द्विवेदी युग किसे कहते है? द्विवेदी युगीन कविता की विशेषताएं

द्विवेदी युग किसे कहते है? द्विवेदी युगीन कविता की विशेषताएं

द्विवेदी युग किसे कहते है? (dwivedi yug kya hai)

यह युग कविता मे खड़ी बोली के प्रतिष्ठित होने का युग है। इस युग के प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी है। इन्होने ” सरस्वती ” पत्रिका का सम्पादन किया। इस पत्रिका मे ऐसे लेखों का प्रकाशन किया जिसमे नवजागरण का संदेश जन-जन तक पहुँचाया गया। इस पत्रिका ने कवियों की एक नई पौध तैयार की। इस काल मे प्रबंध काव्य भी पर्याप्त संख्या मे लिखे गए।

द्विवेदी युग के अनेक कवियों ने ब्रजभाषा छोड़कर खड़ी बोली को अपनाया। इस काल मे खड़ी बोली को ब्रजभाषा के समक्ष काव्य भाषा के रूप मे प्रतिष्ठित किया गया, साथ ही विकसित चेतना के कारण कविता नई भूमि पर प्रतिष्ठित हुई। एक ओर खड़ी बोली व्याकरण सम्णत, परिष्कृत एवं संस्कारित रूप ग्रहण कर रही थी दूसरी ओर कविता मे लोक जीवन और प्रकृति के साथ ही राष्ट्रीय भावना की समर्थ अभिव्यक्ति हो रही थी। इस समय के प्रबंध काव्य मे कवियों ने पौराणिक और ऐतिहासिक कथानक को आधार बनाया। इस युग मे ऐतिहासिकता, पौराणिकता मे भी राष्ट्रीय चेतना राष्ट्रीय भावना का स्वर ही उभरकर सामने आता है।

द्विवेदी युगीन कविताओं की विशेषताएं 

द्विवेदी युगीन कविता की विशेषताएं इस प्रकार है–

1. देशभक्ति 

द्विवेदी युग मे देशभक्ति को व्यापक आधार मिला। इस काल मे देशभक्ति विषयक लघु एवं दीर्घ कविताएँ लिखी गई।

2. अंधविश्वासों तथा रूढ़ियों का विरोध 

इस काल की कविताओं मे सामाजिक अंध विश्वासों और रूढ़ियों पर तीखे प्रहार किए गए।

3. वर्णन प्रधान कविताएँ 

” वर्णन ” प्रधानता द्विवेदी युग की कविताओं की विशेषता है।

4. मानव प्रेम 

द्विवेदी युगीन कविताओं मे मानव मात्र के प्रति प्रेम की भावना विशेष रूप से मिलती है।

5. प्रकृति-चित्रण 

इस युग के कवियों ने प्रकृति के अत्यंत रमणीय चित्र खींचे है। प्रकृति का स्वतन्त्र रूप मे मनोहारी चित्रण मिलता है।

6. खड़ी-बोली का परिनिष्ठित रूप

खड़ी बोली मे काव्य रचना द्विवेदी युग की सबसे महत्वपूर्ण है। खड़ी बोली हिन्दी को सरल, सुबोध तथा व्याकरण सम्मत परिनिष्ठित स्वरूप प्रदान किया।

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