बिहार की राजनीति में राज्यपाल की शक्तियों तथा वास्तविक स्थिति का वर्णन कीजिए।

बिहार की राजनीति में राज्यपाल की शक्तियों तथा वास्तविक स्थिति का वर्णन कीजिए।

अथवा

संविधान में राज्यपालों को दी गई शक्तियों की चर्चा करें। विभिन्न परिस्थितियों में बिहार के राज्यपालों द्वारा लिए गए संवैधानिक अथवा राजनैतिक निर्णयों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
उत्तर – राज्यपाल राज्य का संवैधानिक और कार्यपालिका का प्रधान होता है। राज्यपाल का वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद-153 से अनुच्छेद- 162 तक किया गया है। राज्य का समस्त प्रशासन राज्यपाल के नाम से चलाया जाता है। राज्यपाल की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्षों के लिए किया जाता है, परन्तु भारतीय संविधान
 के अनुच्छेद-156 के अनुसार राज्यपाल का कार्यकाल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त होता है।
बिहार के राज्यपाल की शक्तियां
1. कार्यपालिका संबंधी शक्तियां
> राज्य के मुख्यमंत्री की नियुक्ति (अनुच्छेद-164)
> उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की सलाह पर
> विधानसभा के एक सदस्य का मनोनयन
> विधान परिषद् के कुल सदस्यों की संख्या का 1/6 सदस्यों की नियुक्ति
> राज्य के महाधिवक्ता और राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति
2. वैधानिक शक्तियां
>  राज्य विधानमंडल का सत्र बुलाने, सत्रावसान करने और विधानसभा को विघटित करने का अधिकार।
> धन विधेयक और अनुदान मांगों को सिफारिश करने का अधिकार ।
> विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक, अधिनियमों को राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद ही प्रभावी किया जा सकता है।
>  विधानमंडल के किसी सदस्य के अयोग्यता संबंधी किसी विवाद का अन्तिम निर्णय राज्यपाल द्वारा चुनाव आयोग के सलाह पर।
> राज्यपाल को राज्य के विषयों पर अध्यादेश जारी करने का अधिकार । (अनु.-213)
3. वित्तीय शक्तियां
> धन विधेयक राज्यपाल की सिफारिश के बाद ही पेश किया जा सकता है।
> राज्यपाल की अनुमति से राज्य की आकस्मिक निधि से व्यय ।
> राज्यपाल को अनुदान मांगों की सिफारिश करने का अधिकार।
> वार्षिक बजट विधानमंडल में राज्यपाल पेश करवाते हैं।
4. न्यायिक शक्तियां
> जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं प्रोन्नति
> किसी व्यक्ति को दिए गए दण्ड को कम या माफ कर सकते हैं।
> उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में राष्ट्रपति राज्यपाल से सलाह लेते हैं।
> राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान प्रशासनिक बागडोर राज्यपाल के अधीन हो जाता है।
5. विवेकाधिकार
> आम चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा होने पर राज्यपाल अपने विवेक से किसी भी दल के नेता को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं ।
> राज्यपाल राष्ट्रपति को भेजे जाने वाले संदेश में स्व- विवेक का प्रयोग करते हैं ।
उपर्युक्त तथ्यों को देखने से यह प्रतीत होता है कि राज्यपाल की शक्तियां असीमित हैं। राज्य का कोई भी कार्य राज्यपाल की बिना अनुमति के नहीं किया जा सकता । परन्तु वास्तव में बिहार के राज्यपाल की शक्तियां सीमित हैं। जिस प्रकार केन्द्र में नाममात्र का कार्यपालिका प्रमुख राष्ट्रपति होता है और वास्तविक अर्थों में कार्यपालिका अधिकार प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद् के पास होती है जो सामूहिक रूप से संसद के प्रति जिम्मेदार होती है, ठीक इसी तरह, बिहार में नाममात्र की कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल होता है, जबकि वास्तविक अधिकार मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद के पास होते हैं, जो सामूहिक रूप से राज्य विधायिका के प्रति जिम्मेदार होते हैं। बिहार के राज्यपाल के काम करने का ढंग राज्य की राजनीतिक स्थिति पर निर्भर करता है। सामान्य समय में जब राज्य में बहुमत वाली स्थायी सरकार होती है तब वह नाममात्र का प्रमुख होता है। लेकिन असामान्य परिस्थितियों में जब राज्य में राजनीतिक अस्थिरता होती है तब वह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि उसके पास अनुच्छेद 361 के तहत विशेष विवेकाधिकार होते हैं जिनका इस्तेमाल राज्यपाल केन्द्रीय सरकार के निर्देशानुसार मनमाने ढंग से करता है। मिसाल के तौर पर 1999 में केन्द्र की बाजपेयी सरकार के निर्देशानुसार, बिहार के राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी द्वारा बिना ठोस आधार के राबड़ी देवी सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाना, 2005 में राज्यपाल बूटा सिंह द्वारा किसी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित न करना और मनमाने निर्णय लेकर राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा करना, 2017 में राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी द्वारा केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के निर्देशानुसार काम करना और लालू प्रसाद की सबसे बड़ी पार्टी आर. जे. डी. को सरकार बनाने का मौका न देना जैसे अनेक मिसाल हैं जो दर्शाता है कि बिहार के राज्यपालों की भूमिका राजनीतिक निहितार्थ से ओत-प्रोत रहे हैं।
इस प्रकार बिहार के राज्यपाल के पास काफी शक्तियां हैं परन्तु उनका प्रयोग वह केन्द्र के निर्देशानुसार अथवा मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है। वह राज्य का प्रमुख व केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में नफा-नुकसान के हिसाब से केन्द्र व राज्य के बीच में कभी सेतु, तो कभी खाई का काम करता है।
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