“भारत एक उदारवादी लोकतांत्रिक राज्य है।” (टिप्पणी- 200 शब्दों में)

“भारत एक उदारवादी लोकतांत्रिक राज्य है।” (टिप्पणी- 200 शब्दों में)

अथवा

भारतीय लोकतंत्र के उदारवादी पक्ष पर जोर डालते हुए इसके विभिन्न लक्षणों को उदाहरणों से स्पष्ट करें।
उत्तर – देश की विशालता एवं जाति धर्म, क्षेत्र आदि के आधार पर विविधताओं के कारण हमारे द्वारा 26 जनवरी, 1950 को स्थापित लोकतांत्रिक राज्य अनेक उदारवादी तत्वों से युक्त है। यह भारतीय लोकतंत्र की एक मौलिक विशिष्टता है जो इसकी स्थिरता एवं विकास का आधार है। भारत में लोकतंत्र का अर्थ सिर्फ शासन में जनता की भागीदारी मात्र नहीं है, बल्कि जनता को शासन में भागीदारी योग्य बनाना भी है। 74वें संविधान संशोधन के द्वारा सरकार ने ऐसा किया है। इन संशोधनों के माध्यम से सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया गया है। इससे शासन कार्य में नौकरशाही पर दबाव कम हुआ है एवं जनकल्याण को भी बढ़ावा मिला है।
सरकार के तीनों अंग- कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। न्यायपालिका संविधान संरक्षण के रूप में सक्रिय है। नागरिकों के मौलिक अधिकार एवं संविधान की मूल भावना सरकार के कार्यों से प्रभावित न हो, इसका ध्यान न्यायपालिका रखती है। भारतीय मीडिया ने भी लोकतंत्र को मजबूत बनाने में अपना योगदान दिया है। कुछ विषयों पर सरकार गैर-राजनीतिक संगठनों एवं नेताओं से भी विमर्श करती है। इधर लोकपाल विधेयक पर सरकार द्वारा गैर-राजनीतिक व्यक्तियों से विचार-विमर्श भारतीय लोकतंत्र के उज्जवल भविष्य की ओर संकेत है। इसके अलावा संविधान की प्रस्तावना में वर्णित ‘समाजवादी, धर्म निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ शब्द, राज्य के नीति-निर्देशक तत्व, नागरिकों के मौलिक अधिकार, संविधान के कुछ अन्य प्रावधान तथा इन प्रावधानों एवं लोकतंत्र में जनता की शक्ति के वशीभूत सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न जन-कल्याणकारी योजनाएं, यथा – MNREGA, NRHM, IAY आदि के आधार पर भारत को एक उदारवादी लोकतांत्रिक राज्य कहा जा सकता है।
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