भारतीय अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका की व्याख्या कीजिए।

भारतीय अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका की व्याख्या कीजिए।

अथवा

विश्व व्यापार संगठन का परिचय दें।
अथवा
संक्षेप में विश्व व्यापार संगठन की विश्व व्यापार में भूमिका को स्पष्ट करें।
अथवा
भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका का मूल्यांकन करें।
उत्तर – विश्व व्यापार संगठन का मूल “ प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता”, “(GATT, (General Agreement on Tariffs and Trade)” में निहित है। GATT की स्थापना 1948 में मूलतः 23 संस्थापक देशों द्वारा की गई थी जिनमें भारत भी एक था। GATT के तत्त्वावधान में हुई आठवें दौर की वार्ता (1986-1994) के फलस्वरूप 1 जनवरी, 1995 को ” विश्व व्यापार संगठन” (World Trade Organisation) जा जन्म हुआ, जिसे “उरग्वे दौर” के नाम से जाना जाता है। इसके पहले GATT केवल वस्तुओं के व्यापार तक सीमित था। उरुग्वे दौर की वार्ता में कई नए समझौतों पर भी बातचीत हुई, जिनमें सेवा व्यापार का आम समझौता और बौद्धिक सम्पदा अधिकार के व्यापार से जुड़े पहलुओं पर समझौते अब मूल संगठन “विश्व व्यापार संगठन” में समाहित हो गये हैं। विश्व व्यापार संगठन (WTO) का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में है और इसके वर्तमान में भारत समेत 164 सदस्य देश हैं। इससे जुड़ने वाला नवीनतम देश अफगानिस्तान है। विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य
•  विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य
 विश्व के देशों को व्यापार एवं तकनीकी क्षेत्रों में एक नई राह पर लाना है। विश्व व्यापार संगठन का मुख्य उद्देश्य विश्व में मुक्त, अधिक पारदर्शी तथा अधिक अनुमन्य व्यापार व्यवस्था को स्थापित करना है। विश्व व्यापार संगठन ठोस कानूनी तंत्र पर आधारित है। इसके समझौतों की सदस्य देशों के सांसदों द्वारा पुष्टि की गई है। महत्त्वपूर्ण फैसले सदस्य देशों के निर्दिष्ट मंत्रियों द्वारा किये जाते हैं। ये मंत्री हर दो साल में कम-से-कम एक बार जरूर मिलते हैं। विश्व व्यापार संगठन (WTO) को विभिन्न देशों के व्यापारिक मतभेदों को सुलझाने की शक्ति प्राप्त है।
• भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका
भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) का संस्थापक सदस्य होने के नाते, इस संगठन के निर्णयों का पालन करता है। इन के परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक के साथ-साथ कुछ नकारात्मक प्रभाव भी पड़े हैं। विश्व व्यापार संगठन भारत पर इस बात के लिए दबाव डालता रहा है कि वह आयात शुल्कों को कम करे, उपभोक्ता वस्तुओं के आयात पर लगाई गई पाबंदियों को हटाये एवं मात्रात्मक प्रतिबंधों को कम करे, इत्यादि । हालांकि भारत ने ईमानदारी से इस संधि का अनुकरण किया, सीमा शुल्कों को साल दर साल घटाया गया ताकि वह विश्व व्यापार संगठन के प्रस्तावों से युक्तिसंगत बन जाए। जैसे- आयात शुल्कों द्वारा दिया गया संरक्षण धीरे-धीरे हटा लिया गया, इसके परिणाम स्वरूप भारतीय उद्योग को विदेशी वस्तुओं के साथ बढ़ती हुई स्पर्धा का सामना करना पड़ा। विश्व बाजार में उच्च गुणवत्ता एवं सस्ते दामों पर वस्तु उपलब्ध कराना भारतीय उद्योगों की पहचान बन गई है। भारत ने कोटा, आयात एवं निर्यात लाइसेंसों के रूप में 2700
से अधिक कृषि वस्तुओं, टैक्सटाइल एवं औद्योगिक उत्पादों पर से मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटा लिये गये। इससे भारतीय उपभोक्ताओं को विश्व स्तरीय सामान मिलना आसान हो गया एवं भारतीय उद्योगों को इस प्रतिस्पर्द्धात्मक बाजार में बने रहने के लिए नयी तकनीक एवं नई नीति का अनुसरण करना पड़ा। इससे इसकी उत्पादकता बढ़ी । विश्व व्यापार संगठन का भारत को एक सदस्य होने के नाते विश्व व्यापार में अपने आय को खड़ा करने का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ है। भारत की विश्व व्यापार में हिस्सेदारी जहां 1980 में 0.57 फीसदी के आस-पास थी तो वहीं आज यह बढ़कर दो फीसदी के करीब पहुंच गयी है।
नियंत्रित एवं आन्तरिक दृष्टि रखने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था बाह्य दृष्टि वाली हो रही है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को और अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है तथा सार्वजनिक क्षेत्र के आकार को और छोटा किया जा रहा है। सभी प्रकार के परिमाणात्मक अवरोधों को 1 अप्रैल, 2001 से समाप्त कर दिया गया है एवं अब बाजार विदेशी सामानों के लिए खुला हुआ है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में न केवल विनिवेश आरम्भ हो गया है, बल्कि कई निगम निजी उद्यमियों के हाथों बेच भी दिये गये हैं।
भारत आज विश्व व्यापार संगठन सम्मेलन में विकासशील देशों का नेतृत्व कर रहा है। हांगकांग मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भारत एवं ब्राजील ने 110 विकासशील देशों की आवाज को सशक्त रूप से रखा और बदले में कुछ उपलब्धियां भी हासिल कीं, जिसमें वर्ष 2013 तक विकसित देशों द्वारा कृषि निर्यात सब्सिडी खत्म किया जाना भी शामिल है। इसी सम्मेलन में भारत ने 8 अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर गैर-कृषि बाजार पहुंच पर एक कार्यदल गठित किया। विकासशील देशों के दो आग्रहों, विकासशील देशों के लिए लचीलापन एवं दोहा विकास राउण्ड में संशोधित विकास पर अधिक ध्यान नहीं देने के कारण ही कार्यदल गठित किया गया है। भारत ने इस सम्मेलन में स्पष्ट कहा कि विकासशील देशों से यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि वे धनी देशों से आयातित उत्पादों पर शुल्क में कटौती कर देंगे।
भारत ने हाल ही में ‘खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 लागू किया जिसका उद्देश्य देश की जनसंख्या को भुखमरी, कुपोषण से दूरे रखने के लिए तथा लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर है। इसका विरोध विश्व व्यापार संगठन के मंत्री स्तरीय सम्मेलन बाली (इण्डोनेशिया) में विकसत देशों के द्वारा किया गया। उक्त सन्दर्भ में विकसित देशों ने भारत पर आरोप लगाया कि भारत सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्नों को बाजार में क्रय सस्ते मूल्य पर उपभोक्ताओं को उपलब्ध करायेगी। परिणामस्वरूप सब्सिडी के कारण खाद्यान्नों की कीमतें सरकारी सहायता के कारण बढ़ नहीं पायेंगी, वहीं इससे कृषकों को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना से अनुचित लाभ प्राप्त होगा।
विकसित देशों के इस विरोध में भारत ने अपने तर्क देते हुए कहा कि उसकी कुछ सामाजिक आर्थिक जरूरतें हैं, इन जरूरतों को देखते हुए या कृषि सब्सिडी के नियमों में छूट दी जाए अथवा कृषि मूल्य का आकलन 1988 की कीमतों के आधार पर किया जाए। साथ ही सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों के तहत भुखमरी और कुपोषण उन्मूलन के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए यह अधिनियम आवश्यक है।
स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में विश्व व्यापार संगठन की सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों तरह की भूमिका रही है तथा भारत WTO में विकासशील देशों के हितों के लिए नेतृत्वकर्ता के रूप में कार्य कर रहा है।
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