भारतीय राजनीति में प्रमुख दबाव समूहों की पहचान कीजिए और भारत की राजनीति में उनकी भूमिका परीक्षण कीजिए।
भारतीय राजनीति में प्रमुख दबाव समूहों की पहचान कीजिए और भारत की राजनीति में उनकी भूमिका परीक्षण कीजिए।
अथवा
दबाव समूह क्या है ? भारत में कौन-कौन से प्रमुख दबाव समूह हैं, उनका संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी भूमिका का वर्णन करें। विभिन्न दबाव समूहों के सकारात्मक एवं नकारात्मक गतिविधियों का भी उल्लेख करें।
उत्तर- दबाव समूह उन लोगों का समूह होता है, जो सक्रिय रूप से संगठित होकर अपने हितों को बढ़ावा एवं उनकी प्रतिरक्षा करते हैं। ये समूह सरकार तथा उनके सदस्यों के बीच सम्पर्क का काम करते हैं एवं सरकार पर दबाव बनाकर लोकनीति को बदलने की कोशिश करते हैं। इन दबाव समूहों को हितैषी समूह या हितार्थ समूह भी कहा जाता है। दबाव समूह विधिक तथा तर्कसंगत तरीकों द्वारा सरकार की नीति निर्माण और नीति निर्धारण को प्रभावित करते हैं, कभी-कभी इनके तरीके अतर्कसंगत एवं गैर-विधिक भी हो जाते हैं। भारत में कई प्रकार के दबाव समूह विकसित हुए हैं: जैसे- व्यवसाय समूह, व्यापार संघ, खेतिहर समूह, पेशेवर समूह, छात्र संघ, धार्मिक संगठन, जातीय समूह आदि ।
भारत के प्रमुख दबाव समूह
> व्यावसायिक समूह – यह सब अपने संयुक्त व्यावसायिक हितों के लिए एकत्रित होते हैं और सरकार पर अपने हितों के लिए नियम बनाने का दबाव डालते हैं। मजदूर संघ, व्यापार संस्थाएं इसी प्रकृति के दबाव समूह में शामिल हैं। फिक्की, एन.एस.यू.आई. जैसे संगठन व्यवसायिक दबाव समूहों के उदाहरण हैं।
> संस्थागत दबाव समूह – यह सरकारी कर्मचारियों तथा अधिकारियों द्वारा निर्मित दबाव समूह है। सरकारी चिकित्सकों का संगठन तथा पै अधिकारियों का संगठन इसके उदाहरण हैं।
> उद्देश्य समूह – इनका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण, मानव अधिकार जैसे सामाजिक विषयों से संबंधित हितों की रक्षा करना है। इसके लिए यह मानव अधिकारों के पक्ष में कार्य करने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं। नर्मदा बचाओं आन्दोलन, नाज फांउडेशन तथा चिपको आन्दोलन आदि उद्देश्य समूह के उदाहरण हैं।
> प्रदर्शनात्मक समूह- यह प्रदर्शन तथा हिंसा के माध्यम से दबाव डालकर अपने हितों की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। पीपुल्स वार ग्रुप, असम गण परिषद् जैसे संगठन ऐसे ही संगठन हैं।
> तदर्थ दबाव समूह- इस प्रकार के समूह किसी विशेष कार्य के लिए बनते हैं और कार्य की सफलता के साथ ही समाप्त हो जाते हैं ।
भारतीय राजनीति में दबाव समूहों की भूमिका
> दबाव समूह विभिन्न समुदायों की मांगों और हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इसलिए ये भारत जैसे एक बहुलवादी राष्ट्र के महत्वपूर्ण अंग हैं। ये लोगों को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
> लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य को प्राप्त करने में दबाव समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
> दबाव समूह मतदाताओं को शिक्षित और जागरूक भी करते हैं और इस प्रकार वे राजनीतिक शिक्षा को बढ़ावा देते हैं।
> दबाव समूहों के माध्यम से नीति निर्माताओं को यह पता चलता है कि कैसे कुछ विशेष मुद्दों पर जनता क्या अनुभव करती है।
> कई आदिवासी समूहों ने जनजातीय आबादी के शोषण के खिलाफ आन्दोलन की अगुवाई की है, और सरकार को विवश किया है कि वो इनके अधिकारों की सुरक्षा हेतु प्रावधान करे। उदाहरण के लिए विभिन्न प्रादेशिक वन नीतियां और वन अधिकार अधिनियम 20061
इन समूहों ने अपने प्रभाव का दुरुपयोगकर कभी-कभी देश के समक्ष प्रतिकूल परिस्थितियां भी उत्पन्न की हैं।
> भारत में कई दबाव समूह मुख्य रूप से असंवैधानिक पद्धतियों के माध्यम से सरकार को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। जैसे- हमले, आन्दोलन, हड़ताल, प्रदर्शन, तालाबंदी आदि ।
> कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के मामले में सुरक्षा को मुद्दा बनाकर प्रचार किया गया और लोगों को एकजुट करके बड़े पैमानें पर विरोध प्रदर्शन किए गए, परिणामस्वरुप परियोजना का संचालन बंद कर दिया गया। बाद की जांच में इसमें दूसरे देश की संलिप्तता पाई गई। इस तरह के विरोध प्रदर्शन से विकास में बाधा पहुंचती है।
> सामाजिक-राजनीतिक समस्या को सड़क पर हल करने की प्रवृत्ति के कारण दबाव समूहों को लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा माना जा सकता है।
> अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ये दबाव समूह राजनीतिक पार्टियों के विरोध तथा समर्थन के माध्यम से चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
इन सभी तथ्यों के बावजूद दबाव समूहों का अस्तित्व लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अनिवार्य है। दबाव समूह राष्ट्रीय एवं विशेष हितों को बढ़ावा देते हैं तथा नागरिकों एवं सरकार के बीच संवाद का एक जरिया बनते हैं।
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