सार्वभौतिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में लोक स्वास्थ्य प्रणाली की सीमाएँ हैं। क्या आपके विचार से निजी क्षेत्र इस कमी अथवा दूरी को भरने में सेतु के रूप में सहयोग कर सकते हैं? आप कौन-से अन्य उचित विकल्पों का सुझाव देंगे?

सार्वभौतिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में लोक स्वास्थ्य प्रणाली की सीमाएँ हैं। क्या आपके विचार से निजी क्षेत्र इस कमी अथवा दूरी को भरने में सेतु के रूप में सहयोग कर सकते हैं? आप कौन-से अन्य उचित विकल्पों का सुझाव देंगे?

अथवा

लोक स्वास्थ्य प्रणाली की सीमाओं को बताएं। निजी क्षेत्र इन कमियों को दूर करने के लिए किस हद तक मददगार हैं? अपने विचार दें। लोक स्वास्थ्य के अन्य विकल्पों की भी चर्चा करें।
उत्तर- बढ़ती जनसंख्या एवं बुनियादी सुविधाओं के अभाव में देश की अधिकांश आबादी कुपोषण का शिकार है। भौतिकवाद ने भी आम लोगों को मशीन के रूप में परिवर्तित कर दिया है। इच्छाओं की आपूर्ति के अभाव ने लोगों के मन में अवसाद सा भर दिया है। प्राकृतिक आपदाएं भी कोढ़ में खाज का काम कर रही हैं। इन सभी कारकों ने कई रोगों के प्रसार में आमूल-चूल भूमिका निभाई है। सरकार के पास रोगों के निदान के लिए पर्याप्त सुविधाओं का भी अभाव है। ऐसे में निजी क्षेत्र कुछ हद तक सेतु का काम कर सकते हैं।
में संपूर्ण राष्ट्र में बढ़ती आबादी की तुलना में सार्वभौमिक लोक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्र से लेकर महानगर तक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तृत जाल है। बावजूद इसके सभी क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में स्वास्थ्य सुविधाओं तक आम नागरिकों की पहुंच सुनिश्चित करना तर्कसंगत नहीं है।
सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवाओं की अपनी सीमाएं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र हेतु प्रशिक्षित नर्स (ANM) एवं चिकित्सकों का भी अभाव है। जहां ये मौजूद हैं वहां दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी है। चिकित्सक चाहते हैं कि लोग उनसे ईलाज उनके निजी चिकित्सालय में ही करवायें। निगरानी के अभाव में चिकित्सक प्राथमिक चिकित्सालय से या तो अनुपस्थित रहते हैं या विलम्ब से पहुंचते हैं। नर्सों में भी पर्याप्त भ्रष्टाचार है। वे सरकारी योजना के तहत बिक्री की जाने वाली दवाएं पैसे लेकर लोगों को बेचती हैं, इसके अलावा कुशल प्रशिक्षण का भी अभाव है। बुनियादी सुविधाओं के अभाव में लोगों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है। दवाओं की गैर-कानूनी बिक्री के कारण स्वास्थ्य केन्द्रों में इसका अभाव देखा गया है।
इन सीमाओं के बावजूद चिकित्सा हेतु निजी क्षेत्र भी सेतु के रूप में कारगर उपाय हो सकते हैं। कुशल चिकित्सक भरसक महंगे शुल्क पर अपने निजी अस्पताल खोल रखे हैं। इन अस्पतालों में आधुनिक चिकित्सा उपकरण मौजूद होने के कारण बेहतर ईलाज संभव हो पा रहा है। आज पूरे देश में निजी अस्पतालों की कमी नहीं है, एक तो चिकित्सकों को स्व-रोजगार मिला है, तो दूसरी तरफ आबादी को देखते हुए सरकारी अस्पतालों की कमी पड़ रही है, इस हेतु निजी संस्थाएं उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं।
सरकार स्वास्थ्य को लेकर गंभीर है, सरकारी बजट में आए दिन नए-नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) एवं अन्य अस्पताल खोलने के प्रावधान लाए जा रहे हैं। ग्रामीण स्तर पर PHC एवं जिला स्तर पर जिला चिकित्सालय भी मौजूद हैं। बाल विकास परियोजना के तहत चलाए जा रहे एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) आंगनबाड़ी के जरिए लोगों तक पहुंचाए जा रहे हैं, परन्तु ये कार्यक्रम कुशल तन्त्र व प्रबंधन के अभाव में अपर्याप्त हैं। ऐसे में निजी क्षेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में एक वरदान से कम नहीं हैं।
इन स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ते दबाव को देखते हुए, आवश्यक हो गया है कि चिकित्सा के अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जाए। बेहतर स्वास्थ्य हेतु आवश्यक है कि वातावरणीय स्वच्छता एवं शुद्ध पेयजल की आपूर्ति बना रहे। इसके अलावे योगी भी एक बेहतर विकल्प है। चिकित्सा के अन्य रूपों यथा – आयुर्वेद, यूनानी, होमियोपैथी पर भी शोध किए जायें तथा यह सुनिश्चित किए जाएं कि इन क्षेत्रों में भी चिकित्सकों की उपलब्धता हो ।
इस प्रकार, सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ती आबादी के लिहाज से अपर्याप्त हैं। इन सरकारी सेवाओं की अपनी सीमाएं भी हैं जिस पर निजी क्षेत्र हद तक अंकुश लगा सकते हैं। आवश्यक है कि चिकित्सा के अन्य क्षेत्रों पर भी शोध हो ताकि संपूर्ण स्वास्थ्य मिशन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
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