बिहार लगातार बाढ़ तथा सूखे की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता रहता है । इन आपदाओं के पूर्वानुमान तथा प्रबंधन में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका हो सकती है? अपने उत्तर को प्रायोगिक उदाहरणों द्वारा समझाइए |

बिहार लगातार बाढ़ तथा सूखे की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता रहता है । इन आपदाओं के पूर्वानुमान तथा प्रबंधन में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका हो सकती है? अपने उत्तर को प्रायोगिक उदाहरणों द्वारा समझाइए |

उत्तर – बिहार में लगातार, बाढ़ एवं सूखे से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं से घिरे रहने की सबसे महत्वपूर्ण वजह है इसकी भौगोलिक स्थिति। इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण ही बिहार बाढ़ एवं सूखे दोनों से प्रभावित रहता है । नेपाल से निकलने वाली नदियों में ज्यादा पानी आने से तथा उत्तराखण्ड में हुई अधिक वर्षा से गंगा से अधिक पानी आने से बाढ़ जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
बिहार से कृषि सिंचाई हेतु पहले परम्परागत सिंचाई जैसे तालाबों नदियों आदि द्वारा सिंचाई की जाती थी लेकिन अब सिंचाई के अन्य माध्यमों जैसे बोरिंग, ट्यूवेल, नलकूपों एवं नहरों द्वारा सिंचाई से यहां का भू-जल स्तर में कमी आई है। राज्य में लगातार गिरते भू-जल स्तर की वजह से सूखे की समस्या गम्भीर रूप लेती जा रही है ।
इन समस्याओं के समाधान हेतु सरकार द्वारा बनाई गयी राष्ट्रीय जल नीति के अनुसार बाढ़ एवं सूखे को प्रबंधित किया जा सकता है जिससे सरकार द्वारा पूर्व तैयारी, जैसे विकल्पों के साथ ही प्राकृतिक जल विकास प्रणाली को दुरूस्त करने हेतु आधुनिक मशीनों के प्रयोग एवं जल विकास की सही दिशा एवं स्थिति का पता लगाने हेतु भारतीय उपग्रहों का प्रयोग किया जाना चाहिए। सूखे से निपटने के लिए विभिन्न कृषि कार्य नीतियों को विकसित कर मृदा एवं जल में सुधार के लिए स्थानीय, अनुसंधान एवं वैज्ञानिक संस्थाओं से प्राप्त वैज्ञानिक जानकारी से जल और भूमि आदि के प्रबंधन की व्यवस्था की जा सकती है।
भौगोलिक सूचना पद्धति अर्थात् जी. आई. एस. आपदा प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण उपकरण है। दरअसल, आपदा के प्रभावी प्रबंधन हेतु सूचना काफी मायने रखती है। आपदा प्रबंधन से जुड़े व्यक्यिों के लिए सही समय पर सही सूचना का होना नितांत आवश्यक है। बाढ़, भूकम्प, तूफान, भू-स्खलन, दावानल, अकाल जैसी किसी भी आपदा के सन्दर्भ में हर तरह की सूचनाओं के लिए मानचित्र तथा भौतिक स्थितियों का ज्ञान आवश्यक है। सामान्य तौर पर जी.आई. एस. आपदा प्रबंधन में उसकी तैयारी, उससे निपटने, संभलने तथा उसके समाधान आदि के लिए उपयोगी है।
• बाढ़ अनुश्रवण तथा प्रबंधन के चरण
बाढ़ अनुश्रवण प्रक्रिया में बाढ़ – पूर्व की स्थिति, बाढ़ के दौरान की स्थिति, उसके बाद की सभी स्थितियों को शामिल करना जरूरी है।
• बाढ़ पूर्व की गतिविधियां
> उन नदी-स्थलों को चिन्हित करना जहाँ बाढ़ के कारण मानव जीवन तथा उसकी आर्थिक चेष्टाएँ निरन्तर बाधित हों।
> प्रत्येक चयनित नदी-स्थल पर बाढ़ के पानी के जमे रहने की अवधि तथा स्थल को चिन्हित करना ।
>  बाढ़ की अवधि तथा समय का निर्धारण |
> बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों की वस्तुओं के आर्थिक महत्व का निर्धारण ।
> बाढ़ के एक नियत स्तर पर क्षति – संभाव्यता का निर्धाण तथा पूर्वानुमान करना ।
> मानवीय अवस्थिति, वास, निर्माण, संरचना के महत्व के दृष्टिकोण से जलस्तर के खतरों के प्रति संचेतना।
• बाढ़ के दौरान अपेक्षित गतिविधियां
> मौसम विज्ञान संबंधी हाइड्रो-मीटिओरोलॉजिकल नेटवर्क कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि प्रबंधन के सभी स्तरों पर सूचना – संचार जारी रह सके।
> उपग्रह-छवियों का उपयोग कर बाढ़ – ग्रस्त तथा अन्य तरह से आक्रांत भू-भाग का मानचित्रण करना।
• बाढ़- पश्चात् अपेक्षित गतिविधियां
> बाढ़ की वजह से हुई क्षति का जमीनी, हवाई तथा उपग्रहीय सर्वेक्षण कार्य करना ।
> सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण तथा उनका मानचित्रण करना ।
> बाढ़ से हुई छति का आकलन करना ।
> भावी बाढ़ से होने वाली क्षति को रोकने के उपायों को सुझाना।
•  बाढ़ से पहले की गतिविधियों के लिए
> जी.आई.एस. बाढ़ के पहले की गतिविधियों तथा बाढ़ आपदा एवं जोखिम निर्धारण के लिए उपयोगी है। यह वस्तुतः बड़े पैमाने पर आंकड़ा प्रबंधन के काम में आता है।
> बाढ़ के दौरान गतिविधियों के तहत इवैकुएशन रूटों की योजना बनाना ताकि आकस्मिक कार्यों के लिए एक संचालन केन्द्र की रूपरेखा बनाई जा सके तथा बाढ़ चेतावनी पद्धति की रूपरेखा सभी सम्बद्ध आँकड़ों समेत तैयार की जा सके। बाढ़ राहत के आलोक में भी जी. पी. एस. अर्थात् ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम के साथ मिलकर जी.आई.एस. काफी उपयोगी सिद्ध होता है ताकि खोज एवं बचाव कार्यक्रमों के तहत पहुँच से बाहर के क्षेत्रों में आक्रान्त जनजीवन की समस्या का समाधान किया जा सके। बाढ़ पश्चात् गतिविधियों में क्षति- सूचनाओं के संग्रहण, जनसंख्या-आँकड़ों का संकलन तथा संरचना निर्माण हेतु स्थल – मूल्यांकन में भी जी. आई. एस. पद्धति उपयोगी है।
बिहार में बाढ़-प्रबंधन आधारित जी.आई.एस. के साथ प्रयोग – बाढ़ प्रबंधन सूचना पद्धति कोषांग भारत में, बिहार सर्वाधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्र है। जिसमें उत्तर बिहार की 76% आबादी निरन्तर बाढ़ से आक्रान्त है । नेपाल से सटे बिहार का मैदानी भाग हिमालय से निकलने वाली नदियों का जलग्रहण क्षेत्र है । हिमालय के नेपाल – क्षेत्र में भारी वर्षा के कारण घाघरा, बूढ़ी गंडक, बागमती, भूतही बलान, कमला, कोशी तथा महानन्दा में जल प्रवाह बढ़ जाता है, जिसका असर मैदानी हिस्से पर पड़ता है। इस क्षेत्र में गत तीन से चार दशकों में आबादी तेजी से बढ़ी है तथा जनजीवन पर बाढ़ के आक्रामक प्रभाव से क्षति में तीव्र वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है।
आपदा के प्रति निपटने के अभियान से अधिक जरूरत है आपदा – तैयारियों में सुधार की। इसके लिए संस्थागत संरचना में बहुआयामी सूचना तंत्र का विकास अन्यतम आवश्यक है ताकि पूर्वानुमान तथा भविष्यवाणियों के आध र पर त्वरित कार्रवाई की जा सके। इसके लिए अत्याधुनिक तकनीक के तहत उपग्रह संवेदी-तंत्र, ज्योग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम, इंटरनेट आदि संस्थापित किए जाने चाहिए। फ्लड मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम सेल (FMISC) अर्थात् बाढ़ प्रबंधन सूचना पद्धति कोषांग की स्थापना से बिहार के बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में प्रबंधन तथा नियंत्रण हेतु प्रभावी सहायता प्राप्त हुई है।
बाढ़ प्रबंधन सूचना पद्धति कोषांग (FMISC)-  विभाग के अन्तर्गत बाढ़ प्रबंधन सूचना पद्धति कोषांग (FMISC) विश्व बैंक संपोषित संरचना है। इसे चार चरणों में विकसित किये जाने की योजना है। प्रथम चरण का कार्य प्रक्रियाधीन है।
तदनुसार उत्तर बिहार के सर्वाधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्र जो कि पश्चिम में बूढ़ी गंडक नदी से पूरब में कोशी नदी तक के बीच स्थित पूर्वी चम्पारण, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, समस्तीपुर, दरभंगा, सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, सुपौल, सहरसा तथा खगड़िया को समाहित किए हुए लगभग 26000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तारित है।
बाढ़ प्रबंधन सूचना पद्धति अर्थात् एफ.एम.आई. एस. मानचित्रों तथा प्रतिवेदनों के स्वरूप में विविध तरह की सूचनाएँ प्रसारित करता है। इसके तहत फ्लड बुलेटिन, मंथली ई – बुलेटिन, बाढ़ के कारण ग्राम स्तर तक के प्रभावित भौगोलिक भू-भाग के आँकड़ें, ग्राम स्तर तक के बाढ़ मानचित्र, आई. एम. डी. द्वारा जारी बाढ़ पूर्वानुमान, नेपाल क्षेत्र में वर्षापात आँकड़े, बाढ़-तीव्रता के मानचित्र, बाढ़ आवृत्ति तथा अवधि के मानचित्र संबंधी सूचनाएँ बिहार सरकार के एफ. एम. आई.एस.सी. के वेबसाइट पर जारी की जाती है। इसका वेबसाइट एड्रेस इस प्रकार है- https://fmis.bin.nic.in/ प्रमुख सरकारी तंत्र अर्थात् मुख्यमंत्री से लेकर बाढ़ प्रबंधन से जुड़े सभी इकाईयों को उपलब्ध उक्त सूचनाएँ बाढ़ प्रबंधन तथा राहत हेतु कारगर रणनीति अपनाने के लिए काफी उपयोगी सिद्ध होती है।
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