भारत में दीर्घकालीन रोजगार नीति का मुख्य मुद्दा रोजगार प्रदान करना नहीं, वरन् श्रमशक्ति की रोजगार क्षमता को बढ़ाना है ।” इस कथन का विवेचन गुणवत्तापूर्ण शिक्षण व प्रशिक्षण के मार्फत ज्ञान व दक्षता के विकास के सन्दर्भ में कीजिए। देश में 2000 के बाद क्षेत्रवार रोजगार सृजन की प्रवृत्तियों और फलितार्थों को भी समझाइए।
भारत में दीर्घकालीन रोजगार नीति का मुख्य मुद्दा रोजगार प्रदान करना नहीं, वरन् श्रमशक्ति की रोजगार क्षमता को बढ़ाना है ।” इस कथन का विवेचन गुणवत्तापूर्ण शिक्षण व प्रशिक्षण के मार्फत ज्ञान व दक्षता के विकास के सन्दर्भ में कीजिए। देश में 2000 के बाद क्षेत्रवार रोजगार सृजन की प्रवृत्तियों और फलितार्थों को भी समझाइए।
अथवा
भारत में कौशल विकास के परिप्रेक्ष्य में प्रशिक्षण व शिक्षण का वर्णन करें तथा 2000 के बाद क्षेत्रवार रोजगार सृजन की क्षमता का वर्णन करें।
उत्तर – रोजगार प्रदान करने से सीधा तात्पर्य व्यक्ति की प्रतिभा का अधिक से अधिक दोहन करना है। इसके लिए आवश्यक है कि व्यक्ति ने किसी भी क्षेत्र में जिसमें, वह रोजगार करना चाहता है, प्रशिक्षण अवश्य लिया हो । बिना प्रशिक्षण क्षमता के उसकी क्षमता का पूर्ण दोहन नहीं हो सकता। समूची दुनिया चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए तैयार है लेकिन भारत नहीं। चौथी औद्योगिक क्रान्ति कारखानों एवं जमीन के उत्पादन में तेजी से परिवर्तन चाहती है। लेकिन भारत में परिवर्तन की दुविधा कुशल तकनीकी दक्ष मानव-शक्ति की है। भारत में कुल श्रम-शक्ति के मात्र 0.8 प्रतिशत के पास कौशल दक्षता प्रमाणपत्र है, जबकि चीन में 11.5 प्रतिशत, यू.एस.ए. में 6.7 प्रतिशत कौशल दक्ष श्रम शक्ति है । औपचारिक कुशल दल श्रम-शक्ति मात्र 4.7 प्रतिशत है, जबकि दक्षिण कोरिया में 96 प्रतिशत, जापान में 80 प्रतिशत तथा जर्मनी में 75 प्रतिशत है। जहां अकुशल श्रम शक्ति की बहुतायत है उन्हें अर्द्धकुशल एवं कुशल बनाए जाने की अत्यधिक आवश्यकता है। वैश्विक मांग को देखते हुए वर्ष 2022 तक 300 मिलियन श्रमिकों को तकनीकी ट्रेनिंग प्रदान की जानी चाहिए। इसलिए भारत की दीर्घकालिक रोजगार नीति का मुख्य उद्देश्य अकुशल श्रम शक्ति को अर्द्धकुशल एवं कुशल श्रमिक में बदलना है जिससे उनकी रोजगार क्षमता बढ़ सकें।
इसमें कोई शक नहीं है कि भारत की युवा शक्ति को उचित रोजगार के अवसर उपलब्ध होने चाहिए, तभी न केवल देश का तेजी से भावी विकास किया जा सकेगा, बल्कि युवा पीढ़ी की ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदला जा सकेगा। वर्तमान परिदृश्य में हमारी सबसे बड़ी विफलता गुणवत्तापूर्ण शिक्षण प्रशिक्षण की कमी है। मौजूदा शिक्षण संस्थान वैश्विक स्तर पर तय मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं। भारत में मौजूदा शिक्षा व्यवस्था केवल एक व्यापार का साधन बन गया है। भारत के अधिकतर संस्थानों का ध्यान अच्छी व गुणवत्तापूर्ण शिक्षण प्रशिक्षण में नहीं, बल्कि केवल व्यापार तक सीमित रह गया है। हमारी शिक्षा प्रणाली चूहे की दौड़ को बढ़ावा देती है। शिक्षण संस्थानों के लिए सिर्फ भीड़ तंत्र ही सफलता का पर्याय है। हमारी व्यवस्था बच्चों के अंदर सिर्फ रटने की क्षमता को बढ़ावा दे रही है, जबकि आवश्यकता है विश्लेषणात्मक कौशल की। वर्तमान शिक्षा प्रणाली किसी बच्चे के व्यक्तित्व को विकसित करने में मदद नहीं कर रही है। गांधीजी का विचार था कि काम और ज्ञान कभी अलग नहीं होना चाहिए।
इस प्रकार दीर्घकालिक रोजगार नीति का मुख्य उद्देश्य रोजगार प्रदान करना नहीं, बल्कि शिक्षण व प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार करना है। कौशल विकास राष्ट्रीय नीति का उद्देश्य बेहतर कौशल, ज्ञान और राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त योग्यता के माध्यम से सभ्य रोजगार तक पहुंच प्राप्त करने और वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए सभी व्यक्तियों को प्रशिक्षण के माध्यम से सशक्त बनाना है।
यहां उल्लेखनीय है कि भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदानकर्ता सेवा क्षेत्र है जिसमें अत्यधिक कुशल श्रमिकों की आवश्यकता है। सेवा क्षेत्र में भारत की कुल कार्यशील जनसंख्या केवल 5% से भी कम जनसंख्या संलग्न है। दूसरा क्षेत्र विनिर्माण क्षेत्र है जिसका अर्थव्यवस्था में योगदान दूसरा है तथा लगभग 30% कार्यशील जनसंख्या इसमें संलग्न है। भारत का उद्देश्य इसी विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार को बढ़ाना है, इसके लिए सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम लांच किया है। इस अनिवार्य को पूरा करने के लिए 15 जुलाई, 2015 को विश्व युवा कौशल दिवस पर कौशल भारत कार्यक्रम शुरू किया गया है। लेकिन इसके माध्यम से स्थापित संस्थाएं ठीक ढंग से कार्य नहीं कर रही हैं। ये संस्थाएं केवल प्रमाण-पत्रों तक ही सीमित रह गई हैं। इस प्रकार, सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना भी सही कार्यान्वयन न होने से रोजगार प्रशिक्षण प्रदान करने में असक्षम हो रही है।
रोजगार और विकास किसी भी अर्थव्यवस्था की विकास प्रक्रिया के लिए दो बुनियादी संकेतक हैं। वे भारतीय अर्थव्यवस्था के समावेशी विकास की स्थिरता की प्रप्ति में महत्वपूर्ण चक्र के रूप में कार्य करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार उत्पादन पर 1970-1980 के दशक के उत्तरार्ध से ध्यान केन्द्रित किया गया और यह देखा गया कि देश ज्यों-ज्यों विकास क्रम में आगे बढ़ेगा वैसे-वैसे ही उस देश में रोजगार तृतीयक क्षेत्र में बढ़ता जाएगा तथा प्राथमिक क्षेत्र में रोजगार घटता जायेगा।
वर्ष 2000 के बाद के परिदृश्य में यदि अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्रों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि अन्य देशों के मुकाबले हमारे देश में इन क्षेत्रों में परिवर्तन दर बहुत ही धीमी रही है। यदि हम प्राथमिक क्षेत्र पर गौर करें तो पाते हैं कि 1999-2000 से इस क्षेत्र में रोजगार दर कभी नकारात्मक तथा कभी सकारात्मक बनी हुई है। यदि औसत में देखें तो इसमें लगभग 2% की कमी आई है। इसी प्रकार विनिर्माण क्षेत्र में लगभग 10% की वृद्धि तथा सेवा क्षेत्र में लगभग 80% की वृद्धि दर्ज की गई है। इस प्रकार इनका सकल घरेलू उत्पादन में योगदान में वृद्धि क्रमश: लगभग 2.7%, 7% तथा 9% है।
इस प्रकार प्रतिशत वृद्धि दर सर्वाधिक सेवा क्षेत्र में है लेकिन यह आज भी केवल कुल कार्यशील जनसंख्या का 5% तक ही है। प्राथमिक क्षेत्र में सबसे ज्यादा कार्यशील जनसंख्या संलग्न है। इसलिए आवश्यक है कि प्राथमिक क्षेत्र की कार्यशील जनसंख्या को उचित कौशल प्रशिक्षण के माध्यम से उन्हें अधिक से अधिक रोजगार प्रदान किया जाए, जिससे प्राथमिक क्षेत्र पर कार्यशील जनसंख्या का बोझ कम किया जा सके।
> भारतीय कुशल तकनीकी दक्ष जनसंख्या का विश्व की अन्य देशों से तुलना
> दीर्घकालीन रोजगार नीति का उद्देश्य
> वर्तमान शिक्षण व कौशल प्रशिक्षण में दोष
> कौशल प्रशिक्षण में सरकार द्वारा उठाए गए वर्तमान कदम
> वर्ष 2000 के बाद विभिन्न सेक्टर में रोजगार की प्रवृत्तियां
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