आर्थिक जन्तु विज्ञान (Economic Zoology)

आर्थिक जन्तु विज्ञान (Economic Zoology)

आर्थिक जन्तु विज्ञान (Economic Zoology)

जन्तुओं का आर्थिक महत्त्व, जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें जन्तुओं द्वारा दिए गए पदार्थों का मानव के लिए महत्त्व का अध्ययन किया जाता है।
जन्तुओं द्वारा बनाए गए विभिन्न पदार्थ मनुष्य व प्रकृति के लिए आर्थिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण अण्डा, शहद, माँस, रेशम, दूध, आदि। जन्तुओं से विभिन्न बहुमूल्य पदार्थों की उत्पत्ति के लिए जन्तुओं को उचित भरण पोषण तथा सुरक्षा प्रदान की जाती है।
विभिन्न जन्तु एवं उनके पालन घर (Different Animals and their Keeping or Culturing Fields) 
विभिन्न जन्तु एवं उनके पालन घर निम्नलिखित हैं
मधुमक्खी पालन (Apiculture : Bee-Keeping)
मधुमक्खी का वैज्ञानिक नाम एपिस है, जिससे ‘एपिकल्चर’ शब्द उत्पन्न हुआ है। इस शब्द का अर्थ मधुमक्खी पालन है। मधुमक्खी पालन का उद्यम आज एक कृषि उद्योग बन गया है जैसे मधुमक्खी पालन हेतु मधुमक्खी पालन घर (apiaries or bee farms) खादी एवं गाँव उद्योग आयोग (KVIC) द्वारा तथा भारतीय वैज्ञानिक कृषि अनुसन्धान परिषद (ICAR) द्वारा शहद उत्पादन हेतु बनाए गए है। मधुमक्खियों को औद्योगिक रूप से पालने के लिए मधुवाटिका बनाए जाते हैं, जिन्हें एपिरीस कहते हैं।
मधुमक्खियों की कुछ प्रजातियाँ निम्न हैं
(i) एपिस फ्लोरिया (Little bee) कम डंक मारने वाली तथा शहद देने वाली प्रजाति है।
(ii) एपिस इंडिका (Indian bee) भारत में सर्वाधिक पालने वाली प्रजाति है।
(iii) एपिस डोरसाटा (Rock bee) सर्वाधिक शहद प्रदान करने वाली मधुमक्खी की प्रजाति है।
(iv) एपिस मैलीफेरा (European bee) औद्योगिक स्तर पर सर्वाधिक उपयोगी प्रजाति है।
मधुमक्खियों का सामाजिक संघठन (Social Organisation of Honey Bees) 
मधुमक्खियाँ बहुत ही सामाजिक जीव हैं, जो कॉलोनी बनाकर रहती हैं। एक सामान्य कॉलोनी में लगभग 40-50 हजार मधुमक्खियाँ होती हैं।
इनमें तीन मुख्य प्रकार की मधुमक्खियाँ होती हैं
(i) रानी (Queen) यह विकसित प्रजनन की क्षमता वाली मादा है, जो प्यूपा से 16 दिनों में निकलती है। सामान्यतया एक छत्ते में एक रानी मधुमक्खी होती है। इसमें अण्डे उत्पन्न करने हेतु पूर्ण विकसित अण्डाशय होता है। यह शाही जैली (royal jelly) खाती है। यह अकेली अण्डे देती है तथा छत्ते में रहने वाली अधिकांश सभी की माता होती हैं।
(ii) ड्रोन्स (Drones) ये नर मधुमक्खी होते हैं, जो अनिषेकजनन (24 दिन में विकसित) द्वारा बनते हैं तथा लगभग 5 हफ्ते तक जीवित रहते हैं। ये रानी से छोटे होते हैं तथा बड़े पंख, मस्तिष्क, आँख, ऊपर तथा उपांग रखते हैं। ये प्रजनन की क्षमता वाले होते हैं, जो रानी को निषेचित करते हैं। इनमें डंक नहीं होते तथा ये मधुरस (nectar) की खोज भी नहीं करते हैं।
(iii) श्रमिक (Workers) ये सबसे छोटे व सक्रिय मधुमक्खी हैं, जो 21 दिनों में विकसित होते हैं। ये रानी द्वारा दिए निषेचित अण्डों से बनते हैं तथा श्रमिक घर (worker cell) में रहते हैं। इनका जीवन काल लगभग 16 हफ्तों का होता है।
शहद उत्पादन (Honey Making)
शहद का उत्पादन मधुमक्खियों द्वारा किया जाता है, जो फूलों के रस को चूसकर इसे बनाते हैं। इनमें फूलों से पराग रस को चूसने के लिए लम्बा चूषक (proboscis) होता है तथा पराग को संगठित करने के लिए टोकरी रखते हैं। इसमें लगभग 80% पानी व शेष सघन शर्करा होती है। श्रमिक इन्हें पेट तथा रेक्टम में संयोजित करते हैं। इनको एन्जाइम द्वारा सघन शर्करा से सरल शर्करा में परिवर्तित किया जाता है।
कच्चा शहद फिर मधुमक्खी के खाली छत्ते में भर जाता है, जहाँ वह सूख जाता है तथा उसमें 20% पानी रह जाता है। मधुमक्खी की कॉलोनी की संयुक्तता फेरोमोन्स नामक रासायनिक स्रावण से नियन्त्रित रहती है।
रेशमकीट पालन (Sericulture )
यह रेशम के कीड़े का रेशम उत्पादन हेतु पालन करना है। इसका उत्पत्ति स्थान चीन माना जाता है तथा अब जापान, भारत, रूस, ब्राजील, इटली व फ्रांस में भी रेशम उत्पादन किया जाता है।
रेशम (Silk)
इसकी खोज 2600 ईसा पूर्व चीन में हुई थी, परन्तु आज संयुक्त राज्य में इसकी सबसे ज्यादा पैदावार होती है। रेशम के कीड़े के उत्पादन को सेरीकल्चर कहते हैं। रेशम का उपयोग वस्त्र बनाने में किया जाता है।
रेशम का उत्पादन, रेशम के कीड़े के कैटरपिलर द्वारा किया जाता है, जो तरल के रूप में होता है तथा फिर हवा के सम्पर्क में आने पर कड़ा हो जाता है। यह कड़ा पदार्थ महीन, चमकदार व मुलायम होता है जिसे सिल्क कहते हैं। यह फाइब्रिन नामक प्रोटीन का बना होता है। बॉम्बेक्स मोरी, रेशम उत्पादक कीड़े का नाम है, जो रेशम उत्पादन में सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाता है। रेशम संसार का सबसे मजबूत प्राकृतिक रेशा है।
रेशम के प्रकार (Types of Silk)
रेशम के कीड़े के अनुसार रेशम विभिन्न प्रकार के होते हैं
रेशम उत्पादन (Silk Production)
रेशम एक गीला स्रावण है, जो रेशम के कीड़े के कोकून निर्माण के समय उसके कैटरपिलर से बनता है। बॉम्बिक्स मोरी रेशम उत्पादन का सर्वाधिक उपयोगी कीट है।
कोकून सफेद एवं पीले रंग का 2.5×1.5 सेमी आकार वाला तथा गोल संरचना है। रेशम उत्पादन की प्रक्रिया को पश्च कोकून प्रक्रिया (post coccoon processing) कहते हैं।
इसमें निम्न चरण होते हैं
(i) स्टिफलिंग प्रक्रिया में कोकून को गर्म पानी, सूखी भाप व सूर्य की किरणों द्वारा सुखाया व मारा जाता है।
(ii) रेशम के धागे को मृत कोकून से निकाला (reeling) जाता है तथा 4-5 धागों को लपेटकर (spinning) एक धागा बनाया जाता है। इसे कच्चा रेशम (raw or reeled silk) कहा जाता है। चमक लाने के लिए रेशम को उबाला व खींचा जाता है तथा उसे अम्ल द्वारा धोया जाता है। इस प्रक्रिया में रेशम के धागे रेशे में परिवर्तित हो जाते हैं ।
◆ रेशम रेशे में मुख्यतया 75% फाइब्रिन प्रोटीन व 25% सिरिसिन प्रोटीन होती है।
एक्वाकल्चर (Aquaculture )
एक्वाकल्चर मुख्यतया जलीय जीवों के पालन को कहते हैं। जलीय जीवों में मुख्यतया मछली, मोलस्का, जलीय पादप व क्रस्टेशिया जलीय जीवों के पालन की मुख्य आवश्यकता में उनकी उत्पादकता बढ़ाना आती है जैसे भोजन व सुरक्षा हेतु। मेरीकल्चर; समुद्री वातावरण में एक्वाकल्चर को कहते है। एक्वाक्चर जलीय जीवों को निरन्तर भोजन व शिकारों से सुरक्षा देता है। एक्वाक्चर में मत्सय पालन, शैवाल पालन व सजावट हेतु उपयोगी जलीय जन्तुओं व पादपों का पालन होता है क्योंकि हमारे भोजन में ये प्रोटीन के समृद्ध स्रोत हैं।
एक्वाकल्चर के उपयोग (Uses of Aquaculture)
(i) एक्वाकल्चर का व्यवसायिक उपयोग मछली व अन्य समुद्री पदार्थों को मानव भोजन हेतु उपलब्ध कराना है।
(ii) विलियनो लोग प्रोटीन स्रोत हेतु मछली पर निर्भर हैं।
(iii) इससे कृषि अनुपयोगी भूमि का उपयोग हो जाता है।
(iv) मछली का तेल ओमेगा-3 फैटी अम्ल, इकोसापेन्टेनॉइक अम्ल व DNA का स्रोत है।
(v) मछली के तेल व माँस से बचे तरल को उर्वरक के रूप में उपयोग करते हैं।
(vi) दरियाई घोड़ा, सितारा मछली, समुद्री अचिन व समुद्री खीरे को पारम्परिक चीनी औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
(vii) केल्प को आयोडीन के स्रोत व साबुन व काँच निर्माण में उर्वरक के रूप में प्रयोग करते हैं।
मत्स्य पालन (Pisciculture )
यह जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें मछलियों का पालन किया जाता है, क्योंकि मछलियाँ प्रोटीन का अच्छा व उपयोगी स्रोत मानी जाती है। मत्स्य पालन में मानव उपयोग हेतु व भोजन हेतु मछलियों का पालन होता है। इसमें मत्स्य पालन, संरक्षण, मार्केटिंग, मछली उत्पादकों का प्रयोग तथा झींगा, केकड़ा व ऊस्टर का उपयोग करना सम्मिलित होता है।
भोजन योग्य मछलियाँ (Food Fishes)
भोजन योग्य मछलियाँ साफ जल में, एस्चुरी व समुद्री जल में पाई जाती हैं।
इनमें से कुछ मछलियाँ निम्न हैं
(i) स्वच्छजलीय मछलियाँ ये तालाब नदी, झरने, झील में पाई जाने वाली मछलियाँ हैं, जिनके ऊपर कंटक पाए जाते हैं। उदाहरण रोहू (Labeo rohita), कटला (catla), म्रिगल (Cirrhina mirgala), कालबाँस (Labeo calbasu), आदि ।
(ii) एस्चुरियन जलीय मछलियाँ ये मछलियाँ साफ व समुद्री दोनों जलों में रह सकती हैं। उदाहरण वेटकी ( Lates calcarifer), भानगर (Mugil tade), पार्स (Mugil parsia), आदि ।
(iii) समुद्री मछलियाँ ये मछलियाँ समुद्री जल में रहती हैं। उदाहरण बॉम्बे डक (Harpodon neherius), सिल्वर पॉम्फ्रेट (Pampas argenties), आदि ।
मछलियों के सह-उत्पाद (Byproducts of Fishes)
(i) मछली का तेल मछली की त्वचा व यकृत से निकाला जाता है। यह औषधि के रूप में प्रयोग होता है। इसमें विटामिन-A, D, E, कोलेस्ट्रॉल, हाइड्रोकार्बन, आदि होते हैं।
(ii) मछली का माँस तेल निकलने के बाद मवेशी, सूअर, मुर्गी, आदि को भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है।
(iii) मछली का आटा प्रोटीन से युक्त होता है, जिसे पाचक होने के कारण मानव भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
(iv) मछली का गोंद यह इसकी त्वचा व हड्डियों से बनता है, जो जूते व किताबें चिपकाने हेतु एक मजबूत गोंद होता है।
(v) इसिनगलास मछली के सूखे स्विम ब्लैडर से बनता है। यह एक जिलैटिन जैसा पदार्थ होता है, जिसे वाइन बीयर व सिरके के निर्मलीकरण में तथा पर्स, रिबन व प्लास्टर बनाने में प्रयोग किया जाता है।
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