संचार (Communication)

संचार (Communication)

संचार (Communication)

संचार शब्द से हमारा तात्पर्य सूचना को भेजना, ग्रहण करना एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों द्वारा इसे विद्युत संकेतों में बदलना है। संचार को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक है, कि सूचनाओं को दूसरों तक भेजने वाला तथा ग्रहण करने वाला सामान्य भाषा को समझ सके।
संचार का इतिहास (History of Communication)
ऐतिहासिक रूप से यह कह सकते हैं कि
(i) लम्बी दूरी की सूचनाएँ प्रारम्भ करने के लिए टेलिग्राफी का आगमन हुआ। सन् 1850 में पहला टेलीग्राफ तार USA यूरोपीय संचार से जोड़ा गया था ।
(ii) सन् 1901 में मारकोनी ने पहले रेडियो ट्रांसमिशन का आविष्कार किया था। प्रसिद्ध भारतीय भौतिक वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस ने इस क्षेत्र में अच्छा योगदान दिया।
(iii) सन् 1915 में USA में पहली टेलीफोन तार सेवा शुरू की गई थी तथा सन् 1941 में को-एक्सिल तार के साथ बहुत से चैनल शुरु किए गए थे।
(iv) सन् 1962 में, टेलीस्टार उपग्रह के साथ ही उपग्रह संचार शुरु हो गए तथा सन् 1965 में अरली बर्ड ने पहले भू-स्थिर उपग्रह का उद्घाटन किया था।
(v) सन् 1970 में प्रकाशीय तन्तु संचार USA में आरम्भ हुआ था तथा सन् 1988 में ट्रॉन्स ऐटलेटिंक प्रकाशीय तन्तु तार जोड़ा गया था। तब से संचार के कुल क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं।
संचार प्रणाली (Communication System)
संचार सभी सजीव वस्तुओं के जीवन के प्रत्येक चरण में व्याप्त है, चाहे संचार की कोई भी प्रकृति हो । आजकल संचार प्रणाली का उपयोग इलेक्ट्रिक, इलेक्ट्रॉनिक या प्रकाशीय अवस्था में किया जाता है। प्रत्येक संचार व्यवस्था के तीन आवश्यक तत्व होते हैं
(i) प्रेषी (Transmitter) यह भाग संदेश (signal) को उत्सर्जित करता है। सामान्यतः प्रेषी एक ट्रांसड्यूसर, मॉड्युलेटर, प्रवर्धक तथा प्रेषी एन्टीना से मिलकर बना होता है। संचार के लिए संदेश सिग्नल अनुरूप या अंकीय हो सकते हैं ।
(ii) संचार चैनल (Communication Channel) संचार चैनल का कार्य मॉडुलित संकेत को संप्रेषक से ग्राही तक ले जाना है। संचार चैनल को संचरण माध्यम या लिंक भी कहते हैं। विशिष्ट संचरण के लिए प्रदत्त आवृत्ति परास चैनल को व्यक्त करती है।
(iii) ग्राही (Receiver) यह भाग प्रेषी द्वारा भेजे गए संकेत को ग्रहण करता है। सामान्यतः ग्राही, ग्राही एन्टीना, डिमॉड्युलेटर, प्रवर्धक एवं ट्रांसड्यूसर से मिलकर बना होता है।
संचार व्यवस्था में प्रयुक्त महत्वपूर्ण पद (Important Terms Used in Communication System) 
(i) संकेत (Signal) संचार तंत्र में संकेत का अर्थ एक समय परिवर्ती विद्युत संकेत से है, जिसमें सूचना निहित होती है। ये अनुरूप तथा अंकीय संकेत हो सकते हैं।
(a) अनुरूप संकेत (Analog Signals) सतत् रूप से परिवर्ती संकेत (वोल्टेज या धारा) अनुरूप संकेत कहलाते हैं। इस प्रकार के संकेतों को सूचना स्रोत से एक उचित ट्रांसड्यूसर का उपयोग करके उत्पन्न करते हैं, भाषण तथा संगीत अनुरूप संकेत के उदाहरण हैं।
(b) अंकीय संकेत ( Digital Signals) वे संकेत जिनमें धारा या वोल्टेज के केवल दो मान होते हैं, अंकीय संकेत कहलाते हैं। आँकड़ों को सूचीबद्ध करना तथा किताब में अक्षरों का छपना अंकीय संकेत के उदाहरण हैं।
◆ अनुरूप संकेत को अंकीय संकेत के अनुरूप बदल सकते हैं। अनुरूप संकेत में समय के साथ धारा तथा वोल्टेज लगातार बदलती रहती है। अनुरूप संकेत समय के साथ असतत् (discontinuous) रहता है। अतः इन संकेतों का नाड़ी (कम्पन) में उपयोग किया जाता है।
(ii) ऊर्जा परावर्तक (Transducer) कोई युक्ति जो ऊर्जा के एक रूप को किसी दूसरे रूप में परावर्तित कर देती है उसे ट्राँसड्यूसर कहते हैं । इलेक्ट्रॉनिक संचार व्यवस्थाओं में हमें प्रायः ऐसी युक्तियों से व्यवहार करना होता हैं, जिनका या तो निवेश अथवा निर्गत विद्युतीय रूप में होता है। उदाहरण माइक्रोफोन भाषण संकेतों को वैद्युत संकेतों में बदल देता है।
(iii) शोर (Noise) संचार में अशान्ति या विकृति तथा संचार में संदेश सिग्नलों का बनना शोर के रूप में जाना जाता है।
(iv) क्षीणन (Attenuation) संचार चैनल के माध्यम से अपने प्रचार के दौरान एक संकेत की ताकत का नुकसान क्षीणन के रूप में जाना जाता है।
(v) प्रवर्धन (Amplification) किसी इलेक्ट्रॉनिक परिपथ के उपयोग से सिग्नल आयाम में वृद्धि करने की प्रक्रिया प्रवर्धन कहलाती है। संचार व्यवस्था में क्षीणता के कारण होने वाले क्षय की क्षतिपूर्ति के लिए प्रवर्धन आवश्यक है। अतिरिक्त सिग्नल प्रबलता के लिए आवश्यक ऊर्जा DC विद्युत स्रोत से प्राप्त होती है। प्रवर्धन, स्रोत तथा लक्ष्य के बीच उस स्थान पर किया जाता है, जहाँ सिग्नल की प्रबलता, आपेक्षिक प्रबलता से दुर्बल हो जाती है।
(vi) परास (Range) यह ग्राही तथा प्रेषी के बीच की वह अधिकतम दूरी है जहाँ तक सिग्नल को उसकी पर्याप्त प्रबलता से प्राप्त किया जाता है।
(vii) बैण्ड चौड़ाई (Bandwidth) साइड बैण्ड आवृत्तियाँ वाहक आवृत्ति के दोनों ओर आवृत्ति अन्तराल ƒm पर स्थित होती हैं।
(viii) पुनरावर्तक (Repeater) यह अभिग्राही (receiver), प्रवर्धक (amplifier) तथा प्रेषित्र (transmitter) का संयोजन होता है। पुनरावर्तक प्रेषित्र से सिग्नल चयन करता है, उसे प्रवर्धित करता है तथा उसे अभिग्राही को पुनः प्रेषित कर देता है। कभी-कभी तो वाहक तरंगों की आवृत्ति में परिवर्तन भी कर देता है।
संचार चैनल (Communication Channel)
यह एक प्रकार का बंधन है, जिसमें किसी शोर या विकृति के एक स्रोत से लक्ष्य तक एक लिंक द्वारा सूचनाओं या संदेश सिग्नलों को जोड़ा जाता है।
संचार माध्यम के प्रकार (Types of Communication Medium) 
संचार माध्यम मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं
निर्देशित संचार माध्यम (Guided Transmission Medium) यह वह संचार माध्यम या चैनल है, जिसका उपयोग सूचनाओं को प्रेषित तथा ग्राही के बीच एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक भेजने में किया जाता है। जैसे समान्तर तार लाइन, को-एक्सिल तार, आदि । प्रकाशीय तंतु निर्देशित संचार माध्यम का सबसे अच्छा उदाहरण है तथा निर्देशित माध्यम रेखीय संचार में उपयोग होता है।
अनिर्देशित संचार माध्यम (Unguided Transmission Medium) 
यह वह संचार माध्यम या चैनल है, जिसका उपयोग सूचनाओं को प्रेषण तथा ग्राही के बीच एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक भेजने में नही किया जाता है। मुक्त स्थान (free space), अनिर्देशित माध्यम का एक उदाहरण है, जिसका उपयोग अन्तरिक्ष संचार तथा उपग्रह संचार में किया जाता है। मुक्त स्थान संचार में 105 से 109 हर्ट्ज आवृत्ति परास की रेडियो तरंगें उपयोग होती हैं तथा ये परास दोबारा विभाजित होकर विभिन्न जगह प्रयोग की जाती है।
एन्टीना (Antenna)
तकनीकी रूप से, एन्टीना (antenna) एक प्रकार का ट्रांसड्यूसर है, जो विद्युत चुम्बकीय तरंगों को प्रसारित करने या ग्रहण करने के काम आता है। इसका उपयोग संचार तथा रेडियो आवृत्ति संकेतों के ग्रहण दोनों में किया जाता है। एन्टीना एक धात्विक वस्तु है, जिसका उपयोग उच्च आवृत्ति धारा को वैद्युत चुम्बकीय तरंगों में बदलने के लिए किया जाता है।
हर्ट्ज एन्टीना तथा मारकोनी एन्टीना (Hertz Antenna and Marconi Antenna) 
हर्ट्ज एन्टीना सरल चालक है, जिसकी लंबाई रेडियो सिग्नलों की तरंगदैर्ध्य की आधी होती है, अर्थात् l= λ/2
यह एन्टीना धरातलीय नहीं होता है। यह अर्द्ध-तरंग एन्टीना कहलाता है। मारकोनी एन्टीना सरल चालक होता है, इसकी लम्बाई तरंगदैर्ध्य की एक-चौथाई होती है, यह एन्टीना भी धरातलीय नहीं होता है। यह एक-चौथाई तरंग एन्टीना कहलाता है।
मॉडुलेशन (Modulation)
यह मॉडुलन की व्युत्क्रम प्रक्रिया है। इसमें सामान्यतः भेजे जाने वाले अंकीय एवं अनुरूप संकेतों की आवृत्ति कम होती है, अतः इन्हें इनके मूल रूप में नहीं भेजा जा सकता है। इन संकेतों को भेजने के लिए वाहक की आवश्यकता होती है। ये वाहक उच्च आवृत्ति की तरंगें होती हैं। अल्प आवृत्ति के संकेतों, सिग्नल को उच्च आवृत्ति के संकेत पर लौटना मॉडुलेशन कहलाता है। इसमें इनके आयाम, आवृत्ति तथा कला में श्रव्य सिग्नल के अनुसार परिवर्तन होता है।
मॉडुलेशन के प्रकार (Types of Modulation)
उच्च आवृत्ति की वाहक तरंगों में श्रव्य तरंगों के तात्कालिक मान (instantaneous amplitude) के अनुसार किए गए विशिष्ट गुण में परिवर्तन के आधार पर मॉडुलेशन तीन प्रकार का होता है
(i) आयाम मॉडुलेशन (Amplitude Modulation) जब वाहक तरंग आयाम, मॉडुलक सिग्नल (modulating signal) के तात्कालिक मान के अनुसार परिवर्तित होता है, जबकि वाहक तरंग की आवृत्ति तथा कला स्थिर रहते हैं। इस प्रकार के मॉडुलेशन को आयाम मॉडुलेशन कहते हैं।
(ii) आवृत्ति मॉडुलेशन (Frequency Modulation) जब वाहक तरंग की आवृत्ति, मॉडुलक सिग्नल के तात्कालिक मान के अनुसार परिवर्तित होती है, जबकि वाहक तरंग की कला तथा आयाम स्थिर रहता है, तो इस प्रकार के मॉडुलेशन को आवृत्ति मॉडुलेशन (FM) कहते हैं।
(iii) कला मॉडुलेशन (Phase Modulation) कला मॉडुलेशन में वाहक तरंगों का कला कोण, मॉडुलक सिग्नल के तात्कालिक मान के अनुसार परिवर्तित होता है, जबकि वाहक तरंगों का आयाम तथा आवृत्ति स्थिर रहते हैं। इसमें सूचनाएँ केवल विशेष समय में परिवर्तित होती हैं।
डिमॉडुलेशन (Demodulation)
मॉडुलित संकेतों से मूल संकेत वापस प्राप्त करने की क्रिया को डिमॉडुलेशन कहते हैं। यह मॉडुलेशन के विपरीत प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया ग्राही सिरे पर सम्पन्न होती है। बेतार संकेत, श्रव्य आवृत्ति के अनुरूप मॉडुलित रेडियो आवृत्ति (उच्च आवृत्ति) की वाहक तरंग होती है। टेलीफोन रिसीवर का डायग्राम या लाउड स्पीकर उच्च आवृत्ति से दोलन नहीं कर सकता है। इसलिए यह आवश्यक है, कि रेडियो आवृत्ति वाहक तरंगों से श्रव्य आवृत्ति तरंग को अलग किया जाए।
मोडेम (Modem)
यह मॉडुलेशन तथा डिमॉडुलेशन का संक्षिप्त रूप है तथा यह दोनों फलनों में कार्य करता है। यह उपकरण, कम्प्यूटर तथा टेलीफोन तार से जुड़ा होता है।
अनुलिपि (Fax)
यह इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल उत्पन्न करने के लिए किसी लिखित प्रमाण की विषय वस्तु का (प्रतिबिम्ब के रूप में विषय वस्तु की भाँति नहीं) क्रमवीक्षण (scanning) करता है। ये सिग्नल फिर उसकी मंजिल (दूसरी FAX मशीन) तक सामान्य ढंग से टेलीफोन की लाइन द्वारा भेजे जाते हैं। मंजिल पर पहुँचने के पश्चात् सिग्नलों को FAX मशीन मूल लिखित प्रमाणों की प्रतिकृति में पुनः परिवर्तित कर देती है। ध्यान देने योग्य बात यह है, कि FAX मशीन, किसी स्थिर लिखित प्रमाण का प्रतिबिम्ब प्रदान करती है, टेलीविजन की भाँति गतिशील वस्तुओं के प्रतिबिम्ब प्रदान नहीं कर सकती।
विद्युत चुम्बकीय तरंगों या रेडियो तरंगों का संचरण (Propagation of Electromagnetic Waves or Radiowaves) 
संचार का अर्थ सूचना के प्रेषण (transmission) से होता है। रेडियों तरंगों की सहायता से संचार में प्रेषी एन्टीना (sender antenna) विद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्सर्जित करता है। ये तरंगें अन्तरिक्ष में चलकर ग्राही एन्टीना (receiving antenna) द्वारा ग्रहण होती हैं जहाँ पर प्रेषित सूचना का उपयोग किया जाता है। किसी संचार व्यवस्था के तीन मुख्य भाग होते हैं, जो निम्नलिखित हैं
1. भू-पृष्ठीय तरंग संचरण (Ground or Surface Wave Propagation)
रेडियो तरंगों के संचरण की इस विधि में रेडियो तरंगें ट्रांसमीटर से अभिग्राही (receiver) तक पृथ्वी के वक्रपृष्ठ के अनुदिश संचरित होती हैं। इस विधि में ऊर्जा ह्यस अधिक (high attenuation) होता है, इस कारण यह विधि (mode) स्थानीय प्रसारण (local broadcast) के लिए ही उपयुक्त है। चूँकि इन तरंगों का ऊर्जा ह्यस आवृत्ति के बढ़ने पर तेजी से बढ़ता (rapidly increases) है। अतः इस विधि से 10 किलोहर्ट्ज से 30 किलोहर्ट्ज तक की निम्न आवृत्तियों (low frequencies) का ही संचरण (transmission) किया जाता है।
2. अन्तरिक्ष तरंग या क्षोभमण्डल तरंग संचरण (Spacewave or Tropospheric Wave Propagation)
रेडियो तरंगों के संचरण की इस विधि में रेडियो तरंगें पृथ्वी के क्षोभमण्डल (troposphere) में पृथ्वी के पृष्ठ से 12 किमी की ऊँचाई पर ट्रांसमीटर एन्टीना से अभिग्राही एन्टीना तक पहुँचती हैं, ये रेडियो तरंगें अन्तरिक्ष तरंगें कहलाती हैं। इस विधि में 30 मेगाहर्ट्ज आवृत्ति वाली रेडियो तरंगें संचरित होती हैं।
3. आकाशीय तरंग संचरण (Sky Wave Propagation)
रेडियो तरंगों के संचरण की इस विधि में रेडियो तरंगें पृथ्वी तल से 80 किमी ऊँचाई पर स्थित आयनित क्षेत्र, जिसे आयनमण्डल (ionosphere) कहते हैं, से परावर्तित होकर अभिग्राही एन्टीना तक पहुँचती हैं। यह आयनित क्षेत्र वहाँ अल्प दाब तथा सूर्य के तीव्र पराबैंगनी विकिरण (ultraviolet radiation) के कारण वायु के आयनन के कारण उत्पन्न होता है। आयनमण्डलीय परत, 2 MHz से 30 MHz परिसर की आवृत्तियों के लिए परावर्तक की भाँति कार्य करती है। यह आकाश में पृथ्वी की सतह से 65 किमी से लगभग 400 किमी ऊँचाई तक फैला हुआ है।
आकाशीय तरंग संचरण से सम्बन्धित कुछ परिभाषाएँ (Some Definitions Related to Sky Wave Propagation)
(i) प्लाज्मा आवृत्ति (Plasma Frequency) रेडियो संचार में प्लाज्मा आवृत्ति एक महत्त्वपूर्ण परिमाप है, जो आयनोस्फेयर द्वारा मापी जाती है।
(ii) क्रान्तिक आवृत्ति (Critical Frequency) आयनमण्डल पर अभिलम्बवत् आपतित होने पर आयनमण्डल से परावर्तित होकर पृथ्वी पर लौटने वाली रेडियो तरंगों की अधिकतम आवृत्ति क्रान्तिक आवृत्ति (vc) कहलाती है। यदि आयनमण्डल का अधिकतम इलेक्ट्रॉन घनत्व Nmax प्रति घनमीटर है, तब क्रान्तिक आवृत्ति Fc = 9(Nmax)1/2 होगी। यह आवृत्ति या इससे कुछ अधिक आवृत्ति की तरंग वायुमण्डल को पार कर जाएगी अर्थात् यह परावर्तित नहीं होती है तथा क्रान्तिक आवृत्ति का परास लगभग 5 MHz से 10 MHz तक होता है।
(iii) छोड़ी गई दूरी (Skip Distance) पृथ्वी तल पर प्रेषी से किसी बिंदु की वह न्यूनतम दूरी जिस पर एक निश्चित आवृत्ति की रेडियो तरंगें आयनमण्डल से परिवर्तित होकर पृथ्वी पर लौट आती हैं, छोड़ी गई दूरी (skip distance) कहलाती है।
सूक्ष्म तरंग संचरण (Microwave Propagation)
माइक्रो तरंगें विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं जिनकी आवृत्ति 1 GHz से 300 GHz होती है, जोकि टी वी सिग्नलों से ज्यादा होती है। माइक्रो तरंगों की तरंगदैर्ध्य कुछ मिलीमीटर के क्रम में होती है। माइक्रो तरंग संचार का उपयोग राडार में किया जाता है, जिसके द्वारा अंतरिक्ष में उड़ने वाली वस्तुओं की स्थिति का पता लगाया जाता है। ये तरंगें एक निश्चित दिशा (जैसे- बीप सिग्नलों) में पहुँचाई जा सकती हैं, जोकि रेडियों तरंगों की तुलना में बहुत उत्तम होती हैं। माइक्रोवेव में सूक्ष्म तरंग संचरण का विवर्तन नहीं होता है तथा यह घटना किरणों के गुजरने पर आधारित होती है।
वैद्युत चुम्बकीय तरंगों का वातावरण में परिवर्तन (Behaviour of Atmosphere towards Electromagnetic Waves)
विभिन्न आवृत्तियों की चुम्बकीय तरंगों के लिए वातावरण का व्यवहार अलग-अलग होता है। पारदर्शी वातावरण के लिए, विद्युत चुम्बकीय तरंगों की दृश्य क्षेत्र की तरंगदैर्ध्य की परास 4000 Å से 8000 Å तक होती है। विद्युत चुम्बकीय तरंगें अवरक्त क्षेत्र से जुड़ी होती हैं। इनकी तरंगदैर्ध्य 8×107 मी से 3 × 105 मी तक होती है। ये वातावरण के माध्यम से होकर नहीं गुजरती हैं क्योंकि ये वातावरण द्वारा परावर्तित हो जाती हैं। पृथ्वी के वातावरण की ओजोन परत पराबैंगनी क्षेत्र में विद्युत चुम्बकीय तरंगों द्वारा ढकी होती है। इन तरंगों की तरंगदैर्ध्य 60 Å से 4000 Å तक होती है।
सूक्ष्म तरंगें (Microwaves)
सूक्ष्म तरंगें वे विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं जिनकी परास 1 GHz से 300 GHz होती है तथा इनकी तरंगदैर्ध्य मिलीमीटर में होती है। सूक्ष्म तरंगों में सदिश चलने की विशेषताएँ होती हैं अर्थात् ये किसी वस्तु के कोने द्वारा मुड़ती नहीं हैं अर्थात् सदिश चलती हैं। इसलिए यह सीधे किरण पुंज के रूप में होती हैं, जो रेडियों तरंगों से बेहतर होती हैं। इनकी सूक्ष्म संचार में परास 50 किमी तक होती है।
रेडियो तरंगें (Radiowaves)
रेडियों तरंगें वैद्युत चुम्बकीय तरंगें होती हैं, जिनकी आवृत्तियों की परास 500 kHz से 1000 MHz होती है। इन तरंगों का उपयोग रेडियों संचार के क्षेत्र में किया जाता है।
उपग्रह संचार (Satellite Communication) 
यह उपग्रह के माध्यम से सम्प्रेषक तथा ग्राही के बीच में लिया जाता है। संचार उपग्रह मुख्यतः भू-स्थिर उपग्रह होता है। जिसका आवर्तकाल 24 घण्टे होता है।
उपग्रह संचार एक अंतरिक्षयान (space craft) है, जो सूक्ष्म तरंगों को ग्राही तथा सम्प्रेषण में उपलब्ध कराता है। यह पृथ्वी की कक्षा में चारों ओर घूमता है। भारत में IRS-IA, IRS-IB तथा IRS-IC सुदूर संवेदन उपग्रह हैं। यदि संचार उपग्रह पृथ्वी से एक निश्चित स्थान पर है, तब प्रकाश का दृश्य सूक्ष्म तरंग संचार उपग्रह के माध्यम से संभव होता है।
उदाहरण उपग्रह पृथ्वी के साथ विरामावस्था में एक पुनरावर्तक की भाँति कार्य करता है इसलिए इस उपग्रह को भू-स्थिर उपग्रह के नाम से जाना जाता है।
उपग्रह संचार के गुण (Merits of Satellite Communication) 
(i) उपग्रह संचार दूसरे संचार प्रणाली की तुलना में एक बहुत बड़ा क्षेत्रफल घेरे रखता है। अतः इसकी चौड़ाई को ढकने की क्षमता अधिक होती है।
(ii) उपग्रह संचार मोबाइल संचार में बहुत अधिक उपयोगी होता है।
(iii) पृथ्वी पर अन्य संचार प्रणाली की तुलना में उपग्रह संचार बहुत किफायती होता है। वास्तव में, उपग्रह संचार बनाने में लगने वाली धनराशि दूरी के ऊपर निर्भर करती है।
(iv) उपग्रह संचार सुदूर (remote) और पहाड़ी क्षेत्रों जैसे-लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, आदि में बहुत ज्यादा प्रभावित होता है।
(v) उपग्रह संचार में आँकड़ों का सम्प्रेषक उच्च दाब पर होता है।
(vi) उपग्रह संचार का उपयोग बहुत यथार्थ (accurate) तथा किफायती खोजों में, वायुयान संचालन तथा उनके बचाव में किया जाता है।
उपग्रह संचार के दोष (Demerits of Satellite Communication) 
(i) यदि कोई उपग्रह पर्यावरण सम्बन्धित तनाव के कारण क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो इसे दोबारा ठीक करना असम्भव होता है।
(ii) उपग्रह संचार में, सम्प्रेषण तथा रिशेप्सन के बीच बहुत ज्यादा संचार दूरी (जैसे 2×36000 किमी से ज्यादा) होने के कारण इसमें बहुत ज्यादा समय लगता है। इसमें लम्बी दूरी होने के कारण अधिक समय लगता है जोकि काफी कष्टदायक होता है।
सुदूर संवेदन (Remote Sensing)
किसी दूर स्थित वस्तु, क्षेत्र घटना की जानकारी प्राप्त करने की तकनीक सुदूर संवेदन कहलाती है। इसमें अन्वेषक किसी वस्तु या क्षेत्र के वास्तविक सम्पर्क में नही होता है। ध्रुवीय उपग्रह को इस उद्देश्य के लिए प्रयोग किया जाता है। अतः सिग्नल की वह अधिकतम दूरी जो एन्टीना द्वारा प्राप्त की जाती है। d = √2hR होती है।
जहाँ, h = एन्टीना की ऊँचाई तथा R = पृथ्वी की त्रिज्या
सुदूर संवेदन उपकरणों को अवरक्त किरणों के स्रोत से बनाया जाता है।
भारतीय अन्तरिक्ष प्रोग्राम (Indian Space Programme) 
भारत द्वारा 5 जनवरी सन् 2014 तक विभिन्न प्रकार के 73 भारतीय उपग्रह प्रायोजित हो चुके हैं। भारत ने पहला उपग्रह सन् 1975 में बनाया था। भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान द्वारा जो उपग्रह बनाए गए वह विभिन्न प्रकार के वाहनों को ले जाने में सक्षम होते हैं। इससे पहले ऐसे उपग्रह जैसे रॉकेट तथा US स्पेस शटल, अमेरिका, रूस तथा यूरोप में बनाए गये। भारतीय उपग्रहों के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र ( Indian Space Research Organisation—ISRO) कार्यरत् है ।
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Ajit kumar

Sub Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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