‘स्वांग’ का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।

‘स्वांग’ का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।

उत्तर— स्वांग लोकनाट्य का एक महत्त्वपूर्ण स्वरूप है, जिसमें किसी प्रमुख पौराणिक, ऐतिहासिक या किसी प्रसिद्ध लोक चरित्र या देवी-देवताओं की नकल कर उनके अनुरूप स्वांग किया जाता है। इनके स्वांगों में चाचा- बोहरा, सेठ- सेठाणी, मियाँ – बीबी, अर्धनारीश्वर, जोगी-जोगन, कालबेलिया, मैना- गुजरी और बीकाजी के स्वांग प्रमुख हैं। इस कला को खुले स्थान पर प्राय: लकड़ी के दो तख्तों पर प्रदर्शित किया जाता है। स्वांग रखने वाले व्यक्ति को बहरूपिया कहते हैं। अनुमान किया जाता है कि मरुगुर्जरी के क्षेत्र में बहरूपियों के स्वांग- अभिनय की परम्परा रास-नाट्यों की परम्परा के समकालीन है। भाण्ड एवं भानमती हिन्दू और मुसलमान दोनों ही जातियों के होते हैं ।
एक छोटे-से परिचय के साथ स्वांग आरम्भ हो जाता है। स्वांग में कलाकार लम्बे-लम्बे प्रश्न उत्तर करते हैं। अधिकतर डायलॉगों की रचना तत्काल की जाती है । कलाकार नकल करने की कला के साथ-साथ उद्धरण देने, दो अर्थों वाले या एक- समान उच्चारण परन्तु, भिन्न अर्थों वाले शब्दों के विनोदी प्रयोग, कहावतों और लोकोक्तियों और गायन में माहिर होते हैं। स्वांग में कलाकार खूब नृत्य और गायन करते हैं। स्वांग में एक जोकर कलाकार अवश्य होता है जिसे ‘मखौलिया’ कहा जाता है। स्वांग की एक प्रस्तुति चार-पाँच घण्टे तक चलती है।
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