बिहार में विभिन्न कृषि उपजों की प्रति हेक्टेयर उत्पादन स्थिर क्यों है? इनके आधारभूत कारणें एवं उन्हें दूर करने के महत्वपूर्ण उपायों को समझाइये |

बिहार में विभिन्न कृषि उपजों की प्रति हेक्टेयर उत्पादन स्थिर क्यों है? इनके आधारभूत कारणें एवं उन्हें दूर करने के महत्वपूर्ण उपायों को समझाइये |

अथवा

कृषि उपजों की उत्पादन – स्थिरता का मूल कारण कृषि में विकास का न होना है। विकास न होने के प्राकृतिक एवं गैर- प्राकृतिक कारणों को समझाएं एवं इन्हें दूर करने के प्रभावकारी उपायों की चर्चा करें.
उत्तर- बिहार प्रारंभ से ही एक कृषि प्रधान राज्य रहा है। परंतु राज्य के विभाजन के बाद औद्योगिक नगर एवं खनिज संपदा के झारखण्ड में चले जाने के कारण बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर हो गयी। एक तरफ जहां राज्य की अर्थव्यवस्था एवं अधिकतर जनसंख्या कृषि आधारित है वहीं, विभिन्न कृषि उपजों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता स्थिर होना विचारणीय तथ्य है।
कृषि उत्पादकता के स्थिर होने का कारण बिहार में कृषि का नवीनीकरण न होना है। विकास अवरोध के कई प्राकृतिक एवं गैर-प्राकृतिक कारण हैं। प्राकृतिक कारणों में सर्वप्रमुख बाढ़ है जिसके कारण राज्य में प्रतिवर्ष 68.8 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है। इसका व्यापक असर कृषि पर देखने को मिलता है। बाढ़ के कारण राज्य के एक बड़े कृषि योग्य भू-भाग पर जल जमाव की स्थिति है। राज्य की कुल 9.41 लाख हेक्टेयर भूमि पर जल जमाव होने से राज्य का कृषि क्षेत्र प्रभावित होता है। बाढ़ एवं जल-जमाव के अतिक्ति सूखे की समस्या भी कृषि विकास में बाधक है। राज्य के अधिकतर जिले सूखा प्रभावित हैं एवं इससे निपटने के प्रभावकारी उपाय की कमी है। सूखे से निपटने के लिए राज्य के पास सिंचाई के वैकल्पिक साधनों के अभाव में बिहार की कृषि मानसून पर निर्भर हो गयी है जिससे कृषि उत्पादकता एवं विकास प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ है। –
कृषि उत्पादकता में स्थिरता अथवा विकास में कमी के लिए कृषि से संबंधित संरचनात्मक तत्व भी उत्तरदायी हैं। 80% से अधिक जोत इकाइयां 1 हेक्टेयर भूमि से कम की हैं, जबकि 4-10 हेक्टेयर के बीच मात्र 1.7% जोत इकाइयां हैं। यह बिहार में भूमि सुधार की विफलता का परिणाम है। छोटी जोत वाली इकाइयों के कारण उत्पादकता प्रभावित होती है। छोटे एवं सीमांत किसानों को इस कारण बटाईदारी पर खेती करने को मजबूर होना पड़ता है। अस्थायित्व एवं न्यूनतम लाभ की स्थिति के कारण बटाईदारी व्यवस्था भी कृषि एवं कृषकों के विकास में बाधक है।
कृषि के विकास में सबसे बड़ी बाधा कृषकों की अशिक्षा, परंपरागत सोच, साहुकारों पर निर्भरता एवं विपणन सुविधाओं का अभाव है। व्यापक-सुधारों के अभाव में कृषकों का जीवन अत्यंत कष्टकर है। मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ का मुख्य पात्र होरी अब भी भारतीय किसानों का प्रतीक है। दीनता, दुर्बलता एवं अभाव ही उसके पहचान हैं एवं समयपूर्व मृत्यु की प्राप्ति उसकी वास्तविकता। जब उत्पादक ही न्यूनतम लाभ का भागी होगा, तो उत्कृष्ट उत्पादकता संभव नहीं है।
• सुधार के उपाय
 बिहार में कृषि उत्पादों की स्थिति एवं उत्पादकता की समस्या के समाधान के लिए कृषि क्षेत्र में व्यापक स्तर पर सुधार की आवश्यकता है। बाढ़, सूखा एवं जल जमाव जैसी बड़ी समस्याओं के स्थायी निदान के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार को मिलकर काम करना होगा। बाढ़ को रोकने के लिए मजबूत बांधों की आवश्यकता होगी । बाढ़ से फसलों के नुकसान की स्थिति में सरकार को पर्याप्त क्षतिपूर्ति देनी होगी। राज्य में समुचित सिंचाई की व्यवस्था करनी होगी ताकि कृषि मानसून पर निर्भर न रहे। इसके लिए वर्षाजल, भूमिगत जल एवं नदियों के जल का समुचित प्रबंधन आवश्यक है। जल-संरक्षण के विभिन्न उपाय अपना कर हम सूखे की समस्या को भी सुलझा सकते हैं। राज्य की लगभग 9.41 लाख हेक्टेयर भूमि जल-जमाव अथवा दलदली भूमि के अन्तर्गत है। यदि इनका पुनरुद्धार किया जाए तो राज्य में कृषि क्षेत्र का विस्तार होगा। कृषि विकास के लिए सरकार को भूमि सुधार उपाय को दृढ़तापूर्वक अपनाना होगा । भूमि हदबंदी कानून एवं काश्तकारी कानून में संशोधन कर इसे लागू करना होगा। इसके अतिरिक्त कृषकों की स्थिति में सुधार अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए कृषि को उद्योग का दर्जा देना होगा जिससे कृषक की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके। कृषकों की शिक्षा एवं उनके ज्ञान की वृद्धि आवश्यक है ताकि वे उत्कृष्ट बीजों, खाद्य एवं तकनीक का प्रयोग कर सकें। सरकारी एवं गैर-सरकारी स्तर पर वित्त व्यवस्था के लिए ढांचागत सुधार आवश्यक है। इसके लिए स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित किया जा सकता है। बिहार में कृषकों के लिए विपणन की समस्या सबसे प्रमुख है। इसके लिए सरकार को कृषकों के उत्पाद को उचित मूल्य पर खरीदने चाहिए एवं गांवों को शहरों से जोड़ने के लिए सड़कों का विकास करना चाहिए। इसके अतिरिक्त भी अनेक उपायों को अपनाया जा सकता है।
• बिहार में कृषि उत्पादन की स्थिरता / कृषि विकास में कमी के मुख्य कारण –
> बाढ़- 68.8 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ से प्रभावित ( प्रतिवर्ष)
> जल-जमाव – 9.41 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित
> सूखे की समस्या
> अपर्याप्त सिंचाई व्यवस्था
> छोटी जोत इकाइयां – 80% से अधिक जोत इकाइयां 1 हेक्टेयर से कम की हैं।
> बंटाईदारी व्यवस्था – अस्थायित्व व शोषक
> कृषकों में अशिक्षा, परंपरागत सोच
> वित्त एवं विपणन सुविधाओं का अभाव आदि ।
> वर्णित समस्याओं का उचित समाधान
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