उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के क्षेत्र में भारत ने क्या प्रगति की है? एक से अधिक उपग्रहों को एकसाथ अंतरिक्ष में भेजे जाने के सकारात्मक एवं ऋणात्मक पक्ष को स्पष्ट करें। भारत के इस क्षेत्र में प्रवेश करने से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में किस प्रकार सहायता मिली है ?

उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के क्षेत्र में भारत ने क्या प्रगति की है? एक से अधिक उपग्रहों को एकसाथ अंतरिक्ष में भेजे जाने के सकारात्मक एवं ऋणात्मक पक्ष को स्पष्ट करें। भारत के इस क्षेत्र में प्रवेश करने से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में किस प्रकार सहायता मिली है ?

अथवा
इसरो द्वारा अंतरिक्ष में उपग्रहों को स्थापित करने के क्षेत्र में इसकी प्रगति का उल्लेख करते हुए एक से अधिक उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में भेजे जाने के सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्ष का उल्लेख करें। इसकी देश की अर्थव्यवस्था में योगदान की भी चर्चा करें।
उत्तर – भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान हेतु समर्पित संगठन इसरो ने न केवल भारतीय बल्कि विदेशों के भी अनेक उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित करके इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। आज हम अमेरिका, कनाडा तथा इजराइल, इटली जैसे विकसित देशों के उपग्रह भी प्रक्षेपित कर रहे हैं। वर्ष 1962 ई. में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष डॉ. विक्रम साराभाई थे। वर्ष 1969 ई. में इसका नाम बदलकर ‘ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) कर दिया गया।
• इसरो द्वारा उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के क्षेत्र में भारत की प्रगति
> इसरो ने अपना पहला उपग्रह 1975 ई. में सोवियत संघ के प्रक्षेपण यान सी – 1 इंटरकॉसमॉस से प्रक्षेपित किया। इसके पश्चात वर्ष 1980 ई. में इसरो ने अपने प्रक्षेपण यान ‘सैटेलाइट लांच ह्वीकल’ (SLV) से ‘रोहिणी’ नामक उपग्रह लांच किया। इसके बाद इसरो ने ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV)’ का विकास किया। वर्तमान समय में इसरो ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन क्षमता युक्त ‘भू- स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (GSLV) का भी विकास कर लिया है। इस तकनीक में शामिल होने वाला भारत विश्व का छठवां देश (अमेरिका, रूस, जापान, चीन, फ्रांस) बन गया है।
> वर्ष 2016 में इसरो ने सात उपग्रहों की नौवहन प्रणाली (IRNSS) नाविक के निर्माण में सफलता अर्जित की।
> गगन प्रणालीः इसरो ने जुलाई, 2015 को जीपीएस आधारित जियो नेविगेशन (गगन) की शुरूआत की है। इससे भारत, अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान जैसे देशों के क्लब में शामिल हो गया है। गगन प्रणाली विमान संचालन तकनीक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
> एस्ट्रोसेट: भारत ने दिसम्बर, 2015 को अपनी पहली अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रोसेट का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। इसकी सहायता से अल्ट्रावायलेट रे, एक्स रे, इलेक्टोमैगनेटिक स्पेट्रा जैसी चीज़ों को गहराई से परखा जाएगा तथा अंतरिक्ष में विभिन्न तरंगों की निगरानी कर अलग-अलग तरह के खगोलीय पिंडों को खोजने का प्रयास किया जाएगा।
>  नाविकः यह भारत की स्वदेशी नौवहन उपग्रह प्रणाली है। इस प्रणाली में कुल सात उपग्रह शामिल है। यह प्रयोक्ताओं को पूरे देश में तथा देश से बाहर लगभग 1500 किमी. तक के क्षेत्र में सटीक अवस्थिति और समय सेवाओं की सुविधा प्रदान करेगी।
> दक्षिण एशिया सैटेलाइट: मई, 2017 को इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीशधवन अंतरिक्ष केन्द्र से दक्षिण एशिया संचार उपग्रह जीएसटी–9 का सफल प्रक्षेपण किया। इस उपग्रह का उद्देश्य दक्षिण एशिया क्षेत्र के देशों के बीच सूचनाएं उपलब्ध कराना एवं आपदा प्रबंधन को मजबूत करना है। साथ ही इस उपग्रह से प्रत्येक देश का डीटीएच, वीसैट, क्षमता और आपदा सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलेगा।
> जीसैट-11: 5 दिसम्बर, 2018 को भारत द्वारा निर्मित यह सैटेलाइट फ्रेंच गुयाना से एरियनस्पेस रॉकेट की मदद से भारत का सबसे भारी उपग्रह GSAT-11 (5854 किग्रा.) का सफल परीक्षण किया गया। अंतरिक्ष में इसके स्थापित होने से देश में इंटरनेट की स्पीड काफी तीव्र हो जाएगी। भविष्य में इसके सहयोग से भारत को हर सेकण्ड करीब 100 गीगाबाइट से ऊपर की ब्रॉडबैंड की इंटरनेट कनेक्टीविटी मिलने लगेगी।
> चन्द्रयान-1: इसरो ने चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण 22 अक्टूबर, 2008 को श्रीहरिकोटा सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से किया। चंद्रयान-1 ने अपने मून इंपैक्ट प्रोब (MIP) की सहायता से चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया। यह भारत की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है जिसकी पुष्टि 24 सितम्बर, 2009 को ‘साइंस’ पत्रिका ने भी की है। चंद्रयान द्वारा चांद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाने को इस सदी सबसे महान उपलब्धि माना गया है।
> मंगलयान: 5 नवम्बर, 2013 को इसरो ने श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से PSLV-C-25 से मंगलयान को सफलतापूर्वक छोड़ा था, जो 24 सितम्बर, 2014 को मंगल पर पहुंचने में सफल हो गया। इस उपलब्धि के साथ ही भारत अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर यान भेजने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। सोवियत रूस, अमेरिका और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद मंगल पर यान भेजने वाले देशों की कतार में भारत भी शामिल हो गया है।
इसरो ने भविष्य के लिए अनेक परियोजनाओं को क्रियान्वित करने का भी लक्ष्य रखा है। इनमें 2022 तक गगनयान की सहायता से अंतरिक्ष में तीन लोगों को भेजना, सूर्य के कोरोनां का अध्ययन करने के लिए, आदित्य L-1 का प्रक्षेपण, चंद्रयान-2 तथा अर्द्धक्रायोजेनिक परियोजना आदि उल्लेखनीय है ।
• इसरो द्वारा एक साथ एक से अधिक उपग्रहों का प्रक्षेपण तथा इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्ष
 अपनी 39वीं उड़ान के साथ PSLV दुनिया का सबसे भरोसेमंद सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल बन गया। 1993 से लेकर अब तक इसने 38 उड़ानों में कई भारतीय और 237 विदेशी सैटेलाइट्स स्पेस में पहुंचाए हैं। इसरो ने कई बार पीएसएलवी के जरिए एक से अधिक उपग्रहों को प्रक्षेपित किया है। इस बार 104 सैटेलाइट्स लॉन्च करने के लिए वैज्ञानिकों ने PSLV के पावरफुल XL वर्जन का इस्तेमाल किया। प्रक्षेपित किए जाने वाले 104 उपग्रहों में 03 भारतीय, 96 अमेरिकी और शेष इजरायल, कजाखिस्तान, नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात से हैं। उपग्रहों का प्रक्षेपण पीएसएलवी-सी 37 से किया गया। उपग्रहों का संयुक्त भार 1378 किग्रा. है।
• सकारात्मक पक्ष
> भारत द्वारा एक से अधिक उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजे जाने से इसरो की तकनीकी क्षमता अभिव्यक्त होती है जिसके कारण यह विभिन्न देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भारत को एक अग्रणी स्थान दिलाता है।
> भारत ने जून, 2015 में एक ही बार में 20 उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया था। वर्ष 2014 में रूस द्वारा 37 उपग्रहों को एक साथ भेजने का विश्व रिकॉर्ड था। अब भारत ने इस रिकॉर्ड को तोड़ दिया।
> उल्लेखनीय है कि दिसम्बर, 2018 तक भारत 28 देशों के लगभग 237 उपग्रह प्रक्षेपित कर चुका है जिससे इसने भारी राजस्व देश के लिए कमाया है।
> एक ही बार एक से अधिक उपग्रहों को प्रक्षेपित करने से समय और धन की वचत होती है। अतः यह आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
•  नकारात्मक पक्ष
> एक साथ एक से अधिक उपग्रह अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने से उपग्रहों के आपस में टकराने की संभावना रहती है।
> भारत अभी ध्रुवीय कक्षा में एक से अधिक उपग्रह प्रक्षेपित करने की क्षमता रखता है जबकि भू-स्थिर कक्षा में एक से अधिक उपग्रह प्रक्षेपित करना चुनौतीपूर्ण है।
देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में भूमिका- उपग्रहों की स्थापना के साथ-साथ विश्व सूचना बाजार में इसरो के दूर-संवेदी उपग्रहों से प्राप्त होने वाले ऑकड़ों, चित्रों व जानकारियों की मांग बढ़ने लगी है। इस क्षेत्र में भारत ने अपनी उपलब्धियों से पर्याप्त विदेशी मुद्रा की कमाई करने के रास्ते भी खोल लिये है। एंट्रिक्स कार्पोरेशन लिमिटेड भारत की व्यावसायिक इकाई है जो भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं के विपणन के लिए केन्द्रीय एजेंसी का काम करती है।
भारत ने एक से डेढ़ करोड़ डॉलर पारिश्रमिक पर अपने चैस्ट द्वारा 400-500 किग्रा. के संचार उपग्रहों को प्रक्षेपित कर फ्रांस की अंतरिक्ष एजेंसी एरियन- स्पेस को कड़ी प्रतिस्पर्द्धा दी है। इसके अलावा इसरो की व्यवसायिक शाखा अर्थात एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड अब अन्य विकासशील देशों को अंतरिक्ष अनुसंधान संबंधी प्रौद्योगिकी, स्पेयर पार्टस तथा अन्य उत्पाद तथा शोध परिणामों पर परामर्श उपलब्ध करा सकने को स्थिति में है। इसरो अब तक 28 देशों के 237 उपग्रह प्रक्षेपित कर चुका है। इसके माध्यम से भारत में अबतक लगभग 10 लाख अमेरिकी डॉलर की कमाई की है।
> इसरो का परिचय
> इसरो के द्वारा प्रक्षेपित उपग्रहों का संक्षेप में वर्णन
> एक से अधिक उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में भेजे जाने के सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्ष
> इसरो के अंतरिक्ष मिशनों का देश की अर्थव्यवस्था में योगदान
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