“बहादुर’ कहानी का सारांश लिखिए।

“बहादुर’ कहानी का सारांश लिखिए।

उत्तर :- कथाकार अपनी बहन के विवाह में घर गय तो भाभियों के आगे-पीछे नौकरी की भीड़ और पत्नी की खटनी देख ईर्ष्या हुई। प नो निर्मला भी ‘नोकर’ की रट लगाने लगी। अंत में साले साहब एक नेपाली ले आए। नाम दिल बहादुर। बहादुर के आने पर महल्ले वालों पर रौब जमा। ‘बहादुर ने भी इतनी खूबी से काम सभाला कि अब हर काम के लिए सभी उसी पर निर्भर हो गए। बेटे किशोर न न सिर्फ अपने सभी काम बहादुर पर छोड़ दिए अपितु जरा-सी चूक पर मार-पीट करने लगा। पत्नी ने भी पड़ोसियों के उकसावे में आकर उसकी रोटी सेकनी बंद कर दी ओर हाथ भी चलाने लगी। एक दिन मेहमान आए। उनकी पत्नी ने कहा अभी-अभी रूपये रखे थे, मिल नहीं रहे हैं। बहादुर आया था, तत्काल चला गया। बहादुर से पूछ-ताछ शुरू हुई। उसने कहा कि न रूपये देखे, न लिया। कथाकार ने भी पूछा ओर मेहमान ने भी अलग ले जाकर पूछा, पुलिस में देने की धमकी दी लेकिन बहादुर मुकरता रहा। अंत में कथाकार ने झल्लाकर एक तमाचा जड़ दिया। बहादुर रोने लगा। इसके बाद तो जैसे सभी उसके पीछे पड़ गए। – एक दिन कथाकार जब घर आए तो मालूम हुआ कि बहादुर चला गया, ताज्जुब तो तब हुआ जब पाया गया कि बहादुर यहाँ का कुछ भी लेकर नहीं गया बल्कि अपने सामान भी छोड़ गया है। लेखक व्यथित हो गया-चोरी का आरोपी न मालिक का कोई समान ले गया, अपना।इस प्रकार हम पाते हैं कि ‘बहादुर’ कहानी छोटा-मुँह बड़ी बात कहती है क्योंकि ‘नौकर’ जैसे आदमी को नायकात्व प्रदान करती है और कथाकार के अन्तर की व्यथा को अभिव्यक्त करती है।

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