यू.पी.पी.एस.सी. 2018 मुख्य परीक्षा सामान्य हिन्दी हल प्रश्न-पत्र
यू.पी.पी.एस.सी. 2018 मुख्य परीक्षा सामान्य हिन्दी हल प्रश्न-पत्र
विशेष अनुदेश:
(i) सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
(ii) प्रत्येक प्रश्न के अंत में निर्धारित अंक अंकित है।
(iii) पत्र, प्रार्थना पत्र या किसी अन्य प्रश्न के उत्तर के साथ अथवा अन्य किसी का नाम, पता एवं अनुक्रमांक ना लिखें। आवश्यक होने पर क, ख, ग उल्लेख कर सकते हैं।
1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ। जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से बचा न सके, जो उसकी आत्मा की तेजोद्दीप्त न बना सके, जो उसके हृदय को परदुःखकातर और संवेदनशील न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है। मैं अनुभव करता हूँ कि हम लोग एक कठिन समय के भीतर से गुजर रहे हैं। आज नाना भाँती के संकीर्ण स्वार्थों ने मनुष्य को कुछ ऐसा अंधा बना दिया है कि जाति-धर्म-निर्विशेष मनुष्य के हित की बात सोचना असंभव हो गया है। ऐसा लग रहा है कि किसी विकट दुर्भाग्य के हंगित पर दलगत स्वार्थ प्रेम ने मनुष्यता को दबोच लिया है। दुनिया छोटे-छोटे संकीर्ण स्वार्थों के आधार पर अनेक दलों में विभक्त हो गई है। अपने दल के बाहर का आदमी संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। उसके रोने-गाने तक पर असदुद्देश्य का आरोप किया जाता है। उसके तप और सत्यनिष्ठा का मजाक उड़ाया जाता है।
(a) प्रस्तुत गद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
(b) साहित्य के लक्ष्य के विषय में उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर विचार कीजिए |
(c) प्रस्तुत गद्यांश की रेखांकित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : (a) प्रस्तुत अवतरण में लेखक ने मनुष्य के साहित्य में स्वार्थपरकता का उल्लेख किया है। साहित्य लेखन में असंवेदनशीलता, उद्देश्यहीनता तथा जनकल्याण मार्ग से विमुखता का अवलोकन साहित्य में किया जा सकता है। दलगत स्वार्थपरकता का प्रभाव साहित्य तथा मानवता पर परिलक्षित हो रहा है।
(b) साहित्य का लक्ष्य मानव मात्र को स्वार्थपरकता, दरिद्रता, असंवेदनशीलता एवं आत्मिक पतन से बचाना है। संकीर्णता एवं स्वार्थपरकता से मानव तथा साहित्य दोनों का पतन होता है।
(c) प्रस्तुत अवतरण लेखक ने अपना दृष्टिकोण साहित्य के प्रति व्यक्त किया है। साहित्य का उद्देश्य मानव जाति के कल्याण से जुड़ा हुआ है। साहित्य मनुष्य को स्वार्थपरकता, निर्ममता, असंवेदनशीलता के दुष्चक्र से बचाता है। जो साहित्य मानवीय गुणों को संरक्षित न रख सके, उसे मात्र कागज का पुलिंदा कहना ही उचित होगा। संकीर्ण विचारों से मनुष्य इतना जुड़ चुका है कि उसे अपने पतन की अनुभूति ही नहीं हो रही है। धर्म, जाति या वर्ग के दायरे से बाहर निकलना ही नहीं चाहता है। इस तरह की प्रवृत्ति उसे खण्डित कर रही है। संपूर्ण विश्व स्वार्थ, जाति, धर्म, समुदाय आदि में विभाजित हो गया है। मनुष्य में जनकल्याण की प्रवृत्ति का ह्रास हो रहा है।
2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर निर्देशानुसार उत्तर लिखिए।
परिवर्तन से हम बच नहीं सकते। परिवर्तन से बचना अगति और दुर्गति को आमन्त्रित करना है। यद्यपि स्थिरता में किसी अंश में सुरक्षा है, तथापि बिना जोखिम लिए आगे नहीं बढ़ा जाता है। नियमों की स्थिरता जो विज्ञान में है और स्फूर्तिमय जीवन की गतिशीलता जो साहित्य में है, दोनों के बीच का हमें संतुलित मार्ग खोजना है। जीवन के संतुलनों में नए और पुराने संतुलन भी विशेष महत्त्व रखता है। संसार की गतिशीलता के साथ हमको भी गतिशील होना पड़ेगा, किंतु आँखें मूंदकर अंधकार की खाई में कूदना शूरता नहीं है। हमको आगे कदम बढ़ाना है किंतु आँखें खोलकर । नवीन के लिए हम अपने मनमंदिर का द्वार सदा खुला रखें, पूर्वाग्रहों से काम न लें। उसके पक्ष और विपक्ष की युक्तियों को न्याय की तुला पर तौलें । एक सीमा के भीतर नए प्रयोगों को भी अपने जीवन में स्थान दें, किंतु केवल नवीनता के प्रमाण-पत्र मात्र से संतुष्ट न हो जाएं। जिस तर्कबुद्धि को हम प्राचीन प्रथाओं के उन्मूलन में लगाते हैं उसी निर्मम तर्क को नवीन के परीक्षण में भी लगावें किंतु नवीन को भूत की भांति भय का कारण न बनावें ।
(a) प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(b) प्राचीन और नवीन में संतुलन क्यों आवश्यक है ? विचार कीजिए।
(c) प्रस्तुत गद्यांश का संक्षेपण कीजिए।
उत्तर: (a) परिवर्तन एवं विकास
(b) प्राचीन एवं नवीन विचारों, सभ्यता, संस्कृति अथवा जीवन शैली में संतुलन अति आवश्यक है। प्राचीन जीवन मूल्यों को सहेजना आवश्यक है, साथ ही आधुनिक सकारात्मक विचारों का समावेश भी होना चाहिए। अतीत के अवरोधात्मक प्रय का शमन होना चाहिए।
(c) परिवर्तन को रोका नहीं जा सकता है, गतिशीलता स्वाभाविक है। वैज्ञानिक सोच एवं मानवीय मूल्यों का संतुलन आवश्यक है। गतिशीलता में संतुलन आवश्यक है। उन्नत विचारों को आत्मसात करने से पहले उनके नकारात्मक एवं त पक्षों पर गौर करना होगा।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर
दीजिए: (a) ‘अधिसूचना’ को परिभाषित करते हुए मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार की और से शिक्षकों की सेवानिवृत्ति बढ़ाने के संदर्भ में एक अधिसूचना का प्रारूप तैयार कीजिए।
(b) स्वास्थ्य विभाग, उत्तर प्रदेश लखनऊ की ओर से सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली को भेजने के लिए एक अर्ध सरकारी पत्र का प्रारूप तैयार कीजिए जिसमें उत्तर प्रदेश में कुपोषण से जूझते बच्चों के इलाज के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय से पूर्व में माँगी गई सहायता को यथाशीघ्र स्वीकृत करने के लिए आग्रह किया गया हो।
उत्तर – (a) अधिसूचना:- सरकारी नियम, आदेश, चेतावनी, नियुक्ति, अवकाश आदि से संबंधित सूचना को व्यक्तियों एवं आम जनता के लिए राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है, उसे अधिसूचना कहते हैं।
उत्तर प्रदेश शासन शिक्षा अनुभाग-2
संख्या-21/2019/450/1 2 – 2020
लखनऊ, दिनांक : 10 मार्च, 2020
अधिसूचना संख्या- 134678/2034 C-A/201, दिनांक 12/02/2020 के उत्तर प्रदेश गजट में प्रकाशन उपरांत यह सूचित किया जाता है कि शिक्षकों की सेवा निवृत्ति वय को 62 वर्ष से 65 वर्ष तक बढ़ाया जाता है। विदित हो कि यह आदेश 1/01/2000 के बाद नियुक्त शिक्षकों पर यह लागू होगा तथा आयु की गणना दिनांक ……….. से की जाएगी।
प्रतिलिपि निम्न को सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्रवाई हेतु प्रेषित
1. संयुक्त सचिव, कार्मिक अनुभाग, उत्तर प्रदेश शासन
2. विशेष सचिव, नियुक्ति अनुभाग, उत्तन प्रदेश शासन
(b) प्रेषक क. ख. ग.
पी. सी. एस. अवर सचिव, स्वास्थ्य विभाग
पत्र संख्या ……….
उत्तर प्रदेश शासन, लखनऊ 856484
लखनऊ, दिनांक ……….
सेवा में,
सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली विषय – कुपोषित बच्चों के इलाज हेतु अनुदान की स्वीकृति ।
प्रिय श्री ………….
उपरोक्त विषयक पत्रांक ………..दिनांक
संदर्भ ग्रहण करने का कष्ट करें, उत्तर प्रदेश शासन ने इस विषय पर अपेक्षित अनुदान का पूरा ब्योरा प्रस्तुत कर दिया था तथा इससे पूर्व भी आपसे दूरभाष पर वार्ता हुई थी। कुछ दिनों पूर्व उत्तर प्रदेश के कुछ जनपदों में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) से बच्चों के प्रभावित होने की खबरें आपने पढ़ी होगी, राज्य सरकार आजकल वित्तीय अभाव का सामना कर रही है। कुपोषित बच्चों के लिए जो अभियान चलाया जाना था उससे पहले इस व्याधि के प्रकोप ने विपरीत स्थितियां उत्पन्न कर दी हैं। आपसे निवेदन है कि इस स्थिति की गंभीरता को समझते हुए स्वयं विशेष रूचि लेकर अनुदान की स्वीकृति में जो बाधाएं हैं उनको हटाते हुए अविलंब अनुदान सुनिश्चित करवाये जाने में हमारी सहायता करें, मैं आपका आभारी रहूँगा ।
संलग्नक
1. प्रस्तावित अनुदान के खर्च का रोडमैप
भवदीय
क.ख.ग
2. ……
5. निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिएः
आवरण, कृतज्ञ, अज्ञ, नैसर्गिक, अधम, आहूत, सकर्मक, मान, घात, वैतनिक
उत्तरः आवरण – अनावरण
कृतज्ञ – कृतघ्न
अज्ञ – विज्ञ
नैसर्गिक – कृत्रिम
अधम – उत्तम
आहूत – अनाहूत
सकर्मक – अकर्मक
मान – अपमान
घात – प्रतिघात
वैतनिक – अवैतनिक
6. (a) निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए:
(i) यह आँखों से देखी घटना है।
(ii) सौ रूपया सधन्यवाद प्राप्त हुआ।
(iii) गीता ने सीता से पूछा कि सीता कहाँ चली गई
थी ?
(iv) दक्षिण का अधिकांश भाग पठार है।
(v) मैंने बोला कि कल मत आना ।
उत्तर : (a) वाक्य शुद्धिकरण
(i) यह आँखों से देखी घटना है। (×)
= यह आँखों देखी घटना है। (√)
(ii) सौ रुपया सधन्यवाद प्राप्त हुआ। (×)
= सौ रुपये सधन्यवाद प्राप्त हुए। (√)
(iii) गीता ने सीता से पूछा कि सीता कहाँ चली गई थी ? (×)
= गीता ने सीता से पूछा कि वह कहाँ चली गई थी। (√)
(iv) दक्षिण का अधिकांश भाग पठार है। (×)
= दक्षिण का अधिकांश पठार है । (√)
(v) मैंने बोला कि कल मत आना । (×)
= मैंने कल आने के लिए मना किया। (√)
(b) निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी का संशोधन कीजिए:
शिक्षणेत्तर, उपरोक्त, सौहार्द्र, पूज्यनीय, पूज्यनीय, सौजन्यता
उत्तर : (b) वर्तनी संशोधन
शिक्षणेत्तर – शिक्षणेत्तर
उपरोक्त – उपरोक्त
सौहार्द्र – सौहार्द
पूजनीय – पूज्यनीय
सौजन्य – सौजन्यता
7. निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक-एक शब्द लिखिए:
(i) आकाश को चूमने वाला।
(ii) संध्या और रात के बीच का समय।
(iii) हमेशा रहने वाला।
(iv) सौ में सौ ।
(v) जो बात वर्णन से परे हो ।
उत्तरः वाक्यांश के लिए एक शब्द
(i) आकाश को चूमने वाला = गगनचुंबी
(ii) संध्या और रात के बीच का समय गोधूलि
(iii) हमेशा रहने वाला = शाश्वत
(iv) सौ में सौ = शत प्रतिशत
(v) जो बात वर्णन से परे हो = वर्णनातीत
8. निम्नलिखित मुहावरों / लोकोक्तियों के अर्थ स्पष्ट कीजिए और अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए:
(i) नक्कारखाने में तूती की आवाज
(ii) मक्खी मारना
(iii) तिल का ताड़ बनाना
(iv) सिर आँखों पर बैठाना
(v) हवा का रंग देखना
(vi) ढाक के तीन पात
(vii) गुरु कीजे जान के पानी पीजे छान के ,
(viii) कर खेती परदेस को जाए, वाको जनम अकारथ जाए
(ix) फूहड़ चालें, नौ घर हालें
(x) अपनी करनी पार उतरनी
उत्तरः मुहावरों / लोकोक्तियों का वाक्य में प्रयोग
(i) नक्कारखाने में तूती की आवाज
अर्थ = कमजोर व्यक्ति को अनसुना करना
वाक्य प्रयोग = शर्मा जी ने इस अन्याय की काफी शिकायत की, लेकिन नक्कार खाने में तूती की आवाज कौन सुनता है ?
(ii) मक्खी मारना
अर्थ = खाली बैठना, बेरोजगार रहना
वाक्य प्रयोग = राजीव को दो वर्ष हो गए बी. ए. पास किए परंतु अभी भी वह मक्खी मार रहा है।
(iii) तिल का ताड़ बनाना
अर्थ = छोटी-सी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना
वाक्य प्रयोग = हमें तिल का ताड़ बनाकर आपसी व्यवहार में खटास नहीं लानी चाहिए चाहिए।
(iv) सिर आँखों पर बैठाना
अर्थ बहुत आदर सत्कार करना
वाक्य प्रयोग = वर्मा जी जब भी मेरे गाँव आते हैं, लोग उन्हें सिर आंखों पर बैठाते हैं।
(v) हवा का रंग देखना
अर्थ = समय को पहचानकर काम करना
वाक्य प्रयोग = राजीव बहुत सचेत होकर तथा हवा का रंग देखकर कदम उठाता है।
(vi) ढाक के तीन पात
अर्थ = परिणाम का कुछ न होना, पहले जैसी स्थिति बनी रहे
वाक्य प्रयोग = रोहित के बड़े भाई ने उसे काफी समझाया लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात, वह अभी तक तंबाकू खाना नहीं छोड़ा।
(vii) गुरु कीजे जान के पानी पीजे छान के
अर्थ = जांच परख कर निर्णय लेना
वाक्य प्रयोग = जो व्यक्ति ‘गुरु कीजे जान के पानी पीजे छान के’ वाले सिद्धांत ” पर चलता है, उसे निराशाजनक स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता है।
(viii) कर खेती परदेश को जाए, वाको जनम अकारथ जाए
अर्थ = एक कारोबार करके दूसरे का सहारा खोजना
वाक्य प्रयोग = मोहित ने कपड़े की दुकान खोलकर जूते की दुकान खोलने पर विचार कर रहा है, यह तो वही बात हो गई कि कर खेती परदेश को जाए, वाको जनम अकारथ जाए।
(ix) फूहड़ चाले, नौ घर हाले
अर्थ = अविवेकी व्यक्ति द्वारा अपने विवेक का ढिढोरा पीटना
वाक्य प्रयोग = भोलू प्रसाद की अवकात सभी को मालूम है परंतु उनके दिखावा से ऐसा लगता है कि वे बहुत सम्मानित व्यक्ति हैं। अर्थात फूहड़ चाले, हाले वाली स्थिति बन जाती है। नौ घर
(x) अपनी करनी पार उतरनी
अर्थ = कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति
वाक्य प्रयोग = बुढ़ापे में भोलू की स्थिति बहुत खराब हो गई है। वास्तव में वह अपनी बूढ़ी माँ को बहुत सताया था। अब उसे लोगों से ताना सुनने को मिल रहा है कि अपनी करनी पार उतरनी ।
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