श्रुत या कथित लेख, (ii) पठित, (iii) विधिवत् हस्तलिखित यदि किसी विद्यालय के पास प्रचुर साधन हैं तो (iv) चौथा मुद्रित रूप भी हो सकता है।
यह निर्विवाद है कि विद्यालयों को अपने निजी समाचार-पत्र की आवश्यकता है क्योंकि जीवन में आज इसका बड़ा महत्व है,. इसीलिए इस कार्य को हमारे विद्यालयों के अध्यापन विषयों में भी कहीं-कहीं स्थान प्राप्त है ।
समाचार – पत्र अपने आप में एक बड़ी कला है जिसमें बहुत बुद्धि, विवेक और कौशल की आवश्यकता है। इससे यह विद्या अब एक विज्ञान का रूप लेते हुए स्वतंत्र शास्त्र बनती जा रही है जिसे पत्रकारिता कहा जाता है।
हस्तलिखित समाचार – पत्र दैनिक, अर्द्ध साप्ताहिक या साप्ताहिक हो सकता है। इसके लिए विद्यालय में समाचार या समाचार पत्र प्रकोष्ठ स्थापित हो। इसके विभिन्न अंग होंगे जिनके विविध कार्यकलाप होंगे। छात्रों तथा अध्यापकों के कुछ दल इसमें कार्यरत रहेंगे। ये सब इस बात पर निर्भर करेंगे कि विद्यालय समाचारों को क्या और कितना महत्व देता है। कार्य छोटा हो तो एक छोटा-सा समूह कार्य करेगा और कार्य कुछ बड़ा हो तो अधिक दल अधिक समूहों के होंगे। किन्तु प्रत्येक स्थिति में कुछ बातें तो व्यवस्था और प्रस्तुतीकरण संबंधी अनिवार्यतः की होगी जिनमें कुछ लोगों को अनिवार्यतः आवश्यकता होगी।
समाचार पत्र के निम्नलिखित अंग हो सकते हैं—
(1) मुख्य पृष्ठ— जिसमें पत्र का नाम, उसके ध्येय, सिद्धान्त तथा आदर्शपरक वाक्य, उस पर कोई प्रतीक, मुद्रा या चित्र आदि हो ।
(2) समाचार- स्थायी और विशेष स्तम्भ हो । ये निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं—
(i) समाचार– विद्यालय के शिक्षा जगत् के, नगर, क्षेत्र, राज्य और देश-विदेश के जिन्हें देना उचित हो और जो महत्व के हों।
(ii) इनके स्तम्भ– स्थायी या विशेष टिप्पणियाँ, चर्चाएँ, छात्रों और अध्यापकों का मत- समाचार – सम्पादकीय – समयोपयोगी लेख, कथा, कहानी, कविता, जीवनी, भ्रमण या यात्रावृत्तान्त चकित करने वाली बातें या कौतूहल, हास्यव्यंग्य-विनोद, प्रश्नोत्तर, सुझाव–चित्र, मानचित्र, फोटो, अनुकृति रेखाचित्र, व्यंग्य चित्र आदि ।
(iii) विद्यालय की बातें– इनमें नियमोपनियम, समस्त क्रियाएँ अध्यापन, रुचियाँ, गोष्ठियाँ, सभाएँ, उत्सव आयोजन आदि के साथ अध्यापक, उनका कार्य, छात्र, अध्ययन, छात्रावास, भोजन, रहन-सहन, आचार-व्यवहार, पुस्तकालय, वाचनालय, मनोरंजन छात्रसंघ आ जाते हैं।
कार्यकर्ता का चयन अत्यन्त सावधानी से हो तोकि पत्र का स्तर श्रेष्ठ रहे और विद्यालय का भी नाम हो। इसके लिए इस कार्य में स्वाभाविक प्रवृत्ति या रुचि वाले अच्छे छात्रों के दलों को नियोजित किया जाए। उन्हें ऐसी प्रवृत्ति वाले सुयोग्य अध्यापकों के अधीन किया जाए।
वैसे तो समाचार प्राप्ति के स्थान साधारणतया वे हैं जहाँ सब राजकीय कार्य होता है जैसे संसद, विधान सभा सचिवालय आदि जहाँ लोगों का अधिकतर काम पड़ता है और जहाँ सब समाचारों का मूल केन्द्र है, किन्तु वे स्थान भी हैं जहाँ लोग कार्यवश या गोष्ठी रूप एकत्रित हो जाते हैं, जैसे राजनीतिक दलों या अन्य सार्वजनिक संगठनों, संस्थाओं के कार्यालय, समितियों की बैठकें, अस्पताल, होटल या रेस्तरां, धर्मशालाएँ, मन्दिर, मस्जिद, रेल्वे स्टेशन, रेलें, मोटर बसें या उनके अड्डे, क्लब, नृतय संगीतादि मनोरंजन के स्थल, सिनेमा नाटक आदि । उसे इतने समाचार मिल सकते हैं कि वह बहुत से तो लेगा ही नहीं। फिर विद्यालय, अध्यापक कक्ष, शिक्षा विभाग का कार्यालय उसके लिए और भी महत्वपूर्ण स्थल हैं । अतः उसे अपने विवेक से इनका संग्रह संकलन सम्पादन करना होगा। आवश्यक को लें और शेष को छोड़ देना होगा।
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