जैव (उत्पत्ति-संबंधी) अभियांत्रिकी (Genetic Engineering) की परिभाषा दीजिए। जैव रोगों के निदान में इसका कहां तक उपयोग किया जा सकता है ?
जैव (उत्पत्ति-संबंधी) अभियांत्रिकी (Genetic Engineering) की परिभाषा दीजिए। जैव रोगों के निदान में इसका कहां तक उपयोग किया जा सकता है ?
(41वीं BPSC/1997 )
> Key to Answer
प्रश्न के प्रथम भाग के लिए प्रश्न संख्या 6 ( 40वीं BPSC/1995 : जैव-प्रौद्योगिकी से संबंधित प्रश्न ) का उत्तर देखें |
उत्तर – जैव अभियांत्रिकी का चिकित्सा क्षेत्र में योगदान –
> जैव अभियांत्रिकी की सहायता से प्रतिजैविकों की खोज की जा रही है। एक सूक्ष्म जीव दूसरे सूक्ष्म जीव के विकास को रोकता है। इस आधार पर अब तक 700 से भी अधिक प्रतिजैविक खोजे जा चुके हैं। प्रतिजैविकों का उत्पादन मूलत: यूवैक्ट्रीयल एक्टीनोमाइशिटेल तथा फंगस से होता है।
> जैव अभियांत्रिकी की मदद से दुश्मन विषाणु / जीवाणु को मित्र में बदलने की तकनीक का विकास किया जा रहा है। वैक्सीनिया विषाणु का उपयोग मित्र विषाणु के रूप में हो रहा है ।
> विभिन्न प्रकार की बीमारियों का कारण जीन के स्तर पर खराबियों का होना होता है एवं इनका उपचार परंपरागत चिकित्सा पद्धति से कठिन है। अत: जैव अभियांत्रिकी के अंतर्गत जीन उपचार (Gene therapy) किया जाता है जिसमें दोषपूर्ण जीन (Defective gene) की पहचान करके उसके स्थान पर दोषमुक्त जीन की स्थापना की जाती है।
> तकनीक की सहायता से बाह्य जीन को मस्तिष्क ऊतक में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। यह तकनीक पारकिंसन के रोगियों के लिए लाभकारी है। जीन गन द्वारा प्रत्यारोपित जीन कोशिका में डोपमा का निर्माण किया जाता है, जो मस्तिष्क कोशिका में अंतरकोशिकीय संचरण में सहायक होता है। उल्लेखनीय है कि पारकिंसन रोग में मस्तिष्क उतकों में अंतरकोशिकीय संचार के अभाव में मनुष्य का विकास नहीं हो पाता।
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