व्यक्तित्व क्या है ? व्यक्तित्व निर्धारण हेतु कौन से कारक जिम्मेदार हैं ? बालक के व्यक्तित्व विकास में शिक्षक की क्या भूमिका है ?

व्यक्तित्व क्या है ? व्यक्तित्व निर्धारण हेतु कौन से कारक जिम्मेदार हैं ? बालक के व्यक्तित्व विकास में शिक्षक की क्या भूमिका है ?

उत्तर— व्यक्तित्व का अंग्रेजी शब्द में समान्तर शब्द है (Personality)। यह शब्द लैटिन शब्द के (Persona) के शब्द से बना है जिसका अर्थ (mask) या नकली चेहरा । इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में देखने पर व्यक्तित्व का अर्थ है कि किसी व्यक्ति का बाह्य रूप । परन्तु किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण करने के लिए उसके बाह्य रूप को ही आधार बनाना पर्याप्त नहीं है। व्यक्तित्व तो व्यक्ति को बाह्य रूप के साथ-साथ उसका आन्तरिक स्वरूप भी है जो उसके व्यवहार से परिलक्षित होता है। व्यक्तित्व का अधिक स्पष्ट रूप में अर्थ जानने के लिए हमें विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के द्वारा व्यक्तित्व के सम्बन्ध में दी गयी परिभाषाओं का अध्ययन करना होगा।
आलपोर्ट के अनुसार, “व्यक्तित्व के अन्दर उन मनोदैहिक संस्थाओं का वह गत्यामक संगठन है जो कि उसके वातावरण के प्रति होने वाले अनोखे समयोजन का निर्धारण करता है । “
कैम्प के अनुसार, “व्यक्ति उन आदतों का संग्रहीत रूप है जो कि एक व्यक्ति की अपने वातावरण के प्रति समायोजन करने वाली विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करती है । “
केन्टल के अनुसार, “व्यक्तित्व वह गुण है जिनके आधार पर यह भविष्य कथन करना संभव हो कि व्यक्ति किसी प्रदत्त परिस्थिति में किस प्रकार का आचरण प्रदर्शित करेगा।”
गिलफर्ड के अनुसार, “व्यक्ति के विशेषकों के विलक्षण स्वरूप को उसका व्यक्तित्व माना जाता है। “
इस प्रकार व्यक्ति के आन्तरिक व्यवहार (Heredity) और बाह्य व्यवहार (Environment) में जो समायोजन होता है उसे व्यक्ति का व्यक्तित्व कहते हैं ।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ प्रगट होती हैं—
(1) व्यक्तित्व व्यक्ति की कई विशेषताओं का गणितीय योग होने की अपेक्षा एक विशिष्ट प्रकार का समग्र (Whole) है । इस प्रकार व्यक्तित्व के अन्तर्गत व्यक्ति के शारीरिक गठन, उसकी बौद्धिक क्षमता, सामाजिक एवं संवेगात्मक विशेषता, स्वभाव तथा चारित्रिक गुणों का सम्मिश्रण है।
(2) व्यक्ति की संरचना में पाये जाने वाले सभी तत्त्व पृथक्पृथक् रूप में व्यक्त न होकर समन्वय की प्रवृत्ति प्रगट करते हैं अर्थात् किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व में विभिन्न गुणों का समन्वय होता है।
(3) व्यक्ति के व्यक्तित्व में विलक्षणता (Uniqueness) होती है अर्थात् प्रत्येक का व्यक्तित्व दूसरे व्यक्ति के व्यक्तित्व से भिन्न होता है ।
(4) व्यक्तित्व प्राणी के वंशानुक्रम और वातावरण दोनों प्रकार के कारकों का प्रतिफल कहा जा सकता है। व्यक्तित्व का निर्धारण प्राणी के वंशानुक्रम और वातावरण के मध्य अन्तः क्रिया के माध्यम से उत्पन्न होने वाले व्यवहारों के आधार पर किया जा सकता है।
(5) व्यक्तित्व में ऐसे गुणों या विशेषकों का समावेश होता है जो अधिकांशतः अर्जित हुआ करते हैं। एक परिपक्व व्यक्तित्व बनने की अवस्था तक पहुँचने में अधिगम का योगदान इस सीमा तक होता है कि व्यक्तित्व तथा अधिगम सम्बन्धी गुणों का विभेद करना मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार व्यक्तित्व के निर्माण में अधिगम का विशेष महत्त्व होता है।

(6) हर व्यक्तित्व की अपनी विलक्षण प्रेरक शक्ति होती है। इस प्रकार अभिप्रेरणा के विविध सिद्धान्त व्यक्तित्व की व्याख्या करने में सहायक होते हैं।
व्यक्तित्व करने वाले कारक को प्रभावित कारक—
( 1 ) वंशानुक्रम एवं जैविक कारक
(2) वातावरणीय कारक
( 3 ) मनोवैज्ञानिक कारक—प्रेरक, अर्जित रुचियाँ, अभिवृत्तियाँ बुद्धि, तर्क, कल्पना तथा निर्णय लेने की योग्यता आदि मनोवैज्ञानिक कारक भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को भावित करते हैं।
(4) सांस्कृतिक कारक – संस्कृति शब्द ‘संस्कार’ से बना है। बालक जिस तरह की संस्कृति अथवा संस्कारों में पलता है उसका व्यक्तित्व भी उसी प्रकार का होता है ।
प्राचीन भारतवर्ष की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि आज से भिन्न थी इसलिये उस समय धार्मिक और चरित्रवान व्यक्ति हुआ करते थे। लेकिन आज पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध के कारण हमारा धर्म ईमान पैसा है । व्यक्तियों में चरित्र – पतन, भ्रष्टाचार, पदलोलुपता आदि लक्षणों की प्रधानता है अभी कुछ समय पूर्व से हमारे देश में एक विचार बड़ी तेजी से हमारे सामाजिक एवं राजनीतिक वातावरण को प्रभावित कर रहा है। ” उच्च स्थानों (पदों) पर भ्रष्टाचार” शायद आगे आने वाले राजनीतिक वातावरण का यही मुख्य मुद्दा है।
मैलीनेस्की और मारग्रेट के अनुसंधानों ने भी साबित कर दिया है कि व्यक्तित्व के निर्माण में सांस्कृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है। उसी प्रकार आगर्बन तथा निमकाफ के मतानुसार—“सामूहिक जीवन सामान्य सम्बन्धों को निश्चित करता है। दूसरी ओर संस्कृति मूर्त गुणों को निश्चित करती है । “
उपर्युक्त विवेचना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि व्यक्तित्व के विकास पर वंशानुक्रम तथा वातावरण के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक व सांस्कृतिक कारकों का भी प्रभाव पड़ता है ।
शिक्षक का बालक के व्यक्तित्व के विकास में योगदान –जैसा कि ऊपर हमने अध्ययन किया है कि विद्यालयी वातावरण का बालक के व्यक्तित्व के विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विद्यालय में शिक्षक सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है जो बालक के व्यक्तित्व को कई प्रकार से प्रभावित कर उसके विकास में अपना सहयोग दे सकता है। शिक्षक का बालक के व्यक्तित्व के विकास पर प्रभाव को हम निम्न बिन्दुओं के रूप में अध्ययन कर सकते हैं—
(1) शिक्षक व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर प्रत्येक छात्र का उसकी रुचि, क्षमता एवं योग्यता के अनुसार विकास करने में सहायता दे सकता है। इसके लिए शिक्षक छात्रों की निम्न तरीके से सहायता कर सकता है—
(i) प्रतिभाशाली बालक की प्रतिभा को पहचान कर उसकी प्रतिभा को विकसित करने के अवसर प्रदान करना ।
(ii) मन्दबुद्धि अथवा पिछड़े बालकों के मन्दबुद्धिता और पिछड़ेपन के कारणों की खोज कर उन्हें दूर करने के प्रयत्न करना, जिससे कि ऐसे बालकों के व्यक्तित्व का पूर्ण व सन्तुलित विकास हो सके।
(2) छात्रों का मानसिक विकास करने की दृष्टि से शिक्षक विद्यालय में बालक के लिए समुचित रूप से शिक्षण व्यवस्था करें ।
(3) छात्रों का शारीरिक विकास की दृष्टि से शिक्षक बालक में समुचित खेलकूद और व्यायाम आदि की व्यवस्था करें। खेलकूदों से छात्रों के शारीरिक विकास के साथ-साथ उनमें प्रेम-सहयोग आदि गुण भी विकसित हो सकेंगे।
(4) शिक्षक को पाठ्यकम सहगामी क्रियाओं की भी समुचित व्यवस्था करनी चाहिये जिससे छात्रों के व्यक्तित्व के सभी पक्षों के विकास में सहायता मिल सकें।
(5) शिक्षक को विद्यालय में स्वस्थ वातावरण प्रस्तुत करना चाहिये जिससे छात्रों में अच्छी और स्वस्थ प्रवृत्तियाँ विकसित हो सकें ।
(6) अध्यापक का स्वयं का व्यवहार भी आदर्श होना चाहिये क्योंकि छात्र प्राय: अपने अध्यापक के आचरण का अनुसरण करते हैं। अध्यापक का आचरण उत्तम होने पर भी छात्रों के व्यक्तित्व का उचित दिशा में विकास हो सकता है।

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Ajit kumar

Sub Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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