भारत में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति की समीक्षा करें।

भारत में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति की समीक्षा करें।

उत्तर – स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात खाद्यान्न की अत्यधिक कमी होने के कारण जमाखोरी और कालाबाजारी बहुत बढ़ गई थी। अत्यधिक लाभ कमाने के लालच में उत्पादक एवं विक्रेता खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल जैसी वस्तुओं में मिलावट भी करने लगे थे। इसके विरोध में हमारे देश में उपभोक्ता आंदोलन एक संगठित रूप में प्रारंभ हुआ। सार्वजनिक वितरण प्रणाली का संचालन बहुत दोषपूर्ण था। राशन दुकानों के विक्रेता प्रायः उपभोक्ताओं को निर्धारित मात्रा में तथा उचित समय पर वस्तुओं की आपूर्ति नहीं करते थे और कई प्रकार की मनमानी करते थे। उपभोक्ता संगठनों ने इनपर निगरानी रखना और अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज करना प्रारंभ किया। ये संगठन अन्य सार्वजनिक सेवाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार का भी विरोध करने लगे थे।  विगत वर्षों के अंतर्गत देश में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है और इन्होंने उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने का प्रयास किया है। इनके प्रयासों के फलस्वरूप इस आंदोलन ने व्यापारिक संस्थानों तथा सरकार दोनों को अनुचित व्यवसाय व्यवहार में सुधार के लिए बाध्य किया है। देश में एक व्यापक उपभोक्ता आंदोलन को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने भी कई उपाय किए हैं। इस दृष्टि से सरकार द्वारा 1986 में पारित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। यह एक अत्यंत प्रगतिशील एवं व्यापक कानन है। हमारा देश विश्व के उन चुने हुए देशों में है जहाँ उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए विशेष उपभोक्ता न्यायालय स्थापित किए गए हैं। पिछले कछ वर्षों में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति अवश्य हुई है, लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है। अभी देश में 700 से भी अधिक गैर-सरकारी उपभोक्ता संगठन हैं, लेकिन इनमें बहुत थोड़े-से ही मान्यताप्राप्त हैं। सरकार इन्हें संगठित करने के लिए प्रयासरत है तथा मान्यताप्राप्त उपभोक्ता संरक्षण संगठनों को आर्थिक सहायता भी प्रदान करती है।

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