निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए—

 निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए— 

(1) जवाहर नवोदय विद्यालय

(2) मॉडल स्कूल
(3) एन.सी.एफ.टी.ई. – 2009
उत्तर— (1) जवाहर नवोदय विद्यालय– भारत सरकार ने सन् 1985-86 में देश के प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय स्थापित करने की योजना आरम्भ की। इन विद्यालयों के उचित प्रबंधन एवं संचालन के लिए ‘नवोदय विद्यालय समिति’ की स्थापना की गई। यह समिति मानव संसाधन विकास मंत्रालय [Ministry of Human Resource Development (MHRD)] से सम्बद्ध एक स्वायत्त संस्था है । यह संस्था 28 फरवरी, सन् 1985 को समिति के रूप में पंजीकृत की गई थी । यह समिति केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) से सम्बद्ध है।
नवोदय विद्यालय समिति के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं—
(1) देश के विभिन्न भागों के बच्चों को साथ-साथ पढ़ने, सीखने एवं रहने का अवसर उपलब्ध कराना जिसके माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दिया जा सके ।
(2) सामाजिक न्याय एवं समानता के साथ-साथ उत्कृष्टता के उद्देश्यों को प्राप्त करना ।
(3) राष्ट्रीय विकास में भागीदारिता के लिए सक्षम बनाना ।
(4) बच्चों की क्षमताओं का पूर्णरूप से विकास करना ।
समिति का मुख्यालय दिल्ली में है। इसके अतिरिक्त हैदराबाद, चण्डीगढ़, भोपाल, पुणे, पटना, लखनऊ, शिलाँग एवं जयपुर में क्षेत्रीय कार्यालय है। ये कार्यालय अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले विद्यालयों के शैक्षिक, वित्तीय एवं प्रशासनिक कार्यों का निरीक्षण करते हैं।
नवोदय विद्यालयों के उद्देश्य — नवोदय विद्यालय के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं—
(1) प्रतिभाशाली छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए उनके पारिवारिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों में भेदभाव के बिना आधुनिक सुविधाओं के साथ उच्च स्तर की शिक्षा उपलब्ध कराना ।
(2) अनुभव एवं सुविधाओं के आधार पर शिक्षा में सुधार के लिए केन्द्र के रूप में कार्य करना ।
(3) त्रिभाषा सूत्र के आधार पर तीन भाषाओं में उचित योग्यता का विकास करना (गैर हिन्दी भाषा क्षेत्रों में तीन भाषाओं क्षेत्रीय भाषा, हिन्दी भाषा एवं अंग्रेजी भाषा के शिक्षण की उचित व्यवस्था की गई है) ।
(4) अन्य विद्यालयों के लिए गति निर्धारित करना ।
नवोदय विद्यालयों की प्रमुख विशेषताएँ — नवोदय विद्यालयों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
(1) इन विद्यालयों में सह-शिक्षा (Co-eduction) की व्यवस्था है।
(2) ये विद्यालय पूर्ण रूप से आवासीय है ।
(3) इन विद्यालयों के अन्तर्गत 9वीं कक्षा में आने पर 30 प्रतिशत छात्रों का स्थानान्तरण अन्य विद्यालयों में कर दिया जाता है। गैर हिन्दी भाषी छात्रों का हिन्दी भाषी जिलों में एवं हिन्दी भाषी छात्रों का गैर-हिन्दी भाषी जिलों में किया जाता है।
(4) इन विद्यालयों में छात्रों को रहने, खाने-पीने, कापी किताबों एवं वेशभूषा आदि समस्त सुविधाएँ निःशुल्क प्रदान की जाती हैं।
नवोदय विद्यालयों में प्रवेश– नवोदय विद्यालय में प्रवेश राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षा के आधार पर छठी कक्षा में किया जाता है। प्रवेश परीक्षा का आयोजन बच्चों की मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा में होता है।
प्रवेश लेने वाले छात्र को किसी मान्यता प्राप्त विद्यालय में तीसरी, चौथी एवं पाँचवी की परीक्षा पास करना अनिवार्य है। प्रवेश परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर छात्र को पुनः परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं होती है। बालक ने कक्षा 5 की परीक्षा जिस भाषा के माध्यम से उत्तीर्ण की है उसी भाषा में वह प्रवेश परीक्षा के प्रश्नों को हल कर सकता है।
नवोदय विद्यालयों की वर्तमान स्थिति– नवोदय विद्यालय छात्रों को माध्यमिक स्तर तक निःशुल्क सह शिक्षा एवं आवासीय विद्यालय है। मात्र दो विद्यालयों के साथ सन् 1985-86 में प्रयोग रूप से शुरू हुई इस योजना के अन्तर्गत देश के 34 राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में अब तक ( 31 मार्च 2007 तक) इन विद्यालयों की संख्या बढ़कर 565 हो चुकी है। 31 मार्च, सन् 2007 तक इन विद्यालयों में 193000 छात्र अध्ययन कर रहे थे । इन विद्यालयों में प्रतिवर्ष 30000 से अधिक छात्र प्रवेश पाते हैं। इन विद्यालयों में ऐसे ग्रामीण छात्रों का चयन किया जाता है जो मेधावी, प्रतिभाशाली एवं प्रखर बुद्धि वाले होते हैं और जिन्हें ऐसे विद्यालयों के अभाव में अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के अवसरों से वंचित रहना पड़ता है। इन विद्यालयों में एक तिहाई (33 प्रतिशत) सीटें बालिकाओं के लिए आरक्षित होती हैं ।
छात्रों का शैक्षिक प्रवास नवोदय विद्यालय की एक मुख्य विशेषता है। इसके अन्तर्गत किसी हिन्दी भाषी क्षेत्र में स्थित नवोदय विद्यालय के 9वीं कक्षा के छात्रों में से 30 प्रतिशत छात्र किसी अन्य गैर हिन्दी भाषी क्षेत्र के विद्यालय में एक सत्र की शिक्षा ग्रहण करते हैं। यही क्रम गैर हिन्दी भाषी विद्यालय के छात्रों को भी करना पड़ता है। इस योजना का उद्देश्य देश के नागरिकों की बोलचाल एवं संस्कृति की बहुलता एवं विविधता के माध्यम से राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता को बढ़ावा देना है।
(2) मॉडल स्कूल– मानव संसाधन विकास मंत्रालय, स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग, भारत सरकार द्वारा मॉडल स्कूल योजना के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में योजना के अन्तर्गत छात्र-छात्राओं को माध्यमिक स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने हेतु प्रदेश में स्टेट सेक्टर कम्पोनेन्ट के अधीन 680 शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े विकास खण्ड चिन्हित किए गए हैं। उक्त सभी विकास खण्डों में एक-एक मॉडल स्कूल. विभिन्न चरणों में खोले जाने हैं और यह सभी मॉडल स्कूल केन्द्रीय विद्यालय की तर्ज पर संचालित किए जाएँगे। इस योजना के अन्तर्गत केन्द्र का अंश 75 प्रतिशत और राज्य का अंश 25 प्रतिशत निर्धारित है।
अवधारणा– शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े विकास खण्डों में केन्द्रीय विद्यालय के पैटर्न पर माध्यमिक स्तर की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए इन विद्यालयों की अवधारणा विकसित की है। इन स्कूलों की बुनियादी सुविधाएँ केन्द्रीय विद्यालय के स्तर की होगी। स्कूलों में
आदर्श छात्र- शिक्षक अनुपात आधुनिकतम सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग, सृजनात्मक शैक्षिक वातावरण, उपयुक्त पाठ्यचर्या के सम्बन्ध में मानदण्ड निर्धारित किए जाएँगे और विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
मॉडल स्कूल के उद्देश्य– ब्लॉक (विकास खण्ड) स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाली माध्यमिक शिक्षा सुलभ कराना जिससे देश में प्रत्येक पिछड़े ब्लॉक में अन्य स्कूलों के लिए आदर्श स्थापित कर सके। इस योजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं—
(1) माध्यमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण की दिशा में प्रयास करना ।
(2) शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण माध्यमिक शिक्षा उपलब्ध कराना ।
(3) वंचित वर्गों के बालक-बालिकाओं की माध्यमिक शिक्षा का स्तर ऊँचा कराना ।
(4) आधुनिकतम तकनीकी एवं विशेष सुविधाओं युक्त माध्यमिक स्तर के विद्यालयों की स्थापना करना ।
(5) बालक-बालिकाओं के भौतिक, सामाजिक, नैतिक एवं सर्वांगीण विकास हेतु पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराना।
मॉडल स्कूल की विशेषताएँ–निम्नलिखित हैं—
(1) मॉडल स्कूलों में कक्षा 6 से 12 तक अध्ययन-अध्यापन का प्रावधान एवं सह-शिक्षा की व्यवस्था होती है ।
(2) स्कूल में पिछड़े एवं वंचित वर्ग के बालक-बालिकाओं, अल्पसंख्यक वर्ग के बालक-बालिकाओं, विधवा व परित्यक्ता की सन्तानों एवं विकलांगों के प्रवेश को विशेष प्राथमिकता दी जा रही है ।
(3) स्कूल में पर्याप्त सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी, बुनियादी सुविधा, इन्टरनेट और पूर्णकालिक शिक्षा कम्प्यूटर शिक्षक उपलब्ध कराई जा रही है ।
(4) विज्ञान, गणित और अंग्रेजी भाषा के सम्प्रेषण पर विशेष बल दिया गया है ।
(5) मॉडल स्कूलों में अंग्रेजी वाचक कौशल (English Speaking Skill) विकसित करने के लिए विशेष प्रावधान रखा गया है।
(6) इन स्कूलों का वातावरण ऐसा होता है जिसमें विद्यालयों में नेतृत्व क्षमता, सहयोग की भावना, भागीदारी, योग्यताएँ, वास्तविक जीवन की परिस्थिति से जूझने के लिए सुलभ कौशल और योग्यता प्राप्त हो रही है।
(7) मानदण्डों के अनुसार वाद शिक्षकों के अलावा कला, चित्रकला व संगीत के शिक्षक भी उपलब्ध कराए गए हैं।
(8) योजना के निर्धारित मानदण्डों के अनुसार शिक्षक छात्र का आदर्श अनुपात 1: 25 होना अपेक्षित है।
(9) स्कूल द्वारा राष्ट्रीय पाठचर्या रूपरेखा 2005 (NCF 2005) तथा सरकार द्वारा समय-समय पर अपनाए गए पाठान्तरों का अनुसरण करना किया जा रहा है।
(10) भविष्य में इन स्कूल के छात्रों की शैक्षिक, भावनात्मक और व्यवहार सम्बन्धी आवश्यकताओं का समाधान करने के लिए मनोवैज्ञानिक सेवाएँ भी दी जाएँगी।
राजस्थान के मॉडल स्कूलों में प्रवेश की नीति–राजस्थान सरकार अपने मॉडल स्कूलों में प्रवेश हेतु निम्न नीति का पालन कर रही है—
(1) कक्षा-6 से 8 तक प्रवेश नीति ( Class 6 to 8th Admission Policy)—
(i) राज्य सरकार प्रथम वरीयता सम्बन्धित ब्लॉक से विधवा, परित्यक्ता एवं एच.आई.वी. एड्स पीड़ित अभिभावकों के . बालक-बालिकाओं को दे रही है।
(ii) द्वितीय वरीयता विकलांग, तृतीय बी. पी. एल परिवार, चतुर्थ अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बालक-बालिकाओं को प्रवेश दे रही है ।
(iii) कुल प्रवेश स्थान की 55 प्रतिशत सीटों का प्रावधान बालिकाओं हेतु किया जा रहा है ।
(iv) सम्बन्धित ब्लॉक के बालक-बालिकाओं को प्रवेश हेतु . प्राथमिकता होती है, तत्पश्चात् खाली सीटों के लिए अन्य ब्लॉक के छात्रों पर विचार किया जाता है।
(v) कक्षा 6 में शत-प्रतिशत प्रवेश नवीन होते हैं । कक्षा 7 एवं कक्षा 8 में प्रवेश पूर्व से अध्ययनरत विद्यार्थियों द्वारा की जाएगी।
(2) कक्षा 9 में प्रवेश हेतु नीति–कक्षा 9 में प्रवेश हेतु निम्न नीति है—
(i) प्रति मॉडल स्कूल में 9वीं कक्षा में दो सेक्शन के अनुसार
अधिकतम प्रवेश हेतु विद्यार्थियों की संख्या 80 होती है ।
(ii) स्वामी विवेकानन्द राजकीय मॉडल स्कूलों में अध्ययनरत आठवीं कक्षा के विद्यार्थी 8वीं परीक्षा में ग्रेड बी अथवा 45 प्रतिशत एवं उससे अधिक स्तर प्राप्त करने पर 9वीं में प्रवेश के पात्र होंगे।
(iii) ग्रेड बी अथवा 45 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त करने वाले मॉडल स्कूल के विद्यार्थियों को आर.टी.ई. के तहत उच्च प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने का प्रमाण पत्र देकर उनका अन्य राजकीय विद्यालयों में प्रवेश करवाया जाता है।
(iv) प्रवेश परीक्षा में चयन के उपरान्त भी विद्यार्थी तब तक प्रवेश का पात्र नहीं होगा जब तक वह आवश्यक प्रपत्र समिति को उपलब्ध नहीं कराता है।
(v) प्रवेश परीक्षा में न्यूनतम उत्तीर्णांक 33 प्रतिशत होता है।
मॉडल स्कूल प्रबन्ध– राजस्थान माध्यमिक शिक्षा परिषद् इस योजना के क्रियान्वयन हेतु नोडल ऐजेन्सी है । परिषद् स्तर पर मॉडल स्कूल प्रकोष्ठ स्थापित किया गया है जो मॉडल स्कूलों के प्रबन्धन एवं संचालन सम्बन्धी समस्त दायित्वों का निर्वाहन कर रही है ।
आयुक्त, अतिरिक्त आयुक्त के मार्गदर्शन में एक उपायुक्त, एक उपनिदेशक व दो सहायक निदेशक द्वारा योजना सम्बन्धी दिशा-निर्देश सुचारू रूप से प्रसारित किए गए हैं। प्रकोष्ठ द्वारा समस्त संचालित मॉडल स्कूलों की मॉनीटिरिंग का कार्य भी किया जाता है। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा परिषद् की शासित परिषद् एवं निष्पादन समिति ही मॉडल स्कूल योजना के अन्तर्गत नीति निर्धारण एवं नियन्त्रण का कार्य करती है ।
मॉडल स्कूलों में शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड– सरकारी स्कूलों में अब विद्यार्थी ही नहीं, प्रधानाचार्य और शिक्षक भी ड्रेस कोड में नजर आते हैं। प्रदेश के सभी स्वामी विवेकानन्द राजकीय मॉडल स्कूल में यह व्यवस्था लागू होती है। राजस्थान राज्य में 186 ब्लॉकों में मॉडल स्कूल प्रारम्भ करने की आशा की गई है। विभाग के सभी प्रकार के स्कूलों में ड्रेस कोड लागू किया गया है।
(1) पुरुष स्टाफ के लिए ड्रेस कोड– गर्मी में स्काई ब्लू शर्ट, स्टील ग्रे मोजे, काले जूते । ठण्ड के मौसम में इसके अतिरिक्त हाफ स्वेटर, ग्रे या ब्लू कारपोरेट ब्लू ब्लेजर होगा।
(2) महिला स्टाफ के लिए– गर्मी में स्काई ब्लू कलर की साड़ी जिस पर कारपोरेट ब्लू ब्लाउज, स्काई ब्लू कुर्ता और कारपोरेट ब्लू चूड़ीदार सलवार । ग्रे मोजे सैंडल या जूते । ठण्ड के मौसम में इसके साथ कारपोरेट ब्लू ब्लेजर या कारपोरेट ब्लू शॉल।
(3) एन. सी. एफ. टी. ई. 2009– अध्यापक शिक्षा के लिए यह राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (2009 NCFTE) संदर्भ, चिन्ताओं और दृष्टि को रेखांकित बताते कि शिक्षक शिक्षा और स्कूली शिक्षा एक सहजीवी रिश्ता है और इन दोनों क्षेत्रों में विकास के परस्पर चिन्ताओं को सुदृढ़ शिक्षा के पूरे स्पेक्ट्रम के गुणात्मक सुधार के लिए आवश्यक के रूप में अच्छी तरह से शिक्षक शिक्षा भी शामिल है। स्कूल के पाठ्यक्रम की नई चिंताओं और उम्मीद व्यवहार के तौर तरीकों को डिजाइन करने में बल दिया। स्कूल शिक्षा के सभी स्तरों के लिए इस ढाँचे, इश्यू समावेशी से सम्बन्धित शिक्षा, समान और सतत् विकास के लिए दृष्टिकोण, लिंग दृष्टिकोण, स्कूली शिक्षा में शिक्षा के क्षेत्र में समुदाय के ज्ञान की भूमिका और आईसीटी के रूप में अच्छी तरह से ईलर्निंग के रूप में फ्रेमवर्क में केन्द्र मंच बन जाते हैं। एनसीएफटीई का प्रारम्भिक मसौदा एक विशेषज्ञ टीम द्वारा विकसित किया गया था।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग – बाल अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत आयोग के निम्नलिखित दायित्त्व हैं–
(1) किसी विधि के अधीन बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए सुझाये गए उपायों की निगरानी व जाँच करना जो उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए वर्तमान केन्द्र सरकार को सुझाव मिलते हैं।
(2) उन सभी कारकों की जाँच करना जो आतंकवाद, साम्प्रदायिक हिंसा, दंगों, प्राकृतिक आपदा, घरेलू हिंसा, एचआईवी एड्स, तस्करी, दुर्व्यवहार, यातना और शोषण, वेश्यावृत्ति और अश्लील साहित्य से प्रभावित बच्चों के खुशी के अधिकार व अवसर को कम करती हैं और उसके लिए उपचारात्मक उपायों का सुझाव देना ।
(3) ऐसे संकटग्रस्त, वंचित और हाशिए पर खड़े बच्चे जो बिना परिवार के रहते हों और कैदियों के बच्चों से सम्बन्धित मामलों पर विचार करना और उसके लिए उपचारात्मक उपायों का सुझाव देना ।
(4) समाज के विभिन्न वर्गों के बीच बाल अधिकार साक्षरता का प्रसार करना और बच्चों के लिए उपलब्ध सुरक्षोपाय के बारे में जागरुकता फैलाना ।
(5) केन्द्र सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी सहित किसी भी संस्थान द्वारा चलाये जा रहे सामाजिक संस्थान जहाँ बच्चों को हिरासत में या उपचार के उद्देश्य से या सुधार व संरक्षण के लिए रखा गया हो, वैसे बाल सुधार गृह या किसी अन्य स्थान पर जहाँ बच्चों का निवास हो या उससे जुड़ी संस्था का निरीक्षण करना ।
(6) बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन की जाँच कर ऐसे मामलों का कार्यवाही प्रारम्भ करना और निम्न मामलों में स्वतः संज्ञान लेना, जहाँ—
(i) बाल अधिकारों का उल्लंघन व उपेक्षा होती हो ।
(ii) बच्चों के विकास और संरक्षण के लिए बनाए गए कानून का क्रियान्वयन नहीं किया गया हो।
(iii) बच्चों के कल्याण और उसे राहत प्रदान करने के लिए  दिए गए नीति निर्णयों, दिशा-निर्देशों या निर्देश का अनुपालन नहीं किया जाता हो ।
(iv) जहाँ ऐसे मामले पूर्ण प्राधिकार के साथ उठाए गए हों।
(v) बाल अधिकार को प्रभावी बनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संधियों और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय उपकरणों के आवधिक समीक्षा और मौजूदा नीतियों, कार्यक्रमों और अन्य गतिविधियों का अध्ययन कर बच्चों के हित में उसे प्रभावी रूप से क्रियान्वित करने के लिए सिफारिश करना ।
(vi) बाल अधिकार पर बने अभिसमयों के अनुपालन का मूल्यांकन करने के लिए बाल अधिकार से जुड़े मौजूदा कानून, नीति एवं प्रचलन या व्यवहार का विश्लेषण व मूल्यांकन करना और नीति के किसी भी पहलू पर जाँच कर प्रतिवेदन देना जो बच्चों को प्रभावित कर रहा हो और
उसके समाधान के लिए नियम बनाने का सुझाव देना ।
(vii) सरकारी विभागों और संस्थाओं में कार्य के दौरान व स्थल पर बच्चों के विचारों का सम्मान और उन्हें बढ़ावा देना तथा उसे गंभीरता से लेना ।
(viii) बाल अधिकारों के बारे में सूचना उत्पन्न करना और उसका प्रचार-प्रसार करना ।
(ix) बच्चों से जुड़े आँकड़ों का विश्लेषण व संकलन करना ।
(x) बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रम, शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम और बच्चों की देखभाल करने वाले प्रशिक्षण कर्मियों के प्रशिक्षण पुस्तिका में बाल अधिकार को बढ़ावा देना और उसे शामिल करना ।
संरचना— केन्द्र सरकार द्वारा आयोग में निम्न सदस्यों को तीन वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया जाएगा—
(i) अध्यक्ष, जिसने बाल कल्याण को बढ़ावा देने के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया हो ।
(ii) छह अन्य सदस्य जिन्हें शिक्षा, बाल स्वास्थ्य, देखभाल, कल्याण, विकास, बाल न्याय, हाशियो पर पड़े उपेक्षित अपंग व परित्यक्त बच्चों की देखभाल या बाल श्रम उन्मूलन, बाल मनोविज्ञान और कानून के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल हो ।
(iii) सदस्य सचिव, जो संयुक्त सचिव स्तर के समकक्ष होगा या उसके नीचे स्तर का नहीं होगा ।
शक्तियाँ—आयोग को निम्न मामलों में सिविल न्यायालय की सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी—
(i) देश को किसी भी हिस्से के किसी भी व्यक्ति को सुनवाई के लिए आयोग के समक्ष उपस्थित होने के लिए आदेश देना, उसे लागू करवाना और शपथ का परीक्षण करना ।
(ii) किसी भी दस्तावेज की खोज व प्रस्तुति के लिए आदेश देना।
(iii) हलफनामा पर साक्ष्य प्राप्त करना ।
(iv) किसी भी अदालत के कार्यालय से सार्वजनिक रिकार्ड या उसकी प्रति प्राप्त करना ।
शिकायत प्रणाली— आयोग का एक प्रमुख जनादेश बाल अधिकार के उल्लंघन सम्बन्धी शिकायत की जाँच करना है। आयोग के लिए यह भी जरूरी हैं कि वह बाल अधिकारों के गंभीर उल्लंघन की स्थिति में स्वतः संज्ञान को लेकर मामले की जाँच करे कि कौनसे तत्त्व बच्चों को उनके अधिकारों का आनंद उठाने से रोक रहे हैं।
(i) आयोग के समक्ष ऐसी कोई भी शिकायत संविधान की 8वीं अनुसूची में वर्णित किसी भी भाषा में की जा सकती हैं।
(ii) इस प्रकार की शिकायत दर्ज कराने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।
(iii) शिकायत में मामले का पूर्ण विवरण होना शामिल होगा।
(iv) यदि आयोग जरूरी समझे तो अन्य जानकारी या हलफनामा दाखिल करने के लिए कह सकती है ।
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