भूराजकीय गतिशीलता में सांकेतिक परिवर्तन के रूप में ओ.आई.सी. के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत को अतिथि – विशेष के रूप में यू.ए.ई. के निमन्त्रण का विवेचन कीजिए |

भूराजकीय गतिशीलता में सांकेतिक परिवर्तन के रूप में ओ.आई.सी. के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत को अतिथि – विशेष के रूप में यू.ए.ई. के निमन्त्रण का विवेचन कीजिए |

उत्तर- मार्च 2019 में संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी आबूधाबी में ओआईसी के विदेश मंत्रियों का 46वां सम्मेलन आयोजित हुआ। भारत की ओर से भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस सम्मेलन में भाग लिया। उल्लेखनीय है कि ओआईसी के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भारत को संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के विदेश मंत्री अब्दुल्लाह बिन जायेद अल नाह्यान ने भारत को न्योता दिया। भारत की वैश्विक राजनीति में अहमियत और सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत को देखते हुए उसे आमंत्रित किया गया। ओआईसी के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भारत को अतिथि विशेष के रूप में यूएई के निमंत्रण को राजनीतिक गतिशीलता में सांकेतिक परिवर्तन के रूप में देखा जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि यह पहला मौका है जब ओआईसी ने भारत को गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया है। ओआईसी के संस्थापक सदस्य देश पाकिस्तान ने हमेशा की तरह भारत को आमंत्रित करने का विरोध किया लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका। 57 सदस्यों वाले ओआइसी के मंच पर भारत पिछले करीब 50 वर्षो के इतिहास में पहली बार शामिल हुआ है इसे भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और पाकिस्तान को बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है ।
ओआईसी के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भारत के अतिथि विशेष के रूप में भाग लेने के अनेक निहितार्थ हैं – भारतीय विदेश मंत्री का आबू धाबी दौरा सिर्फ इसलिए खास नहीं है कि ओआईसी की इस बैठक में भारत को गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में बुलाया गया, बल्कि इसलिए भी कि मुस्लिम दुनिया के करीब आने का हमारे लिए यह एक सुनहरा मौका है। वर्षों का टूटा नाता एक बार फिर जोड़ता दिखाई दे रहा है। ओआईसी कई मोर्चों पर भारत के लिए फायदेमंद है कश्मीर के मसले पर अब भारत मुस्लिम राष्ट्रों तक अपनी बात आसानी से पहुंचा सकता है।
ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन में सभी 57 सदस्य मुग्लिम देश हैं जिनका एक ‘कश्मीर कांटेक्ट ग्रुप’ भी है और इस ग्रुप पर पूरी तरह से पाकिस्तान का दबदबा है। पाकिस्तान इसका इस्तेमाल कश्मीर पर अपनी सियासत चमकाने में करता रहा है। यही कारण है कि पिछले दो दशकों से कश्मीर मसले पर यह ग्रुप जो भी बयान जारी करता था वह एक तरफा होता था। भारत का पक्ष उसमें रखा ही नहीं जाता था। किंतु अब यह तस्वीर बदल सकती है। अतः पाकिस्तान के दबदबे को कमजोर करने हेतु भारत के लिए ओआइसी में विशेष अतिथि के रुप में शामिल होना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
ओआईसी में भारत को निमंत्रण के संदर्भ को इस प्रकार भी देखा जा सकता है कि भारत में लगभग 20 करोड़ मुसलमान हैं और इनके बहुलवादी लोकाचार में उनके योगदान को एक स्वागत योग्य मान्यता है । इसलिए इसे भारत की एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। इसे पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने के भारत के प्रयासों के एक हिस्से के रूप में भी देखा जा सकता है । इसके अतिरिक्त यह संपूर्ण रूप से सऊदी अरब संयुक्त अरब अमीरात और खाड़ी देशों के साथ भारत के बेहतर संबंधों का संकेत भी देता है।
बैठक में शामिल होने से भारत को रोकने में पाकिस्तान की अक्षमता और मुस्लिम दुनिया का भारत के पक्ष में खड़ा होना बड़े बदलाव को रेखांकित करता है। यह मध्य पूर्व में पाकिस्तान के प्रभाव में गिरावट की ओर भी इशारा करता है। पाकिस्तान अब इस्लामी दुनिया में भारत की संभावनाओं को भी वीटो करने की स्थिति में नहीं है। खाड़ी के देशों के साथ
भारत के रिश्ते काफी सुधरे हैं और भारत सऊदी अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के काफी करीब आया है। जबकि इन देशों को पाकिस्तान का करीबी माना जाता रहा है। वर्तमान में संपूर्ण वैश्विक परिदृश्य बदल रहा है। ओ.आई.सी के सभी सदस्य देशों के साथ भारत का गहरा संबंध है। सऊदी अरब के साथ ऊर्जा सुरक्षा तथा यूएई के साथ इकोनामिक ऑफेंडर प्रत्यर्पण समझौते हुए हैं। पश्चिम एशिया में लगभग 8 मिलियन भारतीय रहते हैं। सिर्फ सऊदी अरब से हर साल 11 बिलियन डॉलर की धनराशि भारत आती है। इससे स्पष्ट होता है कि इन देशों से भारत के कितने गहरे संबंध हैं। इंडोनेशिया, बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध में बांग्लादेश ने प्रस्ताव दिया है कि भारत को ओआईसी में पर्यवेक्षक का दर्जा दिया जाए। रूस में मुस्लिम आबादी 16 से 20 मिलियन है जिसे पर्यवेक्षक का दर्जा मिला हुआ है लेकिन भारत में 20 करोड़ मुस्लिम आबादी है तो उसे पर्यवेक्षक का दर्जा दिया जाना चाहिए। पिछले 50 सालों में पाकिस्तानी रणनीति के चलते भारत को इस्लामी देशों से अलग करने की कोशिश की गई लेकिन यह भारत की विदेश नीति की सफलता है कि सभी इस्लामिक देशों जैसे टर्की, सऊदी अरब, मिस्र, मोरक्को के साथ हमारे संबंध मजबूत हुए हैं। हमारे कामगार, ओमान, बहरीन, कतर तथा कुवैत समेत सभी खाड़ी देशों के विकास में योगदान दे रहे हैं। मुस्लिम देशों में जरूरत पड़ने पर भारत ने यूएन पीसकीपिंग फोर्स के तहत हजारों की तादाद में सोल्जर्स भेजे हैं। चाहे वे गोलन की पहाड़ियां, लेबनान और इराक में उत्पन्न तनाव इन सभी में भारत ने अपनी फोर्स के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत ने स्मॉल एंड मीडियम इंडस्ट्रीज के क्षेत्र में भी इस्लामिक देशों के साथ द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाया है। इन देशों से हजारों की तादाद में छात्र अध्ययन हेतु भारत आते रहे हैं।
इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय हैं कि ओआईसी का जम्मू कश्मीर के संबंध में भारत विरोधी रुख बरकरार है। ओआईसी की इस बैठक में भी जम्मू-कश्मीर पर एक प्रस्ताव पारित किया गया। प्रस्ताव में भारत पर कश्मीरियों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग करने के आरोप लगाए गए हैं। ओआईसी के प्रस्ताव में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर पर भारत का अवैध कब्जा है। प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि ओआईसी देशों को कश्मीरियों की मदद करनी चाहिए। प्रस्ताव में कश्मीर में कथित आधिकार हनन के मुद्दे पर गहरी चिंता जताई गई और कहा गया कि कश्मीर विवाद पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को लागू करना अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दायित्व है |
ओआईसी भारत के लिए अनेक संदर्भ में महत्वपूर्ण संगठन है। अगर भारत को ओआईसी में पर्यवेक्षक या फिर सदस्य देश बनने का मौका मिलता है तो भारत को इसे स्वीकार करना चाहिए क्योंकि भारत इसके जरिए पाकिस्तान को प्रति संतुलित कर सकता है । इसके अलावा भारत चीन पर भी इसके जरिए दबाव बना सकता है । यह दबाव ओआईसी देशों के जरिए पहले पाकिस्तान और फिर चीन पर बनाया जा सकता है। हालांकि अभी भी भारत को इस मामले में थोड़ी सतर्कता बरतने और इंतजार करने की जरूरत है कि आगे क्या फैसला लिया जा रहा है क्योंकि जानकारों का कहना है कि ओआईसी का राजनीतिकरण हो चुका है। जानकारों के मुताबिक ओआईसी अपने उद्देश्यों का पालन नहीं कर रहा है। इसका इस्तेमाल अक्सर ही देशों ने अपने राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किया है। इसके नकारात्मक पक्ष लीबिया और इराक जैसे मुस्लिम देशों में इंटरनेशनल कम्युनिटी का हस्तक्षेप करना है। इस्लामिक देशों के मामले में अंतरराष्ट्रीय समुदाय का हस्तक्षेप संगठन में सुधार किए जाने को दर्शाता है।
स्पष्ट है कि भारत के ओआईसी के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेना भू-राजकीय या भू-रणनीतिक गतिशीलता में सांकेतिक परिवर्तन को दर्शाता है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में कमजोर पड़ने के साथ ही विश्व स्तर पर बदनाम हो रहे पाकिस्तान को ओआईसी के मौजूदा नेतृत्व से बदलते जमाने के साथ चलना सीखना चाहिए। पाकिस्तान भारत के प्रति अपने दुराग्रह को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है इसलिए उससे सतर्क रहने की जरूरत है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान का अभी भी सऊदी अरब के साथ गहरा संबंध है। पाकिस्तान के सैनिक वहां प्रशिक्षण देते हैं तथा कई मोर्चे पर तैनात भी हैं। यूएई के साथ भी पाकिस्तान के अच्छे संबंध हैं। मुस्लिम देशों को यह समझ है कि पाकिस्तान के साथ उन्हे संबंध बनाए रखना होगा लेकिन वे भारत को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि इस्लामिक देशों द्वारा यह संतुलन बनाने का एक प्रयास है। भारत को इन देशों के साथ संबंध और बेहतर बनाने की जरूरत है। भारत को अपने अगले कदम के रूप में ओआईसी में पर्यवेक्षक की स्थिति प्राप्त करने के लिए अभियान शुरू करने पर सहमत होना चाहिए।
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