शैक्षिक अवसरों की समानता के अर्थ को स्पष्ट कीजिए । इसकी आवश्यकता एवं इसके मार्ग की बाधाओं का वर्णन कीजिए । शैक्षिक अवसरों की समानता की प्राप्ति हेतु भारत में क्या-क्या कदम उठाए गये हैं ?

शैक्षिक अवसरों की समानता के अर्थ को स्पष्ट कीजिए । इसकी आवश्यकता एवं इसके मार्ग की बाधाओं का वर्णन कीजिए । शैक्षिक अवसरों की समानता की प्राप्ति हेतु भारत में क्या-क्या कदम उठाए गये हैं ?

उत्तर— शैक्षिक अवसरों की समानता का अर्थ– शिक्षा में समानता का अर्थ हैं लिंग, जाति, धर्म, भाषा, वर्ण, रंग, राजनीतिक विचारधारा राष्ट्रीय और सामाजिक उद्गम, आर्थिक स्थिति या जन्म आदि को ध्यान में रखे बिना प्रत्येक उपयुक्त व्यक्ति को समान शैक्षिक अवसरों और सुविधाओं को उपलब्ध कराना हैं समानता का यह अभिप्राय नहीं होता कि मूल रूप से सभी व्यक्ति सामर्थ्यो में समान होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अपने जन्मजात सामर्थ्यो के अनुसार सुविधाएँ प्राप्त होनी चाहिए। किसी व्यक्ति के विकास को तब तक नहीं रोका जाना चाहिए जब तक स्वयं इसमें आगे बढ़ने की योग्यता न हो।
वी. आर. तनेजा के अनुसार शैक्षिक अवसरों की समानता में अन्तर्निहित व्यवस्थाएँ हैं—
(i) राष्ट्रीय श्रमिक बल के मुख्य प्रवेश द्वार का निर्माण करने वाले स्तर तक निःशुल्क शिक्षा । इससे सुविधाओं की असमानता के आर्थिक स्रोतों की समाप्ति होती हैं ।
(ii) छात्रों की आवश्यकताओं, योग्यताओं एवं आकांक्षाओं के अनुरूप विभिन्न शैक्षणिक सुविधाएँ ।
(iii) यदि कोई छात्र अपना पालन-पोषण करने में समर्थ नहीं है तो राज्य ऐसी स्थिति में छात्रवृत्तियों, अनुदानों तथा ऋणों के रूप में सहायता करता है ।
शैक्षिक अवसरों की समानता की आवश्यकता—
समतावादी समाज का विकास– समतावादी समाज व्यवस्था का अभिप्राय एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था से है जो सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों, लाभों तथा सुविधाओं के सिद्धान्त का समर्थन करती है। इस प्रकार की सामाजिक व्यवस्था भारतीय लोकतंत्र का लक्ष्य है शिक्षा उन उपकरणों में से है जो इस प्रकार का सामाजिक परिवर्तन कर सकती है।
भारत में समानता को प्रभावित करने वाले कारक– शिक्षा आयोग (1964-66) के अनुसार भारत में शैक्षणिक अवसरों को प्रभावित करने के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं—
(1) शिक्षा का प्रावधान करने के लिए क्षेत्रीय असन्तुलन अर्थात् देश के विभिन्न क्षेत्रों में गुणवत्ता सम्पन्न संस्थाओं का अभाव ।
(2) आय में असमानताएँ जो समाज के विभिन्न वर्गों में शिक्षा की क्रय-शक्ति में पाए जाने वाले अन्तर के लिए उत्तरदायी हैं।
(3) ग्रामीण एवं शहरी बच्चों की पृष्ठभूमियों में अन्तर ।
(4) बच्चों के अभिभावकों में अन्तर अर्थात् शिक्षित एवं अशिक्षित माता-पिता जो अन्त में शिक्षा की आवश्यकता पर प्रभाव डालते हैं ।
(5) शिक्षा के सभी क्षेत्रों एवं अवस्थाओं में लड़कों एवं लड़कियों की शिक्षा में अन्तर ।
शैक्षिक अवसरों की समानता की प्राप्ति हेतु भारत में किये गये प्रयास– भारत का संविधान भी जीवन के सभी क्षेत्रों में सामान्य रूप से एवं शिक्षा समानता के अवसर विशेष रूप से सभी नागरिकों के लिए बराबर देने के विषय में प्रावधान करता है। वे धाराएँ जो विशिष्ट रूप से इस संदर्भ में प्रासंगिक हैं की चर्चा नीचे की जा रही हैं—
(1) धारा 14 कहती हैं कि राज्य कानून के सम्मुख समानता के लिए किसी नागरिक को इनकार नहीं करेगा।
(2) धारा 15 धर्म, सम्प्रदाय, जाति, लिंग, क्षेत्र एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर होने वाले सभी प्रकार के भेद-भाव को निरुत्साहित करती है।
(3) धारा 16 विशेष रूप से सार्वजनिक नियुक्तियों के विषय में अवसर की समानता के सिद्धान्त को बताती हैं ।
(4) धारा 41 कहती है कि राज्य काम के अधिकार, शिक्षा के अधिकार एवं वृद्धावस्था, बेरोजगारी एवं बीमारी की अवस्था में सार्वजनिक सहायता को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावशाली प्रावधान करेगा।
(5) धारा 45 बताती है कि सरकार सभी बच्चों को जब तक वे 14 वर्ष के नहीं हो जाते निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगी ।
(6) धारा 46 का कहना है कि राज्य सरकार कमजोर वर्गों के लोगों एवं विशेष रूप से अनुसूचित जातियों एवं कबीलों के लोगों को शैक्षणिक एवं आर्थिक हितों को सावधानीपूर्वक बढ़ावा देगी एवं उन्हें सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से संरक्षण प्रदान करेगी।
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