चिन्तन की प्रक्रिया बताइये।
चिन्तन की प्रक्रिया बताइये।
उत्तर— चिन्तन की प्रक्रिया—
(1) शैशव के दो-तीन वर्षों के बाद प्रत्येक बालक में भाषा का आन्तरिक रूप विकसित होने लगता है।
(2) चिन्तन की प्रवृत्ति सहज होती है पर परिस्थितियों से उसे बढ़ाया जा सकता है और दिशा दी जा सकती है।
(3) किशोरावस्था में चिन्तन की प्रवृत्ति का बहुत अधिक विकास होता है।
(4) प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुसार एक विशेष सीमा तक सूक्ष्म चिन्तन करने में समर्थ होता है ।
चिन्तन की योग्यता का भाषा की अन्य योग्यताओं से संबंध–
(1) सुनने, बोलने, पढ़ने, लिखने की योग्यता का चिन्तन की योग्यता से सीधा संबंध है । शारीरिक अंगों के पीछे मस्तिष्क में होने वाली प्रक्रिया सभी में समान है।
(2) बोलने या लिखने से पहले व्यक्ति चिन्तन करता जिसके परिणाम को वह वाणी या लेखनी में से किसी एक माध्यम द्वारा प्रकट कर सकता है। “
(3) किसी व्यक्ति की सक्रिय भाषा प्रक्रिया को हम एक तरफ चिन्तन की योग्यताओं में और दूसरी तरफ बोलने और लिखने की कुशलताओं में बाँट सकते हैं।
आधुनिक काल में चिन्तन की योग्यता के विकास की आवश्यकता—
(1) ज्ञान का विस्तार और उसे आत्मसात् करने में कठिनाई।
(2) आधुनिक शक्तिशाली संचार के माध्यमों के सम्मुख व्यक्ति की क्षुद्रता।
(3) विघटित होता समाज और टूटते मूल्य ।
(4) अपने राष्ट्र और विश्व की संकटाकुल स्थिति । भारत में आजकल के किशोरों का भविष्य
(5) विज्ञान का एक सीमा तक जाकर असमर्थ हो जाना।
उत्तर— चिन्तन की प्रक्रिया—
(1) शैशव के दो-तीन वर्षों के बाद प्रत्येक बालक में भाषा का आन्तरिक रूप विकसित होने लगता है।
(2) चिन्तन की प्रवृत्ति सहज होती है पर परिस्थितियों से उसे बढ़ाया जा सकता है और दिशा दी जा सकती है।
(3) किशोरावस्था में चिन्तन की प्रवृत्ति का बहुत अधिक विकास होता है।
(4) प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुसार एक विशेष सीमा तक सूक्ष्म चिन्तन करने में समर्थ होता है ।
चिन्तन की योग्यता का भाषा की अन्य योग्यताओं से संबंध–
(1) सुनने, बोलने, पढ़ने, लिखने की योग्यता का चिन्तन की योग्यता से सीधा संबंध है । शारीरिक अंगों के पीछे मस्तिष्क में होने वाली प्रक्रिया सभी में समान है।
(2) बोलने या लिखने से पहले व्यक्ति चिन्तन करता जिसके परिणाम को वह वाणी या लेखनी में से किसी एक माध्यम द्वारा प्रकट कर सकता है। “
(3) किसी व्यक्ति की सक्रिय भाषा प्रक्रिया को हम एक तरफ चिन्तन की योग्यताओं में और दूसरी तरफ बोलने और लिखने की कुशलताओं में बाँट सकते हैं।
आधुनिक काल में चिन्तन की योग्यता के विकास की आवश्यकता—
(1) ज्ञान का विस्तार और उसे आत्मसात् करने में कठिनाई।
(2) आधुनिक शक्तिशाली संचार के माध्यमों के सम्मुख व्यक्ति की क्षुद्रता।
(3) विघटित होता समाज और टूटते मूल्य ।
(4) अपने राष्ट्र और विश्व की संकटाकुल स्थिति । भारत में आजकल के किशोरों का भविष्य
(5) विज्ञान का एक सीमा तक जाकर असमर्थ हो जाना।
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