बिहार के संदर्भ में ग्राम्य स्थानीय सरकार की कार्यों की 1994 से आज तक की व्याख्या करें।

बिहार के संदर्भ में ग्राम्य स्थानीय सरकार की कार्यों की 1994 से आज तक की व्याख्या करें।

अथवा

73वां संविधान संशोधन (1993) के बाद बिहार में भी पंचायती राज अधिनियम, 1993 पारित हुआ, जिसने ग्रामीण सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उत्तर- 1993 के पहले भारत में ग्राम्य स्थानीय सरकार ( पंचायती राज संस्थाएं) औपचारिक संस्थाओं के रूप में कार्यरत थी। लेकिन 73वें संविधान संशोधन (1993) के बाद इन्हें संवैधानिक मान्यता प्राप्त हुई। इस संशोधन का मूल उद्देश्य शासन का विकेन्द्रीकरण करना था। इस संशोधन के द्वारा पंचायत व्यवस्था को अनेक कार्य एवं शक्ति प्रदान किए गए। संविधान संशोधन की इसी पृष्ठभूमि में बिहार पंचायती राज अधिनियम, 1993 पारित किया गया। –
संविधान के व्यवस्था के अनुरूप पंचायती राज व्यवस्था बिहार में भी त्रि-स्तरीय है। ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत, प्रखंड स्तर पर पंचायत समितियां तथा तृतीय अथवा शीर्ष स्तर अथवा जिला स्तर पर जिला परिषद का गठन किया गया है।
वर्ष 1994 के बाद बिहार में ग्राम्य स्थानीय सरकार के द्वारा काफी कार्य किए गए हैं जिससे बिहार का सर्वांगीण विकास हुआ है। वर्तमान में मनरेगा के कारण पंचायतों की भूमिका विकास कार्यों में और भी ज्यादा बढ़ गई है। ग्राम्य स्थानीय सरकार के कार्यों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत रखा जा सकता है
1. कृषि कार्य- कृषि विकास के स्तर पर पंचायतों को महत्वपूर्ण कार्य दिए गए हैं। जिसे बिहार के पंचायतों ने बहुत हद तक किए हैं। इसके अंतर्गत कृषि क्षेत्र का विकास, भूमि सुधार कार्यक्रम, चकबंदी एवं भूमि संरक्षण प्रमुख हैं। इसके अलावा कृषि विकास के लिए लघु सिंचाई साधनों का विकास एवं जल प्रबंधन प्रमुख है।
2. विकास कार्य – पंचायतों का यह एक प्रमुख कार्य है जिसके अंतर्गत गांवों का विकास होता है। सड़क, पुल आदि का निर्माण, अपरंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों का विकास, ईंधन एवं पेयजल प्रबंधन प्रमुख कार्य हैं। सड़कों के किनारे प्रकाश पैमाने पर का प्रबंध एवं अन्य सार्वजनिक कार्य प्रमुख हैं। मनरेगा के कानून बनने के बाद ऐसे विकास कार्य व्यापक सम्पन्न हो रहे हैं।
3. शिक्षा – शिक्षा के क्षेत्र के अंतर्गत पंचायतों का कार्य प्राथमिक विद्यालयों की देख-रेख, प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था, तकनीकी एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए संस्थाओं की स्थापना, पुस्तकालयों की स्थापना आदि कार्य किए जाते हैं। इनमें से कुछ कार्य बिहार में पंचायत स्तर पर हुए हैं परन्तु अनेक कार्य करने में पंचायतें अभी भी सक्षम नहीं हो सकी हैं। 4. सामाजिक एवं स्वास्थ्य संबंधी कार्य स्थानीय स्तर पर पंचायतें अनेक सामाजिक कार्य, जैसे- महिला एवं बाल विकास, परिवार कल्याण, दुर्बल वर्गों का कल्याण, गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रम अपने स्तर पर एवं कभी-कभी एनजीओ (NGO) की सहायता से करती हैं। सरकार के द्वारा चलाए जा रहे पोलियो उन्मूलन के कार्यक्रम में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
5. कृषि एवं व्यवसाय वृद्धि से संबंधित कार्य- पंचायतों का कार्य सरकार की सहायता से किसानों को उन्नत खाद एवं बीज उपलब्ध कराना, कृषि सहायता एवं उपकरण उपलब्ध कराना। साथ ही पशुपालन, डेयरी उद्योग, मुर्गीपालन, मत्स्य-पालन से संबंधित सहायता एवं जानकारी उपलब्ध कराना भी पंचायतों के प्रमुख कार्य हैं। खादी ग्रामोद्योग एवं कुटीर उद्योग का विकास भी स्थानीय ग्रामीण सरकारों के अधीन प्रमुख कार्य हैं।
6. अन्य कार्य – सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) से संबंधित कार्य, बाजार एवं मेलों का प्रबंध करना इसके लिए जगह उपलब्ध कराना आदि। कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन एवं विकास में भी पंचायतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इस प्रकार ग्राम्य स्थानीय सरकार लोगों के जीवन के हर क्षेत्र से जुड़ी हुई होती है । यद्यपि इसमें भ्रष्टाचार एवं जातिवाद का बोलबाला है परन्तु फिर भी 1994 के बाद से बिहार में पंचायत स्तर पर अनेक सराहनीय कार्य किए गए हैं।
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