भारत की संसद राष्ट्रीय एकीकरण का एक प्रभावी मंच है। विवेचना कीजिए।

भारत की संसद राष्ट्रीय एकीकरण का एक प्रभावी मंच है। विवेचना कीजिए।

उत्तर- “सच्चे लोकतंत्र के लिए व्यक्ति को कंवल संविधान के उपबंधों अथवा विधानमंडल में कार्य संचालन हेतु बनाये गये नियमों और विनियमों के अनुपालन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि विधानमंडल के सदस्यों में लोकतंत्र की सच्ची भावना भी विकसित करनी चाहिए। यदि इस मौलिक तथ्य को ध्यान में रखा जाए तो स्पष्ट हो जायेगा कि यद्यपि मुद्दों पर निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जायेगा, फिर भी यदि संसदीय सरकार का कार्य केवल उपस्थित सदस्यों की संख्या और उनके मतों की गिनती तक ही सीमित रखा गया तो इसका चल पाना संभव नहीं हो पायेगा। यदि हम केवल बहुमत के आधार पर कार्य करेंगे, तो हम फासिज्म, हिंसा और विद्रोह के बीज बोएंगे। यदि इसके विपरीत हम सहनशीलता की भावना, स्वतंत्र रूप से चर्चा की भावना और समझदारी की भावना का विकास कर पाएं तो हम इस मंच से देश के सभी प्रतिनिधियों के माध्यम से लोकतंत्र की भावना को पोषित करेंगे। “
 गणेश वासुदेव मावलंकर (प्रथम लोकसभा अध्यक्ष)
भारतीय लोकतंत्र में हमारी संसद देश के 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लगभग 130 करोड़ जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है, जहां विभिन्न भाषाओं और प्रांतों के अलग-अलग धर्म एवं संस्कृतियों के करीब 800 जनप्रतिनिधि इस संसदीय मंच’ पर जब सम्मिलन करते हैं तो राष्ट्रीय एकता व अखंडता के सूत्र में बंध जाते हैं। इसी के माध्यम से अपने-अपने क्षेत्र की जनता की आकांक्षाओं की राष्ट्रीय अभिव्यक्ति मिलती है। संसद ही इस बात का प्रमाण है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जनता सबसे ऊपर है। ‘संसदीय’ शब्द का अर्थ ऐसी लोकतंत्रात्मक राजनीतिक व्यवस्था से है जहाँ सर्वोच्च शक्ति लोगों के प्रतिनिधियों के उस निकाय में निहित है जिसे ‘संसद’ कहते हैं। भारत के संविधान के अधीन संघीय विधानमंडल को ‘संसद’ कहा गया है। यह वह धुरी है, जो देश के शासन की नींव है। संविधान ने संसद को संघ राज्यक्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों को चुनने की विधि के निर्धारण का अधिकार दिया है। इसी के तहत संसद ने संघ राज्य क्षेत्र अधिनियम 1965 बनाया, जिसके तहत संघ राज्य क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन के तहत लोकसभा के सदस्य चुने जाते हैं। संसद किसी लोकतंत्र में विचार-विमर्श करने का एक सर्वोच्च मंच है जहां लोकमहत्व के अनेक मुद्दों पर चर्चा की जाती है। भारतीय लोकतंत्र को विश्व में न केवल सबसे बड़े अपितु महानतम कार्यशील लोकतंत्र के रुप में मान्यता प्राप्त है और इसकी सराहना भी की जाती है। ऐसा न केवल इसके विशाल आकार के कारण है, बल्कि इसके बहुलतावादी स्वरूप और समय की कसौटी पर खरे उतरने के कारण है। लोकतांत्रिक परम्पराएं और सिद्धांत भारतीय सभ्यता की विरासत के अभिन्न अंग रहे हैं। यहां सहिष्णुता और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना जैसे विभिन्न पारस्परिक गुण सदियों में विकसित हुए हैं जिसको जड़ें हमारी राजनैतिक चेतना में बहुत गहराई तक समाई हुई हैं।
संसद ही देश के लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करती है। संसद सदन में चर्चा के बाद कानून को पारित करती है और कानूनों और नीतियों को लागू करने के लिए हमारी सरकारें आय-व्यय के बजट का लेखा-जोखा भी तैयार करती हैं। इस तरह संसद ही हमारी सरकारों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाती है। हमारी संसद देश का हृदय-स्थल है जहां से संपूर्ण देश में रक्त-रुपी भावनाओं का संचार होता है और समस्त देशवासियों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करतो है। इस तरह हम कह सकते हैं कि भारत की संसद राष्ट्रीय एकीकरण का एक प्रभावी मंच है।
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