झारखण्ड का मध्यकालीन इतिहास

झारखण्ड का मध्यकालीन इतिहास

> मध्यकाल के प्रारम्भ में छोटानागपुर में अनेक हिन्दू व अर्द्धहिन्दू शासकों का राज्य था। इनमें नागवंशी, पलामू का रक्सेल, सिंहभूम का सिंहवंश व मानभूम का मानवंश प्रमुख थ । थे।
> छोटानागपुर का पठारी क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के सीधे अधिकार से मुक्त था।
> दिल्ली के मुस्लिम शासकों को यह क्षेत्र झारखण्ड के नाम से ज्ञात था।

> सल्तनत काल में झारखण्ड

> 1206 ई. में दिल्ली सल्तनत की स्थापना और विस्तार के पश्चात् झारखण्ड का क्षेत्र सल्तनत काल से लगभग अछूता रहा।
> बख्तियार खिलजी ने 1206 ई. में नदिया (बंगाल) पर झारखण्ड से होकर आक्रमण किया था। 13वीं शताब्दी के एक ताम्रपत्र से पता चलता है कि इस काल में ही झारखण्ड एक स्पष्ट और पृथक् भू-खण्ड के रूप में संगठित हुआ ।
> इल्तुतमिश और बलबन ने झारखण्ड में हस्तक्षेप का प्रयास किया, जिसको छोटानागपुर के नागवंशी शासक हरिकर्ण ने विफल कर दिया था।
> अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति छज्जू मलिक ने छोटानागपुर पर 1310 ई. में आक्रमण करके कर वसूल किया था ।
> 1340 ई. में तुगलक वंश का शासक मोहम्मद बिन तुगलक था। इस समय मुहम्मद तुगलक का सेनापति मलिकबयां हजारीबाग क्षेत्र में चाई- चम्पा तक आ पहुँचा था। 1340 ई. में इब्राहिम अली के नेतृत्व में दिल्ली की सेना ने आक्रमण कर बीघा के किले पर अधिकार किया। ।
> फिरोजशाह और बंगाल के शासक तुगलक इलियास शाह ने हजारीबाग के सतगाँवा क्षेत्र के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया तथा सतगाँवा को राजधानी बनाया।
> फिरोजशाह तुगलक के समय छोटानागपुर में नागवंश का शासक शिवदास कर्ण था। शिवदास कर्ण ने 1401 ई. में घाघरा (गुमला) में हापामुनि मंदिर का निर्माण कराया ।
> सल्तनत काल में झारखण्ड पर उड़ीसा के गजपति वंश ने आक्रमण किया तथा कपिलेन्द्र गजपति ने नागवंशी राज्य के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया ।
> खानदेश के शासक आदिलशाह द्वितीय ने एक सैन्य दल को झारखण्ड भेजा था, जिस कारण उसे ‘झारखण्डी सुल्तान’ कहा गया ।
> उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि सल्तनत काल में बाह्य आक्रमणों को छोड़कर झारखण्ड प्रायः स्वतन्त्र रहा।

> मुगलकाल में झारखण्ड

> मुगलकाल के समय झारखण्ड क्षेत्र में शासन करने वाले प्रमुख राजवंश पलामू में रक्सेल, छोटानागपुर में नागवंश, सिंहभूम क्षेत्र में सिंहवंश इत्यादि थे।
> मुगलकाल में झारखण्ड को खोखरा के नाम से जाना जाता था।

> बाबर और हुमायूँ के शासनकाल में झारखण्ड

> आरम्भिक मुगल शासक बाबर और हुमायूँ के शासनकाल में झारखण्ड मुगल शासन के बाहर रहा।
> इस समय झारखण्ड में सबसे बड़ा परिवर्तन यह हुआ कि चेरो वंश ने रक्सेलों को पराजित कर पलामू में नए राजवंश की स्थापना की।

> शेरशाह के शासनकाल में झारखण्ड

> शेरखाँ (शेरशाह) ने मुगल बादशाह हुमायूँ को युद्ध में परास्त कर तेलियागढ़ किले पर आधिपत्य करते हुए सम्पूर्ण राजमहल क्षेत्र पर अधिकार स्थापित कर लिया।
> शेरशाह ने चेरो वंश के शासक महारथ चेरो का दमन करने हेतु अपने सेनापति खवास खाँ को भेजा तथा 1538 ई. इसने महारथ चेरो को पराजित कर दिया।
> इस युद्ध में खवास खाँ का सहयोगी दरिया खाँ था।
> खवास खाँ ने एक हाथी, जिसका नाम ‘श्याम सुंदर’ था, शेरशाह को सौंपा।

> अकबर के शासनकाल में झारखण्ड

> अकबरनामा व माथिर-उल-उमरा के अनुसार मुगल आक्रमण (1558 ई.) के समय नाग वंश का शासक मधुसिंह था, जिसने मुगल अधीनता स्वीकार नहीं की थी। इस कारण अकबर के सेनापति शाहबाज खाँ के नेतृत्व में 1585 ई. में नाग वंश पर आक्रमण कर अकबर की सेना ने उन्हें पराजित कर दिया।
> अकबर ने नाग वंश, चेरो वंश एवं सिंह वंश तीनों को अपने अधीन किया।
> झारखण्ड में मुसलमानों के प्रवेश का मार्ग शेर खाँ ने प्रशस्त किया। उसने मुगलों के विरुद्ध संघर्ष में झारखण्ड क्षेत्र का कई बार उपयोग किया।
> अकबर ने अपने शासनकाल के दौरान झारखण्ड में सक्रिय, मुगल विरोधी अफगानों का दमन किया।
> जुनैद कर्रानी और अब्दुर्रहीम-खान-ए-खाना के नेतृत्व वाली सेनाओं के बीच 23 मार्च, 1576 को टकरोई का युद्ध हुआ, जिसमें जुनैद की हार हुई ।
> अकबर के शासनकाल में ही सिंहभूम क्षेत्र में मुगलों का प्रवेश हुआ था। उस समय पोराहाट में सिंहवंश के राजा लक्ष्मी नारायण सिंह, नरपत सिंह प्रथम, कामेश्वर सिंह तथा रणजीत सिंह थे।
> विद्वानों के अनुसार अकबर का इस क्षेत्र पर आकर्षित होने का प्रमुख कारण शंख नदी में हीरे का पाया जाना था।

> अकबर द्वारा मानसिंह को झारखण्ड भेजना

> पलामू का चेरो वंश पुनः अकबर के समय में विकसित हो चुका था तथा यह इस समय अकबर के नियन्त्रण से बाहर था। इसलिए अकबर ने चेरो राज्य पर अपना नियन्त्रण स्थापित करने हेतु मानसिंह के नेतृत्व में एक सेना भेजी। इस समय पलामू का चेरो शासक रणपत चेरो था।
> रोहतासगढ़ के किले का निर्माण मानसिंह ने पलामू पर आक्रमण करने के लिए किया था।
> 1589 ई. तक मानसिंह के नेतृत्व में चेरो को परास्त कर मुगल सत्ता के अधीन कर लिया गया।
> आइने अकबरी के अनुसार, 1592 ई. में उड़ीसा अभियान के दौरान मानसिंह के सिंहभूम से गुजरते समय पोराहाट के तत्कालीन सिंहवंशी राजा रणजीत सिंह ने मुगलों की अधीनता स्वीकार की तथा वह स्वयं मानसिंह के अंगरक्षक दल में शामिल हो गया ।
> 1605 ई. में अकबर की मृत्यु के पश्चात् चेरो राज्य पुनः स्वतन्त्र हो गया था।

> जहाँगीर के शासनकाल में झारखण्ड

> जहाँगीर के शासनकाल में पलामू में दो चेरो राजाओं (अनन्त राय व सहबल राय) के शासन का उल्लेख मिलता है, लेकिन इनका उल्लेख चेरो वंशावली के अतिरिक्त जहाँगीरकालीन किसी फारसी स्रोत में नहीं मिलता।
> जहाँगीर के समय में मानभूम के विष्णुपुर पर मुगलों का अधिकार हो गया था।
> चेर शासक अनन्त राय के समय जहाँगीर ने अफजल खाँ तथा इबादत खाँ को पलामू में युद्ध के लिए भेजा, परन्तु उसे सफलता नहीं मिली।
> 1612 ई. में अनन्त राय की मृत्यु हो जाने पर उसका उत्तराधिकारी सहबल राय बना, जो मुगलों का विरोधी था।
> जहाँगीर ने 1612 ई. में जफर खाँ तथा 1615 ई. में इब्राहिम शाह को इस क्षेत्र का सूबेदार बनाया।
> जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-एजहाँगीरी’ में झारखण्ड के स्थानीय लोगों द्वारा शंख नदी से हीरे प्राप्त करने के तरीके का वर्णन किया है।
> टालमी ने ‘एडमास’ नामक नदी का उल्लेख किया है, जिसका ग्रीक भाषा में अर्थ हीरा होता है।
> जहाँगीर के शासनकाल में कोकराह के शासक दुर्जनशाल ने मुगल दरबार को कर देना बन्द कर दिया था, अतः 1615-1616 ई. में इब्राहिम खाँ ने दुर्जनसाल को आक्रमण कर ग्वालियर के किले में बन्दी बना लिया।
> दुर्जनसाल हीरे का बहुत अच्छा पारखी था और ‘हीरों का राजा’ के रूप में प्रसिद्ध था। मुगल दरबार में हीरे की शुद्धता को लेकर विवाद होते रहते थे। इसलिए विवाद को हल करने के लिए दुर्जनसाल को बुलाया गया तथा दुर्जनसाल ने हीरे की उचित पहचान की, जिसके फलस्वरूप जहाँगीर ने खुश होकर दुर्जनसाल को शाह की उपाधि दी, साथ ही उसका साम्राज्य उसे लौटा दिया। दुर्जन साल को छह हजार वार्षिक देने पर उसके राज्य का पट्टा दिया गया।
> जहाँगीर की कैद से मुक्त होकर नागवंशीय दुर्जनसाल ने कोकराह क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित की तथा दोईसा को अपनी राजधानी बनाया ।
> दुर्जनसाल ने दोईसा में सम्भवतः झरोखा दर्शन के लिए नवरतनगढ़ नामक भव्य इमारत का निर्माण कराया था ।

> शाहजहाँ के शासनकाल में झारखण्ड

> शाहजहाँ के शासनकाल में के चेरो पलामू और मुगलों का सम्बन्ध प्रत्यक्ष हो गया था। इसके समय में चेर शासक प्रताप राय एक शक्तिशाली शासक था । पलामू के प्राचीन किले का निर्माण प्रताप राय ने करवाया था।
> इतिकाद खाँ की सिफारिश पर शाहजहाँ ने प्रताप राय को एक हजारी मनसबदार बनाया। प्रताप राय के बाद भूपाल राय, मेदिनी राय पलामू के शासक बने ।
> मेदिनी राय एक न्यासी राजा के रूप में प्रसिद्ध था। इन्होंने अपने राज्य को समृद्ध और सशक्त बनाया था।
> मेदिनी राय का काल ‘ चेरो का स्वर्ण युग’ कहलाता है। वह अपनी जनता (प्रजा) से कर नहीं वसूलता था ।
> शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान सिंहभूम क्षेत्र ( पोरहाट) के सिंहवंश शासकों ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर वार्षिक कर देना स्वीकार कर लिया ।
> शाहजहाँ के समय (1639 ई.) में शुजा बंगाल का सूबेदार था तथा उसकी राजधानी राजमहल में थी। इसी काल में राजमहल में एक शाही टकसाल स्थापित किया गया।

> औरंगजेब के शासनकाल में झारखण्ड

> आलमगीरनामा के अनुसार, पलामू का फौजदार मनकली खाँ था, जो 1666 ई. तक पलामू का फौजदार बना रहा।
> 22 अगस्त, 1666 में इसके पलामू से वापस जाने के बाद मेदिनी राय (चेरो) ने पुनः पलामू पर अधिकार कर लिया ।
> 1658 ई. में औरंगजेब मुगल शासक बना और उसने पलामू पर अधिकार करने के लिए बिहार के सूबेदार दाऊद खाँ को झारखण्ड भेजा। 1660 ई. में दाऊद खाँ ने पलामू के कोठी के किले पर अधिकार कर लिया और कुण्डा किले को ध्वस्त कर दिया। के
> औरंगजेब के शासनकाल में नागवंशी राजा रघुनाथ शाह था। रघुनाथ शाह का गुरु हरिनाथ था।
> रघुनाथ शाह के शासनकाल में उसके क्षेत्र पर केवल दो आक्रमण हुए; पहला मुगल आक्रमण, जिसका वर्णन फ्रांसीसी यात्री ट्रैवर्नियर ने किया है तथा दूसरा आक्रमण के चेरो राजा मेदिनी राय द्वारा, जिसमें पलामू राजधानी दोईसा (दोईसागढ़) को लूटा गया। रघुनाथ शाह ने अपनी राजधानी दोईसा को अनेक भवनों से सजाया तथा अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया। इन मन्दिरों में
जगन्नाथ मन्दिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इसका निर्माण 1682 ई. में हुआ था। बोड़या नामक स्थान पर उसने मदन मोहन मन्दिर बनवाया।
> औरंगजेब के शासनकाल (1667 ई.) में दलेल सिंह रामगढ़ का शासक बना । उसने बादम के स्थान पर रामगढ़ में राजधानी स्थापित की ।
> औरंगजेब की मृत्यु के बाद झारखण्ड स्वतन्त्र हो गया। औरंगजेब के समय धनबाद तथा पुरुलिया मुगल शासन से बाहर थे ।

> उत्तर मुगलकाल में झारखण्ड

> 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् उत्तर मुगलकालीन शासक निर्बल व शक्तिहीन हो गए। कोकराह क्षेत्र में नागवंशी राजा रामशाह शासन कर रहा था ।
> इसके बाद इसका उत्तराधिकारी यदुनाथ शाह बना, जिसने 1715 ई. से 1724 ई. तक शासन किया। इसने मुगलों को कर देना बन्द कर दिया, जिसके उपरान्त मुगल शासक फर्रुखसियर ने बिहार के सूबेदार सरबुलन्द खाँ को युद्ध के लिए भेजा। इस युद्ध में परास्त होने के बाद यदुशाह मुगलों को एक लाख रुपए वार्षिक कर देने को प्रतिबद्ध हो गया था।
> उत्तर मुगलकाल में मानभूम क्षेत्र के भाग में में पंचेतराज्य, मिदनापुर तथा रामगढ़ राज्य थे। ।
> उत्तर मुगलकाल में रामगढ़ का राजा दलेल सिंह था। उसने चाई- चम्पा परगना की राजधानी बीघा पर अधिकार कर लिया था तथा वहाँ के शासक मगर खाँ की हत्या कर दी थी। चाई- चम्पा राज्य के साथ-साथ उसने आठ अन्य तालुकाओं पर भी अधिकार कर लिया। 1718 से 1724 ई. तक चाई- चम्पा राज्य दलेल सिंह के नियन्त्रण में था।
> नागवंशी शासक उदय शाह के समय में झारखण्ड पर प्रथम मराठा आक्रमण हुआ था।
> 1740 ई. तक अंग्रेजों और मराठों ने छोटानागपुर, बंगाल, बिहार, उड़ीसा एवं झारखण्ड के क्षेत्रों पर अपना अधिपत्य बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया था ।
> 1767 ई. में सिंहभूम में शासक जगन्नाथ सिंह चतुर्थ ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर ली तथा मराठों के आतंक से भयभीत नागवंशी शासक दीपनाथ शाह ने अंग्रेजों से सहायता माँगी, जिससे इन राज्यों में अंग्रेजी शासकों का प्रवेश द्वार खुल गया।
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