व्याख्यात्मक लेखन के सोपान लिखिए।

व्याख्यात्मक लेखन के सोपान लिखिए। 

उत्तर— व्याख्यात्मक लेखन के सोपान– व्याख्यात्मक लेखन के निम्नलिखित सोपान हैं—

(1) सम्पूर्ण अर्थ को बल लगाकर पढ़ना– विषय-आधारित शिक्षण का अध्ययन करते समय छात्राध्यापक को किसी भी विषय-वस्तु को पढ़ते समय सम्पूर्ण अर्थ को बल लगाकर उसकी अवधारणा का बोध करना होगा। अर्थ को समझने के लिए उसके अर्थ, को कई बार पढ़ा जाता है तथा उसके प्रत्यय के स्पष्ट होने के बाद ही वह आत्मसात् हो पाता है। किसी भी चीज को सरसरी निगाह से देख लेना तथा उसको इस स्तर तक समझ लेना जिससे उसका बोध हो सके, अलग बातें होती हैं अतः विषय आधारित लेखन करते समय अर्थ को बोधगम्यता स्तर तक समझ लेना चाहिए।
(2) जानकारी– छात्राध्यापक के लिए अपने विषय की जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक है। जब शिक्षण विषय के आधार पर समूह बनाकर दिया जाता है और उसमें छात्राध्यापकों को जोड़े के रूप में अपने विषय को पढ़ना तथा समझना पड़ता है तो उन्हें अपने विषय की जानकारी होना चाहिए। जानकारी प्राप्त करने के लिए उन्हें पुस्तक तथा पत्र-पत्रिकाओं से भी ज्ञान अर्जित करना चाहिए। आवश्यक जानकारी के अभाव में शिक्षण बोधगम्यात्मक स्तर तक नहीं हो पाएगा।
(3) विषय ज्ञान– व्याख्यात्मक लेखन से जुड़ने के लिए छात्रों को विषय का ज्ञान होना आवश्यक है। लेखन के लिए कुछ-न-कुछ आधार होना आवश्यक होता है। यह आधार हमें विषय के ज्ञान के रूप में प्राप्त होता है। किसी भी प्रकरण पर हम तब तक लेखन नहीं कर सकते हैं जब तक हमें उस प्रकरण तथा विषय की पूर्ण जानकारी एवं तथ्यों का संकलन न हो। लेखन विषय ज्ञान पर ही अवलम्बित होता है। छात्र को अपनी आयु, रुचि तथा योग्यता के अनुसार विषय का ज्ञान अर्जित करके लेखन कार्य . से जुड़ना चाहिए । प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता, रुचि तथा क्षमता के अनुसार विषय का ज्ञान अर्जित करता है तथा व्याख्यात्मक लेखन में यही अर्जित ज्ञान उसका आधार बनता है। विषय ज्ञान के लिए छात्रों में वाचन की आदत डालनी चाहिए। पढ़ने के लिए अच्छे साहित्य का प्रबंध करना चाहिए । तथ्यात्मक निबंध लिखवाए जा सकते हैं। महत्वपूर्ण तिथियों तथा घटनाओं को छात्र नोट करके रख सकते हैं। इस प्रकार की घटनाएँ तथ्य आधारित व्याख्यात्मक लेखों को लिखने में बहुत सहायता प्रदान करती हैं। लिखते समय सावधान रहना चाहिए तथा कई बार उसका अध्ययन करके लेखन में सारगर्भित लाने का प्रयास करना चाहिए । शब्दों का बहुत संतुलित प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए छात्र का शब्द – भण्डार भी अच्छा होना आवश्यक है।
(4) मुख्य अवधारणाओं एवं विचारों को पहचानना एवं उनको योजनाबद्ध रूप से नोट करना– छात्र को लेखन कार्य में दक्षता बढ़ाने के लिए मूल पाठ की मुख्य अवधारणाओं तथा विचारों को पहचानना चाहिए तथा उन अवधारणाओं और विचारों को योजनाबद्ध रूप से नोट करना चाहिए जिससे लेखन करते समय सारगर्भिता आ सके और वह सभी विचारों को शामिल करते हुए लेखन कार्य दक्षता से कर सकें। मुख्य आवधारणाओं तथा विचारों को लेखन में प्रस्तुत करते समय चार्ट तथा मैप का प्रयोग किया जा सकता है।
(5) मूल पाठ / विषय के सारांश को समझाना– छात्रों को व्याख्यात्मक लेखन कार्य करवाने के लिए सर्वप्रथम मूल पाठ या विषय को उन्हें सारांश के रूप में समझा देना चाहिए। मूल पाठ को सारांश के रूप में समझ लेने के बाद लेखन कार्य करते समय उनसे कोई भी महत्वपूर्ण घटना या चरित्र नहीं छूटेगा। लेखन में असावधानी नहीं बरतनी चाहिए इससे कई वर्तनी संबंधी भूलें हो जाती हैं। त्वरित लेखन, लापरवाही में लेखन, शिरोरेखाओं की शून्यता, अभ्यास की कमी आदि ऐसी कमियाँ हैं जो लेखन में अशुद्धियों को जन्म देती हैं।
सारांश को समझाने के लिए सर्वप्रथम सम्पूर्ण पाठ को पढ़ना चाहिए तत्पश्चात् महत्वपूर्ण घटनाओं को रेखांकित करें फिर उनको एक श्रृंखला में पिरोएँ और फिर यह देखें कि कहीं कोई महत्त्वपूर्ण घटना छूट तो नहीं गई है। शब्दों का प्रयोग संयुक्ताक्षरों के रूप में करें। शब्दों का प्रयोग बहुत ही संतुलित तथा सारगर्भित रूप में करें। इस प्रकार छात्र लेखन करते समय इन्हीं गुणों को अपनाकर लेखन कार्य करेंगे ।
लेखन में अभ्यास का विशेष महत्त्व होता है। अतः छात्रों को कई बार लेखन कार्यों का अभ्यास करना चाहिए। यदि अभ्यास यथोचित रूप से न किया जाए तो भाषा की प्रकृति का स्वरूप आत्मसात नहीं होता है। इसके फलस्वरूप एक ओर शुद्धता लुप्त होती है और दूसरी ओर अशुद्धता की वृद्धि होती है।
(6) लेखन में शैली का उपस्थित होना– लेखों की रचना करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि लेखन में लेखक की एक विशेष शैली होती है और यह शैली उसके सभी लेखों में दिखाई पड़ती है। अतः लेखन में शैली का उपस्थित होना आवश्यक है। जिस प्रकार भाषा किसी भी लेख का मुख्य घटक होती है उसी प्रकार प्रत्येक रचनाकार के लेख में एक विशिष्ट शैली भी होती है। अतः लेख लिखते समय इस शैली को लेख का एक अंग बनाना आवश्यक है। छात्रों में इस शैली का ज्ञान कराने के लिए उन्हें कई लेख पढ़वाने चाहिए। इससे उन्हें ज्ञात हो जाता है कि प्रत्येक लेख में लेखक की अपनी शैली की विशेषता होती है जो अन्य लेखकों के लेख से भिन्न होती है। जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचन्द अपनी शैली के कारण ही विश्व स्तर तक विख्यात हुए हैं । लेखों को लिखने का अभ्यास करते-करते यह शैली स्वतः ही रचनाकार के लेखन का एक भाग बन जाती हैं।
(7) विषय विशिष्ट शब्दावली एवं स्वरूप या संदर्भ फ्रेम– लेख लिखते समय विषय के अनुसार समूह का विभाजन होने से यह लाभ होता है कि विषय विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग किया जा सकता है। प्रत्येक विषय में कुछ विशेष तकनीकी विशिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जाता है, वे विशिष्ट शब्द उसी विषय के विशेषज्ञों को अधिक अच्छी तरह से ज्ञात होते हैं । विषय आधारित शब्दाकोश भी होते हैं जिनमें इस प्रकार के शब्द और उनके अर्थ दिए गए होते हैं। छात्रों का भाषा ज्ञान तथा शब्द – ज्ञान बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। उन्हें जिस विषय में वे कार्य कर रहे हैं उस विषय की शब्दावली का अध्ययन करना चाहिए तथा तकनीकी विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करना चाहिए । इस प्रकार वे अपने विषय में तकनीकी शब्दों का प्रयोग करना सीखेंगे तथा उनमें विषय विशेषज्ञाता के गुण भी विकसित होंगे। वे जो भी लेखन कार्य कर रहे हैं उसके स्वरूप का फ्रेम बना लें और उसी आकार पर रचना कार्य सम्पन्न करें | विषय आधारित शब्दावली को मूल पाठ या अध्याय में जोड़ना चाहिए जिससे छात्र उस शब्दावली का कई बार अभ्यास कर सकें और उसे याद कर सकें ।
(8) प्रत्येक मूल पाठ के संदर्भ में व्याख्यात्मक कौशलों की आवश्यकता– मूल पाठ से छात्र को क्या शिक्षा प्राप्त हो रही है इसके लिए उनमें व्याख्यात्मक कौशल होने चाहिए। अतः विषय वस्तु के सन्दर्भ में व्याख्या स्पष्टीकरण, संश्लेषण, विश्लेषण तथा वाद-विवाद आदि व्याख्यात्मक कौशल विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए छात्रों से उनका स्पष्टीकरण, प्रकरण के अंशों की व्याख्या कराई जानी चाहिए। इस बात का छात्रों से अभ्यास कराना चाहिए कि लिखित रचना से पूर्व छात्र मूल पाठ की एक रूपरेखा बना लें ताकि वे विषय से बाहर न भटकने पाएँ । प्रधान सामाजिक तथा धार्मिक मूल पाठों के विषयों पर साधारण विचारात्मक लेख लिखवाना चाहिए, जैसे- पर्दा- प्रथा, विधवा विवाह, दहेज प्रथा, मूर्ति पूजा आदि । व्याख्यात्मक कौशल के विकास के लिए छात्रों क्षरा लोकेक्तियों तथा मुहावरों के प्रयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए। व्याख्यात्मक कौशल का विकास करते समय इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि छात्र विषय-वस्तु की किसी एक बात पर ध्यान केन्द्रित न करके सम्पूर्ण प्रकरण पर, प्रत्येक पात्र के चरित्र पर विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार करें। व्याख्यात्मक कौशल के अन्तर्गत पात्र प्रयोजन, कथावस्तु, कथनोपकथन, चरित्र चित्रण, भाषा-शैली, भाव सौन्दर्य आदि सभी का वर्णन किया जाता है जिससे सम्पूर्ण लेख की विशेषताएँ सुस्पष्ट हो सकें।
(9) मूल पाठ का पुनर्विचार एवं सारांश लिखना– विषय आधारित लेखन कार्य कराते समय छात्रों से मूल पाठ पर अपने पुनर्विचार आमन्त्रित कराए जा सकते हैं अथवा सम्पर्ण पाठ का सारांश लिखवाया जा सकता है। यह कार्य व्यक्तिगत आधार पर प्रत्येक छात्र को दिया जा सकता है। पुनर्विचार अथवा सारांश लिखवाते समय छात्रों की टिप्पणी और उनकी राय दोनों को लिखवाना चाहिए। इससे उनमें विषय का विश्लेषण करने तथा उसके गुण-दोषों को तौलने की क्षमता का विकास होगा। इससे छात्र लेखन में भी पारंगत होंगे तथा उनकी ज्ञान वृद्धि के साथ कौशलों में भी वृद्धि होगी। वे विषय को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने का प्रयास करेंगे तथा अपनी राय दे ने से पूर्व उस मूल पाठ का मन में विश्लेषण करेंगे। इससे उनमें चिन्तन तथा मनन क्षमता का विकास होगा और वे किसी विषय को कई दृष्टिकोणों से समझने का प्रयास करेंगे ।
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