जैव-तकनीकी (Biotechnology) का क्या अर्थ है? कृषि तथा पर्यावरण के क्षेत्र में इसकी उपादेयता की विवेचना करें।

जैव-तकनीकी (Biotechnology) का क्या अर्थ है? कृषि तथा पर्यावरण के क्षेत्र में इसकी उपादेयता की विवेचना करें।

( 41वीं BPSC/1997 )
उत्तर- जैव-तकनीकी एक बहुआयामी विज्ञान है जिसका विकास जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान व अभियांत्रिकी आदि के समन्वित उपयोग से हुआ है। इस तकनीक का उद्देश्य सूक्ष्म जीवों, पादप कोशिकाओं अथवा अवयवों के नियंत्रित उपयोग से मानव हेतु उपयोगी उत्पादों का उत्पादन करना है। यह तकनीक कृषि, चिकित्सा, रसायन उद्योग, खाद संबंधी उद्योग, प्रदूषण नियंत्रण एवं पर्यावरण संरक्षण आदि में उपयोगी है।
जैव-तकनीकी को मोटे तौर पर सूक्ष्म जीव तकनीकी, पादप जीव तकनीकी व जन्तु – जीव तकनीकी आदि में विभाजित किया जा सकता है। जैव-तकनीकी में मुख्यतः आनुवंशिक अभियांत्रिकी के रूप में विख्यात D.N.A. तकनीक, प्रोटोप्लास्ट फ्यूजन, कोशिका संवर्धन, ऊतक संवर्धन, जननद्रव्य विकास, भ्रूण प्रतिस्थापन तकनीक आदि सम्मिलित हैं।
• कृषि क्षेत्र में जैव-तकनीकी की उपादेयता
कृषि, बागवानी एवं वानिकी के क्षेत्र में जैव-तकनीक के उपयोग में आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा नई पादप-जातियों का विकास, उच्च उत्पादक बीजों का उत्पादन, वर्धित पोषक तत्वों वाली फसलों का विकास, पौधों में कीटों, खरपतवार नाशक दवाओं, सूखा रोगों आदि के प्रतिरोधी क्षमता का विकास, ईंधन व चारा देने वाली फसलों का उत्पादन, जैविक खादों का उत्पादन, अधिक क्षमता युक्त प्रकाश-संश्लेषण विधियों का विकास, पौधों की वृद्धि से संबंधित रेगुलेटरों व हारमोन्स का विकास आदि गतिविधियां शामिल हैं।
ऊतक संवर्धन एवं भ्रूण संवर्धन के जरिए उच्च गुणवत्ता एवं उत्पादन वाले खाद्यान्न फसलों, फलों, सब्जियों आदि का उत्पादन किया जा रहा है। ऊतक संवर्धन तकनीक का उपयोग करके अनार, केला, सब्जियां, इलाइची, गन्ना तथा आर्किड आदि की नई प्रजातियां भारत में उत्पन्न की जा चुकी हैं एवं कुछ अन्य कृषि उत्पादों पर अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। ठात्रू के वैज्ञानिकों ने जैव-प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला में ऊतक संवर्धन (Tissue Culture ) के प्रयोग से पौधों की कम समय में या बेमौसमी पौधे उगाने में सफलता हासिल कर ली है।
कृषि-क्षेत्र में जैव-तकनीकी का उपयोग उच्च गुणवत्ता एवं उत्पादन वाले फसलों के अलावा जैव उर्वरकों के विकास, जैविक कीटनाशकों के विकास एवं जल कृषि के विकास में भी हो रहा है। जैव उर्वरक से तात्पर्य ऐसे सूक्षम जीव/जीवाणु से है जो पौधों के लिए पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं। राइजोबियम, एजोला, एजोस्पिरिलम, माइकोराइजा आदि जैव-उर्वरक के घटक हैं। भारत में राइजोबियम एवं एजोला का प्रयोग जैव उर्वरक के रूप में होता है। रासायनिक या अकार्बनिक कीटनाशकों के विकल्प के तौर पर जैव कीटनाशकों तथा जैव रोग नियंत्रकों के विकास के क्षेत्र में अनुसंधान किया जा रहा है। इसके लिए प्राकृतिक कीटों एवं जैव-प्रौद्योगिकी में विकसित सूक्ष्म जीवों का उपयोग किया जाता है। इन जैव-कीटनाशकों से पर्यावरण को कोई हानि नहीं होती, क्योंकि इनके अवशेष बायोडिग्रेडेबल होते हैं। जैव कृषि का प्रयोग जल कृषि एवं समुद्री जैव-प्रौद्योगिकी के विकास के लिए किया जा रहा है। इसका उद्देश्य मत्स्य उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि, जलीय पौधों और जीवों से दवाइयों और टीकों का निर्माण आदि है। जल कृषि दो रूपों – साफ पानी में जल कृषि (Fresh water Aquaculture) एवं खारे पानी में जल कृषि (Brackish water Aquaculture) में होते हैं।
• पर्यावरण के क्षेत्र में जैव-तकनीकी की उपादेयता
पर्यावरण संरक्षण एवं जैव-विविधता संरक्षण में भारत सहित पूरे विश्व को जैव-तकनीक के प्रयोग से महत्वपूर्ण फायदे हुए हैं। दुर्लभ पौधों की नस्लों के संरक्षण के लिए, वनों को हरा-भरा करने के लिए, प्रदूषण फैलाने वाले खानों के जैविक उपचार के लिए, मरुस्थलों में वनों को विकसित करने के लिए जैव-प्रौद्योगिकी लाभदायक है। इस बात के प्रयास हो रहे हैं कि उद्योगों को जैव-तकनीकी समाधान उपलब्ध कराये जाएं जिससे प्रदूषण पर नियंत्रण एवं औद्योगिक कचरे से उपयोगी उत्पाद बनाए जा सकें। जैव-प्रौद्योगिकी के प्रयोग से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए छज्च्छ एवं अन्य संगठन ने मिलकर एक संयुक्त कार्यक्रम की योजना बनाई है।
अतः जैव-प्रौद्योगिकी कृषि तथा पर्यावरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, साथ ही कई अन्य क्षेत्र भी इस तकनीक से लाभान्वित हो रहे हैं एवं भविष्य में पूरी दुनिया को सबसे ज्यादा लाभान्वित एवं प्रभावित करने वाले विषय के रूप में जैव-तकनीकी उभर रहा है ।
• जैव-तकनीकी (Biotechnology)
> एक बहुआयामी विज्ञान है जिसका विकास विज्ञान की अन्य शाखाओं के समन्वित उपयोग से हुआ है, इसका उद्देश्य सूक्ष्मजीवों, पादप कोशिकाओं आदि के उपयोग मानव हेतु उत्पाद बनाना है।
• कृषि क्षेत्र में जैव-तकनीकी का उपयोग / उपादेयता – 
> आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा ।
> उच्च उत्पादक बीजों का उत्पादन।
> पौधों की प्रतिरोधी क्षमता का विकास |
> जैव-उर्वरकों का विकास।
> जैविक कीटनाशकों का विकास ।
> नई पादप-जातियों का विकास ।
> वर्धित पोषक तत्वों वाली फसलों का विकास।
• पर्यावरण के क्षेत्र में जैव-तकनीकी का उपयोग / उपादेयता – 
 > दुर्लभ पौधों की नस्लों के संरक्षण में ।
> वनों को हरा-भरा करने में ।
> प्रदूषण फैलाने वाले खानों के जैविक उपचार करने में।
> मरुस्थलों को हरा-भरा बनाने आदि के लिए।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *