‘निबन्ध लेखन’ और ‘कहानी लेखन’ में अन्तर समझाइये।
‘निबन्ध लेखन’ और ‘कहानी लेखन’ में अन्तर समझाइये।
उत्तर— ‘निबन्ध लेखन’ और ‘कहानी लेखन’ में अन्तरनिम्नलिखित हैं—
निबन्ध लेखन – रचना का क्षेत्र अति व्यापक है। वर्णन की मौखिक, लिखित तथा सांकेतिक समस्त विधियाँ रचना के अन्तर्गत आयेंगी । रचना का अभिप्राय शब्दों की उस योजना से है, जिनसे कोई सार्थक वाक्य बन जाये। इसे अंग्रेजी में ‘कम्पोजीशन’ नाम से जाना जाता है। अतः शब्दों की सार्थक, कलात्मक, सज्जित भाषा में उसे ‘रचना’ ही कहा जायेगा। हमें जीवन में, व्यवहार में, समाज में नित- प्रति ही लिखने की आवश्यकता पड़ती है।
उच्च उद्देश्य की पूर्ति करने वाले, साहित्य के इस अंग को अध्यापन का विषय मानते हुए अध्यापकों में भय का संचार होता है। किसी भी अतिथि या निरीक्षण के आने के समय बिरला शिक्षक ही निबन्ध पढ़ाने का साहस करता है इसलिए इसमें विचारों की श्रृंखला को बिना किसी अवलम्बन के सजाना पड़ता है, जबकि पाठ्य-पुस्तक पढ़ाते समय पाठ्यसामग्री तो हाथ में ही होती है।
कहानी लेखन – समष्टि रूप से भावना तथा चिन्तन का संयोजन, कल्पना एवं सत्य का संश्लेषण और इन दोनों तत्त्वों से सम्मिश्रित तथा सुसम्बन्धित चेतना का नाम ही मानव-जीवन है। जहाँ यह मानव-जीवन है, वहाँ उसकी कहानी भी अवश्य है। अतः कहानी कहने की परम्परा उतनी ही प्राचीन है जितना पुराना हमारा जीवन है। जीवन में ऐसे अनेक क्षण और ऐसी घटनाएँ आती हैं, जो थोड़े समय के लिए आकर भी हमें चमत्कृत कर जाती हैं। कहानी उन क्षणों और घटनाओं की विवरणात्मक यादगार है। मानव केवल अनुभावक ही नहीं, प्रकाशक भी है। उसके हार्दिक, तीव्र एवं व्यापक रागात्मक भाव जन, जग और जीवन में संयोजित क्रियाकलापों के प्रकटीकरण के लिए तड़पा करते हैं, अतः परोपेक्षित प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति-व्याकुलता ही कथा-साहित्य की सृजन-सूचना है।
संस्कृत साहित्य में कहानी के लिए आख्यायिका, कथानिका, कथा और वृत्तान्त शब्द प्रचलित रहे हैं। इसे गल्प और कथानक भी कहा जाता है। आचार्यों ने विस्तार और प्रयोजन की दृष्टि से इसे आख्यान, परिकथा, खण्डकथा, उपकथा, वृहत्कथा आदि उपभेदों में भी विभाजित किया है। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे किस्सा कहा जाता है।
प्रेमचन्द ने लिखा है, “कहानी ऐसी रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा – विन्यास सभी उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं । वह ऐसा रमणीय उद्यान नहीं जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेल-बूटे सजे हुए हैं, बल्कि वह एक ऐसा गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है। “
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