भिन्न-भिन्न तरह के पाठों के बारे में लिखिए। कहानी को विस्तार से समझाइए ।
भिन्न-भिन्न तरह के पाठों के बारे में लिखिए। कहानी को विस्तार से समझाइए ।
उत्तर— लिखित अभिव्यक्ति को जब व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया जाता है तो यह लिखित पाठ्यवस्तु या पाठ कहलाती है । लेखन के स्वरूप के आधार पर पाठ का स्वरूप निर्धारित होता है। इस प्रकार विभिन्न पाठों का निर्माण और उनका अध्ययन किया जाता है। पठन और लेखन के सन्दर्भ में विभिन्न प्रकार के पाठों का वर्णन निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत है—
(1) वर्णनात्मक पाठ- वर्णन शब्द का अर्थ व्यापकता के साथ किसी विषयवस्तु को व्यक्त किया जाना है। वर्णन के अन्तर्गत वर्णनकर्त्ता की भावना छिपी होती है। इसलिए वर्णन के समय प्रायः अतिशयोक्ति की स्थिति भी पाई जाती है; जैसे—शिवाजी की गाथा वर्णन में शिवाजी की प्रशंसा में अभिव्यक्ति का समावेश पाया जाता है। इसमें विभिन्न प्रकार की भावनाओं का वर्णन के लिए ध्यान शैली एवं भाव बोधक भाषा का प्रयोग करना अनिवार्य है। इस प्रकार वर्णन की अवधारणा को विवरण से पृथक् माना जाता है। वर्णन में व्यक्ति के अपने विचार भी सम्मिलित होते हैं ।
(2) व्याख्यात्मक पाठ—व्याख्या शब्द का अर्थ है समझना और समझकर विवेचन करना । समीक्षा और समालोचना शब्दों का यही अर्थ है । अंग्रेजी के ‘क्रिटिसिज्म’ शब्द के समानार्थी रूप में आलोचना शब्द का व्यवहार होता है। संस्कृत में प्रचलित ‘टीका व्याख्या’ और काव्य सिद्धान्त निरूपण के लिए भी आलोचना शब्द का प्रयोग कर लिया जाता है, किन्तु रामचन्द्र शुक्ल का स्पष्ट मत है कि आधुनिक आलोचना संस्कृत के काव्य सिद्धान्त निरूपण से भिन्न वस्तु है ।
व्याख्या का कार्य है किसी साहित्यिक रचना की अच्छी प्रकार परीक्षा करके उसके रूप, गुण अर्थ-व्यवस्था का निर्धारण करना । व्याया करते समय व्याख्याकार अपने व्यक्तिगत राग-द्वेष, रुचि- अरुचि से तभी बच सकता है, जब पद्धति का अनुसरण करे, तभी वह वस्तुनिष्ठ होकर साहित्य के प्रति न्याय कर सकता है। भाषा के विकास के लिए यह आवश्यक है कि लेखन के विकास की प्रक्रिया को व्यावहारिक जीवन से जोड़ा जाए। अपने दैनिक जीवन में हमें अनेक प्रकार की घटनाएँ देखने, सुनने को मिलती हैं। यदि इन घटनाओं के व्याख्यात्मक विवरण लिखे जाएँ तो लेखन का अच्छा अभ्यास हो जाता है।
(2) आत्मकथात्मक पाठ—आत्मकथा स्वयं लेखक द्वारा अपने जीवन का सम्बद्ध वर्णन है । प्रायः दो उद्देश्यों को लेकर आत्मकथा लिखी जाती है—(i) आत्म-निर्णय या आत्म-परीक्षण, (ii) विश्व और समाज के जटिल परिवेश में स्वयं को जानने-समझने की इच्छा । आत्मकथा लेखक का बहुत बड़ा गुण उसकी ईमानदारी है। चूँकि लेखक स्वयं अपनी जीवनी लिखता है, इसलिए उसमें आत्म-ग्रस्त होने की सम्भावना होती है। आत्म-मोह से बच सकने वाले आत्मकथा लेखक में एक दूसरा महत्त्वपूर्ण गुण भी उत्पन्न हो जाता है । वह गुण है अपने युग और समाज का प्रामाणिक दस्तावेज प्रस्तुत करना । इससे बहुत बड़ा अन्तर नहीं पड़ता कि लेखक महानायक है या साधारण आदमी । लेखक के ईमानदार होने पर उसके जीवन की घटनाएँ सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक पहलुओं से जुड़ी हुई लगेंगी। उस वास्तविक प्रसंग में वह अपने आप को जाँच सकेगा। इसी कारण सामान्य पाठक भी किसी भी आत्मकथा को उपयोगी और रुचिकर मानकर पढ़ता है। राजेन्द्र प्रसाद–आत्मकथा, यशपाल–सिंहावलोकन और हरिवंशराय बच्चन – क्या भूलूँ क्या याद करूँ, प्रमुख आत्मकथा लेखक हैं ।
कहानी—कहानी गद्य साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा है। आधुनिक साहित्य में कहानी एक लोकप्रिय विधा मानी जाती है।
हेनरी हडसन के अनुसार, “कहानी कला का एक खण्ड है और उसके साथमूल्यांकन का आधार उद्देश्य तथा प्रभाव की एकता है । “
डॉ. श्यामसुन्दर दास कहते हैं, “आरण्यनिका का निश्चित लक्ष्य या प्रवाह को लेकर लिया गया नाटकीय आख्यान है।”
कहानी शिक्षण के सिद्धान्त–कहानी विधि अधोलिखित सिद्धान्तों पर आधारित हैं—
(i) इसमें छात्रों की रुचियों को प्रधानता दी जाती है । इसलिये यह मनोविज्ञान के सिद्धान्तों पर आधारित है।
(ii) बालकों की स्मरण शक्ति का विकास होता है ।
(iii) साहित्य के प्रति अनुराग विकसित होता है।
(iv) बालकों का सामाजीकरण स्वाभाविक रूप में होता है।
(v) बालकों में कल्पनाशक्ति का विकास होता है।
(vi) बालकों की सृजनात्मक क्षमताओं का प्रशिक्षण होता है
और संवेगों के नियंत्रण की क्षमता विकसित होती है।
कहानी की शिक्षण विधि—कहानी गद्य साहित्य का रोचक साहित्य के साथ कहानी शिक्षण विधि भी है। विद्यालय के विषयों के विभिन्न शिक्षण में कहानी-विधि का प्रयोग किया जाता है। छोटे बच्चों के शिक्षण हेतु इसका प्रयोग अधिक होता है। कहानी का कहानी-विधि से ही शिक्षण किया जाता है ।
प्लेटो ने छोटे बालकों को सिखाने के लिये शिक्षण की सर्वोत्तम विधि बतलाया है। कहानी कहना एक कला है। बालक कहानियों को स्वाभाविक रूप में स्मरण कर लेते हैं। बालक अक्सर नायक पूजक होते हैं। वीर गाथायें छात्रों में जिज्ञासा एवं कौतूहल जाग्रत करती हैं, संवेगों को नियंत्रित और गतिशील बनाती हैं। इस विधि में बालक सक्रिय तथा एकाग्रचित्त रहता है ।
कहानी का प्रस्तुतीकरण–अध्यापक को कहानी को निम्न प्रकार प्रस्तुत करना चाहिए—
(i) अध्यापक को कहानी कहने की कला आनी चाहिये । इसके लिये उन पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिये जो कहानी कहने की कला से सम्बन्धित है।
(ii) अध्यापक जिस कहानी को सुना रहा हो, वह उसे भी रोचक लगे। यदि कहानी उसकी रुचि के अनुकूल नहीं होगी; तो वह उसे प्रभावशाली ढंग से छात्रों के समक्ष नहीं प्रस्तुत कर सकेगा।
(iii) कहानी कहते समय अध्यापक को कहानी में ही लीन हो जाना चाहिये । कहानी जितनी डूबकर सुनाई जायेगी उतनी ही बालकों के हृदय को छुएगी।
(iv) अध्यापक कहानी पुस्तक में से न पढ़े वरन् छात्रों को मौखिक सुनाये । पुस्तक से पढ़कर कहानी सुना देने से छात्रों पर प्रभाव नहीं पड़ता। इसके विपरीत यदि अध्यापक कहानी सुनाता है, तो वह उसकी अपनी हो जाती है। उसका व्यक्तित्व कहानी में झलकता है। अतः यथासम्भव अध्यापक कहानी याद करके ही बालकों को सुनायें।
(v) कहानी को सुनाने से पूर्व अध्यापक को कहानी में आने वाली घटनाओं का अध्ययन भली प्रकार से कर लेना चाहिए। बीच-बीच में भूल जाना हास्यास्पद हो सकता है।
कहानी का महत्त्व—भाटिया दम्पत्ति के अनुसार, “हम चाहते हैं कि छोटी कक्षाओं का शिक्षक कहानी सुनाने में निपुण हो इसके द्वारा ही इन छोटे-छोटे विद्यार्थियों के सम्पर्क में आता है जो उनके देख-रेख में छोड़े जाते हैं। एक अच्छी कहानी विद्यार्थी के हृदय पर प्रभाव डालती है तथा सुनने वाले के ध्यान को खींचती है। विद्यार्थियों की कुछ शिखा कहानी के द्वारा ही हो जाती है। “
शैक्षिक दृष्टि से कहानी का महत्त्व हम निम्नांकित शब्दों में व्यक्त कर सकते है—
(i) कहानी मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन है।
(ii) कहानी शिक्षण द्वारा बालकों का सर्वांगीण विकास होता है।
(iii) कहानी ज्ञान-वृद्धि का एक साधन है।
(iv) कहानी के द्वारा बालकों की कल्पना शक्ति का विकास होता है।
(v) कहानी के माध्यम से बालकों को नैतिकता की शिक्षा दी जा सकती है
(vi) कहानी द्वारा अर्थग्रहण, अभिव्यक्ति, सृजनात्मकता का विकास होता है।
(vii) कहानियों के द्वारा बालकों की रुचि जाग्रत होती है ।
(viii) कहानी कथन से कक्षा में अनुशासन बनाए रखने तथा प्रकृति निरीक्षण में सहायता मिलती है। अन्य विषयों को पढ़ाने में रोचकता लाई जा सकती है।
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