भारतीय कृषि में 1991 से संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिए। बिहार में कृषि उत्पादन और उसकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए क्या व्यावहारिक उपाय किए जाने चाहिए?

भारतीय कृषि में 1991 से संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिए। बिहार में कृषि उत्पादन और उसकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए क्या व्यावहारिक उपाय किए जाने चाहिए?

उत्तर – भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की अहम भूमिका है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश की आबादी का लगभग 54.6% कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियों में लगा है तथा देश में मौजूदा कीमतों पर सकल संवर्धित मूल्य में कृषि एवं सहायक क्षेत्रों का हिस्सा 2019-20 में 16.5% हो गया है ।
भारत में 1991 में आर्थिक सुधारों के द्वारा जो वैश्विकरण निजीकरण तथा उदारीकरण की नीति लाई गई उससे भारतीय कृषि क्षेत्र में निम्न परिवर्तन के माध्यम से कृषि संवृद्धि तथा उत्पादकता को बढ़ाने का प्रयास किया गया।
1. इन सुधारों से कृषि क्षेत्र का मशीनीकरण करने में सहायता मिली।
2. उन्नत बीज तथा खाद आदि की आपूर्ति का रास्ता आसान हुआ।
3. कृषि पर नई व्यापार नीतियों का प्रभाव पड़ा।
4. इन सुधारो ने खाद्य प्रसंस्करण तथा विपणन के माध्यम से कृषि क्षेत्र को सहायता पहुँचाने का कार्य किया।
5. इसके द्वारा भारत के कृषि उत्पादों के लिए नये बाजार के द्वार खुले जिसने अंततः उत्पादकता बढ़ाने के लिए किसानों को प्रेरित किया।
6. वैश्वीकरण के द्वारा प्रौद्योगिकी विकास जो वैश्वीक स्तर पर हुए उसे भारत का कृषि क्षेत्र लाभानावीत हुआ तथा हमारे देश के कृषि वैज्ञानिकों को प्रौद्योगिकी विकास तथा अनुसंधान करने के लिए प्रोत्साहित किया।
•  कृषि क्षेत्र में संवृद्धि का तुलनात्मक अध्ययन 1991 से अब तक
पिछले कुछ दशकों के दौरान, अर्थव्यवस्था के विकास में मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र का योगदान तेजी से बढ़ रहा है । परन्तु कृषि क्षेत्र के योगदान में गिरावट आई है। 1950 के दशक में जी. डी. पी. में कृषि क्षेत्र का हिस्सा लगभग 50 प्रतिशत था जो 1991 में लगभग 30 प्रतिशत हो गया था और वर्तमान में 16.5 प्रतिशत है ( आर्थिक समीक्षा 2019-20 )
हालांकि जी.डी.पी. में योगदान लगातार कम होने के बावजूद खाद्यान्न उत्पादन लगातार प्रत्येक वर्ष बढ़ रहा हैं। देश गेंहू, चावल, गन्ने और कपास आदि जैसी फसलों के मुख्य उत्पादकों में से एक है। भारत दुग्ध उत्पादन में पहले तथा फलो और सब्जीयों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। 2013 में भारत ने दाल उत्पादन में 25 प्रतिशत का योगदान दिया जोकि एक देश के लिहाज से सबसे अधिक है। इसी प्रकार कृषि विकास
 चावल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी वैश्वीक स्तर पर 22 प्रतिशत तथा गेंहू उत्पादन में 13 प्रतिशत है। पिछले अनेक वर्षों से भारत दूसरे सबसे बड़े कपास निर्यातक होने के साथ-साथ कुल कपास उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी लगभग 25 प्रतिशत है। हालांकि अनेक फसलों के मामलो 2 में कृषि उत्पादकता चीन, ब्राजील तथा अमेरिका जैसे बड़े कृषि उत्पादक देशों की तुलना में कम है।
ऐसे कई कारण है, जो कि कृषि उत्पादकता को प्रभावित करते है। जैसे खेती की जोत का आकार निरंतर छोटा होना है। कृषि की मानसून पर निर्भता तथा पर्याप्त सिंचाई सुविधा का न होना, उर्वरको का असंतुलित उपयोग जिससे उर्वता में कमी भारत में आधुनिक तकनीक का
सभी किसानो को उपलब्ध न होना तथा ऋण की असमान उपलब्धता तथा खाद्यन्नों का सरकारी ऐजैंसीयों द्वारा पूर्ण खाद्यन खरीद न होने से किसान हतोउत्साहीत होते हैं जिससे संवृद्धि तथा उत्पादकता पर प्रभाव पडता है।
कृषि की उत्पादकता कई करको पर निर्भर करती हैं। जैसे कृषि इनपूट्स-जमीन, पानी, बीजा एवं उर्वरकों की उपलब्धता और गुणवत्ता, कृषि ऋण एवं फसल बीमा की सुविधा, कृषि उत्पादों के लाभकारी मूल्यों का आश्वासन तथा स्टोरेज, मार्केटिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि में सुधार कर तथा उत्पादक किसानों को सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराकर उनकी उपज के मूल्यों को सुनिश्चित कर कृषि उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।
• भारत में कृषि उत्पादन 1991 के बाद से अबतक
1. खाद्यान्नों का कुल उत्पादन 1950-51 में 51 मिलियन टन से बढ़कर 2015-16 में 252 मिलियन टन तथा 2016-17 में 272 मिलियन टन हो गया।
2. 1960 के दशक मे हारित क्रांति के बाद गेंहू और चावल के उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई तथा 2015-16 तक देश के कुल उत्पादन में गेंहू और चावल की जिस्सेदारी 78 प्रतिशत हो गई।
• भारत में कृषि उत्पादकता
भारत में कृषि उत्पादकता की वृद्धि दर बहुत धीमी रही है। उदाहरण के लिए 1981 में ब्राजील में चावल की उत्पादकता 1.3 टन प्रति हैक्टेयर थी जोकि 2011 में बढ़कर 4.9 टन प्रति हैक्टेयर हो गई, इसके मुकाबले भारत की उपज 2.0 टन प्रति हैक्टेयर से बढ़कर 3.6 टन प्रति हैक्टेयर हो गई। इसी अवधि में चीन की उत्पादकता 4.3 टन से बढ़कर 6.7 टन प्रति हैक्टेयर हो गई ।
अतः 1991 के सुधारों द्वारा कुल खाद्यान्न उत्पादन तो अप्रत्याशित रूप से बढ़ा परन्तु कृषि क्षेत्र की विकास दर को सुधारने की आवश्यकता है ताकि सरकार के किसानों की आय दुगना करने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके तथा आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम को मजबूती के साथ पूर्ण किया जा सके ।
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