उदारीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय कृषि में कौन-कौन सी महत्वपूर्ण प्रवृत्तियां उभर कर आयी हैं ?
उदारीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय कृषि में कौन-कौन सी महत्वपूर्ण प्रवृत्तियां उभर कर आयी हैं ?
(44वीं BPSC/2002)
उत्तर – भारत में उदारीकरण का प्रारंभ 1991 में भारत सरकार द्वारा अपनाई गई नई आर्थिक नीति के साथ ही माना जाता है। उदारीकरण के कारण देश की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई एवं सभी क्षेत्रों में विकास हुआ। कृषि में भी कुछ सुधार हुए हैं, जैसे कृषि के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की उपलब्धता, कृषि उत्पाद बढ़ाने के लिए नए कृषि उपकरणों का उपयोग, उन्नत खाद, बीजों की उपलब्धता आदि। लेकिन कृषि की ये उपलब्धियां हरित क्रांति के दौर में हुए सुधार की तुलना में नहीं के बराबर हैं। ये सब अधिकतर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के फायदे से ज्यादा कुछ नहीं हैं। इन सुधार कार्यों से वास्तव में कृषि को कोई लाभ नहीं मिल पाया है और कृषि की संवृद्धि दर कम होती जा रही है।
सुधार अवधि में कृषि-क्षेत्र में सार्वजनिक व्यय विशेषकर आधारिक संरचना अर्थात सिंचाई, बिजली, , सड़क निर्माण, बाजार संपर्कों और शोध-प्रसार आदि में काफी कमी आई है। साथ ही उर्वरक सब्सिडी में कमी ने भी उत्पादन लागतों को बढ़ा दिया है। इसका छोटे एवं सीमांत किसानों पर बहुत ही गंभीर प्रभाव पड़ा है। शुल्क में कटौती, न्यूनतम समर्थन मूल्यों पर परिमाणात्मक प्रतिबंध हटाए जाने के कारण इस क्षेत्रक की नीतियों में कई परिवर्तन हुए। इसके कारण भारत के किसानों को विदेशी स्पर्धा का भी सामना करना पड़ा है, जिसका उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। दूसरी तरफ उत्पादन व्यवस्था निर्यातोन्मुखी हो रही है। आंतरिक उपयोग की खाद्यान्न फसलों के स्थान पर निर्यात के लिए नकदी फसलों पर बल दिया जा रहा है। इससे देश में खाद्यान्नों की कीमतों पर दबाव बढ़ रहा है।
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