बाल्यावस्था से आप क्या समझते हैं ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिये ।
बाल्यावस्था से आप क्या समझते हैं ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिये ।
अथवा
बाल्यावस्था की सात विशेषताएँ लिखिये ।
उत्तर— बाल्यावस्था (Childhood)– शैशवावस्था एवं किशोरावस्था के मध्य की अवस्था बाल्यावस्था कहलाती है। शैशवावस्था पूर्ण करने के पश्चात् बालक बाल्यावस्था में प्रवेश करता है। कोल और ब्रुस ने इस अवस्था को जीवन का ‘अनोखा काल’ बताते हुए लिखा है कि बाल्यावस्था को समझना सबसे कठिन कार्य है। यह अवस्था बालक के व्यक्तित्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। अतः इसे निर्माणकारी काल भी कहा गया है ।
रॉस ने बाल्यावस्था को ‘मिथ्या परिपक्वता’ का काल कहा है। बाल्यावस्था वैचारिक क्रिया अवस्था है, इसमें बालक अपनी प्रत्येक क्रिया पर विचार करता है ।
किलपैट्रिक ने बाल्यावस्था को प्रतिद्वंद्विता का काल माना है।
बाल्यावस्था की विशेषताएँ (Characteristics of Childhood)– बाल्यावस्था की विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं—
(1) शारीरिक तथा मानसिक विकास में स्थिरता (Stability in Physical and Mental Growth)– इस काल में शैशवावस्था की अपेक्षा मानसिक एवं शारीरिक विकास की गति में स्थिरता आ जाती है। इस अवस्था में ऐसा प्रतीत होता है कि मस्तिष्क पूर्ण परिपक्व हो गया है। इसलिए रॉस ने बाल्यावस्था को मिथ्या परिपक्वता का काल कहा है।
(2) यथार्थवादी दृष्टिकोण (Realistic Approach)— बाल्यावस्था में बालक का यथार्थवादी दृष्टिकोण होता है। अब बालक कल्पना जगत से वास्तविक संसार में प्रवेश करने लगता है ।
(3) जिज्ञासा की प्रबलता (Intensity in Curiosity)– बाल्यावस्था में जिज्ञासा की प्रबलता के कारण बालक नवीन वातावरण को जानने का प्रयास स्वयं करता है। उसमें स्मरण करने की शक्ति का भी विकास हो जाता है।
(4) रचनात्मक कार्यों में रुचि (Interest in Constructive Works)– बाल्यावस्था में रचनात्मक प्रवृत्ति का विकास हो जाता है। इस उम्र में लड़के खिलौने जोड़ने लग जाते हैं और लड़कियाँ गुड़िया बनाना प्रारम्भ कर देती हैं।
(5) संवेगों पर नियंत्रण (Control over Emotions )– इस अवस्था में बालक उचित-अनुचित में अंतर करने लगता है। बाल्यावस्था में बालक सामाजिक एवं पारिवारिक व्यवहार के लिए अपनी भावनाओं का दमन और संवेगों पर नियंत्रण स्थापित करना सीख जाता है।
(6) मानसिक योग्यताओं में वृद्धि (Growth in Mental Abilities)— इस काल में मानसिक विकास की तीव्रता के कारण बालक तर्क करना प्रारम्भ कर देता है। बाल्यावस्था में प्रत्यक्षीकरण और ध्यान केन्द्रित करने की शक्ति का विकास होता है।
(7) सामूहिक भावना का विकास (Development of Collective Spirit)—बाल्यावस्था में सहयोग, सहनशीलता आदि गुणों का विकास हो जाने पर बालकों में सामाजिक भावना पनपने लगती है। इस अवस्था में बालक सामूहिक खेलों में रुचि लेना प्रारम्भ कर देते हैं।
(8) अनुकरण की प्रवृत्ति का अधिक विकास (Growth in Tendency to Follow Others)– बाल्यावस्था में अनुकरण की प्रवृत्ति का अधिक विकास होता है। इस उम्र में चोरी करने और झूठ बोलने की आदत भी पड़ जाती है।
(9) सम-लिंग भावना का विकास (Tendency to Follow Ones own Gender Habits)— इस अवस्था में समलिंगीय भावना का विकास होता है और लड़कों में नेता बनने की चाह घर करने लगती है। बाल्यावस्था में काम प्रवृत्ति की न्यूनता पाई जाती है।
(10) बहिर्मुखी प्रवृत्ति का विकास (Development of Extrovert Tendency)– बाल्यावस्था में बालक के बहिर्मुखी व्यक्तित्व का विकास होता है। ब्लेयर और सिम्पसन के अनुसार, “इस अवस्था में जीवन के बुनियादी दृष्टिकोण और स्थायी आदर्श व मूल्यों का निर्धारण हो जाता है। बाल्यावस्था में बालक की रुचियों में निरन्तर परिवर्तन देखा जा सकता है । “
(11) संग्रह प्रवृत्ति का विकास (Development of Acquisition Instinct)– बाल्यावस्था में संग्रह करने की प्रवृत्ति का विकास हो जाता है। बालक विशेष रूप से अपने पुराने खिलौने, मशीन के कलपुर्जे, पत्थर के टुकड़े तथा बालिकाएँ विशेष रूप से अपनी गुड़िया, कपड़े के टुकड़े आदि संग्रह करती दिखाई देती हैं।
(12) प्रतिस्पर्धा की भावना(Spirit of Competition)– बाल्यावस्था में प्रतिस्पर्धा की भावना आ जाती है। बालक अपने भाईबहन से भी झगड़ा करने लग जाता है।
(13) औपचारिक शिक्षा का प्रारम्भ(Start of Formal Education)– इस अवस्था में बालक की भाषा विकास के साथ-साथ औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ हो जाती है और वह स्कूल जाना शुरू कर देता है। इसके साथ बालक में निरुद्देश्य भ्रमण करने की आदत पड़ जाती है।
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