जनांकिकी लाभांश से आप क्या समझते हैं? यू.एन.एफ.पी.ए. की रिपोर्ट के अनुसार, भारत विशेष रूप से बिहार को इसके लाभ उठाने के अवसर किस समय तक प्राप्त होंगे? बिहार द्वारा इस संबंध में उठाए गए कदमों पर प्रकाश डालिए ।

जनांकिकी लाभांश से आप क्या समझते हैं? यू.एन.एफ.पी.ए. की रिपोर्ट के अनुसार, भारत विशेष रूप से बिहार को इसके लाभ उठाने के अवसर किस समय तक प्राप्त होंगे? बिहार द्वारा इस संबंध में उठाए गए कदमों पर प्रकाश डालिए ।

अथवा

जनांकिकी लाभांश का अर्थ, परिभाषा एवं उसकी अवधारणा को समझाएं। 
अथवा
UNDP के अनुसार बिहार को इसका लाभ कब तक और किस तरीके से प्राप्त हो सकता है। 
अथवा
राज्य सरकार को जनांकिकी लाभांश का लाभ उठाने हेतु कौन-कौन से कदम उठाने चाहिए।
उत्तर- संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के अनुसार- “आर्थिक विकास क्षमता जो जनसंख्या की आयु संरचना में बदलाव के परिणामस्वरूप प्राप्त हो सकती है। मुख्य रूप से जब कार्यशील उम्र की आबादी (15 से 64 वर्ष) का हिस्सा गैरकार्यशील उम्र (14 और उससे कम तथा 65 एवं उससे अधिक) की आबादी से बड़ा हो ।” जनसांख्यिकी लाभाश कहलाता है। यह किसी देश में युवा तथा कार्यशील जनसंख्या की अधिकता तथा उससे होने वाले आर्थिक लाभ के रूप में देखा जाता है।
भारत में 62 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या की आयु 15 से 59 वर्ष के मध्य तथा जनसंख्या की औसत आयु 30 वर्ष से कम है, अर्थात् भारत जनसंख्या आयु संरचना के आधार पर आर्थिक विकास की क्षमता का प्रतिनिधित्व करने वाले
जनसांख्यिकी लाभांश के चरण से गुजर रहा है और इस लाभांश का अवसर वर्ष 2005-2006 से वर्ष 2055-56 तक 5 दशकों के लिए उपलब्ध है। बिहार के संदर्भ में यदि देखा जाय तो कार्यशील उम्र समूह (20-59 वर्ष) वाली आबादी 2041 में 55.8 प्रतिशत तक पहुंच जाने की संभावना है।
• जनांकिकीय लाभांश के संभावित लाभ
1. दूसरों पर आश्रित रहने की तुलना में कार्यशील जनसंख्या अधिक होने से संवृद्धि एवं समृद्धि दोनों ही दृष्टि से अप्रत्याशित लाभ की संभावना बढ़ती है।
2. कार्यशील आयु वर्ग समूह अपना भरण-पोषण तो करता ही है, साथ ही साथ दूसरों (पराश्रितों) को सहायता भी देता है।
3. समाज कल्याण कार्यक्रमों पर राज्य सरकार को कम खर्च करना पड़ेगा, जिससे राज्य का राजकोषीय संतुलन बना रहेगा।
4. आर्थिक क्षेत्रों में श्रम बल आपूर्ति सदैव सुनिश्चित रहेगी।
5. युवाओं की अधिक कार्यक्षमता का लाभ उत्पादकता में वृद्धि के रूप में मिलेगा।
•  किन्तु यदि इसे एक चुनौती के रूप में देखा जाय तो जनांकिकी लाभांश से
1. भविष्य में रैपिड एजिंग (वृद्धजनों की संख्या में बढ़ोतरी) की समस्या उत्पन्न होगी यह जनांकिकीय संक्रमण की अंतिम अवस्था होती है।
2. जनांकिकीय लाभांश का लाभ लिए बिना ही राज्य की पराश्रित जनसंख्या का बोझ राजकीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
3. समाज कल्याण संबंधी कार्यक्रमों पर अधिक खर्च करना पड़ेगा।
 4. आर्थिक विकास की गति धीमी हो जाएगी।
5. श्रम – प्रधान क्षेत्रों का विकास अवरूद्ध हो जाएगा।
राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार बिहार में युवा (0-19 वर्ष) की आबादी का हिस्सा घटने लगा है। यह आबादी 2011 के 49.2 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2041 तक मात्र 30.1 प्रतिशत तक रह जाने का अनुमान है, यद्यपि बुजुर्ग आबादी (60 वर्ष और अधिक) का हिस्सा आने वाले दशकों में बढ़ने का अनुमान है। वर्ष 2011 के 7.8 प्रतिशत से वर्ष 2041 में 11.6 प्रतिशत तक । इस प्रकार जनसांख्यिकी लाभांश प्राप्त होने से बिहार में आने वाली स्थिति बिहार में आर्थिक विकास के अधिक अवसर उपलब्ध करवाने वाली हो सकती है। हालांकि इस क्षमता को वास्तविकता में बदलने के लिए किशोरों/युवाओं को स्वस्थ्य एवं सुशिक्षित होना आवश्यक है क्योंकि राज्य का कल्याण इसी पर निर्भर है।
•  बिहार द्वारा इस संबंध में उठाए गए विभिन्न कदम इस प्रकार हैं –
1. स्वास्थ्य संबंधी चुनिंदा सूचकः राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कुछ परिणाममूलक कदमों के कारण विगत वर्षों में स्वास्थ्य संबंधी परिणामों में काफी प्रगति हुई है। जन्मकालीन जीवन संभाव्यता (एल ई बी) का आशय मृत्यु संबंधी वर्तमान स्थिति के किसी नवजात के जीवित रहने के औसत वर्षों से है। यह पर्याप्त पोषण, अच्छा स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य मूल्यवान उपलब्धियों जैसे अनेक आयामों के लिए एक परोक्ष पैमाना होता है। इसके तहत अन्य स्वास्थ्य संबंधी सूचक भी शामिल हैं जैसे- CBR, IMR, CMR, U5MR, NMR, PMR एवं TFR इत्यादि । उपर्युक्त सूचक / मानकों की सहायता से युवा कार्यशील नागरिकों को न्यूनतम जीवन गुणवत्ता प्रदान कर उनके मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है।
2. प्रजनन दर में कमी लाना: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार ‘मिनिमम वेल्थ क्विंटिल’ महिलाओं के ‘उच्चतम वेल्थ क्विटिल’ की महिलाओं की अपेक्षा औसतन 1.6 गुना अधिक बच्चे होते हैं। अर्थात् समृद्धतम से निर्धनतम की ओर बढ़ने पर प्रजनन दर बढ़ती जाती है। इस प्रकार प्रजनन दर का प्रभाव स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर भी पड़ता है क्योंकि उच्च जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों में ही प्रति व्यक्ति स्कूल, अस्पताल बिस्तर इत्यादि की न्यूनतम उपलब्धता पाई जाती है।
3. जीवन की गुणवत्ताः राज्य के निवासियों को न्यूनतम जीवन गुणवत्ता प्रदान करने के लिए शिक्षा एवं स्वास्थ्य प्रणाली पर निवेश करने के साथ-साथ अनाजों एवं खाद्यान्नों का अधिक से अधिक उत्पादन करना होगा। लोगों को रहने के लिए घर, स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति एवं सड़क परिवहन और विद्युत उत्पादन तथा वितरण जैसे बुनियादी ढांचे को सशक्त करने एवं उन्हें समय पर उपलब्ध कराकर समायोजन हेतु राज्य सरकार वांछित माध्यमों से अपने संसाधन को बढ़ा रही है। वर्तमान में अल्प – वित्त पोषित शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण प्रणाली युवाओं को उभरते रोजगार के अवसर का लाभ उठाकर आवश्यक कौशल प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं है ।
4. छीजन दर में कमी लाना: बिहार में विद्यालय छोड़ने के मामलों में कमी शिक्षा क्षेत्र के योजनाकारों द्वारा ध्यान देने के लिए अपेक्षाकृत नया फोकस है। सबको प्राथमिक व बुनियादी शिक्षा देने पर जोर के साथ नामांकन बढ़ा है, जिससे वंचित एवं सीमांत समूह के विद्यार्थी विद्यालय में आ गए, इसके साथ ही प्राथमिक, उच्च एवं माध्यमिक सभी स्तरों पर छात्राओं की छीजन दर छात्रों से कम रही है। इससे यह साफ प्रतीत होता है कि इस सर्वव्यापीकरण से सशक्त एवं समृद्ध मानव पूंजी तैयार हो रही है जो भविष्य में जनांकिकीय लाभांश की कमियों को अवश्य दूर करेगी।
5. महिला सशक्तिकरण: राज्य सरकार ने महिला सशक्तिकरण नीति, 2015 का निर्माण किया और लैंगिक मुद्दों पर ध्यान रखने के लिए महिला विकास निगम के तहत लैंगिक संसाधन केंद्र का निर्माण किया जो समाज कल्याण विभाग का हिस्सा है। साथ ही वर्ष 2008-09 से जेंडर बजट का प्रकाशन आरंभ किया। इस प्रकार राज्य के कुल बजट में महिलाओं पर परिव्यय का हिस्सा विभिन्न वर्षों के मध्य थोड़े बहुत अंतर के साथ लगभग 11 प्रतिशत रहा है जो GSDP का लगभग 3-4 प्रतिशत रहा है। महिला सशक्तिकरण के तहत राज्य सरकार द्वारा बाल विवाह, लिंग आधारित हिंसा, दुर्व्यवहार और तस्करी के प्रति उनकी संवेदनशीलता जैसी समस्याओं के प्रति युवा महिलाओं को उनकी पूरी क्षमता हासिल करने से रोकते हैं।
उपर्युक्त के अतिरिक्त कुछ अन्य कारक भी हैं जिसकी सहायता से राज्य सरकार जनांकिकी लाभांश का लाभ आने वाले समय में ले सकती है। यदि वह इस लाभांश के प्रति सतर्क होकर इसका गुणवत्तापूर्ण उपयोग करे जैसे –
1. शिक्षा, कला संस्कृति एवं युवा कार्य संबंधी क्षेत्र में समुचित ध्यान देकर पर्यटन इत्यादि रोजगार उपलब्ध कराना।
2. आपदा प्रबंधन की स्थिति में मजबूती से परस्पर सहयोग हेतु सशक्त मानव श्रम तैयार कराना।
3. ई-शासन की नींव को आधार प्रदान कर डिजिटल वर्ल्ड में अपनी अमूल्य पहचान बनाना।
4. कानून एवं प्रशासन के अनुरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देना।
5. शांति का वातावरण बनाए रखना ताकि निवेश को आकर्षित किया जा सके।
6. शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कर तार्किक शिक्षा को बढ़ावा देना।
7. व्यक्ति को स्वयं का व्यवसाय प्रारंभ करने हेतु प्रोत्साहित करना ।
8. माल्थस एवं डेविड रिकार्डो के जनसंख्या सिद्धांत का उपयोग कर संसाधनों का समन्वय करना।
निष्कर्षतः अर्थव्यवस्था के समष्टि आर्थिक चर जैसे रोजगार, प्रतिव्यक्ति आय बचत और निवेश से अधिक विकास संभव है लेकिन जनसांख्यिकी लाभांश के साथ आर्थिक विकास हो तो अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सरकार द्वारा जनांकिकी लाभांश के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी इसमें सुधार की आवश्यकता है। क्योंकि यदि किसी कारणवश राज्य की छवि खराब होती है तो इससे निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसी तरह आतंकवादी या अन्य कोई अप्रिय घटना घटती है तो सरकार को शांति स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे, क्योंकि यह आवश्यक नहीं है कि कार्यशील जनसंख्या के बढ़ने से आर्थिक विकास तीव्रगामी होगी। अतः राज्य सरकार को जागरूकता अभियान चलाकर शिक्षा के स्तर को बढ़ाकर तथा गरीबी को समाप्त करने जैसे उपाय अपनाकर जनसंख्या नियंत्रण संबंधित प्रयास करने चाहिए।
> जनाकिंकी लाभांश क्या है एवं इसके लाभ क्या-क्या हैं |
>  जनांकिकी लाभांश किस सीमा तक उचित है।
> जनांकिकी लाभांश के फायदे को बिहार सरकार किस प्रकार अपने राज्य के विकास में उपयोग कर सकती है।
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