मगध साम्राज्य का उत्कर्ष

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष
(Magadha Empire Flourished)

मगध राज्य के आरंभिक इतिहास की चर्चा महाभारत में आई है। गंगा से उत्तर की ओर विदेह राज्य और दक्षिण की ओर मगध राज्य का उल्लेख महाभारत में आया है। इसमें मगध के शासक जरासंध का उल्लेख है जिसे भीम ने द्वन्द-युद्ध में पराजित किया था। यह घटना कौरवों और पाण्डवों के बीच हुए महायुद्ध से कुछ पहले की थी। इस घटना के सही तिथिक्रम का निर्धारण कठिन है। छठी शताब्दी ई०पू० के पश्चात मगध का राजनैतिक स्थिति सुदृढ़ होने लगी। इसमें दो शासकों की देन निर्णायक थी, बिम्बिसार और अजातशत्रु। दोनों हरयंक वंश के शासक थे और महात्मा बुद्ध के समकालीन थे।

महावंश के अनुसार बिम्बिसार ने पन्द्रह वर्ष की आयु में सिंहासन प्राप्त किया और अर्द्ध शताब्दी से अधिक समय तक शासन किया (544-492 ई०पू०)। उसी के अधीन मगध साम्राज्य-विस्तार आरंभ हुआ। वह एक महत्वाकांक्षी शासक था और योग्य कूटनीति अपनी राजनैतिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए उसने वैवाहिक संबंधों की नीति अपनाई। उसकी पहली पत्नी कोशलदेवी, कोशल की राजकुमारी थी। इस विवाह में दहेज के रूप में को काशी का क्षेत्र प्राप्त हुआ। साथ ही कोशल का शासक उसका मित्र हो गया। इससे अन्य राज्यों के साथ संघर्ष के साथ संघर्ष में बिम्बिसार की स्थिति मज़बूत हुई। उसकी दूसरी पली चेल्लना, वैशाली के लिच्छवी शासक परिवार की राजकुमारी थी। इस विवाह से बिम्बिसार के संबंध बज्जियों के साथ सुदृढ़ हुए। उसकी तीसरी पत्नी पंजाब की मद्र राजकुमारी थी। पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं को सुरक्षित कर लेने के बाद बिम्बिसार ने अपने पूर्वी पड़ोसी, अंग के राज्य पर चढ़ाई वहाँ के शासक ब्रह्मदत्त का वध कर दिया। अंग की राजधानी चम्पा में उसने अपने पुत्र अजातशत्रु को शासक नियुक्त किया। उसका युद्ध अवन्ती के शासन चंद प्रद्योत महासेन के साथ हुआ जो अनिर्णायक रहा। अंततः दोनों ने मैत्री कर ली और प्रद्योत के उपचार के लिए बिम्बिसार ने अपने चिकित्सक जीवक को उज्जैन भेजा। एक विवरण के अनुसार बिम्बिसार का कूटनीतिक सम्पर्क गंधार के शासक से भी रहा । इस प्रकार बिम्बिसार ने युद्ध और कूटनीति से मगध के क्षेत्रों का विस्तार किया और अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि की।

बिम्बिसार के जीवन का अंत दुःखद परिस्थितियों में हुआ। उसके महत्त्वकांक्षी पुत्र अजातशत्रु ने सिंहासन पर अधिकार करने के लिए अपने पिता को बंदी बना लिया। बौद्ध स्रोतों में अजातशत्रु को अपने पिता का हत्यारा कहा गया है परन्तु जैन स्रोत इससे सहमत नहीं। अजातशत्रु (492-460 ई०पू०) ने अपने पिता की साम्राज्यवादी नीति को आगे बढ़ाया। उसने दो महत्त्वपूर्ण युद्ध लड़े –

पहला युद्ध कोशल के शासक प्रसेनजीत के साथ हुआ जिसने काशी पर पुनः अधिकार कर लिया था। अजातशत्रु ने प्रसेनजीत को पराजित कर संधि पर बाध्य कर दिया। काशी का क्षेत्र मगध को पुनः प्राप्त हुआ और कोशल की राजकुमारी वजिरा का विवाह अजातशत्रु के साथ हुआ। दूसरा युद्ध वज्जि गणराज्य के साथ हुआ। इसके लिए गंगा, गंडक और सोन नदियों के संगम पर एक सैनिक छावनी का निर्माण हुआ जहाँ से वैशाली पर अभियान में सुविधा हो। यह क्षेत्र पाटलीग्राम कहलाया जो बाद में पाटलीपुत्र के नाम से विख्यात हुआ और मगध के विस्तृत साम्राज्य की राजधानी बना। इस युद्ध में छल से भी काम लिया गया । भगवति सूत्र के अनुसार, अजातशत्रु ने अपने मंत्री वस्सकार की सहायता से वज्जि संघ के सदस्यों में फूट डालकर उनकी शक्ति को कमजोर कर दिया। तत्पश्चात उसने वैशाली पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। इस प्रकार गंगा नदी के दोनों ओर मगध का अधिपत्य बन गया। अभी भी अवन्ती का राज्य मगध का प्रबल शत्रु बना हुआ था। अजातशत्रु के शासन के अंत में अवन्ती के राजा द्वारा मगध पर आक्रमण की संभावना प्रस्तुत हुई। अजातशत्रु ने राजगीर की सुरक्षा हेतु किलेबंदी कराई। इन दीवारों के अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं। किसी कारणवश अवन्ती का आक्रमण टल गया। अजातशत्रु की मृत्यु तक मगध के विस्तार का पहला चरण पूरा हो चुका था और मगध की स्थिति समकालीन राज्यों में सर्वोपरि होने लगी थी।

अजातशत्रु का उत्तराधिकारी उदयभद्र (उदयिन) था (460-444 ई०पू०) । साम्राज्य के क्षेत्रों में उत्तर और पश्चिम की ओर विस्तार के पश्चात् अब राजगीर राजधानी के रूप में उपयुक्त नहीं रही थी। प्रमुख नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण पाटलीपुत्र संचार, यातायात और व्यापार के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण था। अतः उदयिन ने पाटलीपुत्र को अपनी राजधानी बनाया। इसी के साथ पाटलीपुत्र का उत्कर्ष आरंभ हुआ। उदयिन के उत्तराधिकारी दुर्बल और अयोग्य थे। महावंश के अनुसार ये सभी पितृहंता भी थे। अतः उनसे तंग आकर प्रजा ने उनकी सत्ता का अंत कर दिया। इस वंश का अंतिम शासक नागदशक था।

अगले शासक, शिशुनाग द्वारा मगध की राजधानी वैशाली में स्थापित की गयी। उसने मगध की सीमाओं का और अधिक विस्तार किया। उसकी सर्वश्रेष्ठ सफलता अवन्ती के राज्य पर विजय थी। इसी के साथ इन दोनों राज्यों के मध्य लगभग एक शताब्दी पुरानी प्रतिद्वंदता समाप्त हुई। पुराणों के अनुसार प्रद्योत वंश की सेना नष्ट हुई और अवन्ती का क्षेत्र मगध साम्राज्य में शामिल हो गया। शिशुनाग ने वत्स और कोशल के राज्यों पर भी विजय प्राप्त की। उसके उत्तराधिकारी कालाशोक के अधीन वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगति का आयोजन हुआ। लेकिन कालाशोक का शासन अल्पकालीन रहा। तत्पश्चात महापद्मनंद ने सत्ता पर अधिकार कर लिया (344 ई०पू०)।

महापद्मनंद को निम्न मूल का कहा जाता है मगर वह एक महान विजेता और योग्य शासक था। मौर्यों के उत्कर्ष के पूर्व मगध-साम्राज्य की सीमाओं का सर्वाधिक विस्तार उसी ने किया। उसने एकारट की उपाधि धारण की, कलिंग पर विजय प्राप्त की, कोशल में विद्रोह का दमन कर उस पर अपना नियंत्रण सुदृढ़ किया और संभवतः उत्तरी कर्नाटक तक साम्राज्य-विस्तार किया। उसका अंतिम वंशज धनानंद था जिसके शासनकाल में सिकंदर का भारत में अभियान हुआ। नंद साम्राज्य उस समय शक्तिशाली अवस्था में था। कहा जाता है कि नंद वंश के सैन्य बल, विशेषकर हस्तिसेना, के कारण ही सिकंदर के सैनिकों ने व्यास नदी का तट पार करने से इंकार कर दिया और सिकंदर का भारतीय अभियान अधूरा ही रहा। धनानंद एक अत्याचारी शासक था और प्रजा में अलोकप्रिय । सिकंदर की वापसी के बाद व्याप्त राजनैतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने धनानंद का वध कर पाटलीपुत्र पर अधिकार कर लिया और मगध साम्राज्य पर मौर्य वंश की सत्ता स्थापित हो गयी।

मगध राज्य के उत्कर्ष के कई कारण थे। इस क्षेत्र में लोहे की अनेक खानें थीं जो अच्छे हथियारों के निर्माण में सहायक थीं। यहाँ नये अस्त्र-शस्त्र का विकास भी हो रहा था जिनमें महाशिलाकंटक और रथमूसल अत्यंत उपयोगी थे। मगध का राज्य मध्य-गांगेय घाटी के केन्द्र में स्थित था। यह क्षेत्र अत्यधिक उर्वर और समृद्ध था। कृषि की सम्पन्न अवस्था के कारण शासकवर्ग के लिए आर्थिक संसाधनों की प्राप्ति भी आसान थी जो साम्राज्य-विस्तार के लिए अनिवार्य थे। इस क्षेत्र में व्यापार भी समृद्धि अवस्था में था और इस कारण अतिरिक्त आर्थिक संसाधन भी उपलब्ध थे। मगध के क्षेत्र में हाथी भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे जिनकी सहायता से विरोधी शासकों के दुर्गों और नगरों पर अधिकार आसान था । मगध की दोनों राजधानियाँ, राजगीर और पाटलीपुत्र अत्यंत सुरक्षित और सुदृढ़ थीं । राजगीर पाँच पहाड़ियों से घिरा नगर था जिसके प्रवेश मार्ग मजबूत किलेबंदी द्वारा सुरक्षित थे । पाटलिपुत्र चार नदियों से घिरा सुरक्षित जलदुर्ग था जिस पर विजय आसान नहीं थी। इन सबके अतिरिक्त मगध में ऐसे योग्य और महत्वाकांक्षी शासक सत्ता में रहे जिन्होंने अपने अदम्य उत्साह-और शौर्य से साम्राज्य विस्तार को संभव बनाया।

Key Notes –

  • मगध राज्य के आरंभिक इतिहास की चर्चा महाभारत में आई है।
  • महाभारत में मगध के शासक जरासंध का उल्लेख है जिसे भीम ने द्वन्द-युद्ध में पराजित किया था।
  • छठी शताब्दी ई०पू० के पश्चात मगध का राजनैतिक स्थिति सुदृढ़ होने लगी।
  • राजनैतिक स्थिति सुदृढ़ के लिए दो शासकों की देन निर्णायक थी, बिम्बिसार और अजातशत्रु।
  • बिम्बिसार और अजातशत्रु दोनों हरयंक वंश के शासक थे, और महात्मा बुद्ध के समकालीन थे।
  • महावंश के अनुसार बिम्बिसार ने पन्द्रह वर्ष की आयु में सिंहासन प्राप्त किया।
  • बिम्बिसार का शासन काल 544 ई०पू० – 492 ई०पू० तक था।
  • बिम्बिसार की पहली पत्नी कोशलदेवी, कोशल की राजकुमारी थी, और इस विवाह में दहेज के रूप में को काशी का क्षेत्र प्राप्त हुआ।
  • बिम्बिसार की दूसरी पली चेल्लना, वैशाली के लिच्छवी शासक परिवार की राजकुमारी थी।
  • बिम्बिसार की तीसरी पत्नी पंजाब की मद्र राजकुमारी थी।
  • बिम्बिसार ने अपने पूर्वी पड़ोसी, अंग के राज्य पर के शासक ब्रह्मदत्त का वध कर दिया, और अंग की राजधानी चम्पा में उसने अपने पुत्र अजातशत्रु को शासक नियुक्त किया।
  • बिम्बिसार को उसके महत्त्वकांक्षी पुत्र अजातशत्रु ने सिंहासन पर अधिकार करने के लिए अपने पिता को बंदी बना लिया।
  • बौद्ध स्रोतों में अजातशत्रु को अपने पिता का हत्यारा कहा गया है परन्तु जैन स्रोत इससे सहमत नहीं।
  • अजातशत्रु का शासन काल 492 ई०पू०- 460 ई०पू० तक था।
  • अजातशत्रु ने दो महत्त्वपूर्ण युद्ध लड़े –
  • पहला युद्ध कोशल के शासक प्रसेनजीत के साथ हुआ जिसने काशी पर पुनः अधिकार कर लिया था।
  • दूसरा युद्ध वज्जि गणराज्य के साथ हुआ।
  • वज्जि गणराज्य के साथ युद्ध के लिए गंगा, गंडक और सोन नदियों के संगम पर एक सैनिक छावनी का निर्माण हुआ जिसे पाटलीग्राम कहलाया जो बाद में पाटलीपुत्र के नाम से विख्यात हुआ।
  • अजातशत्रु ने राजगीर की सुरक्षा हेतु किलेबंदी कराई।
  • अजातशत्रु का उत्तराधिकारी उदयभद्र (उदयिन) था (460-444 ई०पू०) ।
  • उदयिन ने पाटलीपुत्र को अपनी राजधानी बनाया।
  • हरयंक वंश का अंतिम शासक नागदशक था।
  • अगले शासक, शिशुनाग द्वारा मगध की राजधानी वैशाली में स्थापित की गयी।
  • शिशुनाग के उत्तराधिकारी कालाशोक के अधीन वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगति का आयोजन हुआ।
  • महापद्मनंद को निम्न मूल का कहा जाता है मगर वह एक महान विजेता और योग्य शासक था।
  • मौर्यों के उत्कर्ष के पूर्व मगध-साम्राज्य की सीमाओं का सर्वाधिक विस्तार उसी ने किया।
  • नंद वंश का अंतिम वंशज धनानंद था जिसके शासनकाल में सिकंदर का भारत में अभियान हुआ।
  • कहा जाता है कि नंद वंश के सैन्य बल, विशेषकर हस्तिसेना, के कारण ही सिकंदर के सैनिकों ने व्यास नदी का तट पार करने से इंकार कर दिया
  • धनानंद एक अत्याचारी शासक था और प्रजा में अलोकप्रिय
  • चन्द्रगुप्त मौर्य ने धनानंद का वध कर पाटलीपुत्र पर अधिकार कर लिया और मगध साम्राज्य पर मौर्य वंश की सत्ता स्थापित हो गयी।
  • राजगीर पाँच पहाड़ियों से घिरा नगर था।
  • पाटलिपुत्र चार नदियों से घिरा सुरक्षित जलदुर्ग था।
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