भारतीय कृषि में संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिए। देश में उत्पादकता में सुधार लाने और कृषि आय को बढ़ाने के उपाय भी सुझाइए।

भारतीय कृषि में संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिए। देश में उत्पादकता में सुधार लाने और कृषि आय को बढ़ाने के उपाय भी सुझाइए।

अथवा

भारतीय कृषि में संवृद्धि एवं उत्पादकता की साल दर साल हुए परिवर्तन की व्याख्या करें। प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ाने तथा कृषि आय बढ़ाने के उपाय बतायें।
 उत्तर- कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। कृषि, भारत में सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करने वाला क्षेत्र है तथा साथ ही साथ अधिकतर व्यक्तियों की जीविका प्रदान करने वाला साधन भी है। इसके अलावा जनसंख्या का एक बड़ा भाग कृषि पर आधारित उद्योगों में और कृषि उत्पादों के व्यापार में रोजगार प्राप्त करता है। कृषि बहुत से उद्योगों के लिए उत्पादों के मांग की जनक भी है। इन सबके बावजूद एक लम्बे समय तक कृषि में वृद्धि, गैर-कृषि क्षेत्रों में वृद्धि से कम रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार, राष्ट्रीय आय व अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आयाम के अन्तर्गत कृषि का महत्वपूर्ण स्थान है।
भारत में कृषि में संवृद्धि की प्रवृत्ति कृषि देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती है लेकिन स्वयं अर्थव्यवस्था में सबसे धीमी गति वाला क्षेत्र है। हरित क्रांति के काल से पहले आजादी से लेकर 1964-65 ई. तक कृषि क्षेत्र की वार्षिक औसत वृद्धि 2.7 प्रतिशत थी। इस काल में भूमि सुधार व सिंचाई साधनों की दिशा में पर्याप्त विकास हुआ हरित क्रांति के समय में 1961-1981 तक कृषि क्षेत्र में औसत वृद्धि 3.0 प्रतिशत तथा 1980-81 से 1990-91 के मध्य 3.5 प्रतिशत रही है। 1992-93 के दौरान कृषि क्षेत्रों में वृद्धि प्रतिशत 2.9 व 1997-98 से 2006-07 के मध्य कम होकर 2.5 प्रतिशत हो गई। आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार मौजूदा कृषि वृद्धि दर घटकर 2.1 प्रतिशत हो गई।
 कृषि उत्पादकता की प्रवृत्ति- कृषि उत्पादकता की प्रवृत्ति को मुख्यतः दो भागों में बांटकर अध्ययन कर सकते हैं
1. भूमि की उत्पादकता – इसे प्रति हेक्टेयर उत्पादन द्वारा निरूपित किया जा सकता है। आजादी के शुरुआती समय में सभी फसलों में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम था। दो मुख्य खाद्यान्न फसलों गेंहू व चावल ने 70 के दशक में उत्पादकता
में प्रभावशाली वृद्धि अर्जित की। अन्य खाद्यान्न फसलों में उत्पादकता में वृद्धि बहुत धीमी रही। अखाद्यान्न फसलों में सिर्फ कपास में ही उत्पादकता वृद्धि प्राप्त की। तिलहनों में उत्पादकता में वृद्धि बहुत ज्यादा उत्साहवर्धक नहीं रही।
2. कृषि में कार्यरत व्यक्तियों की उत्पादकता – इसे प्रति व्यक्ति उत्पाद के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। भारत में प्रति व्यक्ति कृषि उत्पादन विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। यह इस बात से सिद्ध होता है कि भारत के कुल श्रमबल जनसंख्या का 48% भाग कृषि में कार्यशील है। परन्तु इसका राष्ट्रीय आय में योगदान मात्र 16% है।
•  उत्पादकता एवं आय में सुधार लाने के उपाय
> नई राष्ट्रीय कृषि नीति की शुरुआत की गई है। इसके अन्तर्गत किसानों को सूखा एवं वर्षा के साथ-साथ अन्य आपदाओं के लिए राहत प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। हाल ही में शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा के माध्यम से फसल बीमा को काफी व्यापक बनाया गया है ।
> सरकार द्वारा शुरू की गई मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना मृदा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। इस योजना में मृदा की प्रकृति को परख कर फसल और उर्वरक आदि का निर्धारण किया जाता है।
> किसानों की साख में सुधार के लिए प्रधानमंत्री कृषि विकास योजना, किसान विकास पत्र आदि को आरंभ किया गया है।
> किसानों के उत्पादों के उचित एवं एकीकृत मूल्य प्रदान करने के लिए ई-नाम (e-NAM) की शुरुआत की गई है।
> सरकार द्वारा एमएसपी को फसल लागत का डेढ़ गुना करने की घोषणा
> फसल विविधीकरण कार्यक्रम
>  नीम कोटेड यूरिया का प्रयोग
> प्रति बूंद अधिक फसल (Per drop more crop) सिद्धान्त
> गोदामों और कोल्डचेनों में अधिक निवेश
> खाद्य प्रसंस्करण के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना शुरू
नोट:- कृषि मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव अशोक दलवई की अध्यक्षता में केन्द्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लिए समिति की घोषणा की है। इस समिति ने नीति आयोग के साथ एक सात सूत्रीय कार्यक्रम पेश किया है।
• उत्पादकता एवं आय में सुधार लाने के लिए सुझाव् 
> सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं का ठीक ढंग से क्रियान्वयन तथा जमीनी स्तर तक निगरानी तंत्र का विकास।
> ये सभी योजनाएं बड़े व सीमान्त किसानों तक ही सीमित रह जाते हैं, छोटे व मंझोले किसान इसके लाभ से वंचित रहते हैं। इसलिए इन योजनाओं को जन-जागरूकता के माध्यम से इन छोटे व मझोले किसानों तक पहुंचाया जाए।
> जैविक खेती को बढ़ावा देकर मिट्टी की उत्पादकता को बढ़ाना व किसानों की लागत को कम करना ।
> डेयरी-पशुपालन, मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन, मेढ़ पर पेड़, बागवानी, मछली पालन आदि जैसी सहायक गतिविधियों को बढ़ावा देना।
> मनरेगा को कृषि व्यवस्था से जोड़ना, जिससे किसानों की लागत कम होगी तथा सही समय पर कृषि मजदूर उपलब्ध होंगे। यद्यपि कृषि उत्पादन में हरित क्रान्ति के बाद कुल खाद्यान्न उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई है जो लगातार अब भी बढ़ती जा रही है। लेकिन उत्पादन वृद्धि के अनुसार उत्पादकता में वृद्धि बहुत कम रही है। हाल के वर्षों में उत्पादकता में गिरावट की प्रवृत्ति रही है। उत्पादकता में गिरावट का एक प्रमुख कारण फसल विविधीकरण तकनीकी को न अपनाना है। मानसून ने भी काफी हद तक प्रभावित किया है। खेत की उत्पादकता बढ़ाने तथा किसानों की आय बढ़ाने के लिए बहुत बड़ी संख्या में सरकारी प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन क्रियान्वयन सही न होने तथा निगरानी तंत्र सुदृढ़ न होने के कारण इन कार्यक्रमों का सुचारू रूप से प्रभाव नहीं दिखाई पड़ रहा है। इसलिए आवश्यक है इन कार्यक्रमों के लिए निगरानी तंत्र को मजबूत कर कार्यान्वयन सुचारू ढंग से किया जाए ।
> भारतीय कृषि में वृद्धि की प्रवृत्ति
> उत्पादकता एवं आय में सुधार लाने का सरकारी उपाय
> कृषि उत्पादकता की प्रवृत्ति
> उत्पादकता एवं आय बढ़ाने के लिए सुझाव
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