अनौपचारिक संस्थाओं में यौन उत्पीड़न पर लेख लिखिए।

अनौपचारिक संस्थाओं में यौन उत्पीड़न पर लेख लिखिए।

 अथवा
औपचारिक एवं अनौपचारिक संस्थाओं में यौन उत्पीड़न का वर्णन कीजिए।
उत्तर— यौन उत्पीड़न औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही संस्थाओं द्वारा सम्भव है जहाँ औपचारिक संस्थान में विद्यालय, विश्वविद्यालय जैसे नियमित संस्थान आते हैं वहीं अनौपचारिक संस्थान में ऐसे स्थान आते हैं जहाँ कार्य के नियमित घण्टे तथा नियमित पाठ्यक्रम तो नहीं होते हैं ऐसे में पार्क, पब्लिक स्थान, सड़क पर राह चलते स्थान आदि होता है।
औपचारिक संस्थाओं में यौन उत्पीड़न – औपचारिक संस्थाओं के अन्तर्गत उन सभी संस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है जो सरकारी नियम सिद्धान्त एवं संविधान के अनुसार कार्य करते हैं। इसमें हम सरकारी विद्यालय, सरकारी कार्यालय एवं सरकारी संस्थाओं आदि को सम्मिलित कर सकते हैं। इन संस्थाओं में भी प्रायः यौन शोषण सम्बन्धी घटनाएँ सुनने में आती हैं परन्तु ये घटनाएँ अनौपचारिक संस्थाओं की अपेक्षा कम होती हैं। इसके पीछे प्रमुख कारण औपचारिक संस्थाओं में सरकार की भूमिका का होना होता है।
औपचारिक संस्थाओं में शक्ति का विकेन्द्रीकरण होता है, इसके बावजूद व्यक्ति अपने अधिकारों का प्रभाव दिखाकर एवं स्त्री कर्मचारियों की विवशता का लाभ उठाकर उनका यौन शोषण करता है। औपचारिक संस्थाओं में शोषण की घटनाओं को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है—
( 1 ) विद्यालय में यौन उत्पीड़न विद्यालय में यौन उत्पीड़न प्रायः छात्रों द्वारा छात्राओं के साथ अभद्र व्यवहार करना, शिक्षकों द्वारा छात्राओं से अशोभनीय व्यवहार करना, प्रधानाध्यापक अथवा प्रक द्वारा स्त्री कर्मचारियों के साथ छेड़-छाड़, दुर्व्यवहार आदि घटनाएँ यौन उत्पीड़न कहलाती हैं।
वर्तमान में सह-शिक्षा प्रदान कर रहे विद्यालयों में ऐसी घटनाएँ सुनने से अभिभावक इसमें अपनी बालिकाओं को सुरक्षित नहीं समझत हैं। आज छात्राओं अथवा विद्यालयी महिला कर्मचारियों को जितना भय अथवा असुरक्षा बाहरी असामाजिक तत्त्वों से है उससे कहीं अधिक विद्यालय के अन्दर उपस्थित कर्मचारियों एवं छात्रों से होता है। इस प्रकार के बढ़ते घटनाक्रम विद्यालय की स्थिति एवं उसकी नैतिकता के पतन पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं।
विद्यालय में यौन उत्पीड़न के कारण—विद्यालय में यौन शोषण के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं—
(i) विद्यालय के शिक्षकों में आदर्श एवं नैतिकता के गुण एवं व्यवहार पतन होता जा रहा है। शिक्षकों के मध्य आपसी हास-परिहास तथा अश्लील शब्दों का प्रयोग छात्रों एवं छात्राओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
(ii) अधिकारों के केन्द्रीकरण के परिणामस्वरूप प्रबन्ध समिति अपने अधिकारों का दुरुपयोग करती है।
(iii) पाठ्यचर्या एवं विद्यालय में आदर्शवादिता के अभाव में भी इस प्रकार की घटनाएँ होती हैं।
(iv) विद्यालय के पुरुष शिक्षकों में जब व्यापक सोच का अभाव होता है तब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है। वह अपने आधिपत्य को प्रदर्शित करने के लिए स्त्रियों की विवशता का लाभ उठाता है।
(v) विद्यालय को पुरुष शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों एवं अधिकारियों की उच्च अथवा राजनेताओं से सम्पर्क के कारण उन पर कार्यवाही नहीं होती, जिससे ऐसी घटनाओं में वृद्धि होती है।
( 2 ) सरकारी कार्यालयों में यौन उत्पीड़न – सरकारी कार्यालयों में पुरुषों द्वारा स्त्रियों से वार्तालाप के स्वरूप, अभद्र शब्दों का प्रयोग, लिंग सम्बन्धी टिप्पणी आदि के द्वारा यौन उत्पीड़न को बढ़ावा मिलता है। अनेक सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध अनेक इस प्रकार की घटनाएँ सामने आई हैं। वे अपने अधीन महिला कर्मचारियों के साथ अभद्रतापूर्वक व्यवहार करते हैं। सरकारी कार्यालयों में राजनीतिक भ्रष्टाचार के कारण भी यौन शोषण की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
सरकारी कार्यालयों में यौन उत्पीड़न के कारण—
(i) सरकारी कार्यालयों में पुरुष अधिकारियों को उनकी नौकरी की पूर्ण सुरक्षा होती है जिससे उन्हें किसी का भय नहीं होता तथा वे अनेक अवसरों पर महिलाओं के साथ अभद्रता एवं यौन शोषण करते हैं ।
(ii) सरकारी कार्यालयों का वातावरण राजनीतिक पहुँच से प्रभावित रहता है इसलिए स्थानान्तरण, निलम्बन एवं पद अवनति का डर दिखाकर यौन शोषण होता है।
(iii) सरकारी कार्यालयों में कार्यरत स्त्रियाँ कानूनी रूप से सहायता नहीं लेना चाहतीं क्योंकि वे किसी विवाद में फँसकर चर्चा का विषय नहीं बनना चाहतीं।
(iv) अपराध कर सजा से वंचित हो जाने तथा उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही न होने से सरकारी कर्मचारियों का मनोबल बढ़ जाता है।
(v) अधिकारियों को आवश्यकता से अधिक अधिकार प्रदान करने के कारण भी इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न होती है।
( 3 ) सरकारी संस्थाओं में यौन उत्पीड़न– सरकारी संस्थानों से अभिप्राय सभी राज्यों एवं केन्द्र सरकार की संस्थाओं से है। इन संस्थाओं, जैसे—बैंक, रेलवे, रक्षा, सचिवालय, नीति आयोग आदि में पुरुष एवं महिला समान रूप से कार्य करते हैं। इन सभी संस्थाओं के कार्यालयों में भी यौन शोषण सम्बन्धी घटनाएँ व्यापक रूप से होती हैं। ये घटनाएँ स्पष्ट करती हैं कि स्त्रियाँ सरकारी संस्थाओं में भी पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं हैं। यदि सरकारी संस्थाओं में भ्रष्टाचार को समाप्त कर दिया जाए तो उनमें यौन उत्पीड़न को समाप्त किया जा सकता है।
अनौपचारिक संस्थाओं में यौन उत्पीड़न–अनौपचारिक संस्थाओं के अन्तर्गत व्यक्तिगत संस्थाएँ, धार्मिक संस्थाएँ, स्वयंसेवी एवं समाज सुधारक संस्थाएँ, विज्ञापन, सिनेमा, विभिन्न प्रकार के उद्योग, पत्रपत्रिकाएँ आदि को सम्मिलित किया जाता है। इन संस्थाओं में होने वाले यौन शोषण के स्वरूप को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है—
(1) धार्मिक संस्थाओं में यौन उत्पीड़न—इन प्रौद्योगिक एवं वैज्ञानिक युग में अनेक लोग ऐसे हैं जो धर्म पर अंधा विश्वास करते हैं तथा धार्मिक संस्थाओं से जुड़े रहते हैं। ये लोग बिना सोचे-विचारे किसी को भी अपना धर्मगुरु मान लेते हैं और उनके कहे अनुसार ही कार्य करते हैं किन्तु वर्तमान में इन धार्मिक संस्थाओं का स्वरूप अविश्वसनीय हो गया है। आज अनेक ऐसी धार्मिक संस्थाएँ चल रही हैं या धार्मिक गुरुओं द्वारा संचालित की जा रही है जिसका उद्देश्य लोक सेवा नहीं है इन पर अविश्वसनीयता का सबसे प्रमुख कारण इनमें हो रही यौन उत्पीड़न की घटनाओं का पता चलना है। इन सब घटनाओं के कारण तथा इन संस्थाओं को चलाने वाले लोभी एवं दुराचारी लोगों के कारण धार्मिक संस्थाओं की छवि बिगड़ गई है। अब इन संस्थाओं का स्वरूप वैसा नहीं रह गया जैसा प्राचीन काल में होता था प्राचीन काल में लोग ऐसी संस्थाओं में ज्ञान अर्जन, सेवा भाव एवं अन्तर्मन की शान्ति हेतु जाते थे। वर्तमान में भी लोगों का उद्देश्य यही रहता है किन्तु इसको संचालित करने वाले लोगों ने इसकी प्राचीन छवि को धूमिल कर दिया है।
धार्मिक संस्थाओं में यौन उत्पीड़न के कारण— धार्मिक संस्थाओं में यौन उत्पीड़न के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं—
इन संस्थाओं के गुरु स्वयं को ईश्वर दूत के रूप में लोगों
के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। जो लोग धर्म पर अन्ध-विश्वास करते हैं वे लोग ऐसे लोगों के झाँसे में आसानी से आ जाते हैं क्योंकि इन संस्थाओं के धर्मगुरु उन्हें यह विश्वास करा देते हैं कि वे सारी समस्याओं का निदान कर देंगे। ऐसी स्थिति में शोषण की स्थिति उत्पन्न होती है क्योंकि जनता उनको ईश्वर का दूत समझकर उनके कहे अनुसार चलने लगती है।
(ii) जब इन धार्मिक संस्थाओं में ऐसे लोगों का प्रवेश हो जाता है जो केवल अपना स्वार्थ सोचते हैं और संस्था का प्रयोग अपने अनैतिक कार्यों के लिए करते हैं तभी इन संस्थाओं में यौन उत्पीड़न, भ्रष्टाचार जैसे अनैतिक कार्य होते हैं।
(iii) इन संस्थाओं में ऐसे कार्य तब ही होते हैं जब इनका स्वरूप अकाल्पनिक मान्यताओं एवं अंधानुकरण पर आधारित होता है। ये वही संस्थाएँ होती हैं जो गुरुजी के आशीर्वाद के बल पर धन प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, व्यापार में लाभ यहाँ तक की कैंसर जैसी बड़ी एवं घातक बीमारी के ठीक होने का दावा करती हैं ।
(iv) धार्मिक संस्थाएँ जब धर्म की व्याख्या किसी घृणित उद्देश्य की पूर्ति के लिए भ्रमपूर्ण एवं त्रुटिपूर्ण रूप में करती हैं तब शारीरिक एवं मानसिक शोषण का मार्ग प्रशस्त होता है। आतंकवादी द्वारा निर्मित आतंकी संगठन भी धर्म की व्याख्या त्रुटिपूर्ण रूप में करते हैं।
( 2 ) समाजसेवी संस्थाओं में यौन उत्पीड़न – समाज में अनेक ऐसी संस्थाएँ संचालित हो रही हैं जिनका उद्देश्य समाज की सेवा करना है। ऐसी संस्थाओं को ही समाजसेवी संस्थाएँ कहते हैं। वर्तमान में समाज सेवा के नाम पर ऐसी संस्थाएँ भी खोली जा रही हैं जिनकी आड़ में अनेक अवैध एवं अनैतिक कार्यों का संचालन हो रहा है। इन संस्थाओं का संचालन ऐसे व्यक्तियों द्वारा किया जा रहा है जिनका मुख्य उद्देश्य समाज की सेवा करना नहीं है बल्कि अपना लाभ कमाना होता है। उनकी ऐसी प्रवृत्ति ही यौन शोषण, भ्रष्टाचार आदि कुरीतियों को जन्म देती हैं।
समाजसेवी संस्थाओं में यौन शोषण के कारण – समाज सेवी संस्थाओं में यौन शोषण के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं —
(i) जब समाजसेवी संस्थाओं का संचालन अंधविश्वासी एवं रूढ़िवादी व्यक्तियों द्वारा किया जाता है तब ये जनता को भ्रमित करके अंधविश्वासी एवं रूढ़िवादी बना देते हैं । ये संस्थाएँ तथा इनका संचालन करने वाले व्यक्ति स्त्रियों को पुरुष की अधीनता स्वीकृत करने के लिए विवश करते हैं । उनकी ऐसी गतिविधियाँ ही यौन उत्पीड़न को जन्म देती हैं।
(ii) समाज में जब लोगों में विशेष कर स्त्रियों में जागरूकता का अभाव होता है तब भी ऐसी संस्थाएँ अपना आधिपत्य जमा लेती हैं।
(iii) यौन उत्पीड़न जैसी समस्याएँ उस समय भी उत्पन्न हो जाती हैं जब किसी संस्था के लोगों की सोच संकीर्ण हो तब ये संस्थाएँ उन मान्यताओं को स्थान देती हैं जो मानवता के विरुद्ध होती हैं, जैसे— स्त्री को प्रत्येक स्थिति में अपने पति की आज्ञा का पालन अवश्य करना चाहिए आदि ।
(iv) वर्तमान में कई ऐसी भी समाज सेवी संस्थाएँ चल रही हैं जिनकी स्थापना ऐसे व्यक्तियों द्वारा की गई है जिनका उद्देश्य इस संस्था के आड़ में अपने अनैतिक कार्यों को सम्पन्न करना होता है।
( 3 ) स्वयं सेवी संस्थाओं में यौन उत्पीड़न – स्वयंसेवी संस्थाओं का उद्देश्य समाज की सेवा करना तथा लोगों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का विकास करना होता है। ये संस्थान बेरोजगार युवकों, पुरुषों, स्त्रियों को रोजगार दिलाने में भी सहायता प्रदान करते हैं । किन्तु समाज एवं लोक सेवा के नाम पर कुछ ऐसी संस्थाओं का संचालन हो रहा है जो लोगों के नजर में तो लोगों के हित के लिए कार्य कर रही हैं किन्तु उसकी आड़ में अनेक अवैध कार्य भी किए जा रहे हैं, जैसे—कुछ संस्थाएँ स्त्रियों को शिक्षित करने तथा नौकरी प्रदान करने के लिए अपनी भूमिका का निर्वहन करती हैं परन्तु उनको यौन शोषण कार्यों में लिप्त पाया गया है। इस प्रकार अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं में आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक शोषण की घटनाएँ देखने को मिलती हैं।
स्वयंसेवी संस्थाओं में यौन उत्पीड़न के कारण – स्वयं सेवी संस्थाओं में यौन उत्पीड़न के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं—
(i) स्वयंसेवी संस्थाओं की कार्यप्रणाली में जब राजनैतिक तत्त्वों का हस्तक्षेप होने लगता है तब भी ऐसी संस्थाओं में यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएँ अधिक घटित होती हैं।
 (ii) जब स्वयंसेवी संस्थाओं में शिक्षाशास्त्रियों एवं आदर्शवादी नागरिकों को कोई स्थान नहीं प्रदान किया जाता है तब विषम परिस्थितियों में उचित निर्णय नहीं हो पाता है जिसके फलस्वरूप शारीरिक एवं मानसिक शोषण की स्थिति उत्पन्न होती है।
(iii) स्वयंसेवी संस्थाएँ किसी न किसी पूँजीपति के द्वारा ही वित्तपोषित होती हैं। जब इन संस्थाओं के कुछ नियम, शर्तें निर्धारित नहीं होता है, जब ये पूँजीपति अपनी मनमानी करने लगते हैं जिससे इनके माध्यम से वे लोगों का शारीरिक एवं मानसिक शोषण करने लगते हैं।
(iv) जब इन संस्थाओं के संचालन का अधिकार किसी एक व्यक्ति के पास होता है तथा वह इन अधिकारों का प्रयोग अपने स्वार्थ हेतु करने लगता है तो भी ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
(v) जब इन संस्थाओं का उद्देश्य समाज सेवा न होकर धन कमाना एवं अनैतिक कार्यों को करना होता है तब वे जनता को भ्रमित करके अपने उद्देश्यों में सफल हो जाती हैं।
( 4 ) व्यक्तिगत संस्थाओं में यौन उत्पीड़न–व्यक्तिगत संस्थाओं की कार्य प्रणाली एवं स्वरूप बहुत कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं जैसा ही होता है किन्तु स्वयंसेवी संस्थाओं पर किसी एक का आधिपत्य नहीं होता है बल्कि एक पूरा समूह मिलकर उसका संचालन करता है जबकि व्यक्तिगत संस्थाओं का संचालन एक ही व्यक्ति द्वारा किया जाता है। व्यक्तिगत संस्थाओं को खोलने का उद्देश्य भी लोगों एवं समाज की सेवा करना होता है लेकिन कुछ लोग इसका संचालन निजी स्वार्थ के लिए भी करते हैं। जैसे—यदि कोई व्यक्ति अपनी निजी संस्था इस उद्देश्य से खोलता है कि वह लोगों को उचित रोजगार उपलब्ध कराएगा किन्तु वह बेरोजगार लोगों को भ्रमित करके उनसे कुछ धन लेकर उन्हें उचित रोजगार दिलाने का वादा करना अथवा रोजगार के बदले उनसे कुछ अनैतिक कार्य करवाना आदि सब गतिविधियाँ शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न के अन्तर्गत आती है।
व्यक्तिगत संस्थाओं में यौन उत्पीड़न के कारण—व्यक्तिगत संस्थाओं में यौन उत्पीड़न के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं—
(i) व्यक्तिगत संस्थाओं का संचालन एक व्यक्ति द्वारा ही किया जाता है। यदि वह व्यक्ति संस्था के कर्मचारियों में भेदभाव करता है तब ऐसी स्थिति में वे कर्मचारी जो उसे पसन्द – नहीं है वह शोषण के शिकार हो जाते हैं।
(ii) इन संस्थाओं का संचालन जिस व्यक्ति द्वारा किया जाता है यदि उनका उद्देश्य स्व-हित कमाना होता है तो वह अपने हित के लिए कुछ भी कर सकते हैं और इस स्थिति में भी कभी-कभी यौन उत्पीड़न की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है।
(iii) इन संस्थाओं में सरकार का कोई नियन्त्रण नहीं होता है जिस कारण ये अपनी मनमानी करते हैं। सरकारी नियन्त्रण न होने से इन्हें कोई भय नहीं होता है जिसके फलस्वरूप आम जनता उनके उत्पीड़न का शिकार हो जाती है।
(iv) व्यक्तिगत संस्थाओं में शक्ति का केन्द्रीयकरण होता है, जैसे- बेरोजगारों को रोजगार दिलाने वाली संस्था का अध्यक्ष जिसको चाहेगा या जो उसकी शर्तें आदि मानेगा वो उसे ही रोजगार उपलब्ध कराता है ऐसे में वे लोग जो जागरूक नहीं हैं या ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है वे उनके उत्पीड़न का शिकार हो जाते हैं।
(v) इन संस्थाओं का संचालन करने वालों की जान-पहचान किसी राजनीतिक व्यक्ति से होती है तब भी वह जनता का शोषण करते हैं क्योंकि उन्हें पुलिस कानून का कोई भय नहीं होता है।
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