दो राष्ट्रों के बीच लोगों के मुक्त आवागमन का जहां तक सवाल है, भारत ने नेपाल और भूटान के साथ मुक्त द्वार नीति क्यों अपनाया है ? समझाइए ।
दो राष्ट्रों के बीच लोगों के मुक्त आवागमन का जहां तक सवाल है, भारत ने नेपाल और भूटान के साथ मुक्त द्वार नीति क्यों अपनाया है ? समझाइए ।
उत्तर – नेपाल और भूटान दोनों ही भारत के पड़ोसी देश हैं तथा दोनों देश भारत और चीन के बीच बफर राज्य का काम करते हैं। नेपाल और भूटान के साथ भारत के प्राचीन काल से ही सामाजिक सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंध रहे हैं साथ ही यह दोनों देश भारत के लिए भू-सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अतः इनके साथ गहन रिश्तों की आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है। इसी संदर्भ में भारत ने नेपाल और भूटान के साथ मुक्त द्वार नीति को अपनाते हुए इन दोनों राष्ट्रों के लोगों को वीजा मुक्त आवागमन की छूट दी है।
> नेपाल के साथ मुक्त द्वार नीति
नेपाल, भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है और सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों के कारण वह हमारी विदेश नीति में भी विशेष महत्त्व रखता है। वर्ष 1950 की भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि दोनों देशों के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार है।
नेपाल, भारत के पांच राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम एवं बिहार के साथ सीमा साझा करता है और इसीलिए वह भारत के लिए सांस्कृतिक तथा आर्थिक विनिमय का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है । नेपाल, भारत के साथ खुली सीमा साझा करता है और यदि दोनों देशों के मध्य संबंध अच्छे नहीं होंगे तो भारत के लिए अवैध प्रवासी, जाली मुद्रा, ड्रग और मानव तस्करी जैसे मुद्दे चिंता का विषय बन जाएंगे। नेपाल का दक्षिण क्षेत्र भारत की उत्तरी सीमा से सटा है। सदियों से भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता माना जाता है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ नेपाल के मधेसी समुदाय का सांस्कृतिक एवं नृजातीय संबंध रहा है ।
दोनों देशों की सीमाओं पर यातायात को लेकर कभी कोई विशेष प्रतिबंध नहीं रहा। सामाजिक और आर्थिक विनिमय बिना किसी गतिरोध के चलता रहता है। भारत-नेपाल की सीमा खुली हुई है और आवागमन के लिये किसी पासपोर्ट या वीजा की जरूरत नहीं पड़ती है। यह उदाहरण कई मायनों में भारत-नेपाल की नजदीकी को दर्शाता है। नेपाल एक लैंडलॉक देश है जो तीन तरफ से भारत से घिरा हुआ है और एक तरफ तिब्बत से भारत-नेपाल ने अपने नागरिकों के मध्य संपर्क बढ़ाने और आर्थिक वृद्धि एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न कनेक्टिविटी कार्यक्रम शुरू किये हैं। हाल ही में भारत के रक्सौल को काठमांडू से जोड़ने के लिये इलेक्ट्रिक रेल ट्रैक बिछाने हेतु दोनों सरकारों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
> भूटान के साथ मुक्त द्वार की नीति
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मई 2019 में नई सरकार का जब गठन हुआ तो विदेश मंत्री पद पर पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर की नियुक्ति ने एकबारगी सभी को हैरानी में डाल दिया। इस पद पर नियुक्त होने के बाद नए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत की पड़ोसी पहले नीति के तहत अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये भूटान को चुना। भूटान के साथ सदियों से भारत के मधुर संबंध रहे हैं और यह भारत का करीबी सहयोगी रहा है तथा पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में काफी प्रगति हुई है। विदेश मंत्री के इस दौरे से यह भी स्पष्ट हुआ कि निकट मित्र एवं पड़ोसी भूटान के साथ संबंधों को भारत कितना महत्त्व देता है। गौरतलब है कि वर्ष 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने पहले विदेश दौरे के लिये भूटान को ही चुना था। वर्ष 2019 में जब नरेंद्र मोदी ने दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो बिम्सटेक देशों के नेताओं को आमंत्रित किया था, जिसमें भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग भी शामिल थे।
भूटान भारत का निकटतम पड़ोसी देश है और दोनों देशों के बीच खुली सीमा है। द्विपक्षीय भारतीय-भूटान समूह सीमा प्रबंधन और सुरक्षा की स्थापना दोनों देशों के बीच सीमा की सुरक्षा करने के लिये की गई है। वर्ष 1971 के बाद से भूटान संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है। संयुक्त राष्ट्र में भूटान जैसे छोटे हिमालयी देश के प्रवेश का समर्थन भी भारत ने ही किया था, जिसके बाद से इस देश को संयुक्त राष्ट्र से विशेष सहायता मिलती है। भारत के साथ भूटान मजबूत आर्थिक, रणनीतिक और सैन्य संबंध रखता है। भूटान सार्क का संस्थापक सदस्य है और बिम्सटेक, विश्व बैंक तथा IMF का सदस्य भी बन चुका है। भौगोलिक स्थिति के कारण भूटान दुनिया के बाकी हिस्सों से कटा हुआ था, लेकिन अब भूटान ने दुनिया में अपनी जगह बनाने के प्रयास शुरू कर दिये हैं। हालिया समय में भूटान ने एक खुली – द्वार नीति विकसित की है और दुनिया के कई देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने के प्रयास किये हैं।
भारत की उत्तरी प्रतिरक्षा व्यवस्था में भी भूटान को Achilles Heel की संज्ञा दी जाती है । यह भारत की सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। चुम्बी घाटी से चीन की सीमाएं लगभग 80 मील की दूरी पर हैं, जबकि भूटान चीन से अपना उगभग 100 किमी. सरवा रख और S सीमाओं को सुरक्षित रखना जरूरी है क्योंकि इससे न केवल भूटान को बल्कि उत्तरी बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश को भी खतरा हो सकता है।
> भारत और भूटान से है चीन का सीमा विवाद
चीन की सीमाएं 14 देशों के साथ लगती हैं और इनमें भारत और भूटान ही ऐसे हैं जिनके साथ चीन का सीमा विवाद अब भी जारी है। वर्ष 2017 में हुआ डोकलाम विवाद इसी सीमा विवाद का परिणाम था । भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं, जबकि भारत-भूटान के बीच काफी गहरे संबंध हैं। भूटान को चीन और भारत के बीच का बफर जोन भी कह सकते है। भारत के लिये भूटान का महत्त्व उसकी भौगोलिक स्थिति की वजह से ही अधिक है। भूटान एक भू-आबद्ध देश है जो एशिया महाद्वीप के दो बड़े देशों भारत और चीन के बीच एक बफर जोन जैसा है। इसका महत्त्व वर्ष 1951 में चीन के तिब्बत पर कब्जा करने के बाद और बढ़ गया। भूटान के पश्चिम में भारत का सिक्किम, पूर्व में अरुणाचल प्रदेश और दक्षिण-पूर्व में असम है। पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग जिला इसे नेपाल से अलग करता है। दोनों देशों की सीमाएं भले ही एक-दूसरे को अलग करती हैं, लेकिन भारत और भूटान के नागरिकों को एक-दूसरे की सीमा में आने-जाने के लिये किसी वीजा की जरूरत नहीं होती ।
स्पष्ट है कि नेपाल और भूटान के साथ विशेष संबंध रखते हुए भारत में लोगों के मुक्त आवागमन के लिए इनके साथ मुक्त द्वार नीति अपनाई है। इस समय केवल नेपाल और भूटान को भारत द्वारा रणनीतिक सुरक्षा एवं शांति सुनिश्चित की जाती है वही यह दोनों देश बफर राज्य के रूप में भारत और चीन के बीच तनाव को कम करके एशिया में शांति का माहौल बनाए रखने में भूमिका निभाते हैं।
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