आर्थिक वनस्पति विज्ञान (Economic Botany)
आर्थिक वनस्पति विज्ञान (Economic Botany)
आर्थिक वनस्पति विज्ञान (Economic Botany)
जीव विज्ञान की वह शाखा, जो मानव कल्याण एवं उपयोग हेतु पादपों के उपयोग व महत्त्व बताती है, आर्थिक वनस्पति विज्ञान कहलाती है। इस शाखा के अन्तर्गत पादपों के औद्योगिक स्तर पर उपयोग का अध्ययन किया जाता है। मानव के लिए बहुत से पादप अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इनका उल्लेख निम्नलिखित है
मुख्य अनाज (Major Cereals)
अनाज मनुष्य के भोजन का एक अद्वितीय अंग है, जिसके द्वारा प्रोटीन, विटामिन तथा रेशे (fibre) प्राप्त होते हैं। कुछ मुख्य अनाजों का विवरण निम्नलिखित है
गेहूँ (Wheat)
गेहूँ मानव आहार का मुख्य अनाज है यह मैदानी इलाकों का मुख्य अनाज है। यह तीसरा मुख्य उत्पादक अनाज है। इसकी विशेषताएँ निम्न हैं
गेहूँ के लक्षण (Characteristics of Wheat)
गेहूँ एक वार्षिक घास है, जो ट्रिटिकम (Triticum) प्रजाती का सदस्य है। ये जंगली तथा अनाज उपयोगी भी है।
(i) गेहूँ की सर्वाधिक उपयोग में आने वाली प्रजाति का वैज्ञानिक नाम ट्रिटिकम एस्टिवम (Triticum aestivum) है।
(ii) इसकी लम्बाई लगभग 2-4 फीट होती है।
(iii) गेहूँ की आठ प्रकार की प्रजातियाँ हेकल द्वारा विभाजित की गई हैं, जो इस प्रकार से हैं इनकॉर्न, पॉलिश गेहूँ, ऐमर, स्पेल्ट, क्लब गेहूँ, डुरुम गेहूँ, पाऊलार्ड गेहूँ तथा साधारण गेहूँ।
गेहूँ का उत्पादन (Production of Wheat)
गेहूँ उत्तरी अफ्रीका तथा मध्य पूर्वी क्षेत्रों का मुख्य भोज्य पदार्थ है, जिसका मुख्यतया उत्पादन एशिया में होता है। गेहूँ के उत्पादन में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है जबकि चीन दूसरे और यूरोपियन यूनियन प्रथम स्थान पर हैं। गेहूँ की कुछ मुख्य प्रजातियाँ कल्याण सोना, सोनारा 63, 54 सरबती सोनारा, सोनालिका, लर्मा रोजा, आदि हैं।
विभिन्न प्रकार के गेहूँ तथा उनके वैज्ञानिक नाम (Different Varieties of Wheat and their Scientific Name)
गेहूँ की प्रजाति | वैज्ञानिक नाम | अन्य नाम |
ऐमर | ट्रिटिकम डाइकोकम | स्टार्च गेहूँ, चावल गेहूँ अथवा दो बीजीय स्पेल्ट |
पॉलिश | ट्रिटिकम पोलोनिकम | विशाल राई |
पाऊलार्ड | ट्रिटिकम टर्जीडम | अंग्रेजी गेहूँ अथवा नदी गेहूँ |
क्लब | ट्रिटिकम कोम्पेक्टम | बौना गेहूँ अथवा हेजहोग गेहूँ |
इनकॉर्न | ट्रिटिकम मोनोकोकम | एक बीजीय गेहूँ |
गेहूँ के उपयोग (Uses of Wheat)
(i) गेहूँ की प्रजाति ‘इनकॉर्न को ‘एक दाना (grained) गेहूँ’ भी कहा जाता है। यह जन्तुओं को पोषण देने के काम आती है।
(ii) ऐमर गेहूँ का मुख्य उपयोग प्रायोगिक संकरण विधि में किया जाता है।
(iii) स्पेल्ट गेहूँ मुख्यतया पशुओं के भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
(iv) डुरुम गेहूँ में अनाज का दाना लाल रंग का होता है, जिसमें ग्लूटन अधिक मात्रा में पाया जाता है। ये मुख्यतया पशुधन के भोजन के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
(v) साधारण गेहूँ भोजन का मुख्य अंश है। इसके अनाज के दाने प्रोटीन “युक्त होते हैं।
(vi) तिमोफिवी गेहूँ (ट्रिटिकम तिमोफिवी) रोगरोधी प्रजाति है, जिसका उपयोग संकरण कार्यक्रम में उच्चकोटि की प्रजाति के साथ किया जाता है।
(vii) गेहूँ का औद्योगिक स्तर पर प्रोटीन, स्टार्च, ग्लूटन तथा माल्ट बनाने में उपयोग किया जाता है।
(viii) गेहूँ का दाना इसका मुख्य भाग है। गेहूँ के दाने में 60-70% स्टार्च तथा 10-17% प्रोटीन पाया जाता है।
(ix) गेहूँ का छिलका प्रोटीन व विटामिन से युक्त होता है, जिसका उपयोग पशुओं के भोजन के रूप में किया जाता है।
चावल (Rice)
चावल का वैज्ञानिक नाम ओराइजा सटाइवा (Oryza sativa) है। यह उष्ण कटिबन्धीय देशों के मुख्य अनाज में से एक है। ये अधिकांश देशों के मुख्य भोज्य अनाज के रूप में खाया जाता है। यह विटामिन-B, का अच्छा स्रोत है।
चावल के लक्षण (Characteristics of Rice)
(i) यह बड़ी वार्षिक घास है, जिसकी लम्बाई 2-4 फीट होती है।
(ii) चावल की शाक की प्रत्येक महीन शाखा पर एक दाना पाया जाता है, जो छिलके (husk) से घिरा होता है।
(iii) चावल का दाना अपने छिलके के साथ पैडी (paddy) कहलाता है।
(iv) चावल कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत माना जाता है क्योंकि इसमें 90% तक कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। इसमें 8-10% प्रोटीन भी होता है।
(v) चावल एक ऊर्जा स्रोत है, जो अन्य अनाजों की तुलना में जल्दी ऊर्जा प्रदान करता है।
चावल का उत्पादन ( Production of Rice)
चीन संसार में सबसे अधिक चावल का उत्पादन करता है। इसके पश्चात् भारत एवं पाकिस्तान चावल का सर्वाधिक उत्पादन करते हैं। कुछ अन्य देश भी चावल का उत्पादन करते हैं जैसे जापान, जावा, वियतनाम, थाइलैण्ड, बर्मा, ब्राजील, कोरिया तथा फिलीपीन्स, आदि ।
चावल के उपयोग (Uses of Rice)
(i) संसार की आधी जनसंख्या द्वारा चावल को मुख्य भोजन पदार्थ के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह प्रोटीन युक्त दालों के स्थान पर भी प्रयोग किया जाता है।
(ii) पॉलिश चावल अत्यधिक प्रयोग किया जाता है, परन्तु इसमें कम पोषण पदार्थ पाए जाते हैं।
(iii) यूरोप में चावल के स्टार्च का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
(iv) चावल द्वारा कागज भी बनाया जाता है।
(v) चावल के आटे का प्रयोग आइसक्रीम, पुडिंग तथा पेस्ट्री बनाने में भी किया जाता है।
(vi) चावल के स्टार्च को कपड़ा व्यापार, ग्लूकोज बनाने तथा चिपकाने योग्य पदार्थ के बनाने में उपयोग किया जाता है।
(vii) चावल रुधिर शर्करा स्तर तथा रुधिर दाब को नियन्त्रित करता है क्योंकि इसमें सोडियम कम होता है।
(viii) पूर्ण चावल (भूरा चावल) में प्रतिऑक्सीडेन्ट होते हैं, जो कैन्सर से रक्षा करता है। इसमें मौजूद अघुलनशील रेशे लाभदायक होते हैं।
(ix) चावल विटामिन-D, , नियासिन, कैल्शियम, तन्तु, आयन, थायमीन, राइबोफ्लेविन का अच्छा स्रोत है।
(x) चावल में कवक किण्वन द्वारा एल्कोहॉल वाले पेय पदार्थ भी बनाए जाते हैं। कुछ मुख्य चावल की प्रजातियाँ निम्नलिखित हैं जैसे जया, बाला, विजया, रत्ना तथा कृष्णा, आदि ।
मक्का (Maize)
भारतीय मक्का का वैज्ञानिक नाम जिया मेज (zea maize) है, जोकि अमेरिका द्वारा दिया गया एक प्रमुख अनाज है। यह दक्षिणी मेक्सिको एवं सेन्ट्रल अमेरिका में उत्पन्न हुआ अनाज है। मक्का की विभिन्न प्रजातियों को 7 वर्गों में बाँटा गया है जैसे पोड, पोप, फ्लिट, डेंट, मुलायम, मीठी तथा वसीय |
मक्का के लक्षण (Characteristics of Maize)
(i) मक्का एकवर्षीय अनाज है, जिसकी लम्बाई 3-15 फीट तक हो सकती है।
(ii) अपरिपक्व मक्का में शर्करा अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है।
(iii) पत्तियाँ बड़ी तथा संकरी होती हैं, जिसके किनारे लहरदार होते हैं। इसमें रेशेदार जड़ीय तन्त्र पाया जाता है।
(iv) इसका उपयोग ग्लूकोज, शर्करा, डेक्सट्रीन तथा एल्कोहॉल बनाने में किया जाता है। इसके तने में पाए जाने वाले रेशों का उपयोग धागा तथा कागज बनाने में भी किया जाता है। मक्का में जीन (प्रोटीन) पाई जाती है, जिसका उपयोग कृत्रिम रेशे बनाने में किया जाता है।
(v) मक्का के दाने में कुल (6%), प्रोटीन या एल्युरॉन परत (8-14%), भ्रूणपोष (70%) तथा भ्रूण (11%) पाई जाती है।
मक्का के उपयोग (Uses of Maize)
(i) मक्का मानव आहार का एक मुख्य अनाज है।
(ii) मक्का के तने का मुख्य उपयोग पशुधन के चारे के रूप में होता है।
(iii) इसके दाने से एल्कोहॉलिक पेय पदार्थ तथा रेशे से कागज व धागा बनाया जाता है।
(iv) मीठी मक्का को अपरिपक्व अवस्था में प्रयोग किया जाता है।
(v) वसीय मक्का में कार्बोहाइड्रेट, वसा व प्रोटीन अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है। अतः यह पाचन परेशानियों को समाप्त करती है।
(vi) मक्का का आन्तरिक छिलका सिगरेट, कागज तथा भुट्टे का उपयोग ईंधन, चारकोल, आदि के बनाने में किया जाता है।
(vii) यह विलायक, विस्फोटक, प्लास्टिक, रबड़ तथा नाइलॉन बनाने में उपयोग होता है।
(viii) मक्का की जीन (प्रोटीन) से कृत्रिम रेशा तथा ऊन बनाते हैं, जिससे कच्ची तन्यता वाली रेशे तथा ऊन बनती है।
(ix) मक्का के स्टार्च का उपयोग विभिन्न खाद्य पदार्थों तथा औद्योगिक स्तर पर बनने वाले उत्पादों में किया जाता है।
जई (Oats )
जई एक स्वास्थवर्धक अनाज है, जो शीतोष्ण क्षेत्र (temperate region) में उगाया जाता है। यह एकवर्षीय पादप है, जिसे कोलेस्ट्रॉल कम करने के गुण के कारण एक स्वास्थवर्धक भोजन माना जाता है। मक्का के बाद इसमें सबसे अधिक वसा पाई जाती है तथा यह एकमात्र अनाज है, जिसमें ग्लोब्यूलिन तथा एविनेलिन नामक संचय प्रोटीन पाई जाती है।
जई के उपयोग (Uses of Oats )
जई का मुख्य उपयोग खीर, केक, बिस्कुट तथा ब्रेड के रूप में किया जाता है। जब घोड़ों को अधिक ऊर्जा व कार्बोहाइड्रेट की आवश्यकता होती है, तो इसे घोड़ों को भोजन के रूप में खिलाया जाता है। जई मूसली एवं ग्रेनोला जैसे सर्दियों के अनाज का मुख्य भाग है।
सब्जियाँ (Vegetables)
जीवित जीवों को पादपों के विभिन्न भागों से भोजन प्राप्त होता है जैसे जड़, तना, पत्तियाँ तथा फल। इन्हें पकी हुई अथवा कच्ची अवस्था में प्रयोग किया जा सकता है। सब्जियों में 70-95% पानी पाया जाता है। अतः इनमें पोषण पदार्थ अपेक्षाकृत कम पाए जाते है। इन्हें अनाज के बाद कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत माना जाता है।
कुछ मुख्य औषधीय पादप (Some Important Plants for Drugs)
कुछ मुख्य औषधीय पादपों का वर्णन निम्न है
औषधीय पादप (Medicinal Plants)
औषधीय पादप रोगों के उपचार हेतु औषधियों का उत्पादन करते हैं। चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा, जिसमें औषधीय पादपों का अध्ययन किया जाता है। फार्माकोजिनोसी कहलाती है। अधिकांश जंगली पादप मुख्यतया गर्म स्थानों पर उगने वाले पादप औषधियाँ प्रदान करते हैं। पादपों से मिलने वाली औषधीय से बिना किसी अन्य कुप्रभाव के रोगों का इलाज हो जाता है।
पादपों की जड़ों से मिलने वाली औषधियाँ (Drugs Obtained from Plant’s Roots)
पादपों की जड़ों से मिलने वाली औषधियाँ निम्न प्रकार हैं
(i) एकोनाइट (Aconite) ये ऐकोनिटम नेपिलस नामक पादप की जड़ से प्राप्त होती है। यह पादप ठण्डे स्थानों पर पाया जाता है, जिसका उपयोग औषधियाँ पादप तथा सजावटीय पादप के रूप में किया जाता है। यह मुख्य एल्केलॉयड है, जिसका उपयोग गठिया तथा न्यूरोग्लिया के उपचार में किया जाता है तथा इसका उपयोग दर्द तथा बुखार के उपचार में भी किया जाता है।
(ii) कॉल्चिकम (Colchicum) यह कॉल्चिकम ऑटोम्नेल नामक पादप से प्राप्त औषधि है। इसे भगवा घास का मैदान (meadow saffron) भी कहा जाता है। इसका उपयोग गठिया व गाऊट के उपचार में किया जाता है तथा आनुवंशिकी अध्ययन में इसका उपयोग गुणसूत्र की संख्या दौगुनी करने के लिए किया जाता है।
(iii) किरात या कड़वी जड़ (Gentian or Bitter Root) यह नीले फूलों वाली एक जड़ी-बूटी है। इनमें कुछ ग्लूकोसाइड पाए जाते हैं, जिसका उपयोग पाचन सम्बन्धी रोगों, बुखार, तनाव, मलेरिया के उपचार में किया जाता है तथा इसका प्रयोग लौह खनिज लवण के साथ भी किया जाता है।
(iv) जिनशेंग (Ginseng ) यह मुख्यतया चीन में पाए जाने वाली औषधि है। इसका उपयोग अनेक रोगों के उपचार में किया जाता है जैसे मधुमेह तथा पुरुष में जनन सम्बन्धी रोग।
(v) जलप (Jalap) यह औषधि एक्सोगोनियम पुरगा नामक पादप की जड़ों से प्राप्त होता है। इसका उपयोग मुख्यतया पेट साफ करने वाली औषधि के रूप में किया जाता है।
(vi) कुनैन (Quinine) यह सिनकोना पेड़ की छाल से प्राप्त होती है। यह एक एल्केलॉयड है, जो मलेरिया की औषधि है। यह अप्राकृतिक तौर पर भी बनाई जाती है, परन्तु वह पेड़ से निकालने से अधिक खर्चीला है। कुनैन किसी को लकवाग्रस्त (paralysed) भी बना सकता है, यदि उसे तन्त्रिका तन्तु में इन्जेक्ट कर दिया जाए। अधिक मात्रा में लेने पर यह जहरीला भी हो सकता है।
(vii) ओपियम (Opium) यह ओपियम पोपी पादप के सूखे लेटेक्स से मिलता है। इसमें लगभग 12% मोरफीन (जो एल्केलॉइड है, जिसका उपयोग हिरोइन नामक ड्रग बनाने में किया जाता है, जो एक गैर कानूनी नशीली दवा है) होती है।
पादपों से प्राप्त होने वाली कुछ अन्य औषधियाँ (नशीली दवाइयाँ) [ Some Other Drugs Obtained from Plants (Drug Addictions ) |
पादपों से कुछ नशीली दवाइयाँ भी प्राप्त होती हैं, जिसकी मनुष्य को लत हो जाती है इनका मुख्य स्रोत पुष्पीय पादप है। कुछ का वर्णन निम्नलिखित है
(i) कैन्नाबिनोडिस (Cannabinodis) ये ड्रग मस्तिष्क के कैन्नाबिनॉइड रिसेप्टर से क्रिया करती है। यह ड्रग केन्नाबेनिस नामक पेड़ की पत्तियों, फूल एवं ऊपरी भाग से प्राप्त होती हैं, जिसका उपयोग चरस, गांजा और मैरीजुआना के उत्पादन में होता है। ये दवाइयाँ मुख के द्वारा ली जाती हैं, जिसका असर हृदय पर होता है।
(ii) मतिभ्रमक (Hallucinogens) ये धतूरा तथा एट्रोपा बैलाडोना नामक पेड़ों से प्राप्त होती है। लीयरजिया अम्ल डाइएथाइलामाइड (LSD), क्लैविसेप्स परप्यूरिया नामक कवक से प्राप्त होती है। इस ड्रग्स का असर तन्त्रिका अंगों तथा मस्तिष्क पर होता है। इन्हें साइकिडिलिक ड्रग्स (psychedelic drugs) भी कहते हैं। इनका असर भावनाओं, सोच तथा विचारों पर पड़ता है।
(iii) तम्बाकू (Tobacco) यह तम्बाकू पादप से प्राप्त होती है, जिसे चबाया जाता है। इसमें निकोटिन होता है, जो एड्रिनल ग्रन्थि में एड्रिनेलीन तथा नॉर-एड्रिनेलीन के स्रावण, रुधिर दाब तथा हृदय दर को बढ़ाता है। इसके चबाने से शरीर पर विरोधी प्रभाव पड़ता है जैसे फेफड़ों का कैंसर, मूत्राशय कैंसर, ब्रॉकाइटिस, एम्फिसीमा, हृदय रोग, अल्सर, मुख कैंसर, आदि । सिगरेट पीने से कार्बन मोनोक्साइड (CO) की मात्रा रुधिर में बढ़ जाती है तथा ऑक्सीहीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है।
(iv) कोका एल्केलॉइड या कोकिन (Coca Alkaloid or Cocaine) ये ड्रग कोका पादप इरिथ्रोक्सिलोन कोकासे प्राप्त होती है, जो दक्षिणी अमेरिका का इजात है। इसे साधारणतया कोका या क्रेक कहा जाता है। कोकिन डोपामिन नामक न्यूरोट्राँसमीटर के संवहन को प्रभावित करता है। ये तन्त्रिका तन्त्र को उत्तेजित करता है तथा ऊर्जा का अहसास करता है अत्यधिक मात्रा में लेने पर यह मतिभ्रम (hallucinations) करता है।
शर्करा देने वाले पादप (Sugar Yielding Plants)
मुख्यतया शर्करा देने वाले दो पादपों का विवरण निम्न है
(i) गन्ना
वानस्पतिक नाम–सैकेरम ऑफिसिनेरम
पादप भाग – तना
उपयोग–शर्करा, मोलसिस, गत्ता तथा कागज
(ii) चुकन्दर (बीट शर्करा)
वानस्पतिक नाम– बीटा वुल्गेरिस
पादप भाग – जड़
पयोग- – कागज, शर्करा तथा सलाद
आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण कुछ पुष्पीय पादप (Some Economically Important Flowering Plants)
घृत कुमारी (Aloe Vera / Burn Plant/Gheekumari)
यह एस्फोडिलेसी कुल का सदस्य है। यह घरों में उगाई जाती है, परन्तु इसका औद्योगिक रूप से भी बहुत अधिक महत्त्व है।
उपयोग (Uses)
(i) एलो वेरा में 20 से ज्यादा खनिज लवण पाए जाते हैं, जो मानव शरीर हेतु जरूरी है। मानव शरीर के लिए 22 अमीनो अम्ल आवश्यक होते हैं, जिनमें से 8 शरीर द्वारा नहीं बनाए जाते हैं। इसमें विटामिन-A, B, B,, B, B2, C तथा E पाए जाते हैं।
(ii) एलो वेरा में त्वचा तथा शरीर के लिए उपयोगी तत्व पाए जाते हैं तथा यह त्वचा का रंग बनाए रखने में उपयोगी है, जिससे उम्र का प्रभाव नहीं दिखता। अतः इसे घृत कुमारी कहते हैं।
नीम (Neem)
नीम का वैज्ञानिक नाम एजाडाइरेक्टा इण्डिका है, जो मेलिएसी कुल का सदस्य है।
उपयोग (Uses)
(i) इसके तने तथा फूल का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है।
(ii) इसे पावन पेड़ माना जाता है, जिसमें प्राकृतिक औषधियों का भण्डार पाया जाता है।
(iii) इसके उत्पादों में प्रतिकवक, प्रतिहेल्मन्थिज, प्रतिजीवाणु, प्रतिविषाणु, गर्भनिरोधक तथा शामक (sedative) गुण पाए जाते हैं।
(iv) यह त्वचा रोगों में उपयोगी होता है जैसे एक्जिमा, सोरियोसिस, आदि ।
(v) यह रुधिर को शुद्ध करने तथा रुधिर शर्करा मात्रा को नियन्त्रित करने का कार्य करता है।
(vi) यह कीटाणुनाशक के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
(vii) नीम के पेड़ की पत्तियों तथा फलों का उपयोग नेत्र रोगों के इलाज में किया जाता है।
तुलसी (Tulsi)
तुलसी का वैज्ञानिक नाम ओसिमम टेन्यूइफ्लोरम है। यह लेमिएसी नामक कुल की सदस्य है। यह पादप धार्मिक व चिकित्सा में उपयोग होता है।
उपयोग (Uses)
(i) तुलसी को हिन्दु आयुर्वेद में पावन पादप कहा गया है। इसका उपयोग घाव भरने, तनाव कम करने लथा शरीर के विभिन्न सन्तुलन को बनाने में होता है।
(ii) तुलसी को जीवन का अमृत (elixir of life) कहा गया है। तुलसी के पादप में खुशबू तथा कसैला स्वाद होता है, जिससे पदार्थों की आयु बढ़ाने का गुण इसमें पाया जाता है।
(iii) इससे हर्बल चाय, सूखे चूरन, हरी पत्ती तथा तेल के रूप में उपयोग किया जाता है। यह बुखार, झुकाम तथा इन्फेक्शन के उपचार में सहायक होता है।
हल्दी (Turmeric)
हल्दी एक बहुवर्षीय जड़ी-बूटी है, जो जिजिबिरेसी कुल की सदस्य है।
उपयोग (Uses)
(i) इसमें कुरकुमिन नामक पदार्थ पाया जाता है, जो कई रोगों के उपचार में उपयोगी होता है जैसे कैंसर, अलजाइमर रोग, मधुमेह, एलर्जी, गठिया, आदि। भारत में हल्दी का अत्यधिक उत्पादन होता है।
(ii) इसका उपयोग पेय पदार्थ, बैकरी पदार्थ, डेयरी पदार्थ, आइसक्रीम, दही, केक, आदि को रंग देने में भी किया जाता है।
(iii) हल्दी का त्वचा, साँस, पाचन तन्त्र, दर्द, घाव, खिचाँव सम्बन्धित रोगों के उपचार के लिए औषधि के रूप में उपयोग या जाता है।
(iv) हल्दी का ताजा रस चिकन पॉक्स, दाद, खाज, आदि रोगों के उपचार में काम आता है।
लेमनग्रास (Lemongrass)
यह 45 प्रजाति का वंश है, जो उष्ण कटिबन्धीय तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय स्थानों की देशी प्रजाति है। इसे सुखाकर, पाउडर के रूप में या ताजा भी प्रयोग किया जा सकता है।
उपयोग (Uses)
(i) यह साधारणतया हर्बल चाय, सूप या करी में प्रयोग किया जाता है।
(ii) इसका उपयोग मुर्गी पालन, मत्सय, गौमांस तथा समुद्री भोजन के साथ किया जाता है।
(iii) इसके तेल का उपयोग कीटाणुनाशक, कवकरोधी तथा परिरक्षक के रूप में किया जाता है।
(iv) पुराने समय से इसके तेल का उपयोग कीटों को आकर्षित करने में किया जाता है।
बरगद (Banyan Tree)
वरगद के पेड़ का आरम्भ एक उपरिरोही (एक पादप दूसरे पादप पर उगा होता है) के रूप में होता है। इसका बीज पोषी पादप तने की दरारों में उग जाता था या इमारतों के बीच की दरारों में भी उग जाता था । बरगद का पेड़ मुख्यतया भारतीय बरगद (Ficus benghalensis) होता है, जो भारत का राष्ट्रीय पेड़ है।
उपयोग (Uses)
(i) इसका फल पक्षियों के द्वारा फूटता है।
(ii) इसका आकार बहुत बड़ा होता है, जिससे यह छाया देता है। अतः इसे मन्दिर, घरों, गाँवों तथा सड़कों के किनारों पर लगाया जाता है।
(iii) हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी इसका अत्यधिक महत्त्व है। इसका उपयोग बहुत से रोगों की औषध बनाने में भी किया जाता है।
(iv) इसकी पत्तियाँ बड़ी होने के कारण जानवरों के भोजन के रूप में प्रयोग की जाती हैं तथा फूल कीटों को परागण के लिए आकर्षित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
(v) बरगद के पेड़ के चिपचिपे रस से रबड़ बनती है, जिसका उपयोग बगीचों में भी किया जाता है।
◆ एक पुराना बरगद का पेड़ 656 फुट के व्यास तथा 98 फुट की लम्बाई से भी अधिक बड़ा हो सकता है।
अन्य आर्थिक रूप से उपयोगी पुष्पीय पादप निम्न हैं
सामान्य नाम | वैज्ञानिक नाम | उपयोग |
कैमोमाइल | मैट्रिकेरिया कैमोमिला | गठियाँ, खिंचाव व पाचन सम्बन्धित रोगों में |
नीलगिरी | यूकेलिप्टस प्रजाति | इसके तेल का उपयोग नासिका बन्ध को तोड़ता है |
अश्वगन्धा | विथानिया सोम्नीफेरा |
कमजोरी व गठियाँ के इलाज में
|
आँवला | अम्बलिका ऑफिसिनेलिस | प्रति पायरिया, पाचन, पिलिया एवं रुधिर स्राव में |
गुगुलु | कॉम्मिफेरा बिघटि | कोढ़, त्वचा रोग तथा तनाव के इलाज में |
ब्राह्मी | बैकोपा मोनिरी | मस्तिष्क रोग, गठियाँ, कब्ज, श्वसन सम्बन्धित रोगों के इलाज में |
सर्पगन्धा | राऊवोल्फिया सर्पेन्टिना | उच्च रुधिर दाब, अनिद्रा के इलाज में |
आर्थिक रूप से उपयोगी कुछ अपुष्पीय पादप (Some Economically Important Non-Flowering Plants)
शैवाल (Algae)
शैवाल एक समुद्री घास है, जो भोजन के रूप में प्रयोग की जाती है। फीयोफाइसी तथा रोडोफाइसी वर्ग के शैवालों में आयोडीन तथा कुछ अन्य खनिज पाए जाते हैं।
सार्कोनेमा फरसीलेटम विटामिन A, B, E का मुख्य स्रोत हैं तथा फाइलोफोरा नरवोसा में 0.2-0.5% आयोडीन पाई जाती है।
शैवालों के विभिन्न रूपों में उपयोग (Uses of Algae in Different Forms)
(i) भोज्य पदार्थ स्रोत (Food Source) सिएट्रोन (Nereocystis, Phaeophyceae), नोरी (Porphyra, Rhodophyceae), हरा लेवर ( Spirogyra, Chlorophyceae) का उपयोग भोज्य पदार्थ बनाने के काम में आते हैं। अलवा (Chlorophyceae) का उपयोग सूप बनाने में होता है। चीन व जापान में पोरफाइरा को भोजन के रूप में अत्यधिक खाया जाता है।
(ii) अगार स्रोत (Agar Source) जेलिडियम (रोडोफाइसी) का प्रयोग जैली, आइसक्रीम, सौन्दर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है।
(iii) औषधीय स्रोत (Medicine Source) क्लोरेला शैवाल में प्रतिजैविकी क्लोरेलीन पाई जाती है। कुछ शैवालों में विटामिन भी पाए जाते हैं।
(iv) उवर्रक स्रोत (Fertiliser Source) कुछ शैवालों को, जिनमें पोटैशियम, लौह, सल्फेट, सूक्ष्म धातु तथा वृद्धि कारक पाए जाते हैं, उर्वरक के रूप में प्रयोग करते हैं।
(v) डाइएटम्स (Diatoms) डाइएटम्स की कोशिका भित्ति पर सिलिकॉन डाइऑक्साइड (SiO2) अधिक मात्रा में जमा रहता है। ये समुद्र की गहराई में जमा होते हैं। यह 1500°C तक ताप सहन कर लेती है। इनका उपयोग चीनी मिलों में छन्नों के रूप में, काँच तथा पोर्सिलेन के निर्माण में, ऊष्मारोधी के रूप में तथा धातु प्रलेप, वार्निश, पॉलिश एवं टूथपेस्ट के निर्माण में और अपघर्षक (abrasive) के रूप में प्रयोग किया जाता है।
कवक (Fungi)
खाने योग्य कवक में स्वादिष्ट पदार्थ पाए जाते है जैसे मशरुम (Agaricus compestris, Basidiomycetes)।
कवक के विभिन्न रूपों में उपयोग (Uses of Fungi in Different Forms)
(i) चिकित्सीय स्रोत (Medical Source) पेनिसिलियम नोटेटम नामक कवक से प्राप्त होती है, जिसका उपयोग जीवाणुजनित रोगों के उपचार में किया जाता है। इरगोट का उपयोग गर्भाशय संकुचन को बढ़ाने का कार्य करता है। इरगोट, क्लेविसेप्स परप्यूरिया नामक कवक से प्राप्त होती है।
(ii) औद्योगिक स्रोत (Industry Source) कवक का उपयोग डबलरोटी उद्योग एवं एल्कोहॉल उद्योग में किया जाता है। एस्परजिलस एवं पेनिसिलियम का उपयोग सिट्रिक अम्ल, ग्लूकोनिक अम्ल, मैनिक अम्ल, पनीर बनाने में किया जाता है।
(iii) एन्जाइम उत्पादन (Enzyme Production) एस्पर्जिलस का उपयोग एमाइलेज, इनवर्टेस तथा विटामिन बनाने में किया जाता है।
जीवाणु (Bacteria)
जीवाणु एककोशिकीय प्रोकैरियोटिक जीव है, जिसका उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है।
जीवाणु का विभिन्न रूपों में उपयोग (Uses of Bacteria in Different Forms)
(i) नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) कुछ जीवाणु जैसे राइजोबियम, नीली-हरी शैवाल मृदा में नाइट्रोजन को स्थिर करके पादपों के लिए उपयोगी बनाते हैं। ये वातावरणीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट्स तथा नाइट्राइट में परिवर्तित करके मृदा की उर्वरकता बढ़ाते हैं। कुछ स्वतन्त्रजीवी जीवाणु जैसे एज़ोटोबैक्टर भी नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं।
(ii) भोजन उद्योग (Food Industry) लेक्टोबैसिलस (Lactobacillus) का उपयोग दही जमाने तथा अन्य किण्वन क्रियाओं में किया जाता है। एसीटिक अम्ल जीवाणु (AAB) या एसीटोबैक्टर का उपयोग शर्करा के किण्वन से सिरका बनाने में किया जाता है। माइक्रोकोकस कैन्डीडैन्स द्वारा चाय की पत्तियों पर किण्वन द्वारा क्यूरिंग (curing) की जाती है। जिससे इनमें अलग स्वाद आता है।
(ii) जीवाणुनाशक (Antibiotics) ये सूक्ष्मजीव के द्वारा उत्पन्न होने वाले वे पदार्थ हैं, जो जीवों को हानि पहुँचाये बिना अन्य सूक्ष्मजीवों को नष्ट एवं उनके विकास को नियंत्रित करते हैं।
औषधियों को बनाने में प्रयोग होने वाले कुछ जीवाणु (Some Bacteria Used for the Preparation of Medicine)
औषधियाँ | जीवाणु | उपयोग |
बैसिट्रेसिन | बैसिलस सबटिलिस | त्वचा व आँख सम्बन्धी इन्फेक्शन के उपचार में |
निस्टेटिन | स्ट्रेप्टोमाइसीस नोरसी | एलर्जी के उपचार में |
इरिथ्रोमाइसिन | सैकेरोपॉलीस्पोरा इरिथ्रीया | एलर्जी के उपचार में |
पॉलीमिक्सिन-B | बैसिलस पॉलीमिक्सा | टॉक्सिन के निष्क्रयकरण में |
टाइरोथ्रीसिन | बैसिलस ब्रीविस | गले में सूजन तथा पेट के रोगों के उपचार में |
क्लोरोमाइसिटिन या क्लोरोमफेनिकॉल | स्ट्रेप्टोमाइसिस वेनजुएली | एलर्जी के उपचार में |
टेट्रामाइसिन (ऑक्सी टेट्रासाइक्लिन) | स्ट्रेप्टोमाइसिस रिमोसस | जीवाणुजनित एलर्जी जैसे फुंसी के उपचार में |
स्ट्रेप्टोमाइसिन | स्ट्रेप्टोमाइसिस ग्रिसस | टीबी के उपचार में |
ट्रेटासाइक्लिन | स्ट्रेप्टोमाइसिस ऐरोफेसिएन्स | जीवाणु संक्रमण तथा त्वचा रोगों के इलाज में |
बेसिट्रासिन | बेसिलस लाइकेनिफार्मिस | छोटे त्वचा संक्रमण, जलन एवं कट आदि के इलाज में |
पादपों से प्राप्त होने वाले कुछ नॉन-एल्कोहॉलिक पेय पदार्थ (Non-Alcoholic Beverages Obtained from Plants)
कुछ पेय पदार्थों (कैफीन युक्त) का उपयोग उत्तेजक पदार्थ तथा तरोताजगी देने वाले पदार्थ के रूप में किया जाता है। कैफीन एक एल्केलॉइड है, जिसमें चिकित्सीय गुण भी पाए जाते हैं, जिसका उपयोग नस उत्तेजक के रूप में किया जाता है। बहुत से पादप नॉन-एल्कोहॉलिक पेय पदार्थों का उत्पादन करते हैं।
इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण पादपों का वर्णन निम्न है
कॉफी (Coffee)
यह पेय पदार्थ देने वाला एक मुख्य पादप है, जिसका बहुत अधिक औद्योगिक महत्त्व है। इस पादप के बीजों से कॉफी पय पदार्थ प्राप्त होती है। यह एक झाड़ पादप है। कॉफी की प्रकृति कुछ अम्लीय है, जिसका उपयोग उत्तेजनावर्धक पेय के रूप में किया जाता है।
चाय (Tea)
चाय भी एक कैफीन पेय पदार्थ है, जो चाय के झाड़ (Camellia sinensis) से प्राप्त होता है। यह पादप की पत्तियों से तैयार की जाने वाली एक ऐरोमेटिक पेय पदार्थ है।। चाय के पादप की लम्बाई 3- 4 फीट होती है। चीन में हरी व काली दोनों प्रकार की चाय का उत्पादन होता है। जापान में मुख्यतया हरी चाय तथा भारत और श्रीलंका में काली चाय का उत्पादन होता है चाय के संगठन में 2-5% थीयनीन ( कैफीन जैसा एक एल्केलॉइड तथा एक भाप बनने वाला तेल) तथा 13-18% टैनिन पाया जाता है। इसका उपयोग भी उत्तेजनावर्धक पेय के रूप में किया जाता है।
कोको एवं चॉकलेट (Cocoa and Chocolate)
कोको एवं चॉकलेट दोनों ही कोको के पादप (Theobroma cocoa) के बीज से तैयार की जाती है। कोको पादप को दक्षिणी व केन्द्रीय अमेरिका, पश्चिमी अफ्रीका जैसे स्थानों पर उगाया जाता है। चॉकलेट सभी पेय पदार्थों में सबसे अधिक पोषक है।
कोको एक ऊष्णकटिबन्धीय पेड़ है। कोको के पादप की लम्बाई 15-25 फीट होती है। यह भोजन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। कोको के बीज में 1% से भी कम एल्केलॉइड पाया जाता है जैसे थीयोब्रोमीन तथा कैफीन, इसमें 30-50% वसीय तेल, 15% स्टार्च तथा 15% प्रोटीन पाई जाती है।
रेशे प्रदान करने वाले पादप (Fibres Yielding Plants)
कुछ पादपों के विभिन्न भागों से रेशे प्राप्त होते हैं, जिनका उपयोग कपड़े, चादरे, टोकरी तथा अन्य सामान बनाने के काम में आते हैं। ये रेशे पादपों की पत्तियों, तनों तथा जड़ों से प्राप्त होते हैं जैसे कपास, जूट, अलसी, सन, आदि।
मसाले तथा चटनी वाले मसाले (Spices and Condiments)
मसाले पादपों के विभिन्न भागों से प्राप्त होने वाले वे उत्पाद है, जिनका उपयोग भोजन का स्वाद बढ़ाने में तथा कुछ औषधियों के रूप में भी किया जाता है। मसाले पादपों के बीज, सूखे बीज, फल, जड़, छाल तथा अन्य भागों से प्राप्त होते हैं। भारत मसालों के उत्पादन, खपत तथा निर्यात संसार के मुख्य देशों में से एक है।
तेलीय पादप (Oil Yielding Plants)
ये पादप विभिन्न गुणों वाले तेलों का उत्पादन करते हैं जैसे वनस्पति तेल। यह पादपों के बीच तथा कुछ भागों से प्राप्त होता है। वनस्पति तेल में मुख्यतया ट्राइग्लिसरॉइड (triglycerides) होता है, जो पादपों से निकाला जाता है।
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